इस तरह दिलाई जा सकती है भुखमरी से निजात
"उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू हुए लगभग दो वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक इस योजना के प्राथमिक कार्य अर्थात् योग्य परिवारों की पहचान, राशन कार्डों का वितरण आदि कार्य अभी तक पूरी तरह से क्यों सम्पन्न नहीं हो सके?"
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सत्ता संभालने के बाद यह भरोसा दिया जाना कि उनकी सरकार 'सबका साथ-सबका विकास' के नारे को चरितार्थ करेगी और राज्य में सुशासन स्थापित होगा, विकास और सामाजिक सौहार्द के प्रति निष्ठा और प्रतिबद्धता को ही रेखांकित करता है। चूंकि उत्तर प्रदेश में गरीबी, भुखमरी और पलायन एक बड़ी समस्या है, इसलिए प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है कि खाद्यान्न सुरक्षा कानून के तहत हर जरूरतमन्द को उसकी जरूरत के मुताबिक खद्यान्न उपलब्ध कराए, ताकि भूख से किसी की मौत न हो। सुशासन का मूलमंत्र भी यही है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू हुए लगभग दो वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक इस योजना के प्राथमिक कार्य अर्थात् योग्य परिवारों की पहचान, राशन कार्डों का वितरण आदि कार्य ही अभी पूरी तरह से सम्पन्न नहीं हो सका है। पीडीएस का दायरा पुरानी बीपीएल सूची तक ही सीमित है, जो कि अविश्वसनीय और एक हद तक फर्जीवाड़े का शिकार है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के कुल परिवारों में से एक चौथाई से भी कम परिवार बीपीएल या अन्त्योदय कार्डधारी हैं। इसके अतिरिक्त अपेक्षाकृत खाते-पीते परिवार के लोगों ने भी बीपीएल कार्ड बनवा लिए हैं। सही मायने में तो, यह नेक योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है।
प्रदेश में इस योजना की नाकामी के चलते अभावग्रस्त क्षेत्रों खासकर बुन्देलखण्ड तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में जीवन का संकट गहरा हुआ है। दोनों क्षेत्रों की तस्वीरें डरावनी है। पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने हाल ही में आरोप लगाया है कि प्रदेश में हर माह चार अरब रुपये का खाद्यान्न घोटाला हो रहा है। उन्होंने प्रदेश सरकार से इसकी जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी या सीबीआई से कराने की मांग की है। गत वर्ष योगेंद्र यादव के नेतृत्व में स्वराज अभियान के तहत कराए गए एक रैपिड सर्वे के मुताबिक बुन्देलखण्ड अकाल की दशा की तरफ बढ़ रहा है। सर्वेक्षण में नमूने के तौर पर चुने गए 38 प्रतिशत गांवों में आठ महीने में भुखमरी या कुपोषण से एक न एक व्यक्ति की मौत हुई है।
गरीब परिवारों में महज पचास प्रतिशत परिवारों को बीते 30 दिनों में खाने के लिए दाल नसीब हुई और पचास प्रतिशत से थोड़े ही कम परिवार ऐसे हैं जो इस अवधि में अपने बच्चों को पीने के लिए दूध जुटा सके हैं। बड़ी संख्या में लोग जंगली कंद-मूल खाकर जीवन चलाते दिखे। सर्वे के बाद स्वतंत्र पत्रकारों की जांच-परख से भी इस दुर्दशा की पुष्टि हुई। इस संकट का सम्बन्ध समय रहते खाद्य सुरक्षा अधिनियम को क्रियान्वित करने में प्रदेश की पूर्ववर्ती सरकार के नाकाम रहने से हैं। प्रदेश में यदि एनएफएसए का संचालन सुचारु रूप से होता तो 80 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण आबादी एक सुधरे हुए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के दायरे में होती।
हालांकि अधिनियम के अन्तर्गत पीडीएस के जरिये दिया जाने वाला प्रति व्यक्ति प्रतिमाह न्यूनतम पांच किलो अनाज किसी व्यक्ति के खाद्यान्न की औसत जरूरत का यह आधा ही है, लेकिन संकट की दशा में यह न्यूनतम हकदारी भी लोगों के लिए बड़ा सहारा साबित हो सकती है।
उत्तर प्रदेश में खाद्य सुरक्षा की हालत बेहद जर्जर है। इसका ज्यादातर चावल-गेहूं भ्रष्ट डीलरों द्वारा खुले बाजार में बेच दिया जाता है। योजना आयोग द्वारा वर्ष 2011 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक प्रदेश के 80 प्रतिशत से ज्यादा बीपीएल परिवारों को तो उनका हक मिल रहा है, लेकिन एपीएल कोटा के अनाज की कालाबाजारी बड़े पैमाने पर जारी है। एनएफएसए का क्रियान्वयन एपीएल कोटा को चलन से बाहर करने और घोटालों को खत्म करने का एक अवसर भी है। खाद्य आपूर्ति विभाग में अर्से से कोटा के निलम्बन और बहाली का खेल चल रहा है। राशन माफि या और विभाग के अफ सर गरीबों के राशन पर डाका डाल रहे हैं, जिन पर शासन-प्रशासन की नजर नहीं है।
जिनके हाथों में व्यवस्था सुधार का जिम्मा है वही भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। प्रदेश सरकार ने गरीबों को उनका वाजिब हक दिलाने के लिए खाद्यान्न वितरण के लिए त्रिस्तरीय जांच की व्यवस्था की है। लेकिन कोटेदारों व सम्बन्धित विभागों की साठगांठ सरकार के मन्सूबों पर पानी फेरने का काम कर रहा है। अधिकांश गांवों में कार्डधारकों को मिलने वाले खाद्यान्न का अधिकांश हिस्सा खुले बाजार में बेचा जा रहा है। शासन व प्रशासन भी इस खेल से अनभिज्ञ नहीं है। ज्यादा हो-हल्ला मचने पर छोटे स्तर के एक या दो कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई कर दी जाती है।
न्यूज टाइम्स पोस्ट की पड़ताल में खुलासा हुआ है कि कोटेदार को जिला पूर्ति अधिकारी कार्यालय में सौ रुपये प्रति कुन्तल की दर से भेंट चढ़ानी होती है। पल्लेदारी अलग से। एक या दो रुपये प्रति किलो अधिक मूल्य लेने के अलावा कोटेदार तौल में भी खेल करता है। कोटेदारों की शिकायत है कि हर बोरे में लगभग पांच से सात किलो अनाज कम होता है। ऐसे में पात्रों को सरकारी दर पर तय खाद्यान्न की मात्रा का वितरण असम्भव है। इसके अलावा लगभग 25 फीसदी कार्डधारक तो राशन की दुकान तक जाते ही नहीं। जाहिर है कि उनके हिस्से का राशन भी कोटेदार हजम कर जाता है।
कोटेदारों द्वारा राशन वितरण में अनियमितता तो आम बात है, लेकिन विपणन गोदामों में भी जम कर खेल हो रहा है। जानकारी के मुताबिक हर गोदाम से लगभग सौ कोटेदार खाद्यान्न उठाते हैं। बगैर तौले ही बोरे मिलने से प्रति बोरी पांच से सात किलो की कम आपूर्ति होती है। इस हिसाब से देखा जाए तो विपणन गोदामों द्वारा बड़ी मात्रा में खाद्यान्न में खेल किया जा रहा है। इस तरह शेष अनाज व अन्य सामानों को खुले बाजार में बेच दिया जाता है। जिला पूर्ति अधिकारी कार्यालय में भी खाद्यान्न की लूट बड़े स्तर पर होती है। न्यूज टाइम्स पोस्ट की पड़ताल में कई सनसनीखेज तथ्य उजागर हुए। कई जिलों में तो खाद्यान्न के उठान के बगैर ही सारा खेल हो जाता है। गरीबों के खाद्यान्न की लूट के खेल में प्रदेश में कोटेदार से लेकर जिला पूर्ति अधिकारी और खाद्य आयुक्त तक की संलिप्तता उजागर हो रही है।
सुधार:
प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार सुशासन की प्रबल आग्रही है। सुशासन के लिए आवश्यक है कि जनता को सरकार के कामकाज की गुणवत्ता का सुखद एहसास हो इसके लिए सरकार को जनहित से जुड़ी योजनाओं की गुणवत्ता पहले सुनिश्चित करनी चाहिए। चूंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून जनहित से जुड़ी अतिमहत्वपूर्ण योजना है। गरीब परिवारों के लिए महत्वपूर्ण होने के बावजूद ङ्क्षकचित कारणों से यह योजना हाशिये पर चली गई है, इसलिए इसे पारदर्शी बनाना बेहद आवश्यक है।
खाद्यान्नों के विक्रय, भण्डारण तथा वितरण की पूरी प्रक्रिया के डिजिटलाइजेशन तथा सम्बन्धित प्राधिकारी के सीधे जवाबदेह बनाये जाने की नितान्त आवश्यकता है। इसके साथ ही सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को आधार नम्बर से जोड़ कर ऑनलाइन कर देना बेहद आवश्यक है। इससे पारदर्शिता के साथ ही कालाबाजारी पर भी अंकुश लगेगा। प्रत्यक्ष लाभ अन्तरण भी इस दिशा में बहुत महत्वपूर्ण उपाय है। इसके लिए वास्तविक लाभार्थियों तथा गरीबी रेखा से नीचे के वर्ग की पहचान पारदर्शी तथा ईमानदारी से करना होगा, ताकि लाभार्थियों तक सरकारी प्रयास सरलता तथा गुणवत्तापूर्ण ढंग से पहुंच सके तथा योजना के संचालन में सरकार पर अनावश्यक आर्थिक सब्सिडी का व्ययभार न बढ़े।
ग्रामीण क्षेत्रों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम पर नये सिरे से ध्यान देने की तत्काल जरूरत है। सरकार को खाद्य सुरक्षा कानून के तहत हर पात्र परिवार को योजना के नियमों के मुताबिक खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित करने की पहल करनी होगी। इसके सफल क्रियान्वयन के लिए केन्द्र सरकार के कारगर समर्थन के साथ ही मीडिया, सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों की निरन्तर सतर्कता आवश्यक है। इसके साथ ही गरीबों के कोटे के अनाज की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ तत्काल सख्त कानूनी कार्रवाई शुरू करनी चाहिए। इसमें रासुका के तहत कार्रवाई भी शामिल है। बगैर सख्ती किए भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना सम्भव नहीं है।
कारगर है छत्तीसगढ़ मॉडल:
छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े राज्य में व्यापक आबादी को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराना तथा सन्तुलित पोषण आहार स्तर पर पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है। इसके बावजूद छत्तीसगढ़ सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली देश में सबसे कारगर साबित हुई है। राज्य सरकार द्वारा खाद्यान्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए न सिर्फ चावल और गेहूं, बल्कि प्रोटीन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु, दालें तथा चना, चीनी, नमक और ईधन के लिए मिट्टी का तेल भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित किया जाता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को खाद्यान्न सुरक्षा अधिनियम द्वारा व्यापक स्वरूप प्रदान किया है। राशन कार्डों का नवीनीकरण किया गया और बड़े पैमाने पर उचित मूल्य की दुकानें स्थापित की गई। इनका संचालन विभिन्न एजेंसियों, जैसे महिला स्वयं सहायता समूह, सहकारी समिति, ग्राम पंचायत, नगरीय निकायों तथा वन रक्षा समितियों द्वारा किया जा रहा है।
उचित मूल्य की दुकानों में 89 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों और 11 फीसदी शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं। ग्रामीण क्षेत्र में इतनी अधिक संख्या में उचित मूल्य की दुकानें खोलने से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकी है। राज्य में खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति तथा मितव्ययिता व पारदर्शिता को बनाये रखने के लिए सम्पूर्ण पीडीएस व्यवस्था का कम्प्यूटरीकरण करने के साथ ही समस्त जिला खाद्य कार्यालयों को इंटरनेट के द्वारा राज्य मुख्यालय से जोड़ा गया है। सभी उचित मूल्य की दुकानों तथा उनसे सम्बद्ध राशन कार्ड, हितग्राहियों की संख्या का डेटाबेस तैयार किया गया है, जिसके आधार पर इन दुकानों के लिए राशन सामग्री का आवंटन किया जाता है। जिन गावों में साप्ताहिक हाट लगता है, उन गांवों की उचित मूल्य की दुकानों द्वारा प्रत्येक माह की 06 तारीख के पश्चात लगने वाले पहले साप्ताहिक हाट तथा अन्य गावों में प्रत्येक माह की 07 तारीख को चावल उत्सव आयोजित होता है।
मिट्टी के तेल का आवंटन मितव्ययिता तथा पारदर्शी ढंग से कराने के लिए सरकार ने अगस्त 2012 से ई-केरोसिन प्रणाली शुरू की है, जिसके अन्तर्गत थोक केरोसिन डीलर द्वारा ऑयल डिपो से केरोसिन की प्राप्ति से लेकर, उचित मूल्य की दुकानों तक इसके वितरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया को मोबाइल एसएमएस द्वारा जानकारी विभागीय सर्वर को प्रदान की जाती है। सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्राणाली को पारदर्शी तथा गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए कॉल सेंटर तथा जनभागीदारी वेबसाइट भी बनाई है, जहां कोई भी व्यक्ति विभाग से सम्बन्धित जानकारियां प्राप्त करने के साथ ही अपनी शिकायत भी दर्ज करा सकता है, साथ ही इस व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सुझाव भी दे सकता है।1
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