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जिस ‘Coca Cola’ को 1977 में इंडिया से खदेड़ा गया, वापस आकर कर रहा सॉफ्ट ड्रिंक्स पर राज!

YourStory हिंदी की सीरीज़ ब्रांड बिदेसिया (Brand Bidesiya) में हम उन विदेशी ब्रांड्स की कहानी बताएंगे जो भारत आने के बाद इतने भारतीय हो गए कि जाने कितनी पीढ़ियों का भरोसा बन गए. आज पढ़िए कहानी 'कोका कोला' (Coca Cola) की.

जिस ‘Coca Cola’ को 1977 में इंडिया से खदेड़ा गया, वापस आकर कर रहा सॉफ्ट ड्रिंक्स पर राज!

Saturday March 25, 2023 , 10 min Read

अपनी टीनेज के दौरान मैंने ट्रेन में घूमते हुए हापुड़ स्टेशन पर एक ऐसा दृश्य देखा तो हमेशा के लिए मेरे साथ रह गया. चिलचिलाती गर्मी में एक कुली, बोझा उठाने से ब्रेक लेकर कोल्ड ड्रिंक्स के खाली क्रेट्स की छाया में बैठकर ठंडा कोका कोला पी रहा था. कई साल बाद जब मैं कोका कोला के ऐड कैंपेन पर काम कर रहा था, मुझे ब्रीफ दिया गया कि इस ब्रांड को देसी बनाना है. मुझे पता था सबसे अच्छा तरीका असल जीवन में मौजूद दृश्यों को टेलीविज़न पर लाना है. मुझे याद आया कि कैसे उत्तर प्रदेश में रहते हुए बचपन में हम आमों को कुएं के पानी में ठंडा किया करते थे तो मैंने एक ऐसी कहानी लिखी जिसमें आमिर खान का किरदार कोका कोला की बोतलें कुएं से निकालकर लड़कियों को देता है. (success story of coca cola india)

ब्रांड इक्विटी इकोनॉमिक्स टाइम्स के लिए 'ठंडा मतलब कोका कोला' कैम्पेन के बारे में लिखते हुए ये बात प्रसून जोशी कहते हैं. एक ऐसा ऐड कैंपेन जिसे कोई भूल नहीं सका. साल 2003-2004 के दौर में ऐसे आरोप लगे कि कोला ड्रिंक्स में भारी मात्रा में पेस्टिसाइड होते हैं. लेकिन कोका कोला के ऐड कैंपेन ने इन आरोपों को भी धीरे धीरे गायब कर दिया.

लेकिन कोका कोला और विवादों का नाता इंडिया में 21वीं सदी से नहीं, कई दशक पुराना है. इतनी पुराना कि आज गटागट पिज़्ज़ा और बिरयानी के साथ कोक गटक रही जनरेशन उस वक़्त पैदा भी नहीं हुई थी. मुमकिन है, उनके माता पिता भी पैदा न हुए हों. तो कैसे आया सोशलिस्ट इंडिया में ये विदेशी ब्रांड, जिसे कहा जाता है 'कैपिटलिज़्म इन अ बॉटल'. जानेंगे ब्रांड बिदेसिया के हमारे आज के एपिसोड में.

YourStory हिंदी की सीरीज़ ब्रांड बिदेसिया (Brand Bidesiya) में हम उन ब्रांड्स की कहानी बताएंगे जो हैं तो विदेशी मगर इंडिया के कल्चर में इस तरह से घुल गए हैं कि पूरी तरह देसी हो गए हैं. अपने ब्रांडिंग और डिस्ट्रीब्यूशन से ये ब्रांड्स गांवों में पहुंचकर इंडिया को बदलते आए हैं, ठीक उसी तरह, जिस तरह इंडिया ने इन्हें हमेशा के लिए बदल दिया. आज पढ़िए कहानी 'कोका कोला' (Coca Cola) की.

लेकिन पहले जानिए कि कैसे शुरू हुआ कोका कोला, जिसने दुनिया को अपने स्वाद से जकड़ लिया. कोका कोला में पेस्टिसाइड भले ही न हो, इसमें एक बड़ी खतरनाक चीज होती थी. कोकेन. हां, वही कोकेन जो दुनियाभर में एक गैरकानूनी ड्रग है.

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कोका कोला की शुरुआत

1880 के दशक के जॉर्जिया में एक केमिस्ट हुए जॉन पेम्बर्टन. पेम्बर्टन का एक प्रोडक्ट बड़ा हिट था, फ्रेंच वाइन ऑफ़ कोका. ये एक ऐसी वाइन थी जिसके बारे में कहा जाता था कि ये सभी बीमारियां ठीक कर देती है. चाहे वो किसी तरह का दर्द हो, पेट की तकलीफ हो, सेक्शुअल समस्या हो या मन की बेचैनी हो. लोग इस दवाई के दीवाने थे. और ये दवा सारे मर्ज़ ठीक करती भी क्यों न. फ्रेंच वाइन ऑफ़ कोका में रेड वाइन, कैफीन और कोका लीफ़ एक्सट्रेक्ट था. कोका वो पौधा होता है जिसको केमिकली ट्रीट कर कोकेन बनाया जाता है. मगर ये पेटेंट मेडिसिन थी. दवाएं लोग रोज़ नहीं लेते. ऊपर वाइन को दिन के किसी भी वक़्त नहीं पिया जा सकता. ये बिकती भी महंगी थी और इसका टेस्ट भी कसैला था.

पेम्बर्टन ने अपना दिमाग लगाया. उन्होंने फ्रेंच वाइन ऑफ़ कोका से वाइन को गायब कर दिया. और अपने कोका लीफ और कैफीन के फ़ॉर्मूले में मिलाई ढेर सारी चीनी और सोडा. ब्रिटिश फ़ूड एंड ड्रिंक क्रिटिक विलियम सिटवेल कहते हैं, "उस वक़्त लोगों को सिर्फ शराब से प्रॉब्लम थी, कोकेन से नहीं. कोकेन लीगल थी." पेम्बर्टन का ये नया सोडा 5 सेंट्स में सड़कों पर मिल जाता और बच्चे हों या बूढ़े, कोई भी इसे पी सकता था.

ड्रिंक मार्केट में हिट हो गई लेकिन इसका कोई नाम नहीं था. उस वक़्त डॉक्टर पेम्बर्टन के अकाउंटेंट फ्रैंक रॉबिनसन ने इसका नाम रखा, कोका कोला. जिसमें कोका आया कोका की पत्तियों से और कोला आया कोला नट्स से. कोला वो पौधा होता है जिसके बीज से कोका कोला का स्वाद और इसमें मौजूद कैफीन आता है.

दिलचस्प बात ये है कि कोका कोला के पापा पेम्बर्टन ने कभी कोका कोला की असल कीमत नहीं पहचानी. वो फ़ॉर्मूलों में उलझे रहे और व्यापार का काम अपने अकाउंटेंट को ही सौंप दिया. 1892 में अमेरिकी बिज़नसमैन एसा कैंडलर ने कोका कोला का व्यापार खरीद लिया और शुरू हुई द कोका कोला कंपनी. कंपनी बनने के बाद कैंडलर ने विज्ञापन में पैसा लगाया. और मामूली नहीं, बेतहाशा पैसा लगाया. कोक तमाम दुकानों को अपना सिरप सप्लाई करता और वे इसमें सोडा मिलाकर आगे बेचते. कोका कोला 19वीं सदी के अंत तक करोड़ों गैलन सिरप बेच रहा था. साथ ही कोका कोला की बॉटलिंग भी शुरू होने लगी थी.

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बुरे दिन

बीसवीं सदी आते आते तमाम रिसर्च आने लगीं जो बताती थीं कि कोकेन कितना खतरनाक है. पत्रकार फ्रेडरिक एलन कोका कोला पर अपनी किताब 'सीक्रेट फ़ॉर्मूला' में लिखते हैं: 20वीं सदी में कोकेन गैरकानूनी ड्रग घोषित हो जाने के बाद, कोका कोला ने कोका की पत्तियों को डीकोकेनाइज कर दिया. यानी उसमें से कोकेन के सभी ट्रेस निकाल दिए. इसके लिए वो कोका पत्तियों को ट्रीट करने के एक लंबे प्रोसेस से गुज़रते. लेकिन स्वाद बरकारार रखने के लिए ऐसा करना ही पड़ा. एलन के मुताबिक़, कोका कोला आज भी अपने आधिकारिक बयान में कहता है कि कोक में कभी भी कोकेन नहीं था. ये बात टेक्निकली सच है. लेकिन इसमें जो कोकेन लीफ एक्सट्रेक्ट था, वो कोकेन से कम नहीं था."

साल 1919 में इसे अमेरिकी बिज़नसमैन अर्नेस्ट वुडरफ़ ने खरीद लिया. कोका कोला के अच्छे दिन चल ही रहे थे कि विश्व युद्ध आ गया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका में चीनी की राशनिंग कर दी गई. चीनी के बिना कोक का क्या होता? मगर कोका कोला के शातिर बिज़नस ने फौजियों को कम दामों पर कोक बेचकर खुद को एसेंशियल गुड साबित कर दिया. यानी एक ऐसा प्रोडक्ट जो नागरिकों के लिए बेहद ज़रूरी है, जिसका प्रोडक्शन युद्ध के दौरान भी रोका नहीं जा सकता.

कोका कोला की इंडिया में एंट्री

आज़ादी के तीन साल के अंदर-अंदर ही कोका कोला का बॉटलिंग प्लांट इंडिया में लग चुका था. जहां इंडिया विभाजन, गरीबी और अन्य दिक्कतों से जूझ रहा था, कोका कोला अपना डिस्ट्रीब्यूशन तगड़ा करने में लगा हुआ था. इंडिया जबतक अपनी इकॉनमी को सोशलिस्ट ढर्रे पर लेकर आता, कोका कोला इंडिया में अपनी जड़ें मज़बूत कर चुका था. जहां एक ओर सरकारी नीतियों की वजह से पेप्सी का बस्ता 1962 में पैक हो गया, कोक चलता रहा. लेकिन सोशलिस्ट सरकार को कोका कोला का होना भा नहीं रहा था.

1974 में इंदिरा गाँधी सरकार फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट यानी FERA लेकर आई. इस एक्ट के मुताबिक़ इंडिया में मौजूद सभी विदेशी कंपनियों को ये निर्देश दिया गया कि इंडिया में वे तभी रह सकते हैं जब अपने इंडिया बिज़नस का 60% शेयर वे लोकल इन्वेस्टर्स को बेच दें. इंडिया में धड़ल्ले से बिकने वाले कोक के सभी प्रॉफिट अमेरिकी पैरेंट कंपनी की जेब में जा रहे थे. सरकार को ये बात भी खटक रही थी कि इंडिया से हुई कमाई को अमेरिका ले जाते हुए वे उसे डॉलर में कन्वर्ट करते थे. जिससे इंडिया का फॉरेन एक्सचेंज रिज़र्व गिरता जा रहा था.

कोका कोला ने इससे बचने के लिए बहुत तिकड़म भिड़ाए. यहां तक कि उन्होंने मैन्युफैक्चरिंग और बॉटलिंग अलग अलग करने कि कोशिश की. कोका कोला बॉटलिंग में तो इंडिया को 60% हिस्सा देने को तैयार था, मगर टेक्नोलॉजी में नहीं.

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जब इंडिया से समेटना पड़ा कारोबार

1977 में इंदिरा गाँधी की सरकार जाने और जनता पार्टी की सरकार आने के बाद इंडस्ट्रीज मिनिस्टर जॉर्ज फेर्नान्डेज़ अड़ गए. इसी साल कोका कोला ने अपना बस्ता बांध लिया. कोका कोला का कहना था कि वे अपने कंसन्ट्रेट सिरप की रेसिपी भारतीय हाथों में नहीं पड़ने दे सकते.

कोका कोला की विदाई के बाद यहां काम करने वाले भारतीय बेरोजगार हो गए. मार्केट में कोक की कमी को भरने के लिए सरकार अपनी सॉफ्ट ड्रिंक लेकर आई. जिसका नाम था डबल सेवेन. डबल सेवेन का आना एक तरह से सरकार द्वारा 77 के साल का सेलिब्रेशन था. क्योंकि इसी साल इमरजेंसी लाने वाली इंदिरा गांधी सरकार भी गिर गई थी.

इस कोला ड्रिंक को मैसूर में डेवलप किया गया और सरकारी कंपनी मॉडर्न फ़ूड इंडस्ट्रीज ने इसकी मार्केटिंग शुरू की. लेकिन मार्केट में तबतक पारले कंपनी ने थम्स अप को उतार दिया था. कोक की गैरमौजूदगी में थम्स अप भारतीयों की नयी फेवरेट ड्रिंक बन चुकी थी. इसके साथ ही लिम्का मार्केट में आ गई थी जो लोगों को निम्बू पानी की याद दिला रही थी. और डबल सेवेन कोला बुरी तरह से फ्लॉप हो गया. 1980 में इंदिरा गाँधी की सरकार वापस आई और डबल सेवेन हमेशा के लिए देश से गायब हो गया. 

कोका कोला की इंडिया वापसी

कोका कोला की वापसी हुई 1993 में. 90 के दशक में इंडिया ने लिबरलाइजेशन की लहर देखी. कोका कोला ने वापस आते ही इंडिया की सबसे पॉपुलर ड्रिंक्स को खरीद लिया. और इस तरह थम्सअप, सिट्रा, लिम्का और रिमझिम, चारों ड्रिंक्स कोका कोला कंपनी का प्रोडक्ट बन गईं. न सिर्फ ये एक बिज़नस डिसिज़न था, बल्कि कोका कोला की ओर से शक्ति प्रदर्शन था. मानों वे कह रहे हों, सॉफ्ट ड्रिंक के बादशाह तो हम ही हैं.

 

कोका कोला ने इंडिया में आते ही 50% मार्केट शेयर पर कब्ज़ा कर लिया.

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इंडिया में एक बार फिर आया बुरा दौर

कोका कोला के बुरे दिन लौटते रहे. साल 2003 कोका कोला के लिए इंडिया में एक बार फिर एक बुरा दौर लेकर आया. साल 2000 में कोका कोला ने केरल के प्लाचीमाड़ा में अपना प्लांट लगाया. प्लांट लगने के कुछ ही समय बाद लोकल लोग शिकायत करने लगे कि जबसे प्लांट आया है, उन्हें पीने का पानी नहीं मिल रहा है. केरल स्टेट पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से हुए समझौते के मुताबिक़, कोका कोला फैक्ट्री कंपाउंड में लगे 6 बोरवेल्स से पानी खींच रहा था. गांववालों के मुताबिक़, न सिर्फ ग्राउंड वाटर कम होता जा रहा था, बल्कि फैक्ट्री से निकला कचरा पानी के साथी स्रोतों को प्रदूषित कर रहा था. 2002 में केरल में एंटी कोका कोला प्रोटेस्ट शुरू हो गए. और 2003 में एक लॉ सूट फाइल कर दिया गया.

कोका कोला को अपना प्लांट 2004 में बंद करना पड़ा. इसी बीच 2003 में कोका कोला के सामने एक नयी मुश्किल खड़ी हुई. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने आरोप लगाए कि कोक, पेप्सी समेत 12 सॉफ्ट ड्रिंक्स में पेस्टिसाइड पाए गए हैं. इस धब्बे को मिटाने में कोक को कई साल और दसियों ऐड्स लग गए.

सॉफ्ट ड्रिंक्स पर राज

तमाम रिपोर्ट्स के मुताबिक़, पिछले कई साल से कोका कोला ने इंडिया में नॉन अल्कोहलिक बेवरेजेस के सेक्टर में 60% मार्केट शेयर पर कब्ज़ा किया हुआ. दिलचस्प ये है कि इसमें कोक का शेयर 8 फीसद के लगभग ही है. बल्कि कोका कोला इंडिया के प्रोडक्ट्स थम्स अप और स्प्राइट लगभग 30% पकड़ रखते हैं. कुल मिलाकर, इंडिया में वापसी कर थम्स अप को खरीदना शायद कोका कोला का इंडिया में सबसे अच्छा फैसला था.

तमाम विवादों के बाद कोका कोला इंडिया के स्वाद और याद, दोनों में बना हुआ है.

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