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सामाजिक कुरीति के खिलाफ बेटी को बुरी संगत से बचाने में जुटी बेडिया समाज की 'अरुणा'

सामाजिक कुरीति के खिलाफ बेटी को बुरी संगत से बचाने में जुटी बेडिया समाज की 'अरुणा'

Sunday December 13, 2015 , 6 min Read

1992 में स्थापित हुआ “विमुक्त जाति अभ्युदय आश्रम”...

आश्रम में बेडिया जाति के 200 बच्चे...

पढ़ाई के साथ सामाजिक गतिविधियों से जोड़ा जाता है बच्चों को...

बेहतर समाज बनाने की कोशिश...


21वीं सदी में रहने के बावजूद भारतीय समाज में आज भी जाति प्रथा, छुआछूत और बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियां मौजूद हैं। इसी समाज में आज भी कई ऐसी जातियां हैं जिनके समुदाय में जन्म लेने वाली लड़की बड़ी होकर वेश्यावृति का काम करती हैं और अगर लड़का पैदा होता है तो वो वेश्यावृति से जुड़ी दलाली का काम करता है। इनमें से एक जाति वो है जिसे बेडिया जाति कहते हैं। इसी जाति की बरसों पुरानी प्रथा को खत्म करने की कोशिश कर रही हैं मध्य प्रदेश के मुरैना में रहने वाली अरूणा छारी। जो खुद इसी जाति से ताल्लुक रखती हैं और आज इस समाज में जन्म लेने वाले बच्चों को इस सामाजिक बीमारी से दूर रखने की कोशिश कर रही हैं।

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अरूणा छारी को इस काम की प्रेरणा अपने चाचा राम स्नेही से मिली। जिन्होने अपनी एक चचेरी बहन को वेश्या बनने से बचाया था जिसके बाद उन्होने तय किया था कि वो इस सामाजिक बुराई को बंद करके रहेंगे। उनके इस काम में बढ़ चढ़ कर साथ दिया अरूणा छारी ने। जो आज बेडिया जाति के लिए मध्य प्रदेश के मुरैना में चलाये जा रहे विमुक्त जाति अभ्युदय आश्रम की अध्यक्ष भी हैं। अरुणा का कहना है- 

"बरसों पुरानी इस बुराई की मुख्य वजह इस समुदाय में अशिक्षा एक बड़ा कारण है। इस कारण ये लोग समाज के दूसरे वर्ग के साथ जुड़ नहीं पाते। इन लोगों की मानसिकता थी कि ये समाज से दूसरे लोगों के साथ उठ बैठ नहीं सकते। इस वजह से ये लोग मुख्यधारा से कटे हुए थे। जिनको अब समाज के साथ जोड़ने का काम हम कर रहे हैं।"
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अरूणा छारी खुद बेडिया समाज से ताल्लुक रखती हैं इन्होने अपने समाज की स्थिति को काफी करीब से देखा था, इसलिए इनका मानना था 

“जो हालात दूसरी लड़कियों के साथ बने वो मेरे साथ भी बन सकते थे इसलिए मैंने इसमें बदलाव लाने के लिए अपने आपको शिक्षा से जोड़कर रखा। आज इसी शिक्षा के बदलौत मैं इस समाज के लिए कुछ सोच पाई हूं।”

यही वजह है कि अरुणा छारी आज बेडिया समुदाय के दूसरे बच्चों के भविष्य सुधारने का काम कर रही हैं। उनका कहना है कि बेडिया समुदाय के लोग किसी गांव में नहीं रहते बल्कि ये लोग गांव से बाहर रहते थे और आज ये ना सिर्फ मध्य प्रदेश में बल्कि, यूपी, हरियाणा और राजस्थान जैसे दूसरे प्रदेशों में भी अलग अलग नाम से रहते हैं।

मध्य प्रदेश में मुरैना में इस आश्रम की शुरूआत साल 1992 में ये सोच कर की गई थी की इसके जरिये समाज की बुराइयों को दूर किया जा सकेगा। इसके लिए इस आश्रम की शुरूआत में 100 बच्चों को यहां पर रखा गया लेकिन आज ये संख्या 200 बच्चों तक पहुंच गई है। ये सभी बच्चे बेडिया समुदाय से जुड़े हैं। हालांकि शुरूआत में इस आश्रम को कर्ज लेकर तक चलाना पड़ा जिसके बाद राज्य सरकार ने इनकी आर्थिक मदद की। आज बच्चों के लिए आश्रम के अंदर ही हाईस्कूल तक की निशुल्क शिक्षा दी जाती है। उच्च शिक्षा के लिए ये लोग लड़कियों को हॉस्टल की सुविधा देते हैं। अरूणा का कहना है कि उनका मुख्य उद्देश्य लड़कियों को सशक्त बनाना है, ताकि वो अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से निभा सकें। आश्रम में रहने वाले कई बच्चे अनाथ भी हैं। जबकि आश्रम में रहने वाली 92 लड़कियों की अब तक शादी हो चुकी है जबकि इनमें से सात लड़कियों की शादी आश्रम ने अपने खर्चे पर कराई है।

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आश्रम में रहने वाले बेडिया जाति के बच्चे अपनी सुबह की शुरूआत एक प्रभात फेरी से करते हैं। जिसके बाद इनको कराटे की ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद इनको नाश्ता कराया जाता है। उसके बाद स्कूल में जाकर बच्चे पढ़ाई करते हैं। शाम को एक बार फिर खेलकूद और पढ़ाई होती है। अरूणा का कहना है कि “हम लोगों ने बच्चों को पढ़ाई के साथ साथ खेल कूद और सांस्कृतिक गतिविधियों से जोड़कर रखा हुआ है। हम लोग इन बच्चों को कई तरह की वोकेशनल ट्रेनिंग भी देते हैं जैसे कंप्यूटर, टाइपिंग और सिलाई कढ़ाई की।” आश्रम में खेल पर काफी ध्यान दिया जाता है। यहां पर ताइक्वांडो की नियमित ट्रेनिंग दी जाती है। यही वजह है कि आश्रम के कई लड़के लड़कियां राष्ट्रीय स्तर पर अपने राज्य का ना सिर्फ प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं बल्कि 7 लड़कियों ने राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल भी हासिल किया है। इस आश्रम में समय समय पर विभिन्न तरह की सांस्कृतिक गतिविधियों का भी आयोजन किया जाता है जिसमें यहां मौजूद लड़के लड़कियां बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इसके अलावा हर साल होने वाले युवा उत्सव में हिस्सा लेने के लिए आश्रम के बच्चे जाते हैं। अब तक कुल 53 बच्चे राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके हैं। खास बात ये है कि इस आश्रम में वही बच्चे हैं जो गरीब हैं और समाज की उस बुराई से बाहर निकलने का मौका ढूंढ रहे हैं।

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आश्रम की बदलौत आज बेडिया समुदाय के ज्यादातर बच्चे पुलिस सेवा से जुड़े हैं। यहां से पढ़ाई कर चुकी एक लड़की स्पेशल ब्रांच में सब इंस्पेक्टर है तो कई बच्चे खेल विभाग से जुड़े हैं तो कुछ जिला पंचायत से जुड़े हैं। तो वहीं कुछ बच्चे दूसरों को खेल का प्रशिक्षण दे रहे हैं। आश्रम में मिल रही सुविधाओं और पढ़ाई को देखते हुए बेडिया समुदाय के दूसरे लोग भी अब अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर जागरूक हो रहे हैं। अरूणा का कहना है कि “आज आश्रम में पढ़ने वाले बच्चे ही समाज में प्रचारक की भूमिका निभा रहे हैं।” आश्रम से जुड़े लोग भी बेड़िया समुदाय के निरंतर सम्पर्क में रहते हैं और सामाजिक कुरीतियों से दूर रहने के लिए उनको प्रोत्साहित करने का काम करते हैं। आश्रम को 33 लोगों की एक टीम संभालती है। आश्रम को चलाने में काफी आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अरूणा का कहना है कि “हम जो बदलाव लाना चाहते हैं वैसा हो नहीं रहा है। जैसे खेल का जो प्रशिक्षण इन बच्चों को दे रहे हैं उसके लिए किट जुटाना मुश्किल हो रहा है इसी तरह बच्चों के लिए जितने कंम्प्यूटर होने चाहिए उतनी व्यवस्था नहीं कर पाते।” बावजूद अरूणा और उनकी टीम आर्थिक दिक्कत से जूझने के बावजूद सामाजिक बदलाव लाने की कोशिश में लगे हुए हैं। अरूणा का कहना है कि जब तक जीवन है तब तक वो इस काम को नहीं छोड़ सकती।

“विमुक्त जाति अभ्युदय आश्रम” की किसी भी तरह की मदद करने के लिए आप [email protected] पर सम्पर्क कर सकते हैं।