माहवारी के दौरान सफाई की अहमियत सिखा रही हैं सुहानी
महिलाएं आज भले ही पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हों, आधी आबादी की एक चौथाई से ज्यादा महिलाएं आज भी नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। ऐसे में मुम्बई की सुहानी जलोटा इन महिलाओं के जीवन से अंधेरा छांटने की कोशिश कर रही हैं। सुहानी ने भारत के हेल्थ सैनीटेशन में सुधार लाने के लिए वर्ष 2014 में मैना फाउंडेशन की स्थापना की और हेल्थ सैनीटेशन की दिशा में काम करना शुरु किया।
आज भी पीरियड्स यानि मासिक धर्म के दौरान महिलाएं पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती है। इन महिलाओं को पीरियड्स के दौरान पुराने कपड़ों से होने वाले इन्फेक्शन के कारण कई बीमारियों से जूझना पड़ता है। कई बार इंफेक्शन इतना बढ़ जाता है कि महिलाएं असमय काल का ग्रास बन जाती हैं।
लोअर क्लास फैमिली की महिलाएं पैड यूज नहीं करती, क्योंकि एक तो वे इसे खरीदने में सक्षम नहीं हैं और दूसरी बात अपने लिए पैड खरीदने वे बाहर नहीं जा सकती, न ही उनके परिवार उन्हें इसकी अनुमति देते हैं। तीसरी और सबसे बड़ी बात यह उनको नहीं पता है कि सैनिटरी पैड क्या है? इन महिलाओं को यह नहीं पता है कि सैनिटरी पैड माहवारी के समय स्वच्छता बनाये रखते हैं और माहवारी के दौरान होने वाले संक्रमण से भी बचाते हैं।
महिलाएं आज भले ही पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हों, आधी आबादी की एक चौथाई से ज्यादा महिलाएं आज भी नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। ऐसे में मुम्बई की सुहानी जलोटा इन महिलाओं के जीवन से अंधेरा छांटने की कोशिश कर रही हैं। सुहानी ने भारत के हेल्थ सैनीटेशन में सुधार लाने के लिए वर्ष 2014 में मैना फाउंडेशन की स्थापना की और हेल्थ सैनीटेशन की दिशा में काम करना शुरु किया। बीस साल की उम्र में मैना फाउंडेशन की स्थापना करने वाली सुहानी जलोटा बताती हैं कि 'ग्रामीण महिलाओं से बातचीत के दौरान मुझे पता चला कि हमारे देश रूरल सैनिटेशन के हालात कितने बुरे हैं। खुले में शौच के लिए जाते समय होने वाले उत्पीड़न के बारे में मुझे ग्रामीण महिलाओं से पता चला। मैने उनकी बातों पर जब गौर किया तो उत्पीड़न क् दर्द से मैं सिहर गई कि शौच के लिए जाते समय इतना उत्पीड़न तो पीरिययड्स के दौरान ये महिलाएं क्या-क्या सहती होंगी? बस इसी बात ने मुझे मैना फाउंडेशन की शुरुआत के लिए प्रेरित किया।'
भारत की आधी आबादी आज भी मेंसुरल सैनीटेशन में बहुत पीछे है। आज भी पीरियड्स यानि मासिक धर्म के दौरान महिलाएं पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती है। इन महिलाओं को पीरियड्स के दौरान पुराने कपड़ों से होने वाले इन्फेक्शन के कारण कई बीमारियों से जूझना पड़ता है। कई बार इंफेक्शन इतना बढ़ जाता है कि महिलाएं असमय काल का ग्रास बन जाती हैं। आज भी महिलाओं को अपनी उन समस्याओं को समाज से छिपाना पड़ता है, जिन्हें यही समाज पवित्र और कामाख्या देवी का आशीष मान अपने घर के पूजा स्थलों में रखता है। ग्रामीणों को छोड़िए आज भी शहरी इलाकों की महिलाएं भी सैनिटेशन की समस्याओं से जूझ रही हैं। एक-दो दिन के नियमित अंतराल पर अखबारों और टीवी चैनलों पर छिड़ने वाली बहस -मुबाहिसों के दौर में मैना फॉउंडेशन महिलाओं के प्रॉपर सैनिटेशन के साथ-साथ उन्हें आर्थिक रूप से भी सशक्त बना रहा है।
मैना महिला फाउंडेशन के लिए काम कर रहे हॉलीवुड स्टार मेघन मॉर्केल, सुहानी के कहने पर पीड़ित महिलाओं से साथ बातचीत करने को तैयार हो गए। इसके बाद सुहानी की टीम मिशन सैनीटेशन को अंजाम तक पंहुचाने में जुट गई। सेनेटरी पैड बनाने की प्रक्रिया और मशीनों की व्यवस्था की गईं। इसके संचालन और प्रक्रिया को जानने के लिए दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित कर सेनेटरी पैड का उत्पादन शुरू कर दिया गया।
सुहानी बताती हैं कि लोअर क्लास फैमिली की महिलाएं पैड यूज नहीं करतीं, क्योंकि एक तो वे इसे खरीदने में सक्षम नहीं हैं और दूसरी बात अपने लिए पैड खरीदने वे बाहर नहीं जा सकती, न ही उनके परिवार उन्हें इसकी अनुमति देते हैं। तीसरी और सबसे बड़ी बात यह उनको नहीं पता है कि सैनिटरी पैड क्या है? इन महिलाओं को यह नहीं पता है कि सैनिटरी पैड माहवारी के समय स्वच्छता बनाये रखते हैं और माहवारी के दौरान होने वाले संक्रमण से भी बचाते हैं।
सुहानी बताती हैं कि सैनिटरी पैड की क्वालिटी चेक करने के लिए हमने फाउंडेशन की एम्प्लॉइज को पैड यूज़ करने को कहा। इसके नतीजों ने हमें उत्साह से भर दिया। हमारे बनाये पैड्स अन्य कम्पनियों द्वारा बनाये गए पैड की तरह सुरक्षित और समान थे। एम्प्लॉइज के पैड यूज करने के बाद हमने उन पैड्स को मॉर्केट में उतारा। फाउंडेशन की महिलाएं ही पैड बनाती हैं और फिर उन पैड को बेचती हैं। फाउंडेशन के बनाये पैड बेहद सस्ते, मजबूत और टिकाऊ हैं। माहवारी के दौरान होने वाली खुजली, रेशेज और ब्लीडिंग को रोकने में पूरी तरह से उपयुक्त हैं।
फाउंडेशन का नाम मैना क्यों रखा पूछे जाने पर सुहानी बताती हैं कि मैना एक छोटी सी चिड़िया बहुत गति है, बातूनी होती है। महिलाएं भी खूब बातें करती हैं बिल्कुल मैना की तरह। और फिर मैना उच्चारण करने पर महीना का भाव आता है और छोटे शहरों में आज भी महीना मतलब मासिक धर्म ही होता है। उन्हें पीरियड शब्द के बारे में कुछ भी पता नहीं है , बस इसीलिए हमें मैना नाम ही सही लगा और हमने इसी नाम से शुरुआत की। आज मैना फॉउंडेशन मंहिलाओं की उन्नति और उनकी सामाजिक भागीदारी सुनिश्चित करने में बड़ा काम कर रहा है।
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