Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

कुछ इश़्क कुछ शब्दों की दीवानगी!

ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार चयन समिति द्वारा युवा कवि रश्मि भारद्वाज की पांडुलिपि “एक अतिरिक्त अ” को नवलेखन पुरस्कार-2016 के तहत अनुशंसित किया गया है। प्रस्तुत है प्रसिद्ध साहित्यकार गीताश्री का लेख। आप भी पढ़ें रश्मि भारद्वाज को इनके शब्दों में...

कुछ इश़्क कुछ शब्दों की दीवानगी!

Tuesday January 10, 2017 , 4 min Read

वह गांव की यात्रा पर थी। एक ठंडी दोपहर को जब वह गुनगुनी धूप में उनींदी हो रही थी, मोबाइल की घंटी बज उठी। उसके बाद से चेहरे की रौनक बदल गई। नींदें उड़ गई। धूप थोड़ी और चमकीली और हवाएं सुरीली हो गईं। एक युवा कवि के लिए बड़ी खबर थी। ज्ञानपीठ जैसे बड़े प्रतिष्ठित संस्थान से कविताओं की पांडुलिपि का अनुशंसित होना बड़ी उपलब्धि होती है किसी युवा रचनाकार के लिए। युवा कवि रश्मि भारद्वाज की पांडुलिपि “एक अतिरिक्त अ” को नवलेखन पुरस्कार-2016 के तहत अनुशंसित किया गया है।

image


"स्त्री होने के नाते उसकी कविताओं को स्त्री विमर्श के खांचे में नहीं फिट कर सकते और न ही निजी प्रलाप या भड़ास की तरह देख सकते हैं। उसकी कविताएं धड़कती हैं अपने निजी दु:खों से ऊपर उठकर और बड़े वर्ग से जुड़ जाती है।"

आईये अब कुछ बातें इस कवि के बारे में करती हूं, जो कविता से दीवानों की हद तक प्यार करती है। उसके नन्हें से मन पर दुनिया भर का बोझ है। कुछ इश्क जरुरी तो कुछ शब्दों की दीवानगी! ईश्वर से भरोसा भले टूटे पर शब्दों से इश्क की दीवानगी कम न होने पाये। “मुझे इश्क है तुम्हीं से, मेरी जान ज़िंदगानी…” की हद तक कविता के प्रति दीवानगी है उसकी। रब रुठे तो रुठे, कविता से इश्क न छूटे। शब्दों का दामन न छूटे। थोड़ी-थोड़ी अबूझ, कुछ-कुछ सुस्त और बला की जिद्दी एक स्मॉल टाउन गर्ल रश्मि भारद्वाज कविता की मुख्यधारा में दस्तक दे चुकी हैं। स्त्री होने के नाते उसकी कविताओं को स्त्री विमर्श के खांचे में नहीं फिट कर सकते और न ही निजी प्रलाप या भड़ास की तरह देख सकते हैं। उसकी कविताएं धड़कती हैं अपने निजी दु:खों से ऊपर उठकर और बड़े वर्ग से जुड़ जाती है।

उसकी कविताएं सिर्फ उसकी नहीं, उन सबकी है जो हाशिए पर हैं। स्त्री हो, आम आदमी हो, चाहे वो शहर की भीड़ में धक्के खा रहा हो या कि सुदूर देहात में कठिन जीवन जी रहा हो। वह जानती है कि उसकी पीढ़ी बहुत उलझा हुआ जीवन जी रही है। उसकी पीढ़ी का जीवन सहज नहीं। फेसबुक स्टेटस की तरह रिश्ते बहुत कॉम्प्लिकेटिड होते जा रहे हैं। सब कुछ टूट रहा है... बिखर रहा.. भरोसा भी!

"वह लाख दुश्वारियों के बीच भी लिखते रहना चाहती है, बिना उत्तर जाने कि ऐसी जिद क्यों। वह बस इतना जानती है, कि जिस दिन लिखना छूट गया, उसके आस पास की चीज़ें उसके लिए बहुत बदल जायेंगी। सांसें तो चलेंगी लेकिन जीना सहज नहीं रह जाएगा।"

इन हालातों में बस कविता ही वह जगह है, जहां अपनी पहचान मिलती है जो आश्वस्त करती है, कि जीवन अब भी जीने लायक है। उसकी कविताओं का मूल स्वर उसी विश्वास की खोज है। कविता उसके लिए मनबहलाव का साधन नहीं बल्कि ख़ुद को और हमारे आसपास के छीजते समय को खोजने, उस पर भरोसा बनाये रखने का जरिया है। इस खोज ने उसे सवालों से भर दिया है। वह लाख दुश्वारियों के बीच भी लिखते रहना चाहती है, बिना उत्तर जाने कि ऐसी जिद क्यों। वह बस इतना जानती है, कि जिस दिन लिखना छूट गया, उसके आस पास की चीज़ें उसके लिए बहुत बदल जायेंगी। सांसें तो चलेंगी लेकिन जीना सहज नहीं रह जाएगा। कुछ शब्दों को साँसे देकर जैसे अपने लिए प्राणवायु एकत्र करती है, ताकि इस दुनिया के साथ, उसके धूप- छांव के साथ कदमताल कर सके।

image


"साहित्य के लिए दीवानगी की वजह से तमाम विरोधों के बाद भी विज्ञान और मेडिकल साइंस की पढ़ाई छोड़ कर रश्मि ने अंग्रेजी साहित्य पढ़ा। कीट्स,शेली, वर्डसव्रथ, यीट्स, ईलियट ने कविता के लिए समझ और प्रेम जगाया और कविता उसके जीवन का हिस्सा होती चली गयी।"

यकीन मानिए, लिखने की प्रक्रिया उसके लिए कभी सहज नहीं रही। समय, परिस्थितियाँ, रिश्ते, आस पास के लोग कई बार जानते बूझते, कई बार अनजाने में ऐसे हालात पैदा करते गए हैं, कि लेखन उससे दूर होता गया। लेकिन कहते हैं न, कि यदि आप किसी चीज़ को पूरी निष्ठा से चाहो, तो वह आप तक जरूर पहुँचती है। उसका यह इश्क, यह जुनून, अब आराधना में बदल चुका है।

हिन्दी और अँग्रेजी दोनों मे लिखने के बाद भी रश्मि को हिन्दी से अधिक लगाव है, क्योकि हिंदी उसके सोचने की भाषा थी। उसकी कविताएं देश की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में छप रही हैं। उसने कुछ महत्वपूर्ण अँग्रेजी कविताओं के अनुवाद भी किये हैं। वेब पत्रिका मेराकी का संपादन भी करती है, जो नवोदितों को मंच प्रदान करने के लिए कटिबद्ध है। इस ई-पत्रिका द्वारा समय-समय पर नवोदितों के कविता पाठ का कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता रहा है।

दफ़्न होते प्रश्नों के बीच कविता अब भी उसके लिए किसी उम्मीद की तरह है...