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'चलना ही ज़िन्दगी है'

होटल संचालक से बाइकर और सोलो ट्रेवलर बनीं रुतावी मेहता

'चलना ही ज़िन्दगी है'

Tuesday June 23, 2015 , 6 min Read

"मेरी पहली अकेली यात्रा कोल्हापुर की हुई थी जब मैं 16 वर्ष की थी। मैंने राज्य परिवहन की नियमित बस में यात्रा की थी। मुझे बसों का बदलना भी याद है। मैंने इसके पहले सोलो ट्रेवल या इस तरह की किसी चीज के बारे में नहीं सोचा था। ये शब्द नए हैं। मुझे उस यात्रा में एक महिला से मिलने की स्पष्ट याद है जो एक बाइक पर सवार थीं। उन्होंने महाराष्ट्र की पारंपरिक पोशाक पहन रखी थी और राजदूत पर सवार थीं। उनकी उम्र वस्तुतः 70 वर्ष के आसपास थी! हमलोग बातचीत करते रहे थे और उन्होंने बताया था कि उन्होंने बाइक से पहली सड़क यात्रा अपने पति के साथ की थी और यह विचार उसी समय मेरे मन में कौंधा था," यात्रा संबंधी अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर, सोलो एडवेंचरर और सोशल मीडिया इवैंजिलिस्ट रुतावी मेहता कहती हैं।

होटल संचालक से बाइकर और सोलो ट्रेवलर

विगत वर्षों के दौरान रुतावी ने होटल संचालक के बतौर कई कार्यभार संभाले हैं - सेल्स और मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव, सामाजिक मीडिया रणनीतिकार और इंटरनेट मार्केटर। लेकिन एक चीज हमेशा मौजूद थी - यात्रा के प्रति जुनून। "मैंने जो पहला कौशल सीखा और उसका अभ्यास किया, वह थी फोटोग्राफी। जल्द ही मैंने रॉयल एनफील्ड के साथ एक प्रोजेक्ट लिया। उसी समय मैंने बाइक चलाना सीखा था। उस समय मैं नौसिखुआ थी और मुझे समझ नहीं थी कि कैमरा वाले राइडर की क्या संकल्पना है। राइडर और बाइकर के बीच का संकल्पनात्मक फर्क समझने के बाद मैं एक फोटोग्राफर के नजरिए से बाइक चलाना चाहती थी," रुतावी कहती हैं।

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जल्द ही वह उर्वशी पटोले के साथ हो लीं और बाइकरनी का हिस्सा बन गईं। "मैंने इंटरनेट मार्केटिंग के जरिए बाइकरनी के बारे में सुना और उस शैली को सीखने लगी," रुतावी कहती हैं। सारा कुछ तब हो रहा था जब वह होटल उद्योग का अंग थीं। उसी समय उन्होंने खुद से कुछ करने का निर्णय किया। "मैंने काम छोड़ दिया और अपनी बहन से मिलने क़तर चली गई। यह अच्छा निर्णय था क्योंकि मैं यात्रा और पर्यटन का प्रति काफी अधिक अनुभव हासिल करना चाहती थी। मैंने पहला प्रयास क़तर टूरिज्म के साथ जुड़ने का किया। उनके साथ एक प्रोजेक्ट के लिए मैंने मार्केटिंग और सोशल मीडिया को एक साथ कर दिया। पिच ‘आइ लव क़तर’ पर था। यह मेरा पहला व्यक्तिगत असाइनमेंट था," रुतावी कहती हैं।

उनके अनुसार इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखने की कोई गुंजाइश नहीं थी। रुतावी अनेक संकल्पनाएं और विचार विकसित करते हुए अनेक पर्यटन बोर्डों के साथ काम करने लगीं। "मैंने यात्रा और सोशल मीडिया के क्षेत्र में बहुत काम किया। ऐसी ही एक परियोजना थी ‘केरल ब्लॉग एक्सप्रेस’। दुनिया के 25 ब्लॉगरों को केरल लाया गया और उनलोगों ने हर स्थान पर अपने अनुभव लिखे," रुतवी जी कहती हैं।

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जिम्मेवार तरीके से यात्रा

महिलाओं के अकेले यात्रा करने के बारे में रुतावी कहती हैं, "बहुत अच्छा अनुभव है। मुझे यात्रा में हमेशा आनंद आया है। यात्रा अकेली की गई हो या समूह में, यह हमेशा अपनी खोज से संबंधित होती है।" इसके अलावा, रुतावी को जिम्मेवार तरीके से यात्रा करने में भारी विश्वास है। "हर साल, मैं एक महीने लद्दाख के विद्यार्थियों को पढ़ाती हूं। यह अपने आप में एक जबर्दस्त अनुभव है। इन विद्यालयों में मुझे कई किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता है। मैं उन्हें कई चीजें सिखाती हूं, जैसे कोई किताब कैसे पढ़नी चाहिए और कोई करेक्टर कैसे याद रखना चाहिए आदि-आदि। मैंने लद्दाख 2001 से जाना शुरू किया। मेरा विश्वास है कि जब हम कहीं जाते हैं तो वांछित है कि हम उस जगह को कुछ वापस करें। जब हर गंतव्य से इतना कुछ लेते हैं, तो हम कुछ वापस क्यों नहीं देंगे?," वह सवाल करती हैं।

अगली बार रुतावी ने लक्षद्वीप के लिए एक परियोजना हाथ में ली। वह कहती हैं, "मैं उत्सुक थी कि द्वीपों के स्थानीय निवासी लॉजिस्टिक्स का प्रबंधन कैसे करते हैं। सिर्फ जलमार्ग से पहुंचना संभव होने के कारण वहां के लिए अनेक बाधाएं हैं। वहां छोटे जनजातीय समूह हैं और अधिकांशतः नियमित जीवन जीते हैं। लेकिन द्वीप मात्र पांच किलोमीटर आकार के हैं। सबसे बड़े द्वीप कालपेन्नी का आकार 12 किलोमीटर है। मैं द्वीप के बारे में जानना चाहती थी। मैं एक छोटा डॉक्यूमेंटरी बनाना चाहती थी कि बोर्डों द्वारा लक्षद्वीप का विकास कैसे किया जा सकता है लेकिन दुर्भाग्यवश परियोजना बंद कर दी गई।"

एवरेस्ट की तलहटी में

समुदाय में दृढ़ विश्वास रखने वाली रुतावी हमेशा यात्रा करने की योजना बनाती है और देश के विभिन्न भागों के लोगों से मिलने का प्रयास करती हैं। अभी रुतावी मुंबई ट्रैवल मैसिव की हेड हैं और शहर में अलग-अलग यात्रा मिलन आयोजित करने वाली हैं। वह एवरेस्ट चैलेंज का भी अंग रही हैं जिसका प्रसारण एनडीटीवी गुडटाइम्स द्वारा किया जाता है। "मैं खेल से बहुत जुड़ी नहीं रही हूं। इसलिए जब मुझे इस आयोजन का अंग बनाया गया तो मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने तो यह जाने बिना ही आवेदन दे दिया था कि एवरेस्ट बेसकैंप होता क्या है। मैंने इस प्रकार की गतिविधि कभी नहीं देखी। मैं अंतिम तौर पर चुने गए व्यक्तियों में से एक थी और अत्यंत आश्चर्यचकित थी। मैंने तो राजस्थान जाने की योजना भी बना ली थी। पर तभी मुझे मेल मिला जिसमें कहा गया था कि मुझे चुन लिया गया है! संक्षेप में, मैं इस आयोजन का हिस्सा बन गई और यह बहुत कठिन था। बाद में तो मैं गिर भी पड़ी और पांव में इतनी बुरी तरह चोट लगी कि मुझे एक शेरपा ने उठाकर लाया। हर किसी को एक दिन रुके रहना पड़ा क्योंकि मेरे पांव का बुरा हाल था। वे लोग काफी सहयोग देने वाले थे। मैंने शेयर करना सीखा और जाना कि मानव मस्तिष्क कितना शक्तिशाली होता है। इच्छाशक्ति क्या होती है, मैंने वहीं जाना। यह उनके कहने जैसा है कि जाना वैकल्पिक होता है लेकिन लौटना अनिवार्य," रुतावी याद करती हैं।

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रिक्शा पर

इस अप्रील में रुतावी ‘रिक्शा दौड़’ का भी हिस्सा बन गईं। मैंने रिक्शा दौड़ के बारे में 2010 में सुना। जब मैं इस आयोजन के बारे में पढ़ रही थी तो मुझे आश्चर्य हुआ कि भारत में होने वाले इस आयोजन में कोई भारतीय शामिल नहीं है। मुझे यह अत्यंत विचित्र लगा। उस समय वे मेरे होटल के सामने से गुजर रहे थे और वहीं वे रह रहे थे। इसलिए मैंने उनसे इस आयोजन के बारे में पूछा कि इसमें सिर्फ विदेशी क्यों हैं। उनलोगों ने बताया कि कंपनी के एडवेंचरिस्ट द्वारा संचालित आयोजन में उनलोगों ने भारतीय लोगों को लक्षित नहीं किया है। इसीलिए 2007 से लेकर अब तक कोई भी भारतीय इस आयोजन का हिस्सा नहीं बना है। मैं ऐसे ट्रेवल ब्लॉगरों को जानती थी जो रिक्शा दौड़ के हिस्से थे। उनमें से दो ही उसमें शामिल थे - डेरिक और ब्रायन। और उनलोगों ने मुझे इस वर्ष उसका हिस्सा बनने के लिए कहा,’’ रुतावी ने बताया।

रूट शिलौंग तक जाता है और उसे 12 दिनों में पूरा करना होता है। यात्रा के हर पहलू का प्रबंधन टीम को करना होता है। रुतावी इस दौड़ का हिस्सा बनने वाली पहली भारतीय महिला ब्लॉगर होंगी। उनकी टीम को ‘टीम रोमांचक’ कहा गया है और इसमें बिल्कुल भारतीय टच है।