भारत में विकलांगों को लेकर कितना बदले हैं ऑफिस, पढ़िए ये खास रिपोर्ट
देश के कई संगठन विकलांग लोगों की मदद करके, सही नौकरी खोजने और बेहतर बुनियादी ढांचे, प्रशिक्षण लागत और अन्य सुविधाओं जैसे मुद्दों को शामिल करने में जागरूक प्रयास कर रहे हैं।
रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण दाविंदर सिंह को पांच साल के लिए बेड पर रहना पड़ा। वह तब सिर्फ 23 साल के थे। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड से स्नातक, दाविंदर की सेहत शरीर से जुड़ी अन्य संबद्ध जटिलताओं के कारण और खराब हो गई, जिससे उनका मनोबल काफी टूट गया। उनकी पढ़ाई में रुकावट आई, वहीं इस इलाज से उनके परिवार के वित्तीय संसाधन खत्म हो गए। किसी तरह उनको खुद से मदद करने के लिए, उनके डॉक्टर ने उन्हें कंप्यूटर लेने की सलाह दी। खुद पर निर्भर होने के लिए दाविंदर के दृढ़ संकल्प ने उन्हें आईटी की स्टडी करने और सीआरएम सिस्टम, ईकॉमर्स और इंटरनेट सेवा प्रदाता सेटअप के बारे में जानने के लिए प्रेरित किया।
दाविंदर कहते हैं, “विकलांग लोगों के लिए काम करना बहुत महत्वपूर्ण है। कोई भी आपको कुछ भी नहीं देता है, मुफ्त सलाह भी नहीं देता है, फिर हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति विशेष रूप से विकलांगों को वित्तीय सहायता देगा? विशेष रूप से एबल्ड को काम करना शुरू करना चाहिए, भले ही वे प्रति माह 1,000 रुपये ही क्यों न कमाएं। कम से कम वे आत्मसम्मान के साथ जीवन जी सकते हैं। आर्थिक स्वतंत्रता वास्तव में असली सशक्तिकरण है।"
इस विश्वास ने उन्हें अपने उद्यमशीलता वेंचर 9gem.com जोकि एक ईकॉमर्स प्लेटफॉर्म है, को शुरू करने के लिए प्रेरित किया। यह दुनिया भर को रत्न (जेम) निर्यात करते हैं। उनका कहना है कि नियमित रोजगार विकलांगता से ग्रस्त लोगों के लिए मायावी है क्योंकि कंपनियां "उनके मूल्य को पहचानने में विफल रहती हैं" और अपने रोजगार के अवसरों और नौकरी के पोर्टफोलियो को सीमित रखती हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत 2.7 मिलियन विकलांग लोगों का घर है, जिसमें शारीरिक और मानसिक विकलांगता दोनों शामिल हैं। केंद्र सरकार ने 1995 में सार्वजनिक क्षेत्र की सभी नौकरियों में तीन प्रतिशत आरक्षण अलग-अलग विकलांगों के लिए दिया था। लेकिन विश्व बैंक की 2007 की एक रिपोर्ट जिसका शीर्षक था, 'भारत में विकलांग लोग: प्रतिबद्धताओं से परिणामों तक' के मुताबिक भारत में विकलांगों की रोजगार दर 2002 में 37.6 प्रतिशत तक गिर गई जबकि ये 1991 में 42.6 प्रतिशत थी। दाविंदर कहते हैं, “विकलांग लोगों का उपयोग कंपनियों द्वारा कठपुतलियों के रूप में किया जाता है ताकि यह दिखाया जा सके कि वे एक सामाजिक रूप से जिम्मेदार कंपनी हैं। भले ही वे एक व्यक्ति को रोजगार दे रहे हों लेकिन उन्हें बड़ी जिम्मेदारी या पदोन्नति नहीं दी जाती है।
विकलांगता, कहीं न कहीं, अक्षमता, अपर्याप्तता, नकारात्मक कल्पना और रूढ़िवादिता से जुड़ी हुई है। इसलिए इस तरह के सामाजिक दृष्टिकोण के साथ, विकलांग लोगों (PwD- People with Disabilities) को शिक्षा, कौशल, कम आत्मविश्वास, कम रोजगार और खराब आर्थिक स्थिति की कमी के इस दुष्चक्र को तोड़ना मुश्किल लगता है। हालांकि, प्रौद्योगिकी में हो रही लगातार प्रगति ने पीडब्ल्यूडी को आशा की एक मजबूत किरण दी है, और कंपनियां विविध और समावेशी कार्यस्थल बनाने की आवश्यकता के बारे में अधिक जागरूक हो रही हैं।
बचाव के लिए प्रौद्योगिकी
सहायक तकनीकी समाधान PwD के लिए एक गेम-चेंजर रहा है। उन्होंने विकलागों के लिए नौकरी के अवसरों को खोला है और अलग-अलग मौकों पर, कुछ ऐसा काम किया है, जो पहले व्यवहार्य नहीं था। उदाहरण के लिए, अश्विन कार्तिक, जिन्होंने सेरेब्रल पाल्सी के साथ भारत के पहले इंजीनियर के रूप में स्नातक किया, कहते हैं, “इस बात के कई उदाहरण हैं कि कैसे प्रौद्योगिकी ने मुझे सशक्त बनाया है। इससे पहले, मैं अपने दम पर फोन नहीं उठा सकता था। हालांकि, ब्लूटूथ के आगमन के साथ, मैं अब अपने फोन पर मीटिंग कर लेता हूं।” वह वर्तमान में एएनजेड के साथ बिजनेस एनालिस्ट के रूप में काम कर रहे हैं।
नेत्रहीनों के लिए नौकरी के अवसर प्रदान करने के लिए काम कर रहे संगठन Nabet India की मैनेजिंग ट्रस्टी उषा मिश्रा का मानना है कि प्रौद्योगिकी और आईटी क्षेत्र अपने यूजर्स को उनकी मानसिक क्षमताओं के आधार पर अलग नहीं करते हैं। डायनेमिक कोर्स के पाठ्यक्रम के साथ, Nabet टीम ने खास उद्योग की मांगों को पूरा करने के लिए अपने कंटेंट को लगातार अपडेट किया। प्रशिक्षण-सह-रोजगार कार्यक्रम बुनियादी कंप्यूटर एप्लीकेशन देता है। ट्रेनी को नौकरी के लिए तैयार करने के लिए खास पाठ्यक्रम भी कंडक्ट किए जाते हैं। उषा मिश्रा कहती हैं, “इसके अलावा, यह एक ऐसा क्षेत्र है जो दुर्घटना-रहित है और आदर्श रूप से दृष्टिहीनों के लिए अनुकूल है। कई तकनीकी प्रगति जैसे कि विशेष स्क्रीन रीडर सॉफ्टवेयर और सहायक उपकरणों के विकास ने प्रशिक्षण और कार्यों के प्रदर्शन को पहले की तुलना में आसान बना दिया है।"
आधार संरचना
Enable India, NabetIndia, और v-Sesh जैसे गैर-लाभकारी संगठनों ने एक समर्पित PwD रेफरल प्रोग्राम बनाया है और विभिन्न संगठनों के साथ मजबूत साझेदारी का निर्माण किया है। इनमें द प्रैक्टिस, प्रथम मोटर्स, एएनजेड सपोर्टिव सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, अर्न्स्ट एंड यंग जीएसएस (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड, गोल्डमैन सैक्स, जेपी मॉर्गन चेस, नफेक्स डॉट कॉम, ड्यूश बैंक जैसी कंपनियां शामिल हैं। एनजीओ ने इन कंपनियों को एक मजबूत टैलेंट पूल, ट्रेनिंग सपोर्ट और सभी आवश्यक जानकारी प्राप्त करने में मदद की है ताकि पीडब्ल्यूडी को काम पर रखा जा सके। इनेबल इंडिया के प्रोग्राम मैनेजर मोसेस चौधरी गोरेपति कहते हैं, "निश्चित रूप से नियोक्ताओं के बीच पीडब्ल्यूडी को काम पर रखने के बारे में जागरूकता में वृद्धि हुई है।"
हालांकि, कंपनियां अभी भी ऐसे लोगों को काम पर रखने के बारे में आशंकित हैं जो दृष्टिबाधित हैं या सुन नहीं सकते (श्रवण बाधित) हैं। इन लोगों के कार्यस्थल में फिट होने की प्रमुख चिंता है। मोसेस बताते हैं, “हम सीनियर लीडर्स के लिए समावेशी और अनुकूली नेतृत्व कार्यशाला जैसी विभिन्न सेवाओं की पेशकश करते हैं। इनमें विकलांगता संवेदीकरण (Disability Sensitization) कार्यशाला, उन साथियों के लिए जो विकलांग कर्मचारियों के साथ काम करेंगे उनके लिए सह संवेदीकरण कार्यशाला (Peer Sensitization Workshop), साक्षात्कार के माध्यम से हैंडहोल्डिंग सेवा और नियोक्ताओं को विश्वास दिलाने में मदद करने के लिए बोर्डिंग प्रक्रिया आदि शामिल हैं। मोशन कहते हैं कि वे हायरिंग एजेंडा को आगे बढ़ाएं। वे कहते हैं, "सच कहें तो जो संगठन विकलांग व्यक्तियों को काम पर रखने में सफल हुए हैं, वे वापस आकर और अधिक लोगों को हायर करते हैं।" 2017 के एक अध्ययन से पता चलता है कि पिछले छह वर्षों में 80 प्रतिशत योग्य PwD को प्रमोट किया गया है, और 20 प्रतिशत को डबल प्रमोशन मिला है। इसके अलावा, विकलांग कर्मचारियों के बीच न्यूनतम आकर्षण है।
सही जॉब ढूंढ़ना
तैंतीस वर्षीय प्रशांत कामथ सेरेब्रल पाल्सी से जुड़ी सभी रूढ़ियों को गलत बताते हैं। प्रशांत ने न केवल अपना बीकॉम पूरा किया, बल्कि अब वह एक प्रतिष्ठित मोबाइल एप्लिकेशन डेवलपर है। अपनी 'स्पास्टिक' कंडीशन से जूझते हुए, जिसमें उनके शरीर को अनैच्छिक मूवमेंट्स का अनुभव होता है, प्रशान्त एक दशक से अधिक समय से माइंडट्री (Mindtree) के साथ फुल टाइम काम करने में कामयाब रहे हैं और पार्ट टाइम शेयर निवेशक हैं। वे कहते हैं, “जब मैंने माइंडट्री ज्वाइन किया, तब उन्हें ये पता नहीं था कि वे मुझे कहां रखें। मैं एचआर में था, लेकिन मुझे यह ज्यादा पसंद नहीं था। अब भी मुझे तकनीकी काम करना पसंद है। लगभग दो साल तक, मैंने एचआर के साथ काम जारी रखा और फिर मुझे सुब्रतो बागची के साथ काम करने का मौका मिला। मैं उनकी एक किताब की प्रूफरीडिंग भी की है।''
अक्सर, कंपनियां यह नहीं जानती हैं कि कौन सी जॉब प्रोफ़ाइल विकलांग लोगों के लिए उपयुक्त होगी। इसलिए इस समुदाय के लिए अवसर सीमित रहते हैं। ट्रस्ट ऑफ रिटेलर्स एंड रिटेल एसोसिएट्स ऑफ इंडिया के फाउंडर बीएस नागेश कहते हैं, "व्यवसाय हमारे समाज का एक सूक्ष्म जगत है, और समाज अब तक बहुत समावेशी नहीं रहा है। इसलिए यह उनके बीच बहुत चिंता पैदा करता है। सवाल यह है कि वे इसे कैसे करेंगे, वे कैसे समायोजित करेंगे।" रिटेल सेक्ट में पीडब्ल्यूडी रोजगार के लिए वकालत करते हुए, नागेश कहते हैं कि इस उद्योग में एंट्री लेवल की नौकरी के लिए उच्च शिक्षित लोगों की आवश्यकता नहीं है।
रिटले सेक्टर में, शुरू में, केवल तीन से पांच कंपनियां थीं जो पिज्जा हट, डोमिनोज और कैफे कॉफी डे जैसे PwDs को सक्रिय रूप से रोजगार दे रही थीं। लेकिन, पिछले सात वर्षों में, लगभग 500+ रिटेलर्स ने सामाजिक रूप से विकलांग समुदाय के भीतर काम करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा, विशाल मेगामार्ट, डी-मार्ट और लैंडमार्क सहित 150 से अधिक कंपनियों ने एक समावेशी कार्य नीति शुरू की है, जिसमें बुनियादी ढाँचा समर्थन भी शामिल है। इसके अलावा, वे साइन लैंग्वेज क्लास रखते हैं और PwD की जरूरतों पर अन्य कर्मचारियों को भी जागरूक करते हैं।
अभी भी सामने है एक लंबी सड़क
भारत में अधिक संगठन प्रैक्टिस और पॉलिसीज को शामिल करने के लिए जागरूक प्रयास कर रहे हैं, PwD का रोजगार जागरूकता की कमी के कारण एक चुनौती बना हुआ है। संगठन बुनियादी सुविधाओं, प्रशिक्षण लागतों और अन्य सुविधाओं में निवेश करने को तैयार नहीं हैं जो PwD को सक्षम बनाती हैं। मोसेस कहते हैं, “योग्य और सक्षम पीडब्ल्यूडी होने के बावजूद, उनमें से एक बड़ा प्रतिशत अभी भी बेरोजगार है। चुनौती हमारे समाज के निर्माण में निहित है। इनमें शिक्षा की कमी से लेकर संसाधनों तक सीमित पहुंच शामिल है। विकलांग लोग अक्सर भेदभाव और पूर्वाग्रह से डरते हैं।” अनकैप्ड संभावित प्रतिभाओं का एक बड़ा पूल है जो भारत को इनोवेशन और क्रिएटिवटी के माध्यम से विकसित करने में मदद करेगा। वर्कफोर्स में पीडब्ल्यूडी को शामिल करके, वे सकारात्मक सामाजिक प्रगति के माध्यम से अर्थव्यवस्था में योगदान कर सकते हैं।
त स्तंभ के रूप में तकनीक होगी और आप तकनीक का कितना लाभ उठाने में सक्षम हैं, यह निर्धारित करेगा कि कंपनी लाभदायक होगी या नहीं।”
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