बुंदेलखंड का ये किसान बैंको को कर चुका है नमस्ते, खेती से कमाता है 20 लाख सालाना
देश के जिस इलाके में किसानों की हालत दयनीय है, उसी इलाके का एक किसान लाखों कमा रहा है सालाना...
बुंदेलखंड का इलाका दो राज्यों मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में विभाजित है। दोनों प्रदेशों में इस इलाके के किसानों की हालत दयनीय है, लेकिन प्रेम सिंह अपवाद हैं। यहां अधिकतर कर्ज में फंसे होते हैं, अक्सर किसान बैंकों के कर्ज के नीचे दबकर आत्महत्या का रास्ता अपना लेते हैं।
आज प्रेम सिंह कर्जे से पूरी तरह से मुक्त हैं और अच्छी खासी कमाई भी कर लेते हैं। उन्होंने बताया कि सालभर में उन्हें लगभग 25 लाख की आमदनी होती है। पिछले दो दशकों से वे अपनी जिंदगी खुशहाली में बिता रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के सबसे सूखाग्रस्त इलाके बांदा के किसान प्रेम सिंह के हरे-भरे लहलहाते खेतों को देखकर जब आपको पता चलेगा कि बिना बैंक से लोन लिए, बिना रासायनिक खाद के ये खेती की गई है, तो आप भी हैरत में पड़ जाएंगे। लेकिन ये हकीकत है। प्रेम सिंह पूरी तरह से ऑर्गैनिक कंपोस्ट और प्राकृतिक खाद पर निर्भर हैं और खेती ही उनकी आय का एकमात्र जरिया है। उनके पास कुल 32 बीघे खेती है। बुंदेलखंड इलाके के अधिकतर किसान बैंकों के कर्ज के नीचे दबे होते हैं। इस इलाके के किसान बारिश न होने की वजह से गरीबी और भुखमरी का सामना करते हैं, लेकिन प्रेम सिंह बैंकों को दूर से ही नमस्ते कह चुके हैं।
बड़ोखर खुर्द गांव के रहने वाले प्रेम बड़े ही गर्व से कहते हैं, 'मैं भी फसल और बैंकों के कर्ज के चक्कर में फंस गया था। मौसम का कोई भरोसा नहीं होता था इसलिए बैंकों से कर्ज लेना एकमात्र विकल्प हुआ करता था। फिर मैंने अपने पूर्वजों के बारे में सोचा। मुझे लगा कि तब तो न बैंक हुआ करते थे और न ही रासानियक खादें। लेकिन फिर भी वे खेती करते थे और अपनी आजीविका भी चलाते थे। यह मुश्किल काम तो था और इसीलिए शुरू में किसी ने मुझपर भरोसा नहीं जताया, लेकिन आज मेरे ऊपर किसी तरह का बैंक कर्ज नहीं है और मैं प्रगतिशील किसान हूं।'
बुंदेलखंड का इलाका दो राज्यों मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में विभाजित है। दोनों प्रदेशों में इस इलाके के किसानों की हालत दयनीय है, लेकिन प्रेम सिंह अपवाद हैं। यहां अधिकतर कर्ज में फंसे होते हैं, अक्सर किसान बैंकों के कर्ज के नीचे दबकर आत्महत्या का रास्ता अपना लेते हैं। बेरोजगारी का यह आलम है कि कई सारे परिवार तो आजीविका की तलाश में पलायन कर चुके हैं। प्रेम सिंह एक किसान परिवार में पैदा हुए थे। उनका बचपन खेतों और खलिहानों के बीच ही बीता। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से दर्शन शास्त्र में एम ए और महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय से रूर डेवलपमेंट में मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 1987 में घर लौटकर खेती करना शुरू किया।
प्रेम कहते हैं, 'बाकी किसानों की तरह मैंने भी ट्रैक्टर, यूरिया और कीटनाशक की मदद से खेती करनी शुरू की थी। हमें बताया जाता था कि हम जितना ज्यादा इनका इस्तेमाल करेंगे, हमारी पैदावार उतनी ज्यादा होगी। पैदावार के साथ ही आमदनी तो ज्यादा होगी ही।' लेकिन सूखे और खराब मौसम की वजह से वे कर्जे में चले गए और उनकी कमाई का सारा हिस्सा बैंकों का कर्ज अदा करने में चला जाता था। इस हालत में परिवार को संभालना आसान नहीं था। दो साल तक ये सिलसिला चलता रहा, फिर जाकर प्रेम को लगा कि कुछ तो गलत हो रहा है। उन्हें समझ आय़ा कि ट्रैक्टर की वजह से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है।
ट्रैक्टर लेने के लिए प्रेम ने अपनी मां के गहने बैंक में गिरवी रख दिए थे। लेकिन बढ़ती ब्याज दरें और घटती आमदनी की वजह से उनको नुकसान उठाना पड़ा और उनके मां के गहने कभी वापस नहीं हुए। वे कहते हैं कि बैंक से लिया गया कर्ज किसान के लिए सबसे बड़ी मुश्किल खड़ी कर देता है। इसके अलावा लगातार कीटनाशक और खादों के इस्तेमाल से मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है और पैदावार घटती जाती है। 1989 में प्रेम ने इन सारी समस्याओं से तंग आकर अपने पिता से इजाजत ली और खेत के छोटे से हिस्से में जैविक अवर्तनशील खेती को प्रायोगिक स्तर पर अपनाया।
प्रेम सिंह ने अपनी कुल जमीन को तीन भागों में बांटा। जमीन के एक तिहाई हिस्से में उन्होंने बाग लगाई है तो दूसरा भाग पशुओं के चरने के लिए है। जबकि बाकी एक तिहाई हिस्से में वो जैविक विधि से खेती करते हैं। इस तरीके को ही आवर्तनशील खेती के नाम से जानते हैं। वे कहते हैं, 'मैं बाजार के लिए खेती नहीं करता। अपने लिए बाग लगाए हैं, अपने लिए पशु पाले हैं, जैविक तरीके से खेती करता हूं। खेतों में पैदा हुए अनाज़ को सीधे बेचने की बजाय उसके प्रोडक्ट बनाकर बेचता हूं, जैसे गेहूं की दलिया और आटा, जो दिल्ली समेत कई शहरों में ऊंची कीमत पर जाते हैं।'
प्रेम बताते हैं कि इस तरीके से खेती करने पर किसान कई तरह से मुनाफे कमा सकता है। जानवरों से वह दूध निकालकर बेच सकता है और उनके गोबर से अच्छी कंपोस्ट खाद तैयार की जा सकती है। जैविक रूप से खेती करने पर मिट्टी की उर्वरता बरकरार रहती है और खेतों को नुकसान भी नहीं होता है। प्रेम अब रासायनिक खादों और कीटनाशकों से दूर ही रहते हैं। अब इस मॉडल को उनके गांव वालों ने भी अपना लिया है। पिछले 25 सालों में प्रेम ने इस आवर्तनशील खेती से कई लाभ कमाए हैं।
वह बताते हैं, 'अगर आप एक एकड़ में गेहूं की खेती करेंगे तो आपको अधिकतम 20 क्विंटल की फसल हासिल होगी। लेकिन अगर आप उसकी जगह अमरूद के पेड़ लगाएंगे तो आपको 100 क्विंटल की फसल मिलेगी। मतलब आपको पांच गुना ज्यादा फायदा होगा। आपकी आमदनी भी बढ़ेगी।' ऐसी खेती में रिस्क भी बहुत कम होते हैं। मिट्टी की गुणवत्ता भी बरकरार रहेगी। इन्हीं सब वजहों से आज प्रेम सिंह कर्जे से पूरी तरह से मुक्त हैं और अच्छी खासी कमाई भी कर लेते हैं। उन्होंने बताया कि सालभर में उन्हें लगभग 25 लाख की आमदनी होती है। पिछले दो दशकों से वे अपनी जिंदगी खुशहाली में बिता रहे हैं।
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