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सुपर-30 के स्टूडेंट अनूप ने गरीबी को दी मात, आज हेल्थकेयर स्टार्टअप के हैं फाउंडर

सुपर-30 के स्टूडेंट अनूप ने गरीबी को दी मात, आज हेल्थकेयर स्टार्टअप के हैं फाउंडर

Tuesday October 31, 2017 , 6 min Read

 अनूप का पूरा जीवन संघर्षों की दास्तान से भरा है। उनकी जिंदगी की शुरुआत होती है एक बड़े परिवार से जिसमें कुछ 22 सदस्य थे। एक छोटा-सा कच्चा घर और आजीविका का कोई साधन नहीं। 

अपनी मां के साथ अनूप

अपनी मां के साथ अनूप


 जब दसवीं का बोर्ड एग्जाम हुआ तो अनूप ने अपनी मेहनत का परचम लहरा दिया। उन्हें पूरे प्रदेश में 15वां स्थान मिला था। दसवीं में उन्हें 85 प्रतिशत नंबर मिले। बारहवीं में भी उन्हें 82 प्रतिशत नंबर हासिल हुए। 

साल 2010 में IIT JEE का एंट्रेंस एग्जाम पास कर अनूप ने IIT मुंबई में सिविल इंजिनियरिंग में दाखिला लिया। तीसरे सेमेस्टर तक अनूप नये स्टार्टअप के लिए वेबसाइट और प्रोजेक्ट बना कर प्रति माह लगभग 60 हजार रुपये कमाने शुरू कर दिये थे। 

बिहार का औरंगाबाद जिला काफी पिछड़ा और नक्सलप्रभावित इलाकों में से एक माना जाता है। जहां रोजगार तो दूर की बात है, अस्पताल, शिक्षा और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं का आभाव है। लेकिन इसी माटी से निकलकर अनूप राज ने न केवल आईआईटी में प्रवेश हासिल किया बल्कि आज खुद एक स्टार्टअप चला रहे हैं। अनूप का पूरा जीवन संघर्षों की दास्तान से भरा है। उनकी जिंदगी की शुरुआत होती है एक बड़े परिवार से जिसमें किसी 22 सदस्य थे। एक छोटा सा कच्चा घर और आजीविका का कोई साधन नहीं। उनके पिता पढ़े-लिखे थे, जिन्होंने अनूप को प्रारंभिक शिक्षा दी। लेकिन स्कूल जाने में उन्हें 10 साल लग गए। 10 साल में उनका दाखिला सीधे पांचवी कक्षा में कराया गया।

पढ़ने में तो वे शुरू से ही तेज थे, बस कमी सिर्फ संसाधनों और पैसों की थी। उन्हें अध्यापकों का पूरा सहयोग मिला और उन्होंने मन लगाकर पढ़ाई करते हुए खुद को साबित भी किया। घर की तंगहाली में खर्च चलाने में काफी मुश्किल हो रही थी, इसलिए उन्होंने खुद की पढ़ाई के साथ रफीगंज में ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। इससे उन्हें 250 रुपये महीने मिल जाते थे। 2006 की बात है उनके पिता जी कुछ वजहों से घर छोड़कर चले गए। अनूप और उनके परिवार वालों ने उनकी काफी खोजबीन की, लेकिन वे नहीं मिले। उन्होंने पुलिस के पास जाकर शिकायत भी दर्ज कराई लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।

संकट के वक्त उनके विशाल परिवार ने भी उनकी मदद नहीं की। दो भाइयों में वे छोटे हैं। उन्होंने शुरुआती पढ़ाई रफीगंज के जैन मिशनरी स्कूल में की और पांचवीं कक्षा के बाद 2003 में अनूप ने सातवीं कक्षा में रानी बराजराज, रफीगंज में एडमिशन ले लिया। इसके बाद जब दसवीं का बोर्ड एग्जाम हुआ तो अनूप ने अपनी मेहनत का परचम लहरा दिया। उन्हें पूरे प्रदेश में 15वां स्थान मिला था। दसवीं में उन्हें 85 प्रतिशत नंबर मिले। बारहवीं में भी उन्हें 82 प्रतिशत नंबर हासिल हुए। इसके बाद उन्होंने एक नजदीकी कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन घर से काफी दूर होने की वजह से उन्हें कॉलेज पहुंचने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती थी।

फोटो साभार: Rediff

फोटो साभार: Rediff


वह सुबह से लेकर शाम तक चलते ही रहते थे। उनके पास इसके सिवा और कोई दूसरा कोई रास्ता भी नहीं था। ट्यूशन के पैसे से ही उसके कॉलेज की फीस और अन्य पारिवारिक जरूरतें पूरी होती थी। इसी बीच उनका मन आईआईटी की परीक्षा देने को हुआ। लेकिन तैयारी न होने की वजह से उन्हें सफलता नहीं मिली। इसी बीच उन्हें पटना के आनंद कुमार की पहल सुपर-30 के बारे में पता चला। उन्होंने प्रवेश परीक्षा पास की और उनका दाखिला भी उसमें हो गया। सुपर-30 के प्रतिभाशाली छात्रों में उनका नाम शुमार होता था। सुपर-30 में पढ़ने के साथ ही उनकी रहने और खाने की भी व्यवस्था हो गयी।

साल 2010 में आईआईटी-जेईई का एंट्रेंस एग्जाम पास कर अनूप ने आइआइटी मुंबई में सिविल इंजिनियरिंग में दाखिला लिया। लेकिन, आइआइटी मुंबई में शुरुआती एक वर्ष अनूप अपने में ही सिमटे रहे। हिंदी मीडियम का स्टूडेंट होने के कारण अंग्रेजी में सहपाठियों और टीचर्स से संवाद करने में झिझक महसूस होती थी। सब्जेक्ट को समझने के लिए डिक्शनरी की मदद लेनी पड़ती थी। कुछ महीने के बाद उन्हें लगा कि कंप्यूटर ही उनकी समस्या का समाधान है। अनूप केबीसी में भी अपने गुरु आनंद कुमार के साथ केबीसी के शो में भी पहुंचे थे। वहां उन्होंने एक सवाल का सही जवाब दिया। वहां उन्होंने अपने संदेश में कहा कि अगर उनके पिता यह शो देख रहे हों तो जहां भी रहें अच्छे से रहें।

केबीसी में आनंद कुमार के साथ अनूप

केबीसी में आनंद कुमार के साथ अनूप


तीसरे सेमेस्टर तक अनूप नये स्टार्टअप के लिए वेबसाइट और प्रोजेक्ट बना कर प्रति माह 60 हजार रुपये तक कमाने लगे। तीसरे सेमेस्टर में ही इंटर्नशिप के लिए अनूप को दुबई जाने का मौका मिला, जिसने उनका वास्ता बाकी दुनिया से भी हुआ। इस दौरान उन्हें काफी कुछ सीखने का मौका मिला। दुबई में काम करने के अनुभव के कारण वर्ष 2014 में क्विकर ने अनूप को अपने यहां एसोसिएट सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में प्लेसमेंट का ऑफर दिया और अनूप ने उसे स्वीकार कर लिया। वहां अनूप ने कुछ दिनों तक नौकरी की, लेकिन वे खुद का कुछ शुरू करना चाहते थे।

अनूप बताते हैं कि आइआइटी मुंबई आते समय ही तय किया था कि अपना बिजनेस शुरू करेंगे। वर्ष 2015 में उनका सपना साकार हुआ और दोस्तों के साथ मिल कर हेल्थ केयर स्टार्टअप pstakecare.com शुरू किया। उन्हें घूमने का शौक था। इसी वजह से उन्होंने मेडिकल टूरिज्म के क्षेत्र में ही काम करना शुरू किया। अनूप कहते हैं कि उन्हें उनके जीवन में हुए परिवर्तन ने बहुत कुछ सिखाया है। समय किसी का इंतजार नहीं करता है। कोई उसे रोक भी नहीं सकता। आगे बढ़ना है, तो खुद पर भरोसा होना काफी जरूरी है। आज लगता है कि मैं अपने जैसे कुछ लोगों की, जिन्होंने शून्य से शुरुआत की है, के लिए कुछ कर सकूं, तो मेरे जीवन का मकसद और बेहतर हो जायेगा।

अनूप की कंपनी विदेशी लोगों को भारत में मेडिकल सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए काम करती है। कंपनी ट्रैवल इंश्योरेंस, वीजा, रहने खाने, ट्रांसलेटर्स का इंतजाम करती है। pshealthcare डॉक्टर, अस्पतालों और मरीजों के बीचत एक पुल का काम करती है। आज आईआईएम और आईआईटी जैसे संस्थानों में मोटिवेशल स्पीच जेने के लिए जाते हैं। वह कहते हैं कि समाज ने उन्हें काफी-कुछ दिया है जिसे वापस करना उनकी जिम्मेदारी है। इसी सोच से उन्होंने 7classes.com नाम से एक पहल शुरू की है जिसमें हेल्थकेयर के अलावा ओलंपियाड जैसी तैयारियां करवाई जाती हैं। इस बैच में केवल 7 स्टूडेंट्स होते हैं। आज अनूप ने गांव में पक्का घर भी बनवा लिया है और उनकी मां को अब मजदूरी नहीं करनी पड़ती।

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