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कला और संगीत की मदद से डिज़ाइनर राकेश खन्ना ने दी कैंसर को मात

राकेश खन्ना, वो पुरस्कार विजेता आभूषण डिजाइनर हैं, जिन्होने कैंसर पर जीत हासिल करने के लिए कला और संगीत का सहारा लिया।

कला और संगीत की मदद से डिज़ाइनर राकेश खन्ना ने दी कैंसर को मात

Thursday February 06, 2020 , 4 min Read

राकेश खन्ना एक पुरस्कार विजेता आभूषण डिजाइनर हैं, जिन्होने कैंसर पर जीत हासिल करने के लिए कला और संगीत का सहारा लिया। राकेश ने उपचार के दौरान भी कई कलात्मक गतिविधियों में भाग भी लिया।

राकेश खन्ना

राकेश खन्ना



हम सभी अपने जीवन में एक शानदार करियर बनाना चाहते हैं, अपने परिवार का अच्छा भरण-पोषण करना चाहते हैं और आस-पास जाैरी विभिन्न सामाजिक गतिविधियों से खुद को जोड़े रखना चाहते हैं। हालांकि जिन लोगों को कैंसर की बीमारी से गुजरना पड़ता है, उनके लिए यह सब ठहर जाता है।


हमारी प्राथमिकताएं और हमारी रोजाना की जिंदगी बदल जाती है और बीमारी से निपटना अपने आप में एक बहुत बड़ा काम बन जाता है। इस दौरान अवसाद और चिंता स्वाभाविक रूप से पीछा करने लगती है। हालांकि इस दुनिया में ऐसे कई साहसी लोग हैं जिन्होंने अपने हिम्मत से इस चुनौती से पार पाया है और उनकी कहानी को सुनना और बताना काफी जरूरी हो जाता है।


वॉयस ऑफ कैंसर पेशेंट्स में हमने कुछ ऐसे कैंसर ही सर्वाइवर्स से बातचीत की है, जिनके पास बताने के लिए रोमांचक किस्से हैं। यहां हम आपको ऐसे ही एक कैंसर सर्वाइवर्स की सच्ची कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने कला और संगीत के जरिए इस बीमारी को मात दे दी।

शरुआती परेशानियां

दिल्ली के रहने वाले राकेश खन्ना एक पुरस्कार विजेता आभूषण डिजाइनर हैं। उन्हें ही में अपने काम के लिए प्रतिष्ठित 'डी बीयर्स इंटरनेशनल अवार्ड' मिला है। एक शानदार प्रोफेशनल्स करिया बनाने के अलावा, वह डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया, सेव द ट्रीज सपोर्ट, वॉर विडो एसोसिएशन, सवेरा फाउंडेशन और प्रथम यूके जैसी कई गैर-लाभकारी संगठनों के जरिए स्वयंसेवा में भी सक्रियता से भाग लेते थे।


हालाांकि राकेश का जीवन 2012 में तब ठहराव पर आ गया जब उनके परिवार को पता चला कि उन्हें 'एनाप्लास्टिक लिम्फोसाइट किनसे (ALK)' नाम का एक लंग कैंसर है। भारत में उनकी बीमारी का सही-सही पता लगाने में काफी देरी हुई थी, इसलिए उनके परिवार को कुछ बेहतरीन पल्मोनरी विशेषज्ञों से सलाह लेने के लिए उन्हें सिंगापुर ले जाना पड़ा।


वहां डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि उनकी बीमारी चौथे चरण में पहुंच गई है और यह उनके मस्तिष्क में फैलना शुरू हो गया है। ऐसे में राकेश को तुरंत रेडिएशन थेरेपी कराने और उसके बाद कुछ कीमोथेरेपी सत्र में भाग लेने के लिए कहा गया।


राकेश की पत्नी रेनी खन्ना बताती हैं,

"हमें बाजार में उपलब्ध नवीनतम दवाओं को खरीदने के लिए खुद से काफी रिसर्च करनी पड़ती थी और इसके लिए भारी रकम चुकानी पड़ती थी।"


पेंटिंग और पियानो का सहारा

इलाज शुरू होने के बाद राकेश अपने आभूषण व्यवसाय को बंद करने के बारे में सोच रहे थे। हालांकि उनकी पत्नी और बेटे ने उनका व्यवसाय संभाला और इसे जारी रखा। नियमित फिजियोथेरेपी सत्र और कैंसर से हार न मामने के उनके अड़ियल रवैये ने उन्हें रिकवरी में मदद की।


आज राकेश काफी ठीक हैं और किसी दूसरे 68 वर्षीय सामान्य व्यक्ति के जैसे ही लगते हैं।


राकेश ने कहा,

"मैंने खुद को विश्वास दिलाया कि मैं बिल्कुल भी बीमार नहीं हूं। मैंने अपनी बीमारी के बारे में नहीं पढ़ा और न ही इसके बारे में किसी से बात की। मुझे अपने दिमाग का ध्यान हटाने का एक आसाना तरीका मिल गया और वो था मेरे बचपन के शौक को पुनर्जीवित करना। वास्तव में यह मेरे लिए शानदार रहा।"

जब राकेश ठीक हो रहे थे, तब उन्होंने वायलिन सीखने के लिए हर हफ्ते दिल्ली स्कूल ऑफ म्यूजिक में जाने का फैसला किया। उन्होंने पियानो पर एक होम-ट्यूटरिंग कोर्स भी ज्वॉइन किया। इसके अलावा, राकेश ने ऑयल पेटिंग की अपने बचपन के शौक को पूरा करने में जुट गए और घर पर पेटिंग बनाने में घंटों बिताए।


68 वर्षीय राकेश को घूमना काफी पसंद हैं और उन्हें इसमें सुकून मिलता है। इसलिए वह इस समय जितनी बार संभव हो बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं।


राकेश ने बताया,

"मैं फ्लाइट शेड्यूल, होटल में ठहरने और दिन के दौरे सहित अपने सफर से जुड़ी योजना खुद बनाता हूं। मुझे बस अब एक और चीज पर काबू पाना है और वह है मेरा भोजन और मेरी डाइट।"