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हर शाम हारमोनियम और तबले की ताल पर स्लम में रहने वाले बच्चों के गूंजते हैं शास्त्रीय संगीत के स्वर

हर शाम हारमोनियम और तबले की ताल पर स्लम में रहने वाले बच्चों के गूंजते हैं शास्त्रीय संगीत के स्वर

Thursday May 19, 2016 , 5 min Read

आज की ज्यादातर युवा पीढ़ी कान फाड़ू संगीत की दीवानी है, लेकिन दिल्ली में रहने वाली एक महिला भारतीय शास्त्रीय संगीत को भूल चुकी इस पीढ़ी को शास्त्रीय संगीत के सुर और ताल सिखाने में जुटी है। खास बात ये है कि अलका शुक्ला नाम की ये महिला उन बच्चों को शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सिखाती हैं जो स्लम इलाकों में रहते हैं। इतना ही नहीं इन बच्चों का मनोबल बढ़ाने के लिए वो पिछले दो सालों से शास्त्रीय संगीत का कंसर्ट का आयोजन कर रही हैं जिसमें ये बच्चे अपनी कला का परिचय देकर लोगों को ये सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि कला की कोई सीमा नहीं होती और वो स्लम जैसे इलाकों में भी हो सकती है। अलका शुक्ला ये सारा काम अपनी संस्था ‘उमंग किरण फाउंडेशन’ के जरिये करती है।


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किसी शाम आप शकरपुर के मंदिर से गुजरें तो तबले की थाप और हारमोनियम पर सारेगामा, कोई ठुमरी, दादरा कभी राग भैरवी सुनकर कुछ पल के लिए आप ठिठक जाएंगे। ऐसी सुखद अनुभूति का अहसास आपको शकरपुर के स्लम इलाकों में रहने वाले बच्चे कराएंगे। जिनको इकट्ठा कर शास्त्रीय संगीत सीखाने की जिम्मेदारी उठा रहीं हैं अलका शुक्ला। अलका शुक्ला ने स्लम में रहने वाले बच्चों को शास्त्रीय संगीत सिखाने का काम तब शुरू किया जब उनकी बेटी डांस सीखने के लिए जाती थीं। इस दौरान उन्होने देखा कि डांस स्कूल में केवल मध्यम और उच्च वर्ग के बच्चे ही आते हैं। तब उन्होने सोचा कि स्लम में रहने वाले ऐसे कई बच्चे होंगे जो संगीत और नृत्य़ के क्षेत्र में नाम कमा सकते हैं तो क्यों ना ऐसे बच्चों के लिये कुछ किया जाए। इसी उम्मीद के साथ अलका ने साल 2013 में ‘उमंग किरण फाउंडेशन’ की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य था कि वो इन बच्चों के लिए ठोस रूप से कुछ कर सकें जिनमें संगीत की प्रतिभा छुपी हुई है। इसके लिए वो सबसे पहले उस एरिया के पार्क में जाती थीं जहां पर इन बच्चों को इकट्ठा कर उन्हें गाने और डांस करने के लिए कहतीं, फिर उन बच्चों में से प्रतिभाशाली बच्चों को छांटकर वो उन्हें अपने संस्थान में ले आतीं थीं। इसके लिए वो अपने साथ तबला, हारोमोनियम आदि दूसरे वाद्य यंत्र भी साथ ले जातीं। इसके बाद इन्होने इन बच्चों को संगीत सिखाने का काम शकरपुर के एक मंदिर में शुरू किया। बच्चों को संगीत सिखाने का काम एक गुरूजी करते हैं।

बच्चों की प्रतिभा निखारने और उनमें आत्मविश्वास भरने के लिये अलका स्लम में रहने वाले बच्चों अब तक दो कंसर्ट करवा चुकी हैं। इसमें 25 बच्चों का ग्रुप होता है, कंसर्ट में हिस्सा लेने वाले बच्चों की उम्र 6 से 18 तक के बीच होती है। अलका का कहना है वो ज्यादातर लड़कों को संगीत की शिक्षा देने का काम करती हैं क्योंकि जिस इलाके से ये बच्चे आते हैं वहां पर लड़कियों को ज्यादा पढ़ने लिखने की आजादी नहीं होती। ऐसे में डांस और संगीत सीखना दूर की बात है। स्लम में रहने वाले बच्चों में संगीत की प्रतिभा को उकेरने वाली अलका शुक्ला की पहचान समाज सेवा और एस्ट्रोलॉजर भी हैं। वो अक्सर स्लम में रहने वाली बस्तियों में जाकर बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करती हैं। इसके अलावा वो घरेलू हिंसा के खिलाफ भी काम करती थी। इसी साल 31 जनवरी को उन्होने एक कैम्प लगाया जिसके माध्यम से उन्होने महिलाओं को घरेलू हिंसा कानून के बारे में जानकारी दी। वो बताती हैं कि आज भी भारतीय समाज में आदमी औरतों के साथ मारपीट करते हैं चाहे वो शराब पीकर हो या किसी अन्य कारण से। इसके खिलाफ वो महिलाओं को एकजुट करती हैं और उन्हें बतातीं हैं कि उनके क्या अधिकार हैं।


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अलका शुक्ला ऐसे लोगों के राशन कार्ड, आधार कार्ड, और चुनाव पहचान पत्र बनाने में भी मदद करतीँ, जो लोग पढ़े लिखे नहीं होते उनके फार्म वो खुद भरतीं हैं। ताकि वो लोग भी सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा सकें, बैंकों में अपने खाते खुलवा सकें। ये काम वो शालीमार बाग के स्लम इलाके में करती हैं। अलका का कहना है कि “स्लम में समस्या वहां पर लोगों का अपनी बेटियों को ज्यादा पढ़ाना नहीं हैं। यहां रहने वाले लोग अपनी बेटियों की जल्दी शादी कर देते हैं नहीं तो पढ़ाई छुड़ाकर घर बैठा देते हैं। तब मैं उन लोगों को समझाती हूं कि जब सरकार इन्हें मुफ्त में पढ़ाने की सुविधा दे रही है तो आप लोग इन्हें क्यों नहीं पढ़ाते। मैं उन्हें समझाती हूं कि अगर वो पढ़ लिख जायेंगी तो उससे उनका भविष्य ही उज्जवल होगा। और वो खुद अपने पैरों पर खड़ी हो सकेंगी।” फिलहाल अलका ऐसी जगह की तलाश में हैं जहां पर वो स्लम में रहने वाले बच्चों के लिए डांस और म्यूजिक एकेडमी चला सकें। उनका मानना है कि यदि सरकार नृत्य और संगीत को रोजगारपरक बना दे तो बहुत से लोग इसे सीखने के लिए आगे आएंगे। अभी तक पढ़े लिखे परिवारों के बच्चे ही इसे सीखने के लिए आते हैं जिनके माता पिता के पास उन्हें सिखाने के लिए पैसा होता है। उनका मानना है कि वो इसके लिए केवल प्रयास ही कर सकती हैं क्योंकि पॉलिसी बनाना तो सरकार का काम है।