नदियों और जलाशयों में माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाएगा ड्रोन!
ड्रोन आधारित जल निगरानी तकनीक प्रदूषण को पहचानने और उसे ठीक करने में मदद करती है, जिससे जल जीवन को संरक्षित किया जा सकता है. AVPL International और IARI जैसी संस्थाएं इस दिशा में महत्वपूर्ण काम कर रही हैं. यह तकनीक हमारी नदियों और जलाशयों के पुनर्जीवन के लिए एक बड़ा कदम हो सकती है.
भारत में जल प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है और इसके कारण नदियां, जलाशय और समुद्र गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं. गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र नदी जैसी नदियां माइक्रोप्लास्टिक के प्रदूषण से जूझ रही हैं, और समुद्रों में माइक्रोप्लास्टिक का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है. जल प्रदूषण के कारण मानवीय जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ रहा है. दूषित पानी और सी-फ़ूड के चलते एक व्यक्ति साल भर में एक क्रेडिट कार्ड जितना प्लास्टिक खा रहा है
क्या है माइक्रोप्लास्टिक?
माइक्रोप्लास्टिक छोटे प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं, जो पानी में घुलकर मछलियों, कछुए और अन्य जलजीवों के शरीर में चले जाते हैं. जब हम पानी पीते हैं या सी-फ़ूड का सेवन करते हैं, तो यह हमारे शरीर में पहुंच कर भारी नुकसान पहुचाते हैं. यह हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि माइक्रोप्लास्टिक से कैंसर और हॉर्मोनल समस्याएं जैसी बीमारियां हो सकती हैं.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (NIO) के हाल ही के शोध में यह पाया गया है कि औसतन हर व्यक्ति साल भर में लगभग 5 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक खा जाता है, जो लगभग एक क्रेडिट कार्ड के बराबर है.
क्या ड्रोन तकनीक से प्रदूषण पर नियंत्रण संभव?
जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाना बहुत जरुरी है इसके लिए एक नई तकनीक में संभावनाएं तलाशी भी जा रही है - ड्रोन आधारित जल निगरानी. यह तकनीक जल में माइक्रोप्लास्टिक के प्रदूषण को पहचानने और उसका उचित समाधान निकालने में मददगार साबित हो सकती है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि ये एक बेहतरीन विकल्प है, ड्रोन से नदियों और जलाशयों की मैपिंग आसानी से की जा सकती है, और इसमें लगे वाटर सेंसर से हम किसी भी प्रकार के प्रदुषण का पता लगा सकते हैं, और उसे समय रहते बढ़ने से रोका जा सकता है, साथ ही समय पर नष्ट भी किया जा सकता है. हम ड्रोन का उपयोग नदियों और जलाशयों के प्रदूषण को मॉनिटर करने के लिए कर सकते हैं. ड्रोन में हाई-रिज़ॉल्यूशन कैमरे और जीपीएस सिस्टम होते हैं, जिससे हम प्रदूषण के हॉटस्पॉट्स की पहचान कर सकते हैं.
यह तकनीक माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के स्रोत को पहचानने और उसे ठीक करने में मददगार साबित हो सकती है, जिससे जलीय जीवन के साथ-साथ मानव जीवन को सुरक्षित किया जा सकता.
इस बारे में इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. आर.एन. साहू, जोकि Remote Sensing में विशेषज्ञ है, हमें बताते हैं कि, “हम नदियों व अन्य जलाशयों की स्वच्छता को लेकर कई ट्रायल प्रोजेक्ट चला रहे हैं. हमने ड्रोन के माध्यम से पश्चिम बंगाल में गंगा व अन्य सहायक नदियों पर ट्रायल किया है, जोकि सफल रहा है. इसके आलावा 3 यूनिवर्सिटी में मतस्य विभाग में मछली के तालाबों की साफ-सफाई, फ़िश फीडिंग व बीमारी से बचाव को लेकर भी ड्रोन से दवा का स्प्रे किया जा रहा है. इसमें कोई संशय नहीं है कि ड्रोन का इस्तेमाल पानी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक को पहचान करने में किया जा सकता है. लेकिन इसमें एडवांस वाटर सेन्सर्स की आवश्यकता है. जिस पर हम काम भी कर रहे हैं. हमारा प्रयास है ड्रोन में लगे वाटर सेसिंग के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक की पहचान करना आसान हो और आसानी से मैप भी किया जा सके, इससे ड्रोन पानी से प्लास्टिक और अन्य प्रदूषित वस्तुओं की पहचान कर सके और उनका समय रहते समाधान निकाला जा सके. यह तकनीक प्रदूषण पर जल्दी काबू पाने और जल जीवन को संरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी.”
जल जीवन को बचाने की दिशा में एक बड़ा कदम
वहीं ड्रोन बनाने वाली कंपनी AVPL International की फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर प्रीत संधू ने कहा, “ड्रोन तकनीक से कम समय में ज्यादा क्षेत्र को मैप किया जा सकता है. इसमें किसी भी प्रकार का सेंसर लगा कर मैप करवाया जा सकता है. पानी में माइक्रोप्लास्टिक के प्रदूषण की पहचान करने और उसका जल्दी समाधान करने में ड्रोन की मदद बेहद कारगर सिद्ध होगी. यह तकनीक मानवीय प्रयासों से कहीं ज्यादा तेज़ और सटीक है, जिससे प्रदूषण को नियंत्रित करना आसान हो जाता है. ड्रोन तकनीक भविष्य में हर सेक्टर के लिए उन्नत तकनीक साबित होगी. आने वाला समय ड्रोन का है.”
प्रीत संधू ने आगे कहा, “हम सबको मिलकर काम करना होगा ताकि प्रदूषण को नियंत्रित कर सकें. ड्रोन तकनीक एक अहम कदम है, लेकिन इसके लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक है.”
सामूहिक प्रयास की आवश्यकता
इस बारे में पर्यावरणविदों का मानना है कि हालांकि ड्रोन तकनीक प्रभावी हो सकती है, लेकिन इसके लिए सभी का सहयोग जरूरी है. सरकार, निजी कंपनियां, वैज्ञानिक संस्थान और स्थानीय समुदायों को मिलकर काम करना होगा, ताकि प्रदूषण की समस्या का समाधान किया जा सके. तकनीकी रूप से मैपिंग के लिए ड्रोन बहतरीन विकल्प माना जाता है.
ड्रोन आधारित जल निगरानी तकनीक प्रदूषण को पहचानने और उसे ठीक करने में मदद करती है, जिससे जल जीवन को संरक्षित किया जा सकता है. एवीपीएल इंटरनेशनल और आईएआरआई जैसी संस्थाएं इस दिशा में महत्वपूर्ण काम कर रही हैं. अगर इस तकनीक का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए, तो यह हमारी नदियों और जलाशयों के पुनर्जीवन के लिए एक बड़ा कदम हो सकता है.