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इंटरनेशनल विमेंस डे के उत्‍सव के बाद दुनिया में बढ़ती लैंगिक गैरबराबरी पर एक और रिपोर्ट

अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस के दूसरे दिन आई ILO की रिपोर्ट कह रही है कि अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर महिलाओं में बेरोजगारी बढ़ी है.

इंटरनेशनल विमेंस डे के उत्‍सव के बाद दुनिया में बढ़ती लैंगिक गैरबराबरी पर एक और रिपोर्ट

Thursday March 09, 2023 , 4 min Read

अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस बीत चुका है. एक दिन के उत्‍सव और आयोजन के बाद महिलाएं वापस उस पुरानी जगह पर लौट चुकी हैं, जहां अन्‍याय और गैरबराबरी है और उसे गैरबराबरी को दूर करने के ढेरों कागजी वायदे.


पिछले महीने की 23 तारीख को संयुक्‍त राष्‍ट्र के मुख्‍यालय में एक प्रदर्शनी शुरू हुई. “डच औपनिवेशिक दासता की दस सच्ची कहानियां” नाम की यह  प्रदर्शनी मानव इतिहास की उस दुखती रग की कहानी है, जिसने एक समय धरती के हर हिस्‍से को अपनी चपेट में ले रखा था. गुलामी का इतिहास. हालांकि प्रदर्शनी डच इतिहास में गुलामी की कहानियों से जुड़ी है, लेकिन धरती का कोई कोना ऐसा नहीं, जहां एक मनुष्‍य ने अपनी ताकत और सत्‍ता के बूते दूसरे मनुष्‍य को अपना गुलाम न बनाया हो.


लेकिन आज दुनिया का कोई संविधान इस दासता को न स्‍वीकार करता है, न कानून इसकी इजाजत देता है. स्‍कूल की कोई किताब इस दास प्रथा का महिमामंडन नहीं करती. सब इसे इतिहास के एक काले धब्‍बे के रूप में ही देखते हैं. दासता के इतिहास में एकमात्र स्‍त्री ही ऐसी जीव है, जिसकी गुलामी की जंजीरें रिश्‍ते, परिवार और प्रेम नाम के इतने नाजुक और खूबसूरत से लगने वाले धागों से बुनी गई हैं कि दासता की प्रदर्शनियों और इतिहास की किताबों में स्‍त्री को एक सतत गुलामी का शिकार प्रजाति की तरह नहीं चित्रित किया जाता.


एक ओर स्‍त्री को बराबरी का दर्जा देनी वाली सारी एकेडमिक बहसें कहती हैं कि आर्थिक आत्‍मनिर्भरता, अर्थव्‍यवस्‍था में महिलाओं की समान भागीदारी ही उनकी बराबरी को सुनिश्चित कर सकती है. वहीं दूसरी ओर अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस के दूसरे ही दिन आई इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट कह रही है कि अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर महिलाओं में बेरोजगारी बढ़ी है. रोजगार की सुलभता, काम की परिस्थितियों में लैंगिक असंतुलन बढ़ा है. कोविड महामारी में काम से बाहर हुए और कोविड के बाद काम पर लौटने के मामले में लैंगिक असमानता और खाई बढ़ी है.


कुल मिलाकर आर्थिक बराबरी हासिल करने और अर्थव्‍यवस्‍था में समान भागीदारी पाने का महिलाओं का लक्ष्‍य अनुमान से कहीं ज्‍यादा खराब स्थिति में पहुंच चुका है. यह अंतरराष्‍ट्रीय लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) की रिपोर्ट कह रही है.


ILO की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं के रोजगार पाने के रास्‍ते पुरुषों के मुकाबले पहले से कहीं ज्‍यादा कठिन हो गए हैं. उन्‍हें पुरुषों से ज्‍यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में कामकाजी उम्र की 15 फीसदी महिलाएं नौकरी के अवसर ढूंढ रही हैं और उन्‍हें नौकरी मिल नहीं रही. रिपोर्ट के अनुसार बेरोजगारी के मामले में पुरुषों की स्थिति बहुत अच्‍छी नहीं है, लेकिन महिलाओं की तुलना में सिर्फ 10.5 फीसदी कामकाजी उम्र वाले पुरुष रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं और उनके लिए कोई रोजगार नहीं है.


रिपोर्ट के मुताबिक इस लैंगिक विभेद में 2005 से लेकर 2022 तक की अवधि में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक विकासशील देशों में रोजगार ढूंढ रही महिलाओं की संख्‍या 24.9 फीसदी है, वहीं पुरुषों की संख्‍या 16.6 फीसदी है.  


बेरोजगारी एक तेजी से बढ़ता हुआ वैश्चिक संकट है और इसके मानकों पर दोनों की समूहों की स्थिति कोई बेहतर नहीं है. लेकिन‍ फिर भी पुरुषों की स्थिति महिलाओं के मुकाबले अपेक्षाकृत बेहतर है.


साथ ही य‍ह रिपोर्ट स्‍त्री-पुरुष के बीच आय की असमानता को भी रेखांकित करती है. रिपोर्ट के मुताबिक समान आयु समूह और समान काम कर रहे पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की आय 70 फीसदी तक कम है. जिस काम का पुरुष को एक डॉलर मिलता है, वहीं स्‍त्री को 29 से 33 सेंट्स.  


इसी के साथ विमेंस डे के दिन ही जारी हुई Wells Fargo की एक नई रिपोर्ट एक अलग ही तरह का आंकड़ा पेश कर रही है. इस रिपोर्ट के मुताबिक आज लेबर मार्केट में अनमैरिड (कभी शादी न करने वाली) महिलाओं की संख्‍या बढ़ी है, लेकिन इसी के साथ अनमैरिड महिलाओं की टोटल वेल्‍थ अनमैरिड पुरुषों के मुकाबले कम हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक दोनों के बीच खाई पिछले एक दशक में बढ़ गई है.


खाई तो बढ़ ही रही है. एक ओर विवाहित और नौकरी न करने वाली महिलाओं के पास अपनी कोई संपत्ति नहीं है, वहीं कामकाजी और शादी न करने वाली महिलाओं की संपत्ति भी शादीशुदा और गैरशादीशुदा, दोनों प्रकार के पुरुषों से अपेक्षाकृत बहुत कम है.