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कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स बिजनेस में वृद्धि के बावजूद, 57% कर्मचारी छोड़ रहे नौकरी: रिपोर्ट

हालिया जारी टीमलीज़ की रिपोर्ट में सामने आया है कि जिन अस्‍थायी नौकरियों में ज्यादा मांग है, उनमें स्टोर प्रमोटर, सर्विस तकनीशियन, सुपरवाइजर, सेल्स ट्रेनर, चैनल सेल्स एग्जीक्यूटिव, कस्टमर सपोर्ट एग्जीक्यूटिव, वेयरहाउस इंचार्ज, टेली-सपोर्ट एग्जीक्यूटिव और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर शामिल हैं.

देश की प्रमुख स्टाफिंग कंपनी टीमलीज़ सर्विसेज (TEAMLEASE) ने अपनी 'कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स - स्टाफिंग पर्सपेक्टिव रिपोर्ट' जारी की है. यह रिपोर्ट तेजी से बढ़ते कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर की जानकारी देती है. इस रिपोर्ट में अनुमान व्‍यक्‍त किया गया है कि 2027 तक भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन जाएगा. इस सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी. वे उपभोक्ताओं को अपनी सेवाएं देंगे और सेक्टर के स्थायी विकास में मदद करेंगे. इस रिपोर्ट में इस सेक्टर में अलग-अलग तरह की प्रतिभाओं की मांग को तेजी और कुशलता से पूरा करने में इस वर्कफोर्स की अहम भूमिका पर प्रकाश डाला गया है. टीमलीज़ सर्विसेज रोजगार और आसानी से कारोबार करने में बड़ा बदलाव लाने वाला प्रमुख स्टाफिंग समूह है.

इस रिपोर्ट में, टीमलीज़ सर्विसेज ने उन अस्थायी नौकरियों की पहचान की है जिनकी सबसे ज्यादा मांग है. इनमें इन-स्टोर प्रमोटर, सर्विस तकनीशियन, सुपरवाइजर, सेल्स ट्रेनर, चैनल सेल्स एग्जीक्यूटिव, कस्टमर सपोर्ट एग्जीक्यूटिव, वेयरहाउस इंचार्ज, टेली-सपोर्ट एग्जीक्यूटिव और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर शामिल हैं. ये सभी कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. रिपोर्ट में बाजार को अलग-अलग हिस्सों में बांटकर समझाया गया है. इसमें रसोई के छोटे उपकरणों (जैसे एलईडी लाइट और बिजली के पंखे) से लेकर बड़े उपकरण (जैसे एसी, रेफ्रिजरेटर और वाशिंग मशीन) और टीवी, मोबाइल फोन, कंप्यूटर डिवाइस और डिजिटल कैमरों जैसे उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स को शामिल किया गया है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि एसी बाजार 2028 तक 15% की सीएजीआर दर से बढ़कर 5.8 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा. वहीं, मोबाइल फोन बाजार 6.7% की सीएजीआर दर से बढ़कर 2028 तक 61.2 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.

इस क्षेत्र में अस्थायी कर्मचारियों में ज्यादातर पुरुष (94%) हैं, जिनकी औसत उम्र 31 साल है और वे औसतन 2.8 साल तक काम करते हैं. इनमें से आधे से ज्यादा ने 12वीं कक्षा भी पास नहीं की है. इसलिए, इनकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए इन्हें खास कौशल सिखाने के लिए सही प्रशिक्षण देना जरूरी है.

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सांकेतिक चित्र: Freepik/pressfoto

टीमलीज़ सर्विसेज की रिपोर्ट में अलग-अलग जगहों का गहराई से विश्लेषण किया गया है. इन विश्लेषण से पता चला है कि अस्थायी कर्मचारियों की सबसे ज्यादा संख्या दक्षिण भारत में है. तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना वे पांच राज्य हैं जहां अस्थायी नौकरियों की संख्या सबसे ज्यादा बढ़ी है. शहरों के आधार पर देखें तो बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता और मुंबई में अस्थायी नौकरी करने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है. रिपोर्ट में वेतन के ट्रेंड की भी जांच की गई है. इसमें क्षेत्र और शहरों के आधार पर औसत वार्षिक वेतन (सीटीसी) और इन्सेंटिव के अंतर को नोट किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, मेट्रो शहरों में सबसे ज्यादा वार्षिक वेतन और टियर 2 शहरों में सबसे ज्यादा मासिक इन्सेंटिव मिलता है.

इस रिपोर्ट में नौकरी छोड़ने की समस्या को महत्वपूर्ण चुनौती बताया गया है. इसमें दो तरह की छंटनी का जिक्र है: रिग्रेटेबल एट्रिशन (खेदजनक छंटनी) और नॉन-रिग्रेटेबल एट्रिशन (गैर-खेदजनक छंटनी). रिग्रेटेबल एट्रिशन में 22% ऐसे कर्मचारी शामिल हैं जिनका प्रदर्शन शानदार रहा है, जबकि नॉन-रिग्रेटेबल एट्रिशन में 31% ऐसे कर्मचारी शामिल हैं जिनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा या जिन्हें कोई इन्सेंटिव नहीं मिला. 1000 कर्मचारियों वाली किसी कंपनी में एट्रिशन का खर्च लगभग 3.64 करोड़ रूपए होता है. ऐसी कंपनियों में इन-शॉप प्रमोटर का पद खाली रहने के कारण कमाई में लगभग 118.6 करोड़ रूपए की गिरावट आई है.

टीमलीज़ सर्विसेज के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट बालासुब्रमण्यिन ए ने कहा, "नौकरी छोड़ने की बढ़ती दर एक बड़ी समस्या है. इससे कंपनी के मुनाफे और विकास पर बुरा असर पड़ सकता है. हमारी रिपोर्ट में दिखाया गया है कि एक मध्यम आकार की कंपनी को 100 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हो सकता है. इससे साफ है कि कंपनियों को तुरंत कदम उठाने की जरूरत है. एट्रिशन की समस्या से निपटना सिर्फ लागत बचाने का तरीका नहीं है, बल्कि मैन्युफैक्चरिंग और रिटेल सेक्टर के विकास और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने का निवेश भी है. हमें अस्थायी कर्मचारियों को आकर्षित करने, उनका कौशल बढ़ाने और उन्हें बनाए रखने के लिए नई रणनीतियां बनानी चाहिए."

टीमलीज़ सर्विसेज लिमिटेड के स्टाफिंग के सीईओ कार्तिक नारायण ने कहा, "कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर के विकास के लिए अस्थायी कर्मचारियों की जरूरतों को समझना जरूरी है. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन गया है, इसलिए हमें वर्कफोर्स से जुड़ी समस्याओं का समाधान खोजने का अच्छा मौका मिला है. हमारी रिपोर्ट व्यवसायों को उनकी स्टाफिंग रणनीतियों को सुधारने और कामकाज में कुशलता बढ़ाने में मदद करती है, जिससे एक बेहतर भविष्य की राह बनती है."

इस रिपोर्ट में टीमलीज़ सर्विसेज के सफल केस स्टडीज भी शामिल हैं जो दिखाते हैं कि उन्होंने अपने क्लाइंट्स की वर्कफोर्स से जुड़ी समस्याओं का कैसे समाधान किया. इन समाधानों में सैलरी सिस्टम को सुधारना, जरूरत के हिसाब से प्रशिक्षण देना और वर्कफोर्स मैनेजमेंट सॉल्यूशन लागू करना शामिल है. इन कदमों से लागत कम हुई है, कर्मचारियों के नौकरी छोड़ने की दर घटी है और उनकी जुड़ाव और उत्पादकता बढ़ी है.

(feature image: Freepik/master1305)

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