Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

वह कश्मीरी गेट जिसे 1857 के विद्रोही सिपाहियों ने 4 महीनों तक अपना रणनीति क्षेत्र बनाया

वह कश्मीरी गेट जिसे 1857 के विद्रोही सिपाहियों ने 4 महीनों तक अपना रणनीति क्षेत्र बनाया

Saturday March 04, 2023 , 3 min Read

दिल्ली शहर के ऐतिहासिक प्रवेश द्वारों से जुड़ी एक समृद्ध विरासत है. 1649 में निर्मित मुगल सम्राट शाहजहां के नाम पर सातवें शहर शाहजहांनाबाद में 14 प्रवेश द्वार थे. ये द्वार शहर की सुरक्षा के साथ-साथ लोगों को शहर तक पहुंचने और अन्य स्थानों पर जाने में मदद करने के लिए बनाए गए थे. वर्तमान में 14 द्वारों में से केवल 5 द्वार ही बचे हैं. ये हैं, उत्तर में कश्मीरी गेट, दक्षिण-पश्चिम में अजमेरी गेट, दक्षिण-पूर्व में दिल्ली गेट, दक्षिण में तुर्कमान गेट और उत्तर-पूर्व में निगमबोध गेट. आज हम दिल्ली में स्थित कश्मीरी गेट के बारे में बात करेंगे, जो आज की दिल्ली में भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है.


यमुना नदी के पास स्थित शाहजहां द्वारा बनवाया गया कश्मीरी गेट दिल्ली के सबसे लोकप्रिय दरवाजों में से एक है, जो लाल किले या शाहजहांनाबाद की सीमा पर बसा हुआ है.


गेट का नाम कश्मीरी गेट इसलिए रखा गया क्योंकि यह उत्तर की ओर, कश्मीर की सड़क की तरफ था, जो तब मुगल साम्राज्य का एक हिस्सा था.


बादशाह अहमद शाह की मां कुदसिया बेगम ने कश्मीरी गेट के बाहर एक चारबाग मुगल उद्यान ‘कुदसिया बाग’ का निर्माण किया और शाहजहां के सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह ने कश्मीरी गेट के ठीक अंदर अपना महल बनवाया था.


लेकिन, जब अंग्रेज आए और दिल्ली में बसना शुरू किया तो उन्होंने इसके कई संरचनाओं को बदल दिया. सबसे पहले अंग्रेजों ने पुरानी दिल्ली शहर, शाहजहांनाबाद की दीवारों की मरम्मत की. धीरे-धीरे कश्मीरी गेट क्षेत्र में अपनी आवासीय संपत्ति स्थापित की.


फिर आया 1857 का विद्रोह, जिसमें भारतीय सिपाहियों द्वारा कश्मीरी गेट का क्षेत्र रणनीति बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया. 1857 के विद्रोह के दौरान, विद्रोही सिपाहियों ने कश्मीरी गेट पर कब्जा कर उसके गेट को सील कर दिया. यह क्षेत्र भारतीय सिपाहियों द्वारा योजनाओं और रणनीति पर चर्चा करने के लिए रैली पॉइंट के रूप में इस्तेमाल किया गया.


ब्रिटिश सैनिकों ने रिज पर अपनी सहूलियत की स्थिति से कश्मीरी गेट के आसपास के गढ़ों, दरवाजों और दीवारों पर लगातार बमबारी जारी रखी. और चार महीने की घेराबंदी के बाद, 14 सितंबर 1857 को तोप और विस्फोटकों का इस्तेमाल कर दीवार को उड़ा दिया. इस दौरान कुदसिया बाग का अधिकांश भाग नष्ट हो गया था और कश्मीरी गेट को भी व्यापक क्षति हुई. भारतीय सैनिकों और अंग्रेजों के बीच एक भयंकर लड़ाई हुई और अंततः अंग्रेजों ने शहर पर नियंत्रण हासिल कर लिया. बाद में सैकड़ों विद्रोही सैनिकों और उनके समर्थकों पर मुकदमा चलाया गया और मार दिया गया.


19वीं शताब्दी के बाद के सालों में, ओल्ड सेंट स्टीफेंस कॉलेज, जनरल पोस्ट ऑफिस, बंगाली क्लब कश्मीरी गेट मार्केट गेट के आसपास के क्षेत्र में स्थापित किए गए, और अंग्रेजों ने एक नया आवासीय क्षेत्र, सिविल लाइंस, कश्मीरी के उत्तर में विकसित किया.


1857 के बाद कश्मीरी गेट दिल्ली का एक वाणिज्यिक केंद्र बन गया.


1976 में देश का सबसे बड़ा बस टर्मिनल, कश्मीरी गेट आईएसबीटी, बनाया गया.


और आज यह मेट्रो (रेड लाइन) और इंटर स्टेट बस टर्मिनल के लिए प्रसिद्ध है.