बुक रिव्यू : बंगाल की महिला क्रांतिकारियों की अनसुनी कहानियां
मधुरिमा सेन की इस किताब में ऐसी बहुत सारी ऐतिहासिक जानकारियां हैं, जो उस दौर की महिलाओं और भारत की आजादी में उनके योगदान को समझने में मदद करती हैं.
अंग्रेजों ने दो सौ साल भारत पर शासन सिर्फ गवर्नेंस के बूते नहीं किया, बल्कि इसके पीछे बहुत सारी प्लानिंग, जासूसी और विरोध की हर मामूली सी आवाज को दबाने की हर संभव कोशिश भी थी. ब्रितानियों के शासन काल में बंगाल में उनकी एक इंटेलीजेंस ब्रांच थी, जिसका काम भारत के क्रांतिकारियों पर नजर रखना और उनका पूरा लेखा-जोखा रखना था. अंग्रेजों ने अपने जासूस हर जगह छोड़ रखे थे और वो हर उस व्यक्ति का पूरा रिकॉर्ड रखते थे, जो अंग्रेज सरकार के खिलाफ किसी भी रूप में सक्रिय था.
जरूरी नहीं कि वह किसी क्रांतिकारी गतिविधि में संलग्न हो, विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहा हो या सरकार विरोधी लेख लिख रहा हो. सरकार की नाक इतनी तेज थी कि वह सरकार विरोधी विचार रखने वालों को भी दूर से सूंघ लेती थी और उसका बहीखाता बनाना शुरू कर देती थी.
अंग्रेजों के बंगाल स्थित उस इंटीलीजेंस दफ्तर में सैकड़ों हिंदुस्तानियों का बहीखाता जमा था, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी थीं. ऐसी तमाम महिलाओं के बारे में जरूरी दस्तावेज एक नई किताब में प्रकाशित हुए हैं.
मधुरिमा सेन की एक किताब आई है, “विमेन इन द वॉर ऑफ फ्रीडम अनवील्ड, बंगाल 1919-1947 : ग्लिम्सेज फ्रॉम अर्काइवल रिकॉर्ड्स” (Women in the War of Freedom Unveiled, Bengal 1919-1947: Glimpse from Archival records). मधुरिमा सेन लेखक और रिसर्च स्कॉलर हैं, जिन्होंने वर्ष 2007 में ‘प्रिजन्स इन कॉलोनियल बंगाल’ किताब लिखी थी. इस नई किताब में बंगाल की ऐसी कई महिला क्रांतिकारियों के बारे में रोचक जानकारी है, जिन पर अंग्रेजों के इंटेलीजेंस दफ्तर की नजर थी. जिनकी एक-एक गतिविधि का लेखा-जोखा अंग्रेजों के इंटेलीजेंस डिपार्टमेंट की फाइलों में दर्ज किया जा रहा था.
इस किताब में बीना दास, दुखोरीबाला देवी, कल्पना दत्ता, प्रीतिलता वड्डेदार, शांति, सुनिति जैसी क्रांतिकारी महिलाओं के बारे में अंग्रेजी इंटलीजेंस विभाग की आर्काइव से मिली ढेर सारी जानकारियां एकत्र की गई हैं. दुखोरीबाला देवी वह महिला महिला थीं, जिन्हें अंग्रेजों ने सजा दी थी. बीना दास पर बंगाल के गवर्नर स्टेनली जैकसन पर जानलेवा हमला करने का आरोप था. किताब में अंग्रेज पुलिस को दिए उनके स्टेटमेंट की डीटेल्स भी हैं.
इस किताब में ऐसी छोटी-छोटी बहुत सारी महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक जानकारियां हैं, जो उस दौर की महिलाओं और भारत की आजादी में उनके योगदान को समझने में मदद करती हैं.
1919 में पहली बार बंगाल के इंटेलीजेंस दफ्तर में रखी भारतीय महिला क्रांतिकारियों से जुड़ी फाइलें प्रकाश में आईं. भारत को आजादी मिलने तक 200 से ज्यादा औरतों की डीटेल इंटेलीजेंस की इन फाइलों में दर्ज थी. ये वो औरतें थीं, जिन्हें अंग्रेजों ने सरकार विरोधी गतिविधियों के आरोप में या तो जेल में डाला या काला पानी की सजा दी.
200 महिला क्रांतिकारी तो वो थीं, जिन्हें जेलों में डाला और सजा दी गई थी. लेकिन इसके अलावा ऐसी महिलाओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है, जिनकी अंग्रेज सरकार जासूसी करवा रही थी. ऐसी तकरीबन 900 महिलाओं पर अंग्रेजों की नजर थी. अंग्रेजों के इंटेलीजेंस विभाग की आर्काइव से ऐसी ढेरों तस्वीरें, फिल्म निगेटिव और लिखित पन्ने मिले हैं, जो इस बात की ताकीद करते हैं कि कैसे अंग्रेज इन क्रांतिकारियों की हरेक गतिविधि का रिकॉर्ड रख रहे थे.
मधुरिमा सेन ने अपनी किताब में इंटेलीजेंस की उन सीक्रेट फाइलों से मिली रोचक जानकारियां दर्ज की हैं. वो विस्तार से लिखती हैं कि इंटेलीजेंस डिपार्टमेंट किस तरह काम करता था और किन-किन सीक्रेट तरीकों से क्रांतिकारी महिलाओं पर नजर रखी जाती थी. इस किताब में कुछ ऐसी पत्रिकाओं का भी जिक्र है, जो महिलाएं निकाल रही थीं. वो पत्रिकाएं अंग्रेजों की नजर में थीं. उनके आर्काइवल रिकॉर्ड में उसकी पुरानी प्रतियां प्राप्त हुई हैं, जिसकी डीटेल इस किताब में है.
मधुरिमा सेन ने इस किताब के लिए पश्चिम बंगाल सरकार की स्टेट आर्काइव से काफी मदद ली है. उस आर्काइव में अंग्रेजों के समय के 50 हजार से ज्यादा डॉक्यूमेंट, फोटोग्राफ, निगेटिव्स आदि सुरक्षित रखे हुए हैं. यह आर्काइव आम लोगों के लिए नहीं है.
इस किताब में महिला क्रांतिकारियों के बारे में दी गई विस्तृत जानकारी से कुछ रोचक तथ्य उभरकर सामने आते हैं. जैसेकि क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न ज्यादातर महिलाएं हिंदू अपर कास्ट और अपर क्लास महिलाएं थीं. जेल जाने और सजा पाने वाली ज्यादातर महिलाएं चित्तगांव की थीं. वर्तमान बांग्लादेश के शहर मयमनसिंह की कई महिलाओं के डीटेल डॉक्यूमेंट आर्काइव में मिलते हैं. जैसे हलीमा खातून, रजिया खातून, जोबेदा खातून और जैनब रहीम नामक महिला क्रांतिकारियों की अंग्रेजों ने लंबे समय तक जासूसी की, जो उस समय के एक क्रांतिकारी संगठन का हिस्सा थीं.
इस किताब से पता चलता है कि बंगाल के पश्चिमी हिस्से के मुकाबले पूर्वी हिस्से की महिलाओं को अंग्रेजों ने ज्यादा नजरबंद किया, जेल में डाला और सजा सुनाई. बंगाल के पश्चिमी हिस्से में कलकत्ता, चौबीस परगना जैसी जगहों पर ज्यादा महिलाएं क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न थीं.
इस किताब में उस दौर की महिला क्रांतिकारियों द्वारा निकाली जाने वाली एक पत्रिका जयश्री का भी जिक्र मिलता है. इस पत्रिका में महिलाएं सरकार विरोधी लेख लिखती थीं और इसकी उस दौर में महिलाओं को एकजुट करने में महती भूमिका रही. अंग्रेजी इंटेलीजेंस विभाग की आर्काइव में सुधाशुबाला सरकार नामक एक महिला के बारे में चार पन्नों की डीटेल हिस्ट्री शीट मिलती है, जिनका नाम 1908 में हुए अलीपुर बम धमाके में शामिल था.
अंग्रजों ने जाने से पहले बहुत सारे डॉक्यूमेंट नष्ट भी कर दिए. इसलिए आर्काइव को खंगालते हुए बहुत सारे फोटोग्राफ मिलते हैं, लेकिन उनके बारे में लिखित जानकारी नहीं मिलती. यह किताब एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज है, जो भारत की आजादी की लड़ाई के दौर को समझने की गहरी अंतर्दृष्टि देता है.