दिहाड़ी मजदूर का बेटा कैसे बन गया 100 करोड़ की कंपनी का मालिक
IIM में एडमिशन पाना आसान नहीं था, लेकिन पीसी मुस्तफा ने MBA करने की ठानी और IIM बेंगलुरु में एडमिशन ले लिया। मैनेजमेंट की पढ़ाई के दौरान ही उनके दिमाग में उस बिजनेस आइडिया आया, जो आगे चलकर एक ग्लोबल कारोबार में तब्दील हुआ।
'आईडी फ्रेश फूड' के सीईओ 'पी सी मुस्तफा' की सफलता की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। वे एक कुली के बेटे हैं, छठीं कक्षा में फेल हो गए थे, लेकिन इन सबके बावजूद उन्होंने कुछ साल पहले महज 25 हजार रुपए से खुद की एक कंपनी शुरू कर ली। आईये जानें मुस्तफा के ज़ीरो से हिरो बनने की कहानी...
एक समय ऐसा था जब मुस्तफा के पिता कुली का काम करते थे, लेकिन मुस्तफा ने सभी बाधाओं, तकलीफों और परेशानियों को पार करते हुए पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना ली है। 25 हज़ार रुपये से अपना काम शुरू करने वाले पीसी मुस्तफा की कंपनी को आज की तारीख में 100 करोड़ से ज्यादा का टर्नओवर मिलता है।
'मैंने हमेशा ये पाया है कि आप जब भी कुछ बड़ा करना चाहते हैं तो बहुत सारी मुश्किलें आपका रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती हैं। लेकिन आपको अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हर बाधा को पार करना ही होगा।'
-चक नॉरिस, एक्टर और लेखक
'आईडी फ्रेश फूड' के सीईओ पीसी मुस्तफा की सफलता की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। वो एक कुली का बेटे हैं, छठीं कक्षा में फेल हो गए थे, लेकिन इन सबके बावजूद मुस्तफा ने कुछ साल पहले महज 25 हजार रुपए से खुद की एक कंपनी शुरू की थी। आज उसका टर्नओवर 100 करोड़ के पार पहुंच चुका है। मुस्तफा मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु, पुणे समेत दुबई में 'रेडी टू कुक पैकेज्ड फ़ूड' का सफल कारोबार कर रहे हैं। मुस्तफा के मुताबिक उन्होंने ये कभी सोचा तक नहीं था, कि वो बिजनेसमैन बनेंगे। वो तो इंजीनियरिंग में नाम कमाना चाहते थे।
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गुदड़ी का लाल, पीसी मुस्तफा
मुस्तफा का जन्म केरल के एक छोटे से गांव वयनाड में हुआ था। उनके पिता अहमद सिर्फ चौथी तक पढ़ें थे और कॉफी के बगीचे में माल ढोने का काम करते थे। बचपन में मुस्तफा का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। इसलिए स्कूल के बाद वह अपने पिता के पास बगीचे में चला जाता था। पिता चाहते थे कि वो भी माल ढोने का काम करें, लेकिन मुस्तफा कुछ अलग करना चाहते थे। मुस्तफा का गांव इस कदर पिछड़ा था कि वहां पढ़ाई के लिए केवल एक प्राइमरी स्कूल था। वहां न तो सड़कें थीं और न ही बिजली। स्कूल जाने के लिए उन्हें 4 किलोमीटर दूर पैदल ही जाना पड़ता था। अधिकतर बच्चे प्राइमरी के बाद पढ़ना बंद कर देते थे। उनके पिता ने भी चौथी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी और कुली का काम करने लगे थे। उनकी मां ने तो कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा।
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स्कूल पास करके वो कोलकाता से इंजीनियरिंग करने चले गए। उनकी नौकरी लग गई। उन्हें कई मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने का मौका मिला। करीब 7 साल तक एक एमएनसी में नौकरी करने के बाद मुस्तफा भारत लौटे। IIM में एडमिशन पाना आसान नहीं, पर उन्होंने MBA करने की ठानी और IIM बेंगलुरु में एडमिशन ले लिया। मैनेजमेंट की पढ़ाई के दौरान ही उनके दिमाग में उस बिजनेस आइडिया आया, जो आगे चलकर एक ग्लोबल कारोबार में तब्दील हुआ।
मुस्तफा भी पढ़ाई छोड़ने के कगार पर आ गए थे लेकिन उनके टैलेंट की वजह से उनके गणित के शिक्षक मैथ्यू ने उन्हें पढ़ाई जारी रखने को कहा। पर वे छठवीं में फेल हो गए। इसके बाद अपने कठिन परिश्रम के बलबूते सातवीं कक्षा में उन्होंने टॉप करके अपने शिक्षकों को आश्चर्यचकित कर दिया। इस सफलता के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हाईस्कूल की परीक्षा में भी वो पूरे स्कूल में अव्वल आए। उस समय उनका बस एक ही सपना था कि वो अपने गणित शिक्षक की तरह बनें।
छोटे से स्टार्टअप से हजार करोड़ की कंपनी का सफर
सिर्फ 25,000 रुपयों से 'पैकेज्ड इडली और डोसा के रेडी टू मेक' बनाने वाली कंपनी 'आईडी' शुरू की। शुरुआत में वे खुद 20 स्टोर्स जाकर रोजाना 100 पैकेट की डिलिवरी करते थे। वक्त के साथ उनका बिजनेस बढ़ता चला गया और आज कंपनी का टर्नओवर 100 करोड़ के पार हो चुका है।
मुस्तफा अगले पांच सालों में कंपनी का टर्नओवर 1000 करोड़ तक पहुंचाना चाहते हैं। आज उनकी कंपनी में एक हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं। अाज वह 1,100 को रोजगार दे रहे हैं। पांच-छह साल में उनका लक्ष्य कम से कम 5,000 लोगों को रोजगार देने का है। एक अलहदा बात ये भी है, कि वे सिर्फ ग्रामीण युवाओं को ही नौकरी देते हैं।