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धारा 377 खत्म: 'जब प्यार किया तो डरना क्या'

धारा 377 खत्म: 'जब प्यार किया तो डरना क्या'

Friday September 07, 2018 , 3 min Read

 सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में आईपीसी की धारा 377 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसके तहत बालिगों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंध भी अपराध था। 

सांकेतिक तस्वीरें (साभार सोशल मीडिया)

सांकेतिक तस्वीरें (साभार सोशल मीडिया)


 बीते साल निजता के अधिकार मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन भी एक मौलिक अधिकार है। इस फैसले से LGBTQ लोगों में एक उम्मीद बंधी थी कि अब उनके हक में कोई अच्छा फैसला आ सकता है।

बीता 6 सिंतबर, गुरुवार का दिन भारत के लिए ऐतिहासिक दिन रहा। एलजीबीटी समुदायों के पक्ष में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद देश में समानता के पैरोकारों ने खुशियां मनाईं। एक ऐसे देश में जहां समाज में प्यार करने पर तमाम तरह की बंदिशें लगाई जाती हों वहां समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता मिलने के बाद खुशी की लहर फैलना लाजिमी है। दरअसल गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में आईपीसी की धारा 377 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसके तहत बालिगों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंध भी अपराध था। कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इतने सालों तक समान अधिकार से वंचित करने के लिए समाज को एलजीबीटी समुदाय से माफी मांगनी चाहिए।

जजों ने जीवन को मानवीय अधिकार मानते हुए कहा कि संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तन जरूरी है। इस अधिकार के बिना बाकी अधिकार औचित्यहीन हैं। एलजीबीटी समुदाय के लोग लंबे समय से अपने मूलभूत अधिकारों को लेकर लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे थे। LGBTQ के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था नाज फाउंडेशन ने सबसे पहले सन 2000 में दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। लेकिन उस याचिका को तुरंत खारिज कर दिया गया था। लेकिन फिर भी यह लड़ाई कोर्ट में चलती रही और 2009 में अपने एक फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को रद्द कर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।

लेकिन यह खुशी कुछ ही दिन में खत्म हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एक फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बदल दिया और समलैंगिकता को अपराध ठहरा दिया। लेकिन LGBTQ समुदायों के लोग लगातार अपने हक को लेकर सड़कों पर उतरते रहे और आवाज उठाते रहे। बीते साल निजता के अधिकार मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेक्स ओरिएंटेशन भी एक मौलिक अधिकार है। इस फैसले से LGBTQ लोगों में एक उम्मीद बंधी थी कि अब उनके हक में कोई अच्छा फैसला आ सकता है।

हमारा संविधान वैसे तो देश के हर एक नागरिक को बराबर अधिकार देता है। लेकिन धारा 377 LGBTQ समुदाय के लोगों के अधिकारों का अतिक्रमण कर रही थी। क्योंकि इसके अंतर्गत समलैंगिक यौन संबंधों को दंडनीय अपराध माना गया था। हालांकि अब जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है तो पूरी दुनिया में भारत में आए इस फैसले का स्वागत किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी एक बयान जारी कर इस फैसले पर अपनी खुशी जताई है। संघ ने कहा कि इस फैसले से LGBTQ समुदाय को अब उनके अधिकार आसानी से मिल सकेंगे।

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