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अंतरराष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस: सेवा संगठन के साथ मिलकर मैं घरेलू कामगारों को उनका हक दिलाना चाहती हूं

अंतरराष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस के मौके पर हमें, पंजाब के मोहाली की रहने वाली दीपा बता रहीं है कि कैसे सेवा संगठन (स्वाश्रयी महिला सेवा संघ) ने उनकी मदद की और आज वह संगठन की मदद से घरेलू कामगारों को उनका हक दिलाना चाहती है।

अंतरराष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस: सेवा संगठन के साथ मिलकर मैं घरेलू कामगारों को उनका हक दिलाना चाहती हूं

Wednesday June 16, 2021 , 4 min Read

मेरा नाम दीपा है। मैं 15 साल से पंजाब के मोहाली शहर में रह रही हूँ। मेरे परिवार में 9 सदस्य है। मैं, मेरे पति, सास, देवर और बच्चे हैं, जिनमें 3 बेटियां और 2 बेटे हैं। मेरे परिवार का सारा खर्चा मेरे पति चलाते हैं। बाकि हम सभी घर में ही रहते हैं। हमारे घर का गुजारा बहुत मुश्किल से हो पाता है।


फिर एक दिन मैंने कोठी में काम करने के लिए अपने घर वालों से सलाह लेने की कोशिश की लेकिन घर वालों ने मना कर दिया। वे कहने लगे अगर घर की औरतें काम करने घर से बाहर जाएंगी तो सब लोग मजाक उड़ाएंगे, बोलेंगे की ये तो औरत की कमाई खाते हैं और इसी के साथ घर वालों ने मना कर दिया। लेकिन मैंने हार नहीं मानी, अपने पति को समझाया... कि देखो आप अकेले कमाने वाले हो, तो घर का गुजारा हो रहा है पर अगर मैं भी कमाऊंगी तो घर का गुजारा और अच्छे से होगा, तो वो मान गए।

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प्रतीकात्मक चित्र (साभार: TheLeaflet)

मैं एक कोठी में काम करने लग गई। ऐसे करते-करते मेरे पास 5 कोठी का काम आ गया और मैं 8000/- महीना कमाने लग गई। घर का खर्चा अब ज्यादा अच्छे से चलने लगा।


एक दिन मेरे घर में सेवा संगठन (स्वाश्रयी महिला सेवा संघ) की तरफ से तृप्ता बहन आई। मैंने उन्हें घर में बुलाया और उन्होंने मुझे सेवा संगठन के बारे में बताया मुझे उनके बात करने का तरीका और सभी बातें बहुत अच्छी लगीं। मैंने फिर उन्हें अपने बारे में सब कुछ बताया। फिर मैं सेवा संगठन के साथ एक सदस्य के रूप में जुड़ गई। सेवा संगठन के साथ जुड़कर मुझमें बहुत बदलाव आया। साथ ही साथ मैंने अपने अधिकारों और हक के बारे में जाना।

कुछ समय बाद तृप्ता बहन ने मुझे हेल्थ आगेवान के काम के लिए चुना। फिर मुझे लोगों की मदद करने का मौका मिला। ऐसा करने से मुझे बहुत खुशी मिली।


कुछ समय बाद जब लॉकडाउन लग गया तो कोठी का काम छूट गया। मैं हेल्थ आगेवान बनकर लोगों की मदद करने लगी। सेवा संगठन के साथ मिलकर लॉकडाउन में गरीबो के घर तक खाना पहुंचाया। राशन बांटा और लोगों को ग्लूकोज़ के डिब्बे बांटे। एक घर में बहुत गरीब और बीमार आदमी चारपाई पर लेटा हुआ था। उनके बेटे हमें बोले हमें भी एक ग्लूकोज़ का डिब्बा दे दो, लेकिन हमारे पास ग्लूकोज़ के डिब्बे खत्म हो गए थे। फिर मेरे मन में आया कि जो ग्लूकोज़ का डिब्बा मेरे घर में है, वो मैं इनको दे दूं। फिर मैं अपने घर से ग्लूकोज़ का डिब्बा लेकर आई और उन गरीब अंकल को दे दिया।


कहते हैं की जब कोई गरीब दिल से दुआ देता है तो वो जरूर लगती है और जब पैसा काम नहीं आता तो दुआ काम आती है। उन अंकल ने बहुत दुआ दी, उनकी बातें सुनकर बहुत अच्छा लगा। इससे मेरा उत्साह बढ़ गया। मैं इन लोगों की मदद करती हुं तभी भगवान भी मुझसे खुश रहता है।


घरेलू काम भी एक काम है। घरेलू कामगारों को नौकर नहीं समझना चाहिए। घरेलू कामगारों को भी मजदुर जैसा हक मिलना चाहिए।इनके बारे में ना ही सरकार सोचती है और ना ही इनके मालिक। कभी भी कोई प्राकृतिक आपदा आने पर ना ही सरकार से हम लोगों को कोई मदद मिलती है और ना ही हमारे मालिकों से।


पिछले साल भी लॉकडाउन में सरकार ने मजदुर वर्ग की आर्थिक मदद की लेकिन हमारी तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। मैं सेवा संगठन के साथ जुड़कर खुद को और बाकि घरेलू कामगारों को उनका हक दिलाना चाहती हुं और सरकार तक हम सब की आवाज पहुँचाना चाहती हुं।


मैंने अपने बच्चों को भी सेवा के बारे में बताया। मेरी बड़ी बेटी नेहा है, मैंने उसको सेवा संगठन (स्वाश्रयी महिला सेवा संघ) के साथ जोड़ दिया है। वह सेवा संगठन में फील्ड मोबलाइजर का काम कर रही है। मेरी सभी भाई बहनों से यही विनती है हमें सबकी मदद करनी चाहिए और मिलजुल कर रहना चाहिए।