Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

बेसहारा बच्चों का सहारा बनने के लिए अपनी ज़िंदगी लगाई दांव पर

 मानव सेवा के भाव से रखी नींव परिवार आश्रम कीइंफोसिस की नौकरी छोड़ विनायक ने सच किए बेसहारा बच्चों के सपने पांच सौ से ज्यादा बच्चों का है परिवार आश्रम

बेसहारा बच्चों का सहारा बनने के लिए अपनी ज़िंदगी लगाई दांव पर

Thursday November 03, 2016 , 5 min Read

बेसहारा और गरीब बच्चों की मदद करने वाले तो आपको कई लोग मिल जाएंगे लेकिन कोई इंसान अपना पूरा जीवन ही ऐसे बच्चों का भविष्य संवारने में लगा दे, यह बहुत बड़ी बात है। कोलकाता के विनायक लोहानी वो नाम हैं जिन्होंने ऐसी ही मिसाल पेश की।

विनायक लोहानी, संस्थापक

विनायक लोहानी, संस्थापक


मानव सेवा को समर्पित विनायक ने जिंदगी में भले ही कई उतार-चढ़ाव देखे लेकिन लक्ष्य पर अपना ध्यान कुछ वैसा ही बनाए रखा, जैसा अर्जुन ने मछली की आंख पर बनाया था। एक आईएएस पिता के बेटे विनायक ने अपनी 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई भोपाल से की। वे बचपन से ही बेहद होनहार छात्र रहे इसलिए उच्च शिक्षा के लिए उनका दाखिला आईआईटी खडग़पुर में हुआ और फिर उसके बाद उन्होंने आईआईएम कोलकाता जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से भी पढ़ाई की।

विनायक ने करीब साल भर आईटी कंपनी इंफोसिस में काम किया। लेकिन कॉरपोरेट दुनिया की चकाचौंध से वे कभी प्रभावित नहीं हुए। यही वजह रही कि नौकरी को ताक पर रखकर विनायक अपने सपने पूरे करने के लिए आगे बढ़ गए। सपना था बेसहारा बच्चों के जीवन को शिक्षा रूपी रोशनी से रौशन करना।

image


हालाकि विनायक के पास इस तरह के काम करने वाले एनजीओ को चलाने का कोई तुजुर्बा नहीं था लेकिन अपने अटल इरादों की बदौलत वो ऐसा कर पाए। इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। दरअसल पढ़ाई के दौरान ही वे एनजीओ चलाने वाले कई लोगों से मिल चुके थे ताकि जरूरी अनुभव प्राप्त कर सकें। अपना एनजीओ परिवार आश्रम खोलने से पहले वे यूपी के एक दलित गांव, मध्य प्रदेश के एक ग्रामीण संगठन और कोलकाता के मदर टेरेसा मिशनरी ऑफ चैरिटी में अच्छा-खासा वक्त गुजार चुके थे। ये अनुभव उनके लिए अनमोल रहा।

विनायक गांव-गांव जाकर आम आदमी के लिए काम करने वाले महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण और विनोबा भावे से काफी प्रभावित रहे। उन पर विवेकानंद के लेखों का भी खूब प्रभाव रहा। कोलकाता में देह व्यापार से जुड़ी महिलाओं के बच्चों के लिए एक स्मॉल होम चलाने वाले पादरी ब्रदर जेवियर ने भी उन पर अच्छी-खासी छाप छोड़ी। लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती ऐसा होम खोलने के लिए जरूरी पैसा जुटाना था। इस सिलसिले में वे कई लोगों से मिले, लेकिन उनकी राह आसान नहीं थी। पैसा जुटाना काफी मुश्किल साबित हो रहा था लेकिन विनायक ने हार नहीं मानी और पूरी शिद्दत से अपने मिशन को अंजाम देने में लगे रहे। शुरुआत में उन्होंने कुछ बच्चों के लिए एक ठिकाना किराए पर लिया और कुछ वक्त तक उसे चलाया भी। फिर एकाएक उनके प्रयास सफल होने लगे और इधर-उधर से फंड भी मिलने लगा। दिलचस्प बात यह रही कि मंदी के दौरान भी फंड आने का सिलसिला जारी रहा। और उसके बाद उसमें इजाफा होता चला गया।

इस फंड के बूते विनायक ने पश्चिम बंगाल में ही 'परिवार आश्रम खोला, जो आज अनाथ, आदिवासी और देह व्यापार में लिप्त महिलाओं के बच्चों का ठिकाना बन चुका है। परिवार आश्रम इन बच्चों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि परिवार आश्रम में यह बच्चे अपने उन सपनों को पूरा कर रहे हैं जिन्हें देखने की कल्पना भी उन्होंने पहले नहीं की थी। परिवार आश्रम ने इन बच्चों को अपने लिए सपने देखने का मौका ही नहीं दिया बल्कि उनके इन सपनों को पूरा करने के लिए प्रयास भी कर रहा है।

परिवार आश्रम में फिलहाल पांच सौ से ज्यादा बच्चे हैं। आश्रम में लड़के लड़कियों के लिए हॉस्टल, एक बड़ी लाइब्रेरी, गेम्स रूम, टीवी रूम और यहां तक की क्रिकेट ग्राउंड भी है। इस ग्राउंड की देख-रेख वही क्यूरेटर करते हैं जो कभी ईडन गार्डन की किया करते थे। जो बच्चे परिवार आश्रम से शुरुआत में जुड़े थे, वे पहले नजदीकी स्कूलों में जाकर पढ़ाई किया करते थे, लेकिन अब आश्रम ने अमर विद्यापीठ नाम का अपना ही स्कूल खोल दिया है। आश्रम एक कुटुम्ब की तरह है। बच्चों को किताबी शिक्षा देने के अलावा उन्हें पार्क, चिड़ियाघर और कॉलेजों के गलियारों में भी घुमाया जाता है ताकि वे बाहरी दुनिया से रूबरू हो सकें। दिलचस्प बात यह है कि संस्थान में बच्चों को देश-दुनिया में घटने वाली घटनाओं से भी रूबरू करवाया जाता है। यानी बच्चों के सर्वांगीण विकास का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है ताकि वे दूसरे बच्चों के मुकाबले किसी भी मामले में पीछे न रहें।

किसी संस्था को दिन रात चलाना आसान काम नहीं होता। विनायक के पास ऐसी समर्पित टीम है जो उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलती है। उनके संस्थान से जुडऩे वालों में शहरों से आने वाले लोगों के अलावा गांव-देहात के लोग, बीच में पढ़ाई छोडऩे वाले युवा और वृद्ध सभी शामिल हैं। विनायक संस्थान में काम करने वालों को सेवाव्रती कहकर पुकारते हैं, जिसका मतलब है, ऐसे लोग जिन्होंने सेवा का प्रण लिया हो। आज परिवार आश्रम में करीब 35 फुलटाइम सेवाव्रती पूरी शिद्दत से बच्चों को एक सुनहरा भविष्य देने के लिए प्रयासरत हैं।

विनायक अविवाहित हैं और अपनी पूरी जिंदगी इसी आश्रम को समर्पित कर चुके हैं। विनायक इसे अपना मिशन मानते हैं। किसी ने क्या खूब कहा है, 'काम आओ दूसरों के, मदद गैर की करो, यह कर सको अगर, तो इबादत है जिंदगी। जीवन के प्रति विनायक लोहानी का नजरिया कुछ ऐसा ही है।