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जो कभी नंगे पांव जाता था स्कूल, आज है 5 करोड़ टर्नओवर वाले अस्पताल का मालिक

जो कभी नंगे पांव जाता था स्कूल, आज है 5 करोड़ टर्नओवर वाले अस्पताल का मालिक

Thursday August 31, 2017 , 5 min Read

1972 में डॉ पांडेय सिर्फ 4 साल के थे और उन्हें पढ़ने के लिए 1.5 किलोमीटर दूर पैदल नंगे पांव स्कूल जाना पड़ता था। आज 45 साल बाद डॉ पांडेय के पास एमबीबीएस और एमएस की डिग्री है। उनके पास अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के संस्थानों के सर्टिफिकेट भी हैं।

डॉ सुरेश पांडेय

डॉ सुरेश पांडेय


डॉ. सुरेश पांडेय बताते हैं कि पिता की सैलरी ज्यादा न होने के कारण उन्हें केवल कुछ कपड़ों और एक चप्पल से काम चलाना पड़ता था। 

डॉ पांडेय पढ़ने में काफी तेज थे। इसी की बदौलत उन्हें 1980 में नेशनल टैलेंट सर्च स्कॉलरशिप भी हासिल की थी। 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद उऩ्हें एक और स्कॉलरशिप मिली।

एक पिछड़े गांव का लड़का, जिसके पास कभी पहनने के लिए केवल एक जोड़ी कपड़े होते थे उसने अपनी मेहनत से डॉक्टर की पढ़ाई की और आज वह 30 बेड वाले अस्पताल का मालिक है। इस अस्पताल का टर्नओवर 5 करोड़ रुपये है। राजस्थान के कोटा में आई सर्जन सुरेश कुमार पांडेय का अस्पताल है। इस अस्पताल में आई केयर यूनिट बस की भी सुविधा है। इस बस से आस-पास के गांवों में कैंप लगता है और गांव के गरीब लोगों की आंखों का ऑपरेशन भी होता है।

अपनी पढ़ाई के दिनों को याद करते हुए डॉक्टर पांडेय बताते हैं कि पैसों की कमी के कारण वह सिर्फ एक टाइम का खाना खाते थे। वह भी जैन भोजनालय में। पांडेय अपने दादाजी कामता प्रसाद को अपना आखिरी प्रेरणास्रोत मानते हैं। उनके दादाजी के पास आयुर्वेद की डिग्री थी। कामता प्रसाद उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से राजस्थान के कोटा आकर बस गए थे। 1972 में डॉ पांडेय सिर्फ 4 साल के थे और उन्हें पढ़ने के लिए 1.5 किलोमीटर दूर पैदल नंगे पांव स्कूल जाना पड़ता था। आज 45 साल बाद डॉ पांडेय के पास एमबीबीएस और एमएस की डिग्री है। उनके पास अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के संस्थानों के सर्टिफिकेट भी हैं।

डॉ पांडेय के पिता कामेश्वर पांडेय एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे। वह बताते हैं कि पिता की सैलरी ज्यादा न होने के कारण उन्हें केवल कुछ कपड़ों और एक चप्पल से काम चलाना पड़ता था। वह चार भाई बहन हैं। डॉ पांडेय पढ़ने में काफी तेज थे। इसी की बदौलत उन्हें 1980 में नेशनल टैलेंट सर्च स्कॉलरशिप भी हासिल की थी। 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद उऩ्हें एक और स्कॉलरशिप मिली और इसके बाद वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज जबलपुर (मध्य प्रदेश) आ गए। उन्होंने 1986 में बिना किसी कोचिंग के मेडिकल एगजाम पास किया था।

अपनी बेटी और पत्नी के साथ डॉ. पांडेय

अपनी बेटी और पत्नी के साथ डॉ. पांडेय


आज 45 साल बाद डॉ पांडेय के पास एमबीबीएस और एमएस की डिग्री है। उनके पास अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के संस्थानों के सर्टिफिकेट भी हैं।

MBBS की पढ़ाई के दौरान पांडेय ने काफी संघर्ष झेला था। वह बताते हैं कि उनके माता-पिता हर महीने केवल 600-800 रुपये भेजते थे। वह एक एक रुपये संभालकर खर्च करते थे। 1992 में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे चंडीगढ़ पीजीआई में एमएस का कोर्स करने आ गए। यहां उन्हें हर महीने 7,000 रुपये महीने के तौर पर स्टाइपेंड मिलने लगा। जो बाद में 10,000 हो गया। इसके बाद अडवांस ट्रेनिंग लेने के बाद पांडेय अमेरिका चले गए। उन्होंने स्टाइपेंड से बची हुई रकम को जोड़कर कुछ पैसे इकट्ठा किए थे। उसी से वे अमेरिका गए। वहां उन्होंने साउथ कैलिफोर्निया में स्टॉर्म आई मेडिकल इंस्टीट्यूट जॉइन किया। उन्हें वहां हर साल 22 हजार डॉलर की स्कॉलरशिप मिलती थी। वहां उन्होंने 5 सालों तक काम किया।

इसके बाद उनकी शादी हो गई और वे भारत वापस लौट आए। उनकी पत्नी भी एमबीबीएस और एमडी क्वालिफाइड डॉक्टर हैं। इसके बाद फिर से 2004 में उन्हें रिसर्च फेलोशिप मिली और वे अपनी पत्नी के साथ ऑस्ट्रेलिया चले गए। एकतरफ जहां डॉ पांडेय कॉन्ट्रैक्ट्स के क्षेत्र में काम कर रहे थे वहीं उनकी पत्नी ऑक्युलर प्लास्टिक सर्जरी पर काम कर रही थीं। 2005 में वे वापस भारत लौटे और थोड़े दिन हैदराबाद के एलवी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट में काम करने के बाद खुद का अस्पताल खोलने के बारे में सोचा। यहां रेत की वजह से लोगों की आंखों में काफी दिक्कतें और कई तरह के रोग होते थे।

ऑपरेशन करने के बाद डॉ. पांडेय और उनकी पत्नी

ऑपरेशन करने के बाद डॉ. पांडेय और उनकी पत्नी


 पांडेय डॉक्टर दंपती ने पिछले 6-7 सालों से लगभग 300 सर्जरी के विडियो भी यूट्यूब पर अपलोड किये हैं जिससे आई सर्जरी की पढ़ाई करने वालों को काफी मदद मिलती है।

डॉ. सुरेश पांडेय ने कोटा के तलवंडी में 30,000 रुपये महीने पर किराए पर एक डिस्पेंसरी खोली। उसका नाम उन्होंने खुद और पत्नी के नाम पर 'सुवि' रखा। सिर्फ 3 साल के भीतर उन्होंने खुद की जगह ले ली और एक भव्य अस्पताल विकसित किया। इसके लिए उऩ्होंने बैंकों से लोन भी लिया। उन्होंने तकरीबन दस लाख रुपये के इक्विपमेंट्स खरीदे। 1 जुलाई 2010 को फाइनली सुवी आई इंस्टीट्यूट और लैसिक लेसर सेंटर खुल गया। डॉ. पांडेय का यह अत्याधुनिक अस्पताल आई केयर और माइक्रो सर्जरी की पूरी सुविधा देता है। यहां पर आंखों की गंभीर बीमारियों का इलाज किया जाता है।

अभी इस अस्पताल में 4 डॉक्टरों सहित कुल 45 लोगों का स्टाफ है। 1995 से लेकर अब तक डॉक्टर पांडेय 50,000 आंखों की सर्जरी कर चुके हैं। उनके सेंटर में रोजाना 200-250 आंखों के मरीज आते हैं और लगभग 10 सर्जरी रोजाना होती हैं। उनकी आई केयर बस से राजस्थान और मध्य प्रदेश के लगभग 1 लाख लोगों को फायदा मिल रहा है। इस डॉक्टर दंपती ने पिछले 6-7 सालों से लगभग 300 सर्जरी के विडियो भी यूट्यूब पर अपलोड किये हैं जिससे आई सर्जरी की पढ़ाई करने वालों को काफी मदद मिलती है। उनकी दोस्ती दुनिया के नामी-गिरामी डॉक्टरों से है जो राजस्थान के कोटा में छोटे से गांव में बने इस अस्पताल में भी कभी-कभी ऑपरेशन करने आते हैं। डॉ पांडेय की 99 प्रतिशत सर्जरियां सफल रहती हैं। 

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