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बूंद-बूंद से भरता है सागर, 'इशिता' के 'आनंद' का मूल मंत्र

बूंद-बूंद से भरता है सागर, 'इशिता' के 'आनंद' का मूल मंत्र

Tuesday October 18, 2016 , 6 min Read

इस साल मार्च में ये वाकया पेश आया। हुआ यूं कि नेशनल आइस हॉकी टीम बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद एशियन चैंपियशनशिप से वंचित होने होने के कगार पर थी और इसकी वजह थी फंड्स की कमी। तभी उन्होंने बिटगिविंग कैंपेन शुरू किया, भारत का अब तक का सबसे बड़ा क्राउड-फंडिंग प्लेटफॉर्म और आप यकीन करें या नहीं, इसे शानदार रिस्पॉन्स मिला। 20 दिन के भीतर वो 6.5 लाख रुपये जुटाने में कामयाब हो गए। ये एक विशाल रकम थी क्योंकि उस समय तक नेशनल टीम का एक भी स्पॉन्सर नहीं था। आनंद महिंद्रा, लीडिंग टेलिकॉम कंपनी माइक्रोमैक्स और यहां तक कि खेल मंत्रालय ने में टीम में रूचि दिखाई और मार्च के आखिर में खिलाड़ी चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए कुवैत के लिए रवाना हुए।

बिटगिविंग की को-फाउंडर और सीईओ 26 साल की इशिता आनंद कहती हैं- “उप कप्तान ने मुझसे प्री-डिपार्टर प्रेस मीट के दौरान बताया था कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि वे नेशनल टीम की तरह महसूस कर रहे हैं। वह कैंपेन व्यक्तिगत तौर पर भी मेरे दिल के बेहद करीब था।”

इशिता को तब अचरज हुआ जब वह ये देखीं कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर आइस हॉकी टीम को लेकर काफी हलचल और जिज्ञासा हो चुकी थी। इशिता बताती हैं- “उस समय तक लोग ये तक नहीं जानते थे कि ऐसी किसी टीम का वजूद भी है मगर अचानक इसके लिए लोगों का प्यार उमड़ने लगा। ये है क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म की खूबसूरती। कैंपेन लाइव होने के बाद से ही 20 घंटे तक ट्विटर पर ट्रेंड करता रहा। अचानक लोग इसके बारे में बात करने लगे और हर कोई अपने तरीके से इससे जुड़ चुका था।”

इशिता को किसी ने 22 साल की उम्र में ही एंटरप्रेन्योरियल जर्नी के बारे में प्रेरित किया था मगर बिटगिविंग के रूप में इस सफर की शुरुआत में काफी लंबा सफर तय करना पड़ा। उन्होंने लेडी श्रीराम कॉलेज में अपने ग्रेजुएशन के दौरान न्यूजलेटर ‘डीयू बीट’ के लिए डिजाइन हेड के तौर पर शुरुआत की। न्यूजलेटर की छोटी टीम के बावजूद इशिता ने एक स्टार्टअप के लिहाज से बहुत कुछ अनुभव हासिल किया। इशिता कहती हैं- “वह अनुभव मेरे साथ जुड़ा रहा।” उसके बाद इशिता ने फिल्म मेकिंग से लेकर एनिमेशन तक कई करियर ऑप्शंस को आजमाया। मगर बाद में उन्हें अपनी अंतरात्मा की सच्ची आवाज सुनाई दी- एक एंटरप्रेन्योर बनो। इशिता बताती हैं- “उस समय तक एंटरप्रेन्योर बनने की उत्कंठा बलवती हो चुकी थी और मैं आर्टिस्ट्स के लिए एक प्लेटफॉर्म के बारे में काम करना शुरू कर चुकी थी।”

इशिता आनंद

इशिता आनंद


अनुभवहीनता और टेक्निकल एक्सपर्जिज के अभाव में उस समय शायद वेंचर जोर नहीं पकड़ सका मगर इशिता दृढ़ प्रतिज्ञ थी। वह एक प्रशिक्षित एनिमेटर थी। उन्होंने खुद को तकनीक सीखने और बैंकों के कई सारे कोलेबोरिटिव प्रोजेक्ट्स पर खुद को झोंक दिया और तकनीक पर पकड़ मजबूत कर ली। 2013 के आखिर तक उन्होंने बिटगिविंग की स्थापना की।

बिटगिविंग के साथ इशिता में छिपा एंटरप्रेन्योर जाग गया

शुरुआती दिनों में बिटगिविंग ने सामाजिक क्षेत्र में बहुत कुछ किया। बहुत सारे फंड इकट्ठे हुए और बहुत सारी रणनीतियों के साथ अलग-अलग तरह के प्रोजेक्ट्स पर काम हुए। इशिता कहती हैं- “उस समय भारत में क्राउंडफंडिंग का कॉन्सेप्ट बेहद नया था, लोग इस तरह के किसी प्रयास के आकार लेने के बारे में जागरूक नहीं थे।”

हर दिन के बीतने के साथ बिटगिविंग कुछ नया करता था। इसने कुछ बेहद रोचक ऑफबीट कैंपेन चलाए जिसमें एक कैंपेन कोलकाता में विलुप्ति की कगार पर खड़ी फिशिंग कैट के लिए भी शामिल था। इस कैंपेन को चलाने वाली महिला अब ओवरफंडेड है। इसके बावजूद भी विकास बहुत धीमा था, इशिता को विश्वास है कि उनका क्राउड-फंडिंग कॉन्सेप्ट अगले कुछ सालों में जोर पकड़ेगा।

उन्होंने नेपाल में विनाशकारी भूकंप के बाद राहत के लिए एक कैंपेन किया जिसमें उन्होंने 60 लाख रुपये जुटाये।

इशिता कहती हैं- 'इस कैंपेन में बहुत सारी चीजों की जरूरत होती है और सोशल मीडिया पर लोग उसी के मुताबिक रिएक्ट करते हैं। ये एक पारदर्शी प्लेटफॉर्म था जहां विशेष तौर पर युवा पीढ़ी जानती है कि कहां और कैसे इन पैसों का इस्तेमाल हो रहा है और वो किसी कॉज के लिए योगदान देना पसंद करती है।'

भाई-बहन दोनों ही एंटरप्रेन्योर

इशिता के पिता ने हमेशा नौकरी की मगर वह अपने मां को हमेशा एक हाउस वाइफ के ही रोल में देखती आई। उसे लगता है कि उसके भाई वरुण आनंद में उसके जैसे ही एंटरप्रेन्योरशिप के लक्षण थे। इशिता खुश होकर कहती है- “हालांकि जब वह स्टार्ट शुरू कर रहे थे तो मैं स्टार्टअप के कॉन्सेप्ट के बारे में बिलकुल ही अनजान थी, मगर आज मैं अपनी हर समस्या को लेकर उनसे चर्चा करती हूं।” वरुण हेल्थकेयर सेक्टर में काम करते हैं।

महिला एंटरप्रेन्योर होना

इशिता कहती हैं कि हमेशा से ईको-सिस्टम उन्हें महिलाओं के लिहाज से आकर्षक लगा। वह कहती हैं- “सिर्फ आपको कई तरह की आंतरिक लड़ाइयों से पार पाना होगा जैसे कि मैंने स्टार्ट अप के बारे में फैसला किया था तो इनका सामा किया था। कोई भी आपको सिर्फ इसलिए मना नहीं करेगा कि आप एक औरत हैं।”

वह कहती हैं कि जब उन्होंने स्टार्ट अप शुरू किया तो उन्हें नहीं मालूम था कि इस क्षेत्र में बहुत सारी महिला एंटरप्रेन्योर पहले से ही काम कर रही हैं जिनमें से कुछ तो वाकई बहुत ही शानदार काम कर रहीं थी। हालांकि इशिता को लगता है कि वो महिलाएं खुद को उचित सम्मान नहीं देती थीं जिसकी वो हकदार हैं।

इशिता कहती हैं कि वह ऐसी तमाम महिलाओं को जानती हैं जो अपने काम की कीमत नहीं समझती और कुछ समय बाद वह अपने स्टार्ट अप को छोड़ देती हैं।

इशिता ने कुछ अलग तरह की चुनौतियों का सामना किया।

वह मजाकिया लहजे में कहती हैं- “ये काफी मुश्किल है कि लोगों को यकीन हो जाए कि महिलाएं भी तकनीक को समझती हैं!”आखिरकार, दिन के अंत तक जो चीज अहमियत रखता है वो है नंबर। आपका बिजनेस कितना काम कर रहा हैं, इसमें ये मायने नहीं रखता कि आप पुरुष हैं या औरत।

एक व्यक्ति जिसे एंटरप्रेन्योरशिप में यकीन है

बिटगिविंग के साथ-साथ इशिता लीन इन फाउंडेशन के साथ जुड़ी हैं जो एक नॉट-फॉर-प्रॉफिट ऑनलाइन कम्यूनिटी है जो महिलाओं को उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद करती है। वह इंडिया चैप्टर की हेड हैं अगले हफ्ते सेन फ्रेंसिस्को में वूमन एंटरप्रेन्योर का प्रतिनिधित्व करने वाली हैं। वह कहती हैं- “दुनिया भर के 50 चैप्टर हेड्स को अपने अनुभवों और बतौर एंटरप्रेन्योर उन्हें मिले सबको को शेयर करने के लिए बुलाया गया है।”

इशिता, शेरिल सैंडबर्ग से बहुत ज्यादा प्रभावित हैं जिनसे उन्हें हाल ही में लीन इन फाउंडेशन की एक मीटिंग में मिलने का मौका मिला। इशिता कहती हैं- “वह मुझे कई स्तरों पर प्रेरित करती हैं। इसके अलावा मैं अपने भाई वरुण पर पूरी तरह भरोसा करती हूं और मैं किसी भी समस्या को उसके सामने रखती हूं।”