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पड़ोस की दुकान और ग्राहक को जोड़ेगा 'गुडबॉक्स'

पड़ोस की दुकान और ग्राहक को जोड़ेगा 'गुडबॉक्स'

Monday November 02, 2015 , 5 min Read

सुबह की चाय के लिए चाहे दूध हो या फिर भूख लगने पर हल्का नाश्ता. हम अपनी जरूरतों के हिसाब से इन दुकानों पर जाते हैं. ये दुकानें आपकी कॉलोनी में ही स्थित होंगी. जरा सोचिए कि आपके घर पर दूध खत्म हो गया हो और आपको बस दुकान मालिक को एक मेसेज भेजना है, भुगतान भी उसी सेवा के जरिए होता है. और आपके पास दूध पहुंच जाता है. यह सिर्फ दूध के लिए ही नहीं किया जा सकता है बल्कि आपके मन मुताबिक का केक स्टोर, राशन या फिर रोजमर्रा की जरूरतें भी इसी सेवा से पूरी हो सकती है.


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गुडबॉक्स (Goodbox) का लक्ष्य लोगों की छोटी-छोटी दिक्कतों को दूर करने का है. यह एक मोबाइल एप है जो ग्राहकों को खरीदारी करने की आजादी देता है साथ ही व्यवसाइयों को अपने उत्पाद एप के जरिए बेचने की इजाजत देता है. गुडबॉक्स के सह संस्थापक मयंक बिदवात्का कहते हैं, “हमने महसूस किया कि बहुत सारे ऐसे व्यापार हैं जो एप पर बिक्री करना चाहते हैं क्योंकि ग्राहकों का रुझान उसी की तरफ जा रहा है. लेकिन उनके लिए अपना एप बनाना कोई आसान काम नहीं है और उन्हें मालूम है कि ग्राहक कई तरह की जरूरतें के लिए कई एप डाउनलोड नहीं करेगा.’’ दरअसल गुडबॉक्स कारोबार को एप में मौजूदगी दिलाता है. मयंक कहते हैं, “हम एसएमई के लिए सबसे आसान संभव मंच बनाना चाहते थे जिसमें वे अपने ग्राहकों से बातचीत कर सके और एप पर खरीदारी की छूट हो.’’ इस साल की शुरुआत में इस एप का विचार एबे जखारिया को आया, जो कि रेडबस में कोर टीम के सदस्य थे, मयंक के साथ नितिन चंद्र, मोहित माहेश्वरी, आनंद कलगीनामणि, महेश हर्ले और चरण राज रेडबस में साथ काम कर चुके हैं. हालांकि मयंक पहले से ही टीम का समर्थन कर रहे थे. मयंक तब टीम के साथ जुड़े जब वे एक समस्या के बारे में यकीन कर पाए जिसे टीम सुलझाने की कोशिश कर रही थी. रेडबस में वे मार्केटिंग और प्रोडक्ट्स के प्रमुख थे जिसके बाद वे द मीडिया एंट में बतौर सह संस्थापक के तौर पर जुड़ गए. गुडबॉक्स की तरफ आने पर वे कहते हैं, “मुझे नेटवर्क बिजनेस बनाने और उन्नत विचारों से प्यार है. रेडबस, मीडिया एंट और गुडबॉक्स सभी अनोखे आइडिया हैं जो पहले कभी नहीं किए गए हैं. कोई ऐसा काम करने में हमेशा रोमांच आता है जो पहले कभी नहीं किया गया हो. क्योंकि वहां एक जरा भी संदर्भ नहीं होता है और वही आपको समस्या को सुलझाने के लिए बहुत दबाव बनाता है.” टीम ऐसे लोगों को भर्ती करने के बारे में भी विचार कर रही है, जिनकी सोच में उद्यमी झुकाव हो और वे चुनौती को स्वीकार करने से डरते नहीं हों.


गुडबॉक्स के सह-संस्थापक मयंक

गुडबॉक्स के सह-संस्थापक मयंक



गुडबॉक्स कारोबार की मदद किस तरह से करता है. इसे समझाते हुए मयंक कहते हैं कि व्यापार नई तकनीक अपनाना चाहता, उनके पास स्टोरफ्रंट है और वे अपने उपभोक्ताओं से वास्तविक समय में बातचीत करने में सक्षम हैं. वे एप पर अपना मेन्यू बना पाएंगे और साथ साथ बिजनेस प्रोफाइल भी बना लेंगे. मोबाइल और एप वाली दुनिया में, हर ब्रांड विश्वास करने लगा है कि एप ही आगे जाने का रास्ता है. और यह सही भी है. मोबाइल इंटरनेट और स्मार्ट फोन की बढ़ती पहुंच से लगता है कि आगे जाने का यह सबसे अच्छा तरीका है. हालांकि बाजार में कई में मौजूद कई के एप की वजह से ग्राहकों के लिए परेशानी का सबब होता है कि वे अपने जरूरतों और आवश्यकताओं के लिए कौन बेहतर एप है. मयंक कहते हैं कि गुडबॉक्स के साथ ग्राहक अपने भरोसमंद कारोबार के साथ लेनदेन करने के लिए मंजिल पा सकते हैं. यह पड़ोस की दुकान हो सकती है या फिर एक नई दुकान जिसे आप खोज निकालते हैं. एक ग्राहक के तौर पर, वे अपने पसंदीदा कारोबार से चैट कर सकते हैं, ऑडर्र दे सकते हैं और एप के जरिए भुगतान कर सकते हैं.

व्हाट्सएप से इस एप की तुलना करते हुए मयंक कहते हैं, ‘कारोबारी और ग्राहक दोनों ही व्हाट्सएप के अभ्यस्त हैं. इसलिए हमने कुछ ऐसा बनाने का सोचा जो व्हाट्सएप की तरह काम करता हो और जो एक दूसरे से बातचीत की इजाजत देता हो.’’ एप में मेसेजिंग फीचर है जिसके बारे में टीम कहती है कि यह दूसरों से ऐसे अलग क्योंकि ग्राहक सीधे कारोबारी से चैट कर सकता है ना कि किसी एक्जिक्यूटिव से. पिछले कुछ समय से एप प्रयोगात्मक मोड में था और दो महीने पहले ही इसने भुगतान लेना शुरू किया है. टीम का दावा है कि शुरुआत के 60 दिनों कारोबार करीब 50 फीसदी बढ़ गया है. गुडबॉक्स को सीड फंडिंग मणिपाल ग्रुप, टैक्सी फॉर श्योर के अप्रामेया राधाकृष्ण और रेडबस के सह-संस्थापक चरण पद्मराजू से मिली है. फिलहाल कंपनी बैंगलोर में कारोबार के लिए समझौता कर रही है. मयंक कहते हैं, ‘‘गुडबॉक्स पर हम हर एसएमई और उनके ग्राहकों को साथ लाने और उनकी दैनिक लेनदेन को सरल बनाने के अपने सपने को पूरा करना चाहते हैं.’’ देश में बढ़ते ऑनलाईन कारोबार के प्रचलन को देखते हुए ये संभव भी लगता है।

एसोचैम-पीडब्ल्यूसी के शोध के मुताबिक करीब चार करोड़ उपभोक्ताओं ने 2014 में ऑनलाइन शॉपिंग की और 2015 में यह आंकड़ा बढ़कर साढ़े छह करोड़ पहुंच जाएगा. भारतीय ई कॉमर्स का कारोबार 2020 तक 100 अरब डॉलर के पार पहुंचने की उम्मीद है.