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सड़क के गढ्ढों को पाटकर हजारों की जिंदगी बचा रहे ये दो शख्स

सड़क के गढ्ढों को पाटकर हजारों की जिंदगी बचा रहे ये दो शख्स

Wednesday October 03, 2018 , 3 min Read

मुंबई में 48 वर्षीय दादाराव के 16 साल के बेटे प्रकाश की मौत खुले ड्रेन में गिरने से हो गई थी। बेटे की मौत ने दादाराव को हिला कर रख दिया और उन्होंने पेटहोल्स को भरने का मिशन शुरू कर दिया।

सफाई अभियान में जुटे रूपनारायण

सफाई अभियान में जुटे रूपनारायण


79 वर्षीय रूपनारायण निरंजन को यह अहसास हुआ कि सड़क खराब होने के चलते बच्चों को स्कूल आने में दिक्कत होती है उन्होंने अपनी तनख्वाह से न केवल सड़क की मरम्मत कराई बल्कि स्कूल में शौचालय और पीने के पानी की भी व्यवस्था कराई। 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार हर रोज कम से कम 56 पैदल यह यात्रियों की मौत हो जाती है। यह भयावह आंकड़ा दिन ब दिन और खतरनाक होता जा रहा है और इसकी सबसे बड़ी वजह सड़क के वे गढ्ढे हैं जिन्हें पाटने की कोशिश नहीं की जाती। भारी बारिश, ओवरलोड वाहन और बारिश में बहकर आए कचरे से सड़कें खराब होती हैं, नतीजा ये होता है कि इन गढ्ढों की वजह से रोजाना दुर्घटनाएं होती हैं।

मुंबई में 48 वर्षीय दादाराव के 16 साल के बेटे प्रकाश की मौत एक ऐसे ही हादसे में हो गई थी जहां उनका बेटा खुले ड्रेन में गिर गया था और उसकी मौत हो गई। इस दुर्घटना ने दादाराव को हिला कर रख दिया और उन्होंने पेटहोल्स को भरने का मिशन शुरू कर दिया। उनका कहना है कि वे अपने बेटे को श्रद्धांजलि देने के लि ऐसा कर रहे हैं ताकि फिर किसी की मौत इन सड़क के खुले गढ्ढों की वजह से न हो।

गर्मी की धूप में भी काम करने वाले दादाराव ने शुरू में कच्ची ईंटों से गढ्ढों को भरने की कोशिश की थी, लेकिन बाद में वे कंस्ट्रक्शन साइट्स पर निकलने वाले ईंटों के टुकड़े का इस्तेमाल करने लगे। दादाराव ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा, 'अगर सारे मुंबईवासी एकजुट हो जाएं तो शहर में एक भी सड़क पर गढ्ढा नहीं रहेगा।' दादाराव की अपील का असर भी हुआ है। उनकी प्रतिबद्धता और जिम्मेदारी के भाव को देखते हुए इस बार प्रकाश की तीसरी पुण्यतिथि पर 120 से ज्यादा लोग एकजुट हुए और जुहू-विकरोली लिंक रोड पर 100 से ज्यादा गढ्ढों को भर दिया। यह वही रोड थी जिस पर प्रकाश का हादसा हुआ था।

इसी तरह उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में एक अध्यापक ने भी ऐसा ही कुछ प्रण लिया ताकि गरीब बच्चों को स्कूल जाने में कोई दिक्कत न हो। 79 वर्षीय रूपनारायण निरंजन को यह अहसास हुआ कि सड़क खराब होने के चलते बच्चों को स्कूल आने में दिक्कत होती है उन्होंने अपनी तनख्वाह से न केवल सड़क की मरम्मत कराई बल्कि स्कूल में शौचालय और पीने के पानी की भी व्यवस्था कराई। 1999 में उन्हें राष्ट्रपति के हाथों श्रेष्ठ अध्यापक का पुरस्कार मिला।

रिटायर होने के बाद निरंजन हर सुबह हाथों से चलने वाली गाड़ी लेकर निकल जाते हैं। उनके हाथ में झाड़ू और बेलचा होता है जिसकी मदद से वे सड़क के गढ्ढों को साफ कर फिर उसे पाटने का काम करते हैं। इसके अलावा उन्होंने अपने घर के पास नहर की सफाई की भी जिम्मेदारी अपने हाथ ले ली। वे रोज नहर में लोगों द्वारा डाले गए कचरे को साफ करते हैं। दादाराव और रूपनारायण निरंजन जैसे लोगों से अगर लोग प्रेरणा ले सकें तो देश में बदलाव होते देर नहीं लगेगी।

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