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82% उत्तर भारतीयों को रिटायरमेंट के बाद फिट, सेहतमंद रहने का भरोसा: मैक्स लाइफ स्टडी

इस स्टडी में सामने आया है कि उत्तर भारत का रिटायरमेंट इंडेक्स बढ़कर 48 अंक पर पहुंच गया है, जो दक्षिण भारत के इंडेक्स के बराबर है और वैश्विक औसत 49 से मात्र एक अंक कम है. स्वास्थ्य एवं वित्तीय तैयारियों के मामले में उत्साहजनक स्कोर के साथ यह सुधार लगातार हो रही प्रगति का प्रतीक है.

मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने रिटायरमेंट की तैयारियों को लेकर अपने सालाना सर्वे इंडिया रिटायरमेंट इंडेक्स स्टडी (आइरिस) के चौथे संस्करण से मिले नतीजों को जारी किया है. इस सर्वे को मार्केटिंग डाटा एवं एनालिटिक्स के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी कंपनी कांतार के साथ साझेदारी में अंजाम दिया गया है.

इस अध्ययन में सामने आया है कि उत्तर भारत का रिटायरमेंट इंडेक्स बढ़कर 48 अंक पर पहुंच गया है, जो दक्षिण भारत के इंडेक्स के बराबर है और वैश्विक औसत 49 से मात्र एक अंक कम है. स्वास्थ्य एवं वित्तीय तैयारियों के मामले में उत्साहजनक स्कोर के साथ यह सुधार लगातार हो रही प्रगति का प्रतीक है. हालांकि उत्तर भारत में भावनात्मक तैयारियां रिटायरमेंट से जुड़ी बड़ी चिंता का कारण हैं.

मैक्स लाइफ इंश्योरेंस के ईवीपी एवं चीफ मार्केटिंग ऑफिसर राहुल तलवार ने कहा, “उत्तर भारत के रिटायरमेंट इंडेक्स में हुआ सुधार रिटायरमेंट को लेकर तैयारियों के प्रति बढ़ती जागरूकता को दिखाता है. स्वास्थ्य एवं वित्तीय तैयारियों के मामले में आया सुधार सराहनीय है. साथ ही अध्ययन से यह भी सामने आया है कि सुरक्षित एवं आनंददायक रिटायरमेंट के लिए भावनात्मक कल्याण और स्थायी वित्तीय योजना पर फोकस करने की जरूरत है. मैक्स लाइफ में हम लोगों को ऐसे आंकड़े एवं समाधान प्रदान करते हुए सशक्त करने के लिए समर्पित हैं, जिनसे उन्हें भविष्य के लिए बेहतर तरीके से योजना बनाने में मदद मिले.”

स्वास्थ्य एवं वित्तीय तैयारियों को कर रहे मजबूत

उत्तर भारत के हेल्थ इंडेक्स में उल्लेखनीय सुधार हुआ है. हेल्थ इंडेक्स 40 से बढ़कर 45 हो गया है. स्वास्थ्य को लेकर बढ़ती जागरूकता से इस दिशा में विकास को गति मिली है. स्वास्थ्य बीमा लेने वालों की संख्या 33 प्रतिशत से बढ़कर 47 प्रतिशत हो गई है और अब ज्यादा लोग (26 से बढ़कर 34 प्रतिशत) सेल्फ-हेल्थ केयर सप्लीमेंट्स का प्रयोग कर रहे हैं. अब 82 प्रतिशत उत्तर भारतीयों को भरोसा है कि वे रिटायरमेंट के बाद के वर्षों में फिट और सेहतमंद रहेंगे. आइरिस के पिछले संस्करण में ऐसा मानने वाले 69 प्रतिशत थे.

वित्तीय तैयारियों के मामले में भी प्रगति देखने को मिली है. 2023 के 49 अंक की तुलना में 2024 में वित्तीय इंडेक्स 51 अंक पर पहुंच गया. फिक्स्ड डिपोजिट/रिकरिंग डिपोजिट जैसे बचत के पारंपरिक तरीकों को अपनाने वालों की संख्या 47 प्रतिशत से बढ़कर 57 प्रतिशत हो गई है. इस तरह के निवेश के मामले में उत्तर भारत दूसरा सबसे आगे रहने वाला जोन बन गया है. स्टॉक मार्केट में भागीदारी भी 12 प्रतिशत से बढ़कर 18 प्रतिशत हो गई है. जीवन बीमा लेने वालों की संख्या 80 प्रतिशत है, जो 76 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. इसमें मामले में पश्चिम भारत के बाद उत्तर भारत का दूसरा स्थान है.

इन सुधारों के बाद भी, उत्तर भारत के 40 प्रतिशत प्रतिभागी ऐसे थे, जिन्होंने रिटायरमेंट के लिए बचत की शुरुआत नहीं की है. परिवार की संपत्ति पर निर्भरता और अन्य खर्चों को प्राथमिकता देना इस रास्ते में सबसे बड़ी बाधा हैं. हालांकि, रिटायरमेंट के बाद के वर्षों में वित्तीय रूप से आजाद रहने की भावना उत्तर भारतीयों के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है. उत्तर भारत में 41 प्रतिशत लोगों ने रिटायरमेंट की तैयारियों को लेकर इसे अपनी सबसे बड़ी प्रेरणा माना. यह अन्य सभी जोन की तुलना में ज्यादा है.

रिटायरमेंट प्लानिंग पर महंगाई का असर

अध्ययन के दौरान रिटायरमेंट की तैयारियों पर महंगाई का बढ़ता प्रभाव भी सामने आया. करीब 78 प्रतिशत उत्तर भारतीयों ने इस बात पर चिंता जताई कि जिस तरह से रहन-सहन का खर्च बढ़ रहा है, उसे देखते हुए उनकी बचत जल्द खत्म हो जाएगी. यह ऐसा मानने वालों के राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. रिटायरमेंट के लिए निवेश के मामले में महंगाई बड़ी वजह बनकर सामने आई है. सर्वे में शामिल 32 प्रतिशत लोगों ने माना कि उन्होंने इसी कारण से बचत की शुरुआत की. यह 25 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है.

बचत खत्म हो जाने की चिंता

उत्तर भारत में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है, जो अपनी बचत खत्म हो जाने को लेकर चिंतित हैं. अभी 60 प्रतिशत उत्तर भारतीयों का मानना है कि उनकी बचत रिटायरमेंट के बाद एक दशक से भी कम समय में खत्म हो जाएगी. आइरिस के पिछले संस्करण में ऐसा मानने वालों की संख्या 51 प्रतिशत थी. इस बार ऐसा मानने वालों की संख्या राष्ट्रीय औसत 56 प्रतिशत से भी ज्यादा है. साथ ही यह पूर्वी भारत (43 प्रतिशत) और पश्चिमी भारत (53 प्रतिशत) से भी अधिक है. वहीं 40 प्रतिशत उत्तर भारतीयों का भरोसा है कि उनका निवेश 10 साल से ज्यादा समय तक चलेगा, जो कि राष्ट्रीय औसत से कम है. 46 प्रतिशत लोगों का मानना है कि रिटायरमेंट के लिए निवेश या बचत की शुरुआत 35 साल की उम्र से पहले ही कर देनी चाहिए. इसके अतिरिक्त, 77 प्रतिशत उत्तर भारतीयों को यह पता है कि अपने मौजूदा जीवनस्तर को बनाए रखने के लिए रिटायरमेंट के बाद उन्हें कितने पैसों की जरूरत होगी. यह संख्या अन्य सभी जोन की तुलना में सर्वाधिक है.

भावनात्मक कल्याण है बड़ी चुनौती

रिटायरमेंट को लेकर भावनात्मक तैयारियों के मामले में उत्तर भारत पीछे है. यहां का इमोशनल इंडेक्स 2023 के 60 अंक से गिरकर 2024 में 58 पर आ गया. इस क्षेत्र में मात्र 68 प्रतिशत प्रतिभागी ही रिटायरमेंट को लेकर सकारात्मक पाए गए हैं, जो अन्य सभी जोन की तुलना में सबसे कम है. यह 73 के राष्ट्रीय औसत से भी कम है. अकेलापन और वित्तीय निर्भरता चिंता के बड़े कारण बने हुए हैं. 70 प्रतिशत से ज्यादा लोग रिटायरमेंट के बाद अन्य लोगों पर निर्भरता को लेकर चिंतित हैं.

इसके अलावा, परिवार के समर्थन को लेकर लोगों का भरोसा भी कमजोर पड़ा है. मात्र 86 प्रतिशत लोग ही इस बात को लेकर सुरक्षित अनुभव करते हैं कि उन्हें परिवार एवं दोस्तों से समर्थन मिलेगा. पिछले संस्करण में ऐसा मानने वाले 91 प्रतिशत थे. इस मामले में राष्ट्रीय औसत भी 90 प्रतिशत का है.

(feature image: AI generated)

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