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स्प्लेंडर से चलने वाला यह डॉक्टर सिर्फ 2 रुपये में करता है गरीब मरीजों का इलाज

वो डॉक्टर जिसे लोग कहते हैं भगवान...

स्प्लेंडर से चलने वाला यह डॉक्टर सिर्फ 2 रुपये में करता है गरीब मरीजों का इलाज

Tuesday December 26, 2017 , 5 min Read

चेन्नई का वो डॉक्टर, जो रियल लाइफ में किसी हिरो से कम नहीं। नाम है डॉ. तिरुवेंगडम वीरराघवन। तिरुवेंगडम लोगों की तब से सेवा कर रहे हैं, जब वे 1970 के दशक में मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई किया करते थे। उस वक्त वे मरीजों से एक भी पैसा नहीं लेते थे, फ्री में इलाज किया करते थे। हालांकि बाद में फीस के नाम पर मामूली राशि लेने लगे। आईये जानें कि क्यों ये डॉक्टर अपने मरीजों के बीच भगवान के रूप में जाना जाता है...

डॉक्टर तिरुवेंगडम वीरराघवन

डॉक्टर तिरुवेंगडम वीरराघवन


डॉ. तिरुवेंगडम वीरराघवन कहते हैं कि मुझे भी ठीक-ठाक सैलरी मिल जाती है। जिससे उनकी और परिवार की जरूरतें पूरी हो जाती हैं। वहां के रहने वाले लोग बताते हैं कि डॉक्टर कभी भी क्लिनिक आने में देर नहीं लगाते हैं। डॉक्टर ने कक्षा 6 से लेकर 11वीं तक की पढ़ाई वाशरमेनपेट से की। वे पैदल चलकर स्कूल जाते थे और उन्हें स्कूल पहुंचने में आधे घंटे लग जाते थे। इतने कड़े परिश्रम के बाद ही कोई इतना नेक काम कर सकता है।

नॉर्थ चेन्नई का कल्याणपुरम इलाका कामकाजी लोगों के रहने के लिए जाना जाता है। यहां बीमारियों के फैलनी की आशंका ज्यादा रहती है। इसी इलाके में एक रियल लाइफ हीरो रहते हैं डॉ. तिरुवेंगडम वीरराघवन। तिरुवेंगडम यहां के लोगों की तब से सेवा कर रहे हैं, जब वे 1970 के दशक में मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई किया करते थे। उस वक्त वे मरीजों से एक भी पैसा नहीं लेते थे। वे फ्री में इलाज किया करते थे। हालांकि वे बाद में फीस के नाम पर मामूली राशि लेने लगे।

दो रुपये वाले डॉक्टर के नाम से मशहूर 67 वर्षीय डॉक्टर तिरुवेंगडम वेल्लाचेरी के एक कॉर्पोरेट हॉस्पिटल में काम करते हैं। शाम को 8 बजे अस्पताल से फुरसत पाने के बाद वे नॉर्थ चेन्नई के कल्याणपुरम और एरुक्कनचेरी में अपने क्लिनिक में मरीजों को भी देखते हैं। इस इलाके में रहने वाले सभी लोग डॉक्टर तिरुवेंगडम को खूब प्यार देते हैं। वहां की रहने वाली एक 58 वर्षीय महिला सरोजा ने कहा, 'वे हमारे लिए भगवान हैं।' सरोजा डॉक्टर को पिछले कई दशकों से यहां काम करते हुए देख रही हैं।

तिरुवेंगडम जमीन से जुड़े हुए इंसान हैं। उनका घर भी इसी इलाके में स्थित है। क्लिनिक के पीछे ही उनका घर है। उनका जन्म 1950 में हुआ था। उनके परिवार में उनके माता-पिता के अलावा चार छोटी बहनें भी थीं। घर में उनके पिता के दो बड़े भाई भी रहते थे। उन्होंने अपने पिता और उनके बड़े भाईयों से लोगों की सेवा करना सीखा। उनके पिता सेंट जॉन एंबुलेंस सर्विस में काम करते थे, जो कि मेडिकल और प्राथमिक उपचार के लिए लोगों को ट्रेनिंग देती थी। वे बताते हैं कि उनके परिवार में सबको मिलाकर लगभग 20 लोग रहते थे। मेडिकल की फील्ड में काम करने की वजह से उनके घर जरूरतमंदों के लिए हमेशा से खुले रहते थे।

क्लिनिक में मरीजों को देखते डॉक्टर

क्लिनिक में मरीजों को देखते डॉक्टर


आस-पास किसी को जुकाम-बुखार, पेट दर्द से लेकर डायरिया हो जाता था तो वह तिरुवेंगडम के घर भागा चला आता था। उस वक्त यह इलाका गांव जैसा था और तिरुवेंगडम के परिवार के पास तीन एकड़ की खेती थी, जहां धान, रागी और सब्जियां उगाई जाती थीं। लेकिन बाद में उनकी जमीन रेलवे द्वारा अधिग्रहीत कर ली गई। तिरुवेंगडम ने कक्षा 6 से लेकर 11वीं तक की पढ़ाई वाशरमेनपेट से की। उन दिनों को याद करते हुए वे बताते हैं कि वे पैदल चलकर स्कूल जाते थे और उन्हें स्कूल पहुंचने में आधे घंटे लग जाते थे। रात में वे ट्यूशन भी पढ़ने के लिए जाते थे, जो कि गणपति नाम के एक वॉलंटीयर द्वारा चलाया जाता था।

गणपति ने ही उन्हें मेडिकल के क्षेत्र में जाने की सलाह दी थी। वे बताते हैं, '1968 में मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के लिए कुल 1100 छात्रों का चयन किया गया था। पहले के एक साल प्री मेडिकल कोर्स के लिए त्यागराय कॉलेज में मुझे भेजा गया था उसके बाद बाकी का कोर्स स्टेनली मेडिकल कॉलेज में किया।' उन्होंने कई और मेडिकल कॉलेजों से ट्रेनिंग भी ली। बाद में उन्होंने 2003 में उन्होंने एक कॉर्पोरेट हॉस्पिटल में इंडस्ट्रियल मेडिकल ऑफिसर के तौर पर नौकरी कर ली। वहां पर वह मजदूरों और वर्करों की हेल्थ की जांच किया करते थे। उनकी पत्नी रेलवे में ऑफिसर थीं जो कि पिछले साल रिटायर हो गईं।

वह कहते हैं कि मुझे भी ठीक-ठाक सैलरी मिल जाती है। जिससे उनकी और परिवार की जरूरतें पूरी हो जाती हैं। वहां के रहने वाले लोग बताते हैं कि डॉक्टर कभी भी क्लिनिक आने में देर नहीं लगाते हैं। वैसे तो डॉक्टर किसी से भी पैसे नहीं लेते हैं, लेकिन जो लोग फीस देने में समर्थ होते हैं उनसे भी वे 50 रुपये से भी ज्यादा नहीं लेते हैं। तिरुवेंगडम की बेटी भी डॉक्टर है और उनका बेटा दीपक अभी मेडिसिन की पढ़ाई कर रहा है। वह कहते हैं है, 'मेरी ख्वाहिश है कि मेरे बच्चे भी आगे चलकर ऐसे ही समाज की सेवा करते रहें।' डॉक्टर एकदम साधारण सी जिंदगी जीते हैं और अभी भी हीरो हॉन्डा स्पेलेंडर से चलते हैं।

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