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एक चुनौती मेरे लिए कभी काफी नहीं: सॉफ्टवेयर पायनियर डेम स्टेफनी शर्ली

एक चुनौती मेरे लिए कभी काफी नहीं: सॉफ्टवेयर पायनियर डेम स्टेफनी शर्ली

Tuesday November 24, 2015 , 12 min Read

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नाजी जर्मनी से पांच साल की उम्र में बच निकलने वाली डेम स्टेफनी शर्ली ने उत्तरजीविता के विचार को कभी फॉर ग्रांटेड नहीं लिया. उन्होंने 1962 में उस वक्त सॉफ्टवेयर कंपनी की स्थापना की जब कंप्यूटर के साथ सॉफ्टवेयर मुफ्त मिलते थे और उन्होंने अपने स्टार्टअप को 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बना डाला. स्टेफनी ने फ्रीलांसिंग के विचार का आविष्कार किया, माताओं को घर बैठे काम करने का अवसर मिला, जिसके बारे में कभी सुनने को नहीं मिलता था. “लोगों ने मुझे पागल कहा, कहा कि जब वह मुफ्त है तो कोई पैसे क्यों देगा. लेकिन मुझे ऐसा महसूस होता था कि हार्डवेयर से ज्यादा सॉफ्टवेयर महत्वपूर्ण है.”

उनके लक्ष्य कुछ ही और सरल थे-सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री की स्थापना करना जब वहां किसी का कोई अस्तित्व नहीं था, कम दर्जे का समझने वाले ऐसे किसी पुरुष बॉस को जवाब न देना पड़े. साथ ही वे महिलाओं को सशक्त करना चाहती हैं जिससे वह आर्थिक तौर आजाद हो पाए.

उनका TED टॉक का बायोडाटा कहता है, ‘सबसे सफल तकनीक उद्यमी के बारे में आपने कभी नहीं सुना होगा.’ जब तक वे TED टॉक के स्टेज पर गई यह मामला नहीं रहा. उन्होंने अपनी बातचीत में उन परेशानियों का जिक्र किया जो उन्होंने महसूस किया, जहां सिर्फ पुरुषों का वर्चस्व था. उन्होंने अपनी बातचीत में ऐसी प्रक्रियाओं और मानको के बारे बताया जिसे उन्होंने विकसित किया और अब वह उद्योग के मानक हैं. वहां कुछ हास्य भी था : ‘आप हमेशा हमारे सिर के आकार को देख कर महत्वाकांक्षी महिलाओं के बारे में जान सकते हैं. उनका सिर चपटा होता है क्योंकि उसे थपथपाया जाता है.’ इस बातचीत को 15 लाख बार देखा जा चुका है. उनकी जीवनी Let it Go, जो एक शर्णार्थी बच्चे के सबसे सफल उद्यमियों की कहानी बताती है, हमारे समय का बेस्टसेलर है. डेम स्टेफनी की कंपनी, फ्रीलांस प्रोगार्मर्स, फ्रीलांस काम के विचार का अगुआ बनी. एक प्रतिभाशाली गणितज्ञ, वे उन चुनिंदा विजनरी लोगों में से हैं जिन्होंने मॉर्डन सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री बनाया जैसा आज हम जानते हैं. आखिरकार जब उनकी कंपनी शेयर बाजार में आई तो कंपनी के 70 कर्मचारी करोड़पति बन गए. आधिकारिक तौर पर 1993 में सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने अपनी अधिकांश संपत्ति दान कर दी और अब वे एक समर्पित परोपकारी बन चुकी हैं. डेम शर्ली ने योरस्टोरी से 1960 में शुरू किए गए स्टार्टअप के बारे में बातचीत की. उस दौर में भी उन्होंने भारतीय महिलाओं को सीनियर पदों पर रखा, ठेका पाने के लिए पुरुष बन कर गईं. ‘हमारे जैसे बहुत लोग टेक्नोलॉजी में हैं क्योंकि हमें वह रोचक लगता है. मैं शायद ही विश्वास कर पाऊं कि मुझे इतने अच्छे पैसे सॉफ्टवेयर लिखने के लिए मिलते थे क्योंकि वह बहुत मजेदार था. मेरा काम एक आध्यात्मिक विश्वास से चलता था, लेकिन मेरी कंपनी महिलाओं के लिए मुहिम के तहत चलती थी. हम चाहते थे कि महिलाएं पूरी तरह से अपनी आर्थिक जिंदगी पर कंट्रोल हासिल करे. इसने कंपनी की शुरुआत के नजरिए को बदला. मुझे नहीं लगता था कि मैं पूरी दुनिया को बदल दूंगी. लेकिन मैं यह जरूर सोचती थी कि महिलाओं के लिए चीजें जरूर बदल दूंगी.’




आपने अपनी किताब में लिखा है कि परिवर्तन भयावह हो सकता है लेकिन यह जरूरी तो नहीं. जिस तरह का काम आप और आपकी पीढ़ी की महिलाओं ने किया है उससे जरूर बदलाव आया है. लेकिन मुझे लगता है हम एक ही चक्कर में घूम रहे हैं. 21वीं सदी में भी वही लड़ाई लड़ी जा रही है जिसे महिलाओं को नहीं लड़ना चाहिए. क्या वाकई में बदलाव हो रहा है. आपको यह हताश नहीं करता कि यह कितनी धीमी प्रक्रिया है?

हां यह धीमी है. लेकिन जब तक यह धीमी है यह टिकाऊ नहीं है. रातों रात बदलाव नहीं होते. महिला आंदोलन सैकड़ों सालों से जीवन में बदलाव ला रहे हैं. कानून बनने से समाज को और पीछे जाने से रोकने में मदद मिली है. जिन मुद्दों पर मैं 50 साल पहले बात करती थी आज भी युनाइटेड किंगडम इन मुद्दों पर बात हो रही है. कानून तो बदल गए हैं लेकिन मुद्दे नहीं बदले हैं. समान अवसर, समान वेतन अतीत के यह मुद्दें आज भी हमेशा से प्रासंगिक हैं. जब मैंने बिजनेस की शुरुआत की तो मैं बहुत युवा और आदर्शवादी थी और हम महिलाओं ने अपने आपको सेक्स वस्तु के बजाय पेशेवर बताने में कठिन संघर्ष किया है. पेशेवर लोग हमें नीचे की ओर ले जाते जब हम गंभीर सॉफ्टवेयर बेचना चाहते थे. अब ये मुद्दे अधिक छिपे हुए और घातक हैं. सांस्कृतिक मुद्दे हैं. किसी महिला की असफलता के लिए लिंगभेद को दोष देना अब यह आसान हो है. हमें 21वीं सदी की सफलता का आनंद लेने के लिए योगदान देने के साथ साथ सीखना होगा.


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आपने कहा कि आपका भारत के साथ विशेष जुड़ाव है...

हां, है. मेरे पति की परवरिश भारत में हुई, लेकिन वह राजशाही का दौर था. तो शायद आप इस बारे में बात नहीं करना चाहती. 1960 के वक्त वे भारतीय महिलाओं को सीनियर सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल के तौर पर नौकरी पर रख रही थी. मुझे आज भी याद है कि श्रीमती बकाया को मैंने पहली भारतीय महिला के तौर पर नौकरी पर रखा. उनकी खूबसूरत साड़ियों और बिंदी को देख मैं मोहित हो गई थी. वह बहुत पढ़ी लिखी और सुसंस्कृत महिला थी. हम सॉफ्टवेयर के अलावा साहित्य और अन्य मसलों पर बातचीत करते. हम कभी दोस्त नहीं बने क्योंकि मैं बॉस थी. लेकिन उनके साथ काम करने का अलग ही आनंद था.

कंपनी को स्थापित करते हुए आपके मजबूत वैचारिक उद्देश्य जितने आपको उद्यमी बनाए उतने ही कार्यकर्ता भी बनाए है.

मेरी कंपनी पहली सामाजिक व्यवसायों में से एक थी. हमारे पास उसके लिए शब्द नहीं थे. मैंने जांच की कि क्या हमें एक चैरिटी के रूप में शुरू करना चाहिए और उसे सोशल उद्यम के तौर पर चलाना चाहिए. लेकिन तब मुझे एहसास हुआ कि महिला के तौर पर हमें कोई गंभीर नहीं लेगा जब तक हम गंभीर मुनाफा बनाना न शुरू कर दे. प्रगति धीमी थी- हमने 25 साल के बाद डिविडेन्ड दिया. बहुत साल पहले तक मैं सैलरी लेती थी और पहले साल तो मैंने खर्च भी नहीं लिए. मुझे बहुत गर्व है, दरअसल पैसे की वजह से नहीं लेकिन जो संपत्ति हमने बनाई और जितने लोगों को रोजगार दिया और एक बदलाव लाने में सहायता प्रदान किया.

नाजी जर्मनी से बचकर भागना और इंग्लैंड में एक शर्णाथी बनना- आपका अतीत ने आपके भविष्य को कितना बल दिया?

मेरी पूरी जिंदगी मेरे अतीत से प्रेरित और चालित है. मुझे अब भी यह लगता है कि मुझे एक दिन भी बर्बाद नहीं करना चाहिए. मुझे यह साबित करना पड़ता है कि मैंने अपनी जान को इसलिए बचाया क्योंकि वह बचाने लायक थी. मैं उतनी ही शक्तिशाली हूं जितनी 75 साल पहले थी. मैं बहुत बूढ़ी हूं लेकिन हर सुबह उठकर यह सोचती हूं कि मैं कितनी खुशनसीब थी. सब लोगों ने उस समय मेरी मदद की और अब मैं और लोगों की मदद कर रही हूं.


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1960 में ब्रिटेन में स्टार्टअप करना कैसा था.

आप हंसेंगी क्योंकि मेरे पास पूंजी नहीं थी. मेरे पास 6 पाउंड थे जो कि आज की तारीख में 100 पाउंड के बराबर है. मैंने खुद के परिश्रम से अपने व्यापार को वित्त पोषित किया उसके बाद घर के बदले लोन लिया. मैं बिजनेस के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी. कुछ भी नहीं. मैंने अपने पहले प्रोजेक्ट के लिए सारा मूल्य निर्धारण गलत किया. मैंने केवल काम के बदले में पैसे के मामले में सोचा और अन्य खर्चों की अनुमति नहीं दी. मैं रोजगार के पक्ष में इतनी मशगूल थी कि मेरी अहमियत सिर्फ कर्मचारियों और प्रोड्क्शन में थी ना कि व्यवसाय को प्रभावी आर्थिक तौर पर चलाने में. इसलिए मैं साल दर साल लड़खड़ाई. शुरुआत काफी धीमी थी. मैं अव्यवसायी थी लेकिन मेरे अंदर इसको पता करने का अनुभव था. इसलिए मैंने स्थानीय प्रबंधन केंद्र से संपर्क किया और कहा, ‘आइए और मेरे कंपनी को देखिए, जो कि एक आधुनिक कंपनी है. कंप्यूटर और बड़ी चीजें हैं यहां. तो आप जान पाएंगे कि एक बड़ी कंपनी कैसे व्यवहार कर रही है और हम कैसा संघर्ष कर रहे हैं. आप मेरी मदद बाजार बढ़ाने और माल बेचने में कर सकते हैं.’ आजकल की दुनिया बहुत ही अलग है. अब तो नौजवान हाईटेक कंपनियां स्थापित कर रहे हैं और 10 साल या उससे अधिक समय में अरबपति बन रह हे. जैसे फेसबुक और अन्य. फेसबुक में अब 3500 महिलाएं काम करती हैं. लेकिन जब वे बाजार में गई थी तो उसके बोर्ड में एक भी महिला नहीं थी. तो इसलिए चीजें बदली हैं लेकिन वैसी रहती है.

1960 में सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री कैसी थी. कंपनी के रोजमर्रा के मुद्दों को निपटाने के लिए आप अलग किस तरह से कर पाती थी.

जब मैंने शुरुआत की तब इंडस्ट्री नहीं थी. मैं और कुछ लोगों ने इंडस्ट्री की स्थापना की. उस समय में हार्डवेयर के साथ सॉफ्टवेयर मुफ्त में दिया जाता था. मेरा जो बिजनेस मॉडल था वह इस तरह से था कि उस बंडल से सॉफ्टवेयर को निकाल कर उसे बेच देना है. लोगों ने कहा मैं पागल हूं, यह तो मुफ्त है, इसके लिए कोई पैसे क्यों देगा. लेकिन मुझे इस बात का एहसास था कि हार्डवेयर से कहीं अधिक सॉफ्टवेयर महत्वपूर्ण है. मैं ज्यादातर अमेरिकी कंपनियों के पास जाती क्योंकि वे ब्रिटिश कंपनियों से ज्यादा नए विचारों के लिए खुले थे. ब्रिटिश कंपनियां ज्यादा पारंपरिक थी. मैंने ऐसे लोगों को बहुत खत लिखे जो कंप्यूटर स्टाफ के लिए विज्ञापन दे रहे थे. मैं उनको लिखती की कि मैं नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर रही हूं लेकिन मैं अपने कंपनी के बारे में बता रही हूं. उन खतों को बहुत ही कम जवाब आया. तब मेरे पति ने सुझाव दिया कि मुझे स्टेफनी शर्ली नाम का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और परिवार के उपनाम स्टीव को इस्तेमाल करना चाहिए. स्टीव ज्यादा सफल नाम साबित हुआ. मैं मैनेजरों से बात कर पाई और बता पाई कि मेरी कंपनी किस तरह की सेवा दे सकती है. बेशक जब उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि मैं एक महिला हूं तो उनके अंदर इतनी शक्ति नहीं थी कि वे मुझे वापस जाने को कहे. इसी तरह से इसकी शुरुआत हुई. वह बहुत ही मजेदार था. वास्तव में हमें पता था कि हम कुछ अलग कर रहे हैं. उस वक्त हमें यह नहीं पता था कि वह कितना महत्वपूर्ण है. हमने साल दर साल बने रहने के लिए संघर्ष किया. जितना कठिन होता मैं उतनी दृढ़ संकल्पी हो जाती. धीरे-धीरे बाजार बढ़ता गया और हम एक सफल कंपनी बन गए. उसके बाद हम किसी और कंपनी की तरह दिखने लगे. लेकिन हम घर से ही काम कर रहे थे. हमारा घर छोटा था और मेरा एक बच्चा भी था. मैं डाइनिंग टेबल पर काम करती और बच्चा पालने में मेरे पैर के पास रहता. कोई और बैठक वाले कमरे में काम करता और पियानो की चारों तरफ कागज बिखरे रहते (मेरे पति पियानो बजाते हैं). कोई सोने वाले कमरे में काम करता. एक आधुनिक कंपनी के लिए वह घर आधुनिक नहीं था. उस वक्त हमारे पास जलाने के लिए कोयले वाला हीटर था. मैनेजर होने के नाते मुझे स्टाफ को गाइड करना पड़ता. इसके साथ ही साथ मुझे इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता कि हीटिंग काम कर रही है और इसलिए मैं लकड़ी और कोयले लेकर घर में घुमते रहती.

दिलचस्प लग रहा है...

वह काफी खुश करने वाला था. कंपनी और नए परिवार के साथ मेरी जिंदगी का वह खुशनुमा समय था. आज की दुनिया कितनी बदल गई है. आज जिन कारपोरेट गवर्नेंस और टैक्स के मसलों से मुझे निपटना पड़ता है वह हमारे संघर्ष की तुलना में बहुत ही बेसिक था.


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शुरुआती कौन से प्रोजेक्ट थे जिसपर आपकी कंपनी ने काम किया था.

पहला वाला प्रोजेक्ट तो ताज्जुब करने वाला था- वह मेरे पूर्व कर्मचारी की तरफ से मिला. वह कंप्यूटर के निर्माता थे जिसके साथ मैं पहले काम कर चुकी थी. मुझे लगता है कि वे थोड़े मतलबी थे क्योंकि मुझे कीमत के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी और उन्होंने मुझे प्रस्ताव दिया, सामान्य तौर पर मुझे जो उनके यहां सैलरी मिलती थी उतना ही. दूसरा प्रोजेक्ट पूर्व सहयोगी की तरफ से मिला जो अमेरिकी कंपनी के साथ काम कर रहे थे. वह कंपनी यूके में अपनी सहायक कंपनी खोल रही थी. उन्होंने मुझे मैनेजमेंट प्रोटोकॉल डिजाइन करने को कहा. तो पहले कुछ प्रोजेक्ट दोस्त और उनके दोस्तों की तरफ से आए. एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट ब्रिटिश रेलवे की तरफ से मिला. मैं बहुत ही नसीब वाली थी कि मुझे वह काम मिला. उस काम की वजह से मैं बहुत यात्रा कर पाई और मेरी जिंदगी में पहली बार में पूरे यूके में प्रथम श्रेणी में सफर कर पाई.

एक शब्द जो दिमाग में आता है वह है निडर. आपने एक साथ कई चुनौतियां ली, आपने केवल महिला वाली कंपनी को काम दिया. उस समय में जब फ्रीलांस के बारे में लोग नहीं जानते थे तब आपने उन्हें सशक्त किया. जब सॉफ्टवेयर मुफ्त में दिया जाता था तब आपने उसे बेचा. आम तौर पर एक के बाद दूसरी सफलता पाना ज्यादा व्यावहारिक प्रतीत होता है लेकिन आप तो पूरी तरह से कूद पड़ी.

मुझे लगता है कि एक समय में ही कई मिशन का पीछा करना उद्यमियों की खासियत है. आपने जितनी बातों का जिक्र किया है उनमें से कोई भी मुझे व्यस्त रखने के लिए काफी था, लेकिन मेरे लिए कभी सिर्फ एक चुनौती काफी नहीं.

इच्छुक उद्यमियों के लिए आपकी क्या सलाह है?

आविष्कार का काम त्याग जैसा है. मुझे ऐसा लगता है कि आपको यूजर बन कर चीजों को देखना पड़ता है तब देख पाते हैं कि यूजर क्या देखता है. हालांकि, प्रोफेसर नहीं बल्कि उद्यमी नई चीजों के बनाने के जिम्मेदार होते हैं. महिला उद्यमियों को मेरी सलाह है कि पारंपरिक पुरुष काम पैटर्न की तरह काम नहीं करना चाहिए बल्कि स्वाभाविक गुणों को विकसित करना चाहिए. ये आम तौर पर संचार में शक्ति, टीम वर्क और...दिलेरी के साथ मैं कहूं-आदर्शवाद. कोई ऐसी चीज खोजे जिसकी आप चिंता करते हैं, ट्रेनिंग पाएं और अपने आपको प्रथम श्रेणी के लोगों के बीच रखें और उसके बाद खुद का आनंद लें.

लेखिका-राखी चक्रवर्ती

अनुवाद-आमिर अंसारी