Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

राजस्थान में पहली बार दो मुस्लिम महिलाएं बनीं काज़ी, मुफ्तियों, काज़िओं और उलेमाओं ने किया विरोध

राजस्थान में पहली बार दो मुस्लिम महिलाएं बनीं काज़ी, मुफ्तियों, काज़िओं और उलेमाओं ने किया विरोध

Monday February 08, 2016 , 4 min Read

पुरुषों की दुनिया में महिलाओं की दखल कोई नई बात नही है लेकिन राजस्थान की दो मुस्लिम महिलाओं ने उस मकाम को पाने का साहस किया है जहां जाने की अबतक किसी और ने हिम्मत नही की थी. जयपुर के चार दरवाजा की जहां आरा और बास बदनपुरा की अफरोज बेगम जयपुर की पहली महिला काजी बनी हैं. इसके लिए इन्होंने मुंबई के दारुल उलूम निस्वान से दो साल की महिला काजी बनने की ट्रेनिंग हासिल की है। मध्यवर्गीय परिवार की इन दोनों महिलाओं के इस कदम से मुस्लिम समाज के काजियों, उलेमाओं और मुफ्तियों की भौएं तन गई हैं.

image


कंप्यूटर पर अपना सारा काम ऑन लाईन करनेवाली चार बच्चों की मां जहां आरा की शादी 14 साल की उम्र में हो गई थी. पति दिन रात मारता-पिटता रहता था. परेशान होकर जहां आरा एक एनजीओ के संपर्क में आईं। सामाजिक संगठनों में काम करने के दौरान उन्होंने ये देखा कि निकाह पढ़ाने के साथ तलाक और मेहर तय करने के मामले में औरतें हाशिए पर हैं. बाद में वो आल इंडिया मुस्लिम आंदोलन से जुड़ीं, जहां उन्होंने मुंबई में महिला काजी बनने की ट्रेनिंग का पता चला। तो तुरंत मुंबई जाने के लिए तैयार हो गईं। वजह सिर्फ इतनी थी कि जो इनके साथ हुआ है वो किसी और के साथ न हो. जहां आरा कहती हैं कि 

" हम उन महिलाओं की मदद करेंगे जो तीन बार तलाक कहने के क़ानून से पीड़ित हैं और क़ुरान के नाम पर ग़लत जानकारी देकर महिलाओं की ज़िंदगी नर्क बनाने वाले काज़ियों से खवातिनों को बचाएंगे. इन्हीं की मदद के लिए हमने ट्रेनिंग ली है. वर्तमान में काजी अपनी जिम्मेदारी नही निभा रहे हैं।" 

तीन बच्चों की मां जहां आरा ने जब काज़ी बनने की सोची तो इनके घरवालों ने पूरा साथ दिया.

दसवीं पास अफरोज़ बेगम के पांच बच्चे हैं. अफरोज को एक एनजीओ से पता चला कि वो महिला काज़ी बन सकती हैं तो तुरंत तैयार हो गईं। क्योंकि इससे परिवार पालने में मदद मिलेगी और अन्य काज़ियों की तरह कमाई भी हो जाएगी. इन लोगों का मानना है कि इनके पास शादी को सर्टीफाई करने के लिए डिग्री है और इनकी कराई शादी और तलाक़ जायज़ है.

अफरोज़ बेगम कहती हैं कि 

"महिला काजी जो निकाह पढ़वाएंगी वो ऐसी होगी जिसमें मर्द और औरत बराबरी में रहेंगी, किसी के साथ कोई अन्याय नही होगा."

मुंबई के दारुल उलूम निस्वान फिलहाल देश भर में पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की महिलाओं को काज़ी बनने की ट्रेनिंग दे रही हैं. इनकी काज़ी बनने की पूरी ट्रेनिंग का खर्च ऑल इंडिया महिला आंदोलन ने हीं उठाया. इनमें से राजस्थान की दोनों महिलाओं ने काज़ी का काम शुरु कर दिया है

image


हालांकि इन दोनों ने योरस्टोरी को बताया, 

"हमारी इस शुरुआत से पुरुष प्रधान मुस्लिम समाज में विरोध होगा लेकिन हम टकराव करने नही आई हैं और हम सबको साथ लेकर बदलाव की कोशिश करेंगी. विरोध करने वाले बताएं तो सही कि कुरान में कहां लिखा है कि महिलाएं काजी नही बन सकती हैं"

काज़ी जहां आरा कहती हैं, कि पुरुष समाज में महिलाओं के नया करने पर बवाल तो मचेगा हीं लेकिन हम झगड़ा करने के लिए काज़ी नहीं बने हैं हमें तो सबको साथ लेकर चलना है.


image


उधर इन दो महिलाओं के काजी बनने से शहर के उलेमा और मुफ्ती लाल-पीले हो रहे हैं. ऑल इंडिया दारुल कज़ात के प्रेसिडेंट और चीफ काज़ी काज़ी खालीद उस्मानीने तो साफ कर दिया है कि समाज में उन्हें काज़ी के पद पर नहीं स्वीकारा जाएगा. महिलाओं को धार्मिक काम की इजाज़त नही है.

जबकि मुस्लिम महिला आंदोलन से जुड़ी महिला संगठनों ने काज़ी बनी इन दोनों महिलाओं को संरक्षण देने का एलान किया है और कहा है कि वो शादी कराने के लिए इन दोनों महिला काज़ियों से हीं शादी करवाएंगी. सामाजिक कार्यकर्ता निशात हुसैन ने सवाल उठाया है कि कोई बताए तो कि क़ुरान में काज़ियत के लिए महिलाओं पर कहां रोक है. राजस्थान में मुस्लिम महिलाओं में बदलाव की बयार दिख रही है. पहली बार राजस्थान मदरसा बोर्ड की चेयरमैन मेहरुन्निसा टांक बनी है तो सरकार ने भी वक्फ बोर्ड में पहली बार दो महिलाओं की सीट आरक्षित करते हुए इन्हें नियुक्त किया है.