इस कपल की कहानी सुनकर आप भी कहेंगे, "मोहब्बत सूरत से नहीं सीरत से होती है"
सबकुछ सही चल रहा था कि अचान नवंबर 2011 में एक दिन जय को एक फोन आया और उसके दोस्त से मालूम चला कि सुनीता का कोयंबटूर में ऐक्सिडेंट हो गया है।
2007 में जय के बर्थडे के दिन एक कॉल आई। जय ने फोन रिसीव किया तो उधर से आवाज आई कि सुनीता बोल रही हूं। इतना सुनते ही जय का दिल उतनी ही जोर से धड़कने लगा जैसे 17 साल की उम्र में सुनीता को देखकर धड़कने लगता था।
आज जय और सुनीता के दो प्यारे बच्चे भी हैं। जय बताते हैं कि सुबह उठते ही दोनों बच्चों के चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर उनका चेहरा खिल जाता है। जय बताते हैं कि प्यार चेहरा देखकर नहीं होता और उसमें कोई शर्त नहीं होता है।
बेंगलुरु के रहने वाले जयप्रकाश के लिए सुनीता टीनएज क्रश से भी कहीं बढ़कर थीं। लेकिन सुनीता की तरफ से कई बार प्रणय निवेदन ठुकरा जाने के बाद भी जयप्रकाश को कहीं न कहीं ये उम्मीद थी कि सुनीता एक दिन उनका प्रेम प्रस्ताव स्वीकार कर लेगी। जयप्रकाश बताते हैं कि वह 2004 का साल था। 'उस वक्त मैं सिर्फ 17 साल का था। स्कूल में अपने क्लासरूम के बाहर मैंने एक नई लड़की देखी और उसे बिना देखे रहा नहीं गया। मैंने इतनी खूबसूरत लड़की इससे पहले कभी नहीं देखी थी।' जय ने उस लड़की से दोस्ती कर ली। लेकिन जब भी वह किसी और लड़के के साथ दिखती तो जय को बहुत बुरा महसूस होता था। धीरे-धीरे जय ने उससे बात करना बंद कर दिया। लेकिन सुनीता को पता भी नहीं था कि वह बात क्यों नहीं कर रहा है।
उसने जय से एक दिन कहा कि वह कुछ बात करना चाहती है। जय इंतजार ही करते रहे, लेकिन सुनीता उनसे मिलने नहीं आई। वह स्कूल का आखिरी साल था और उसके बाद सुनीता बेंगलुरु चली गई। 2007 में जय के बर्थडे के दिन एक कॉल आई। जय ने फोन रिसीव किया तो उधर से आवाज आई कि सुनीता बोल रही हूं। इतना सुनते ही जय का दिल उतनी ही जोर से धड़कने लगा जैसे 17 साल की उम्र में सुनीता को देखकर धड़कने लगता था। उन दोनों की बात बमुश्किल दो मिनट तक हुई, लेकिन इसके बाद दोनों फिर से टच में आ गए और कभी-कभी बात करने लगे।
सबकुछ सही चल रहा था कि अचान नवंबर 2011 में एक दिन जय को एक फोन आया और उसके दोस्त से मालूम चला कि सुनीता का कोयंबटूर में ऐक्सिडेंट हो गया है। जय को लगा कि कोई छोटी-मोटी चोट आई होगी। इसलिए उन्होंने दो दिन बाद उसे कॉल किया। लेकिन उनकी बात नहीं हो पाई। इइसके बाद जब वे सुनीता से मिलने पहुंचे तो उनके होश उड़ गए। हादसा इतना बुरा था कि सुनीता का पूरा चेहरा तहस-नहस हो गया। चेहरे पर नाक, दांत मुंह सब बेकार हो गया था और वह किसी 90 साल की बूढ़ी औरत जैसे दिखने लगी थी। यह सब देखकर जय भीतर से टूट गए। उसी वक्त उन्हें लगा कि वे सुनीता को बहुत चाहते हैं।
उसके एक दिन बाद जय ने सुनीता को मैसेज किया, 'मैं ही इकलौता इंसान हूं दो तुम्हारी देखभाल कर सकता हूं। मैं तुमसे प्यार करता हूं और शादी करना चाहता हूं।' इसके बाद सुनीता ने जय को तुरंत फोन किया और फिर से जय ने उसे प्रपोज कर दिया। इतने पर सुनीता हंस पड़ी, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। जाहिर सी बात थी कि इस हालत में सुनीता से शादी की बात कहना हिम्मत वाली बात थी। इस फैसले से जय की मां खुश भी नहीं थीं, लेकिन उनके पिता ने उनका साथ दिया। जनवरी 2012 से जय सुनीता की हर सर्जरी में साथ रहे। इस दरम्यान कई सारे उतार-चढ़ाव आए, लेकिन हर घड़ी में जय सुनीता के साथ रहे। आईसीयू से लेकर हॉस्पिटल के नॉर्मल बेड पर जय सुनीता की देखभाल करते रहे।
इस वजह से जय को बेंगलुरु शिफ्ट होना पड़ा। 26 जनवरी 2014 की बात है। जय देर रात 1 बजे बेंगलुरु पहुंचे और देखा कि छत पर सुनीता गुलदस्ता लेकर जय का इंतजार कर रही हैं। उसी दिन दोनों ने सगाई कर ली। इसके बाद ददोनों की शादी हुई। उनकी शादी में कई सारी दिक्कतें और अड़चनें भी आईं, लेकिन सच्चा प्यार समाज की इजाजत का मोहताज तो होता नहीं है। लोगों ने जय से सवाल किए कि वह ऐसी लड़की से शादी क्यों कर रहे हैं। कई लोगों ने सुनीता से भी कहा कि वह बच्चे न पैदा करे क्योंकि उसका चेहरा बुरी तरह झुलस चुका था। लेकिन जय ने सुनीता से शादी की और उनके अब दो बच्चे भी हैं। जय बताते हैं कि शादी के बाद उनकी जिंदगी पहले से और बेहतर ही हुई है।
आज जय और सुनीता के दो प्यारे बच्चे भी हैं। जय बताते हैं कि सुबह उठते ही दोनों बच्चों के चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर उनका चेहरा खिल जाता है। जय बताते हैं कि प्यार चेहरा देखकर नहीं होता और उसमें कोई शर्त नहीं होता है। बल्कि यह दो आत्माओं का मिलन होता है। जयप्रकाश बताते हैं कि शादी के शुरुआती दिनों में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन आज वे खुद को बहुत खुशनसीब मानते हैं क्योंकि वे अपने टीनएज प्यार के साथ जिंदगी बिता रहे हैं। उनका मानना है कि प्यार चेहरे की सुंदरता से नहीं बल्कि दिल से होता है।
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