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जायसी के पद्मावत में अनिंद्य सुंदरी पद्मावती

जायसी के पद्मावत में अनिंद्य सुंदरी पद्मावती

Tuesday November 28, 2017 , 5 min Read

जब से संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावती' पर पूरे देश में बमचख मची हुई है, उसके साथ एक महाकवि का नाम भी जुबान-जुबान पर गूंज उठा है- मलिक मोहम्मद जायसी। क्या पता, इस बीच रानी पद्मावती पर लिखे उनके महाकाव्य 'पदमावत' की डिमांड भी मार्केट में उछल गई हो।

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पद्मावत में चित्तौड़ के राजा रलसेन और सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मावती की प्रेमकथा वर्णित है। कवि ने कथानक इतिहास से लिया है परन्तु प्रस्तुतीकरण सर्वथा काल्पनिक है। भाव और कला-पक्ष, दोनों ही दृष्टियों से यह एक उत्कृष्ट रचना है। 'पद्मावत' का रूपक-पक्ष पढ़ते ही बनता है।

जायसी को लोकख्याति 'पद्मावत' से मिली। इसका रचनाकाल उन्होंने स्वयं लिखा है- 147 हिजरी यानी 1540 ईसवी। 'पद्मावत' लिखते समय तक वे बुजुर्ग हो चले थे। 'पद्मावत' में सुल्तान शेरशाह सूरी, मुग़ल बादशाह बाबर के नाम शाहे वक़्त के रूप में दर्ज हैं।

हर खासोआम को नहीं पता कि जायसी कौन थे। आज के माहौल में उस महाकवि के बारे में जानना जरूरी, लाजिमी हो जाता है। वह 16वीं शताब्दी के सूफी काव्यधारा के श्रेष्ठ कवि रहे हैं। वह महाकवि ही नहीं, साम्प्रदायिक सौमनस्यता अविस्मरणीय संदेश-वाहक भी माने जाते हैं। उनका जन्म (1397 ईसवी और 1494 ईसवी के बीच) अमेठी (उ.प्र.) के गांव जायस में हुआ था। इसी से उनके नाम में जायसी तकल्लुफ जुड़ गया। जायसी लिखते हैं-

जायस नगर मोर अस्थानू।

नगरक नाँव आदि उदयानू।

तहाँ देवस दस पहुने आएऊँ।

भा वैराग बहुत सुख पाएऊँ॥

जायसी की जन्मतिथि को लेकर कई तरह के मत-मतांतर हैं। जन्म की तरह ही उनकी मृत्यु पर भी मतभेद हैं। सैयद आले मुहम्मद मेहर जायसी ने किसी क़ाज़ी सैयद हुसेन की अपनी नोटबुक में दी गयी जिस तारीख़ '5 रज्जब 949 हिजरी' (सन 1542 ई.) का मलिक मुहम्मद जायसी की मृत्यु तिथि के रूप में उल्लेख किया है, उसे भी तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता, जब तक उसका कहीं से समर्थन न हो जाए। कहा जाता है कि इनका देहांत अमेठी के आसपास के जंगलों में हुआ था। अमेठी के राजा ने इनकी समाधी बनवा दी, जो अभी भी है।

उनके नाम के पहले 'मलिक' उपाधि लगी रहने के कारण कहा जाता है कि उनके पूर्वज ईरान से आये थे और वहीं से उनके नामों के साथ यह ज़मींदार सूचक पदवी लगी आ रही थी किन्तु उनके पूर्वपुरुषों के नामों की कोई तालिका अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। उनके पिता का नाम मलिक राजे अशरफ़ बताया जाता है और कहा जाता है कि वे मामूली ज़मींदार थे और खेती करते थे। इनके नाना का नाम शेख अल-हदाद खाँ था। स्वयं जायसी को भी खेती करके जीविका-निर्वाह करना प्रसिद्ध है। कुछ लोगों का अनुमान करना कि 'मलिक' शब्द का प्रयोग उनके किसी निकट सम्बन्धी के 'बारह हज़ार का रिसालदार' होने के कारण किया जाता होगा अथवा यह कि सम्भवत: स्वयं भी उन्होंने कुछ समय तक किसी सेना में काम किया होगा, प्रमाणों के अभाव में संदिग्ध हो जाता है। सैयद आले का मत है कि "मोहल्ला गौंरियाना के निगलामी मलिक ख़ानदान से थे" और "उनके पुराने सम्बन्धी मुहल्ला कंचाना में बसे थे।" उन्होंने यह बतलाया है कि जायसी का मलिक कबीर नाम का एक पुत्र भी था। मलिक मुहम्मद जायसी कुरूप और एक आँख से हीन थे। कुछ लोग उन्हें बचपन से ही एक आंख का मानते हैं जबकि अधिकांश लोगों का मत है कि चेचक के प्रकोप के कारण ये कुरूप हो गये थे और उसी में इनकी एक आँख चली गयी थी। उसी ओर का बायाँ कान भी नाकाम हो गया। अपने एक आंख से हीन होने का उल्लेख उन्होंने खुद किया है -

एक नयन कवि मुहम्मद गुमी।

सोइ बिमोहो जेइ कवि सुनी।।

चांद जइस जग विधि ओतारा।

दीन्ह कलंक कीन्ह उजियारा।।

जग सुझा एकह नैनाहां।

उवा सूक अस नखतन्ह मांहां।।

जो लहिं अंबहिं डाभ न होई।

तो लाहि सुगंध बसाई न सोई।।

कीन्ह समुद्र पानि जों खारा।

तो अति भएउ असुझ अपारा।।

जो सुमेरु तिरसूल बिना सा।

भा कंचनगिरि लाग अकासा।।

वर्तमान में जायसी की उनकी तीन कृतियां उपलब्ध हैं- 'अखरावट', 'आख़िरी कलाम' और 'पदमावत'। ‘अखरावट’ में देवनागरी वर्णमाला के एक-एक अक्षर को लेकर सैद्धांतिक बातें कही गयी हैं। ‘आख़िरी कलाम’ में कयामत का वर्णन किया गया है। ‘पद्मावत’ रानी पद्मावती पर केंद्रित अवधी दोहा-चौपाई में निबद्ध मसनवी शैली में लिखा गया शौर्यगाथापरक महाकाव्य है। ‘पद्मावत’ को प्रतीकात्मक काव्य कहा जाता है। किंतु यह प्रतीकात्मकता सर्वत्र नहीं है और इससे लौकिक कथा में कोई बाधा नहीं पहुँचती है। पद्मिनी परमसत्ता की प्रतीक है, राजा रतन सेन साधक का, राघव चेतन शैतान का, नागमती संसार का, हीरामन तोता गुरू का, अलाउद्दीन माया का प्रतीक है। इसलिए ‘पद्मावत’ की कथा लौकिक धरातल पर चलने के साथ-साथ लोकोत्तर अर्थ की भूमि पर भी चलती है। इसका एक दूसरा अभिप्रेत भी है। सूफी साधना में इश्क मजाजी (लौकिक प्रेम) से इश्क हकीकी (अलौकिक प्रेम) को प्राप्त करने पर बल दिया गया है। कवि जायसी ने ‘पद्मावत’ में सूफी साधना का उच्चतम प्रतिमान प्रस्तुत किया है। जायसी की शिक्षा भी विधिवत् नहीं हुई थी। जो कुछ भी इन्होनें शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की वह मुसलमान फ़कीरों, गोरखपन्थी और वेदान्ती साधु-सन्तों से ही प्राप्त की थी।

जायसी को लोकख्याति 'पद्मावत' से मिली। इसका रचनाकाल उन्होंने स्वयं लिखा है- 147 हिजरी यानी 1540 ईसवी। 'पद्मावत' लिखते समय तक वे बुजुर्ग हो चले थे। 'पद्मावत' में सुल्तान शेरशाह सूरी, मुग़ल बादशाह बाबर के नाम शाहे वक़्त के रूप में दर्ज हैं। पद्मावत में चित्तौड़ के राजा रलसेन और सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मावती की प्रेमकथा वर्णित है। कवि ने कथानक इतिहास से लिया है परन्तु प्रस्तुतीकरण सर्वथा काल्पनिक है। भाव और कला-पक्ष, दोनों ही दृष्टियों से यह एक उत्कृष्ट रचना है। 'पद्मावत' का रूपक-पक्ष पढ़ते ही बनता है-

तन चितउर मन राजा कीन्हा।

हिय सिंहल बुधि पद्मिनि चीन्हा॥

गुरु सुआ जेहि पंथ दिखावा।

बिन गुरु जगत् को निरगुन पावा॥

भँवर केस वह मालति रानी।

बिसहर लुरहिं लेहिं अरघानी॥

ससि-मुख, अंग मलयगिरि बासा।

नागिन झाँपि लीन्ह चहुँ पासा॥

कातिक सरद चंद उजियारी।

जग सीतल हौं बिरहै जारी॥

भा बैसाख तपनी अति लागी।

चोआ चीर चँदन भा आगी।

बरसै मेघ चुवहिं नैनाहा।

छपर छपर होइ रहि बिनु नाहा॥

कोरौं कहाँ ठाट नव साजा।

तुम बिनु कंत न छाजनि छाजा॥

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