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IIM टॉपर ने सब्जी बेच कर बना ली 5 करोड़ की कंपनी

IIM टॉपर ने सब्जी बेच कर बना ली 5 करोड़ की कंपनी

Thursday August 10, 2017 , 6 min Read

तमाम बाकी युवाओं की तरह कौशलेंद्र भी अच्छी नौकरी करना चाहते थे, लेकिन उनकी पहली प्राथमिकता बिहार को बदलने की थी, यहां के लोगों को रोजगार मुहैया कराने की थी और उनकी यही इच्छा उन्हें IIM अहमदाबाद से एमबीए खत्म करने के बाद किसी मल्टीनैशनल कंपनी में ले जाने की बजाय बिहार वापस ले आई और उन्होंने किसानों के साथ मिलकर सब्जी बेचने का एक ऐसा बिज़नेस शुरू किया जिसकी मदद से खड़ी कर ली 5 करोड़ की कंपनी...

कौशलेंद्र (फोटो साभार सोशल मीडिया) 

कौशलेंद्र (फोटो साभार सोशल मीडिया) 


आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए करने के बाद किसी मल्टीनैशनल कंपनी या विदेश में कोई जॉब करने की बजाय कौशलेंद्र अपने राज्य बिहार वापस लौट गये और वहीं पर एग्री बिजनेस कंपनी खोल ली। उनकी कंपनी का टर्नओवर आज की तारीख में पांच करोड़ से ज्यादा है और सबसे खास बात यह कि उनकी यह कंपनी लगभग 20,000 किसानों की मदद कर रही है।

आईआईएम जैसे देश के टॉप मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट से एमबीए करने के बाद युवाओं का सपना होता है कि उन्हें किसी बड़ी कंपनी में अच्छी सैलरी वाली जॉब मिले। लेकिन कुछ युवा ऐसे होते हैं जो बने-बनाए रास्ते पर चलने की बजाय अपना खुद का रास्ता बनाते हैं और सफलता के शिखर पर जा पहुंचते हैं। इसी तरह एक युवा कौशलेंद्र भी आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए करने के बाद किसी मल्टीनैशनल कंपनी या विदेश में कोई जॉब करने की बजाय अपने पिछड़े कहे जाने वाले राज्य बिहार वापस आए और यहीं पर एग्री बिजनेस कंपनी खोली। आज उनका टर्नओवर पांच करोड़ से ज्यादा है और सबसे खास बात यह कि उनकी यह कंपनी लगभग 20,000 किसानों की मदद कर रही है और उनकी रोजी-रोटी का साधन बन गई है।

तमाम बाकी युवाओं की तरह कौशलेंद्र भी अच्छी नौकरी करना चाहते थे, लेकिन उनकी पहली प्राथमिकता बिहार को बदलने की थी, यहां के लोगों को रोजगार मुहैया कराने की थी। बिहार के नालंदा जिले के मोहम्मदपुर गांव में जन्में कौशलेंद्र अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। उनके माता-पिता गांव के स्कूल में ही टीचर हैं। कौशलेंद्र पांचवी कक्षा के बाद लगभग 50 किलोमीटर दूर जवाहर नवोदय विद्यालय पढ़ने चले गए थे। कौशलेंद्र बताते हैं कि इस स्कूल में सिर्फ प्रतिभाशाली बच्चों को ही चयनित किया जाता है। उसके घर की आर्थिक स्थिति कोई मायने नहीं रखती क्योंकि वहां हर बच्चों को मुफ्त में खाना-कपड़ा और शिक्षा की सुविधा प्रदान की जाती है।

कौशलेंद्र एक समारोह में (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

कौशलेंद्र एक समारोह में (फोटो साभार: सोशल मीडिया)


2003 में कॉलेज की पढ़ाई यानि की बी.टेक खत्म करके कौशलेंद्र ने 6,000 रूपये प्रति माह पर भी नौकरी की थी।

नवोदय विद्यालय से निकलने के बाद कौशलेंद्र ने इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च जूनागढ़ (गुजरात) से एग्रीकल्चरल इंजिनियरिंग में बी. टेक. किया। कौशलेंद्र आईआईटी से बी.टेक करना चाहते थे, लेकिन वह एंट्रेंस ही नहीं क्लियर कर पाए थे। अब वह कहते हैं कि शायद किस्मत में किसानों की बदहाली दूर करना लिखा था इसीलिए यह कर रहा हूं। गुजरात में रहने के दौरान कौशलेंद्र देखते थे कि वहां के लोग कितने तरक्की पर हैं और तब वह अपने गांव के लोगों को याद करते थे, जो उसी गुजरात में आकर मेहनत मजदूरी करते थे।

बी. टेक करने के बाद कौशलेंद्र ने कुछ दिनों तक एक इस्राइली फर्म में काम किया जो ड्रिप सिंचाई माध्यम का काम देखती थी। कॉलेज से 2003 में निकलने के बाद वह एक कंपनी में 6,000 रुपये प्रति माह पर नौकरी करने लगे। उन्हें कंपनी की तरफ से आंध्र प्रदेश भेजा गया जहां वे किसानों के बीच जाकर कंपनी के ड्रिप सिंचाई वाले प्रॉडक्ट्स के बारे में समझाते थे। लेकिन कुछ ही दिनों में उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और वापस अहमदाबाद चले आए। यहां रहकर उन्होंने कैट एग्जाम की तैयारी की और उनका सलेक्शन आईआईएम में हो गया। उन्होंने यहां से टॉप भी किया। वह आईआईएम में गोल्ड मेडलिस्ट रहे।

कौशलेंद्र अपनी टीम के साथ

कौशलेंद्र अपनी टीम के साथ


IIM अहमदाबाद जैसे इंस्टीट्यूट से टॉप करने के बाद बिहार जैसे राज्य में आकर सब्जी बेचना काफी अजीब लगता है, लेकिन कौशलेंद्र को किसी की परवाह नहीं थी।

एमबीए की पढ़ाई खत्म करने के बाद वह वापस पटना आ गए और यहां अपने भाई धीरेंद्र कुमार के साथ 2008 में कौशल्या फाउंडेशन नाम से एक कंपनी बनाई। कौशलेंद्र बताते हैं, 'मेरा हमेशा से यही मानना था कि बिहार की स्थिति तभी बदल सकती है जब यहां के किसानों की स्थिति में सुधार होगा।' उन्हें लगा कि किसान संगठित नहीं हैं। अगर कोई किसान सरसो की नई फसल लगाता है तो वह अपने पड़ोसी को इस बारे में नहीं बताता है क्योंकि उसे लगता है कि अगर गांव में सबकी फस अच्छी हो जाएगी तो उसे फसल का दाम नीचे गिर जाएगा।

कौशलेंद्र कुमार ने नौकरी करने के बजाए अपना खुद का काम शुरू करने का फैसला लिया और एक नए तरह का अनोखा बिजनेस सब्जी बेचने का काम शुरू किया। आइआइएम अहमदाबाद जैसे इंस्टीट्यूट से टॉप करने के बाद बिहार जैसे राज्य में आकर सब्जी बेचना काफी अजीब लगता है, लेकिन कौशलेंद्र को किसी की परवाह नहीं थी। उनके ब्रांड का नाम 'समृद्धि, एमबीए सब्जीवाला' है। उनकी इस कंपनी से आज 20 हजार से ज्यादा किसान परिवारों की जिंदगी जुड़ी हुई है। साथ ही लगभग 700 लोग इस कंपनी में नौकरी भी करते हैं।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

फोटो साभार: सोशल मीडिया


अपने बिजनेस के पहले दिन कौशलेंद्र ने 22 रुपये की कमाई की थी और 3.5 सालों के अंदर ही उनकी कमाई बढ़कर पांच करोड़ का आंकड़ा भी पार कर गई।

कौशलेंद्र ने ग्राहकों की संतुष्टि और समय से ताजा माल पहुंचाने के मामले में पेशेवर रवैया लाते हुए मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन का एक नया चैनल खोलने का फैसला लिया। वो कहते हैं, 'हमारा अगला लक्ष्य सब्जी उगाने वाले किसानों के लिए एक ऐसा फर्म स्थापित करना है जिससे बाजार के बदलते स्वरूप जैसे रिटेल में एएफडीआई आदि का बखूबी सामना करते हुए मोलभाव करने में सक्षम हो सके।' 

कौशलेंद्र ने पटना में एक स्कूल के पीछे छोटी सी दुकान लगाते हुए सब्जी बेचनी शुरू की थी। अपने नए बिजनेस के पहले दिन उन्होंने 22 रुपये की कमाई की थी और 3.5 सालों के अंदर ही उनकी कमाई बढ़कर पांच करोड़ का आंकड़ा भी पार कर गई। कौशलेंद्र बिहार में उन युवा और शिक्षित लोगों की सामाजिक सोच को बदलने की कोशिश कर रहे हैं जिसके अनुसार वह हर काम करेंगे लेकिन कृषि में काम करने को कुछ नहीं है।

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