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एक रात की नींद ने शुरू कराया स्टार्टअप, अब हर महीने 24 करोड़ रुपये का टर्न ओवर

भारतीय स्टार्टअप जगत की नामी शख्सियतों की कहानियां...

नए-नए स्टार्ट अप, इंटरप्रेन्योर अब नए जमाने की आर्थिकी लिख रहे हैं। वह 'हैवेल्स इंडिया' हो या 'ट्रैक्यूला सर्विसेज', 'प्लेसियो' अथवा 'ओयो रूम्स' के संस्थापक रितेश अग्रवाल की कामयाबी की दास्तान। वक्त अब केवल अंबानी-टाटा-बिड़ला-डालमिया जैसे नामों का ही मोहताज नहीं रहा। 'ओयो रूम्स' का स्टार्टअप्स में इंडिया के सबसे बड़े अवॉर्ड्स के लिए चुना जाना इसी बात का तो संकेत है।

अलबिंदर और रितेश

अलबिंदर और रितेश


ओयो रूम्स के संस्थापक रितेश अग्रवाल की कामयाबी की अलग ही कहानी है। एक छोटे से वाकये ने उनकी जिंदगी का ऐसा रुख मोड़ा कि आज वह बेमिसाल ऊंचाइयां छू रहे हैं।

अब पैसे की सत्ता हर दिन नए ठिकाने बदलने लगी है। वह केवल अंबानी, टाटा-बिड़ला-डालमिया जैसे नामों की मोहताज नहीं रही। नए-नए स्टार्ट अप, इंटरप्रेन्योर अब नए जमाने की आर्थिकी का इतिहास रच रहे हैं। जिस कंपनी के सीएमडी अनिल गुप्ता के पिता कीमत राय गुप्ता ने शिक्षक की नौकरी छोड़कर 'हैवेल्स इंडिया' नाम से कभी अपना मामूली सा बिजनेस शुरू किया था, पिछले दिनो एक झटके में उनकी कंपनी की वैल्थ साढ़े तीन हजार करोड़ हो गई। वजह था केंद्र सरकार द्वारा कुछ आइटम्स पर जीएसटी रेट घटाना। इसका हैवेल्स इंडिया के शेयर को जबर्दस्त उछाल मिला। कंपनी का शेयर नौ फीसदी से बढ़कर 610 रुपए के स्तर तक पहुंच गया।

बिजनेस के लिए आइडिया खोज रहे तीन दोस्तों रोहित जैन, मनीष सेवलानी और स्वप्निल तामगाडगे को भी इसी तरह सरकार के एक फैसले से मौका मिला तो उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ ट्रैक्यूला सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत कर दी और दो साल में ही उनकी कंपनी का टर्नओवर 75 लाख रुपए हो गया। रोहित जैन बताते हैं कि हम तीनों ने एनआईआईटी वारंगल से ग्रैजुएशन किया है। एक ही कॉलेज में पढ़ने की वजह से हमारी दोस्ती हो गई थी। ग्रैजुएशन करने के बाद हमने मल्टी नेशनल कंपनी में काम किया। हालांकि नौकरी के साथ अपना बिजनेस शुरू करने के लिए आइडिया की तलाश जारी रही। आइडिया मिलते ही हमने परिवार और दोस्तों से पैंतीस लाख रुपए जुटाकर फरवरी 2016 में अपना बिजनेस शुरू कर दिया। वे देश भर के 40-45 स्कूलों को अपनी सर्विस दे रहे हैं। इसके जरिए स्कूल के बीस हजार से ज्यादा अभिभावक उनकी सर्विस का उपयोग कर रहे हैं। इसके जरिए अभिभावक स्कूल बस को ऑनलाइन ट्रैक कर सकते हैं। उनकी कंपनी हैदराबाद की स्मार्ट सिटीज को भी सर्विसेस प्रोवाइड कर रही है। फिलहाल दिल्ली, अजमेर, आगरा, हैदराबाद, नैलोर, बेंगलुरू, कोयंबटूर, विशाखापट्टनम, नागपुर, वारंगल में ट्रैक्यूला सर्विसेस दे रही है।

इसी तरह की कंपनी चला रहे हैं स्टूडेंट हाउसिंग स्टार्टअप प्लेसियो के सहसंस्थापक रोहित पटेरिया और अंकुश अरोड़ा। उन्होंने हाल ही में सब्सक्रिप्शन बेस्ड फूड स्टार्टअप पैको मील्स का भी अधिग्रहण कर लिया है। इसके माध्यम से उनकी कंपनी छात्रों को नए-नए तरीके से साथ साफ-सुथरा खाना मुहैया करा रही है। उनकी कंपनी विद्यार्थियों को घर के बने पसंदीदा शाकाहारी और पारंपरिक व्यंजन मुहैया कराती है। महीने में एक बार फूड पार्टी होती है। इन पार्टियों में छात्रों को भांति-भांति के स्वादिष्ट व्यंजन खिलाए जाते हैं। पैको मील्स के मालिक नितिन जोशी और पारूल तुसेले बताते हैं कि स्टूडेंट लाइफ में खाने को लेकर इसी तरह के खराब अनुभव के चलते उन्होंने स्वादिष्ट, संपूर्ण और सेहतमंद खाना उन छात्रों को सस्ते दाम पर उपलब्ध कराने के लिए दो साल पहले मामूली लागत से यह स्टार्टअप शुरू किया था। जिनको पैसे कमाने की धुन है, उन्हें राह मिल ही जाती है।

बजट होटल एग्रीगेटर ओयो रूम्स का स्टार्टअप्स के लिए इंडिया के सबसे बड़े और नामचीन अवॉर्ड्स में सबसे बड़े सम्मान के लिए चुना जाना भी इसी तरह का संदेश है। इंफोसिस के को-फाउंडर नंदन नीलेकणि की अध्यक्षता वाली जूरी ने अभी बीते सोमवार को ही बेंगलुरु में ऐसे आठ सफल विजेताओं का चयन किया। विजेताओं का चयन उनकी महत्वाकांक्षा, बड़ा कारोबार खड़ा करने की उनकी क्षमता और मुश्किल दौर से उबरने की उनकी दक्षता के आधार पर किया गया। विजेताओं में ओयो के अलावा एक्सेल पार्टनर्स के पार्टनर सुब्रत मित्रा (मिडास टच अवॉर्ड फॉर बेस्ट इनवेस्टर), एनालिटिक्स सर्विसेज और सॉल्यूशन प्रोवाइडर ट्रेडेंस (बूटस्ट्रैप चैंप), हेल्थकेयर स्टार्टअप सिग्ट्यूपल (टॉप इनोवेटर), ग्रॉसरी डिलीवरी ऐप ग्रोफर्स के को-फाउंडर्स अलबिंदर ढींढसा और सौरभ कुमार (कमबैक किड) और डेटा सर्विस प्रोवाइडर स्काइलार्क ड्रोंस (बेस्ट ऑन कैंपस) को भी अवॉर्ड के लिए चुना गया। ऑनलाइन फूड डिलीवरी स्टार्टअप फ्रेशमेन्यू की सीईओ रश्मि डागा को ईटी फेसबुक वुमन अहेड प्राइज और दृष्टि आई केयर को सोशल एंटरप्राइज कैटेगरी में अवॉर्ड के लिए चुना गया।

ओयो रूम्स के संस्थापक रितेश अग्रवाल की कामयाबी की अलग ही कहानी है। एक छोटे से वाकये ने उनकी जिंदगी का ऐसा रुख मोड़ा कि आज वह बेमिसाल ऊंचाइयां छू रहे हैं। एक दिन मजबूरी में उनको सोने के लिए होटल की शरण लेनी पड़ी, तो उन्हें अहसास हुआ कि लोगों के लिए जरूरत के वक्त ढंग का होटल खोजना कितना मुश्किल है। करीब चार साल पहले दिल्ली स्थित अपने फ्लैट का इंटरलॉक लगने से रितेश बाहर ही फंस गए थे। रात गुजारने के लिए होटल की तलाश में निकले। उन्होंने पाया कि रिसेप्शनिस्ट सो रहा है। कहीं बिस्तर खराब हैं तो कहीं बाथरूम असहनीय। जहां ठीक-ठाक व्यवस्था मिली, वहां कार्ड से भुगतान की सुविधा नहीं थी।

बकौल रितेश, उस दिन उन्हें ख्याल आया कि आखिर भारत में अच्छे होटल और रूम्स किफायती दाम पर क्यों नहीं मिल सकते? यही से ओयो रूम्स की शुरुआत हुई। जून 2013 में उन्होंने 60 हजार रुपए का निवेश कर ओयो रूम्स की शुरुआत कर दी। फर्म ने ऐसी होटलों से संपर्क साधा, जो कोई ब्रांड नहीं थीं। उनके मालिकों को ओयो ने अपने यहां सुविधाएं बढ़ाने और स्टॉफ को प्रशिक्षित करने का सुझाव दिया, साथ ही उनकी ब्रांडिंग का खुद बीड़ा उठा लिया। देखते ही देखते इन होटलों का राजस्व बढ़ना शुरू हो गया। उसी दौरान रितेश ने एक ऐप बनाया, जिसके जरिए लोग अपनी पसंद और बजट का होटल तथा रूम्स बुक कराने लगे। शुरुआत में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कोई विश्वास करने को तैयार नहीं था कि तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है। आखिर में गुड़गांव के एक होटल से शुरुआत हुई। रितेश बताते हैं कि उस होटल में वही मैनेजर, रिसेप्शनिस्ट और स्टाफ थे। रात में बैठकर वह अपने ऐप के लिए कोड लिखते थे और वेबसाइट को बेहतर बनाने के लिए काम करते थे। धीरे-धीरे टीम बनती गई, काम बढ़ता गया और उनकी सेवाएं लोगों को रास आने लगीं। आज ओयो रूम्स के साथ देश के सौ शहरों की 2,200 होटल जुड़े हैं। डेढ़ हजार कर्मचारियों की इस कंपनी का एक माह का टर्न ओवर 23.39 करोड़ रुपए है।

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