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अपनी बीमार मां को परेशान देख इंजीनियर ने बना डाला दुनिया का सबसे उपयोगी बायो टॉयलेट

स्टाकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट के मुताबिक, 'फ्लश टायलेट की सोच गलत थी, उसने पर्यावरण का बहुत नुकसान किया है। सीधा सा गणित है कि एक बार फ्लश करने में 10 से 20 लीटर पानी की आवश्यकता होती है यदि दुनिया के 6 अरब लोग फ्लश लैट्रिन का उपयोग करने लगे तो इतना पानी आप लाएंगे कहां से और इतने मल का ट्रीटमेंट करने के लिये प्लांट कहां लगाएंगे?

फोटो साभार: सोशल मीडिया

फोटो साभार: सोशल मीडिया


भारत के एक इंजीनियर ने ऐसा बायो टॉयलट बना डाला है जिसमें अंदर ही अंदर मल का संवर्धन हो जाता है। इस आविष्कारक का नाम है जयसिंह नरवरिया। 

इसका सबसे ज्यादा फायदा हॉस्पिटल में मरीज और दिव्यांगों को मिलेगा, जो चलने-फिरने में सक्षम नहीं है। बायो चेयर में बनने वाले पानी का उपयोग गार्डनिंग और धुलाई में किया जा सकेगा। यह पानी 99 प्रतिशत शुद्ध होगा।

स्टाकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट के मुताबिक, 'फ्लश टायलेट की सोच गलत थी, उसने पर्यावरण का बहुत नुकसान किया है। सीधा सा गणित है कि एक बार फ्लश करने में 10 से 20 लीटर पानी की आवश्यकता होती है यदि दुनिया के 6 अरब लोग फ्लश लैट्रिन का उपयोग करने लगे तो इतना पानी आप लाएंगे कहां से और इतने मल का ट्रीटमेंट करने के लिये प्लांट कहां लगाएंगे? इस विकट समस्या का समाधान निकालने के लिए एख तरकीब निकाली गई जिसका नाम है, जैविक शौचालय यानि कि बायो टॉयलट। जैविक शौचालय ऐसे सूक्ष्म कीटाणुओं को सक्रिय करते हैं जो मल इत्यादि को सड़ने में मदद करते हैं। इस प्रक्रिया के तहत मल सड़ने के बाद केवल नाइट्रोजन गैस और पानी ही शेष बचते हैं, जिसके बाद पानी को री-साइकिल कर शौचालयों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

दुनिया भर में बायो टॉयलट बनाने के कई सारे प्रयोग किए गए। लेकिन भारत के एक इंजीनियर ने एक ऐसा बायो टॉयलट बना डाला है जिसमें अंदर ही अंदर मल का संवर्धन हो जाता है। इस आविष्कारक का नाम है जयसिंह नरवरिया। उन्होंने अपने मॉडल के बारे में बताया, यह एक बायो चेयर टॉयलेट है, जो पूरी तरह इको फ्रेंडली है। इसमें एक खास किस्म के बैक्टीरिया का उपयोग किया गया है, जो वेस्ट को पानी में बदल देगा। यह चेयर सभी के लिए है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा फायदा हॉस्पिटल में मरीज और दिव्यांगों को मिलेगा, जो चलने-फिरने में सक्षम नहीं है। बायो चेयर में बनने वाले पानी का उपयोग गार्डनिंग और धुलाई में किया जा सकेगा। यह पानी 99 प्रतिशत शुद्ध होगा।'

मां की बीमारी से निकला ये आविष्कार-

जयसिंह नरवरिया मध्य प्रदेश के ग्वालियर के रहने वाले हैं। ये वर्ल्ड क्लास बॉयो टायलेट चेयर उन बुजुर्गों ओर मरीजों के लिए मुफीद साबित होगी जो चलने-फिरने से लाचार हों या फिर बिस्तर से नहीं उठ पाते हैं। दुनिया की ये पहली स्मार्ट चेयर है जिसमें मानव मल बाहर नही आता है। जयसिंह बीते कुछ सालों से स्वच्छता मिशन के लिए काम कर रहे हैं। जयसिंह को इस अभियान ने एक जिद दे दी। ये जिद इतनी सफल हो गई कि उन्होंने देश का पहला सबसे सस्ता बायो-टॉयलेट बना दिया। अब ग्वालियर की ओडपुरा पंचायत देश की ऐसी पहली पंचायत है जहां सबसे सस्ता बायो-टॉयलेट लगाया गया है। बायो-टॉयलेट का खर्च है मात्र 15 हजार रुपए

जयसिंह पथरीले क्षेत्र में बॉयो टॉयलेट बनाने की उपलब्धि हासिल कर चुके हैं। लेकिन जब मां की तबीयत खराब हुई और वे अशक्त हुईं तो सबसे ज्यादा कष्ट शौच को लेकर होने लगा। जिसके बाद उन्होनें एक बॉयोटायलेट चेयर बना दी। इसमें न मल की बदबू और न ही मल फेंकने की समस्या है। इनबिल्ट टैंक में मौजूद बैक्टीरिया मल को डाइजेस्ट कर देता है और सिर्फ पानी ही बाहर आता है। देश और विदेश में सभी जगह बेहतरीन ऑटोमेटिक टॉयलेट चेयर बनाई गई हैं। इन सभी में मल के हिस्से को बाहर निकालकर फेंकने जाना पड़ता हैं, लेकिन ग्वालियर में बनी इस चेयर में इनबिल्ट चैंबर को बाहर नहीं निकालना पड़ता है। मल भी पानी बनकर बाहर निकलता है। इस पानी का इस्तेमाल पौधों में खाद के लिए किया जा सकता है। वाहनों में लगाने पर भी सड़क पर मल नहीं फैलेगा, सिर्फ पानी ही फैलेगा, जिससे कोई नुकसान नहीं होगा।

देश-दुनिया में है इस बायो टॉयलट की धूम-

जयसिंह के द्वारा बनाई गयी ये चेयर देश के अलग-अलग हिस्सों में हुई प्रतियोगिता में प्रथम आ चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र में जयसिंह के द्वारा डिजाइन किए गए बॉयो टॉयलेट लगाए जा रहे हैं, वहीं अब जयसिंह की स्मार्ट चेयर दुनिया की सबसे बेहतरीन चेयर का खिताब जीतने की ओर कदम बढ़ा रही है। तकनीकी कौशल उनमें था ही बस अपने अनुभव का लाभ लिया और जुट गए बायो-टॉयलेट बनाने में। 30 दिन तक कई प्रयोग किए और बायो-टॉयलेट का ऐसा स्ट्रक्चर ईजाद किया जो मात्र 15 हजार रुपए में तैयार हो जाता है।

इस टॉयलट के लिए जयसिंह ने चार खोखले पाइप शौचालय की हाइट के लिए लगाया। बाग-बगीचे की फेंसिंग में काम आने वाली लोहे की सामान्य जाली से पाइप को कवर कर दिया। नीचे की ओर से 4 फीट तक फेंसिंग जाली को कांक्रीट में ढाल दिया और ऊपर के बाकी हिस्से को सिंगल ईंट दीवार से कवर कर दिया। अब सभी गांव में इंजीनियर नरवरिया द्वारा तैयार किए गए बायो-टॉयलेट लगवाएं जाएंगे। इनके लिए बैक्टीरिया डीआरडीई देगा। जयसिंह के मुताबिक, जिद थी कि कुछ भी हो जाए, बस मुझे टॉयलेट बनाने हैं। वो भी सस्ते। सोचा कोशिश में लगा रहूंगा तो सफलता जरूर मिलेगी। कई प्रयोग किए, असफलता भी मिली। आखिरकार जो सोचा कर दिखाया। ये देश का सबसे सस्ता बायो-टॉयलेट बना है। मुझे इस पर गर्व है।'

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