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महाराष्ट्र: किसानों ने पान की खेती के लिए बीमा कवच दिये जाने की उठाई मांग

महाराष्ट्र: किसानों ने पान की खेती के लिए बीमा कवच दिये जाने की उठाई मांग

Thursday January 02, 2020 , 3 min Read

महाराष्ट्र के संकटग्रस्त पान पत्ते की खेती करने वाले किसानों ने उन्हें बीमा कवच प्रदान किये जाने की मांग की है। उनका दावा है कि पर्याप्त वित्तीय जोखिमों के कारण पान की खेती लगभग बंद हो गई है।


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फोटो क्रेडिट: youthkiawaaz



कृषि विभाग के एक अधिकारी ने बुधवार को स्वीकार किया कि औरंगाबाद के जालना और अन्य क्षेत्रों में पान पत्ते की खेती में कमी आई है। उन्होंने कहा कि पान की खेती बीमा कवच की श्रेणी में नहीं आती है।


उन्होंने यह भी कहा कि बाजार में पान पत्ते की मांग घटने और इसकी खेती के लिए अधिक पानी की आवश्यकता इसकी खेती के रास्ते में बाधा बन रहे हैं।


कुछ साल पहले तक, औरंगाबाद के जालना और जलगाँव जिलों में पान की खेती की जाती थी।


किसानों ने कहा कि गेहूं, धान और मक्का जैसी अन्य फसलों के विपरीत पान की खेती करने वाले किसानों को प्राकृतिक आपदा जैसी स्थिति में कोई मुआवजा नहीं मिलता है।


जालना जिले के भरत बद्रुक गांव के किसान तुलशीराम पयघन ने पीटीआई-भाषा को बताया,

“पान पत्ते की खेती के रकबे में कमी आई है क्योंकि फसल बीमा योजना उपलब्ध नहीं होने के कारण स्थानीय काश्तकारों ने इसे उगाना बंद कर दिया है। प्राकृतिक आपदा की स्थिति में, किसानों को सब कुछ खोना पड़ जाता है।’’



जालना के एक और किसान ने दावा किया कि उनके क्षेत्र में बिक्री के लिए भेजे जाने वाले पान पत्ते की खेप वर्ष 2005 के प्रति सप्ताह चार ट्रक के मुकाबले घटकर अब एक मिनी ट्रक प्रति सप्ताह रह गया है।


उन्होंने कहा कि उनके गांव में पान की खेती का रकबा है वर्ष 2004 के 150 हेक्टेयर के मुकाबले अब 25 से 30 हेक्टेयर ही रह गया है।


आपको बता दें कि भारतवर्ष में पान की खेती अलग.-2 क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार से की जाती है जैसे-दक्षिण भारत मेे जहां वर्षा अधिक होती है तथा आर्द्रता अधिक होती है, में पान प्राकृतिक परिस्थितियों में किया जाता है। इसी प्रकार आसाम तथा पूर्वोत्तर भारत में जहां वर्षा अधिक होती है व तापमान सामान्य रहता है, में भी पान की खेती प्राकृतिक रूप में की जाती है।


जबकि उत्तर भारत में जहां कडाके की गर्मी तथा सर्दी पडती है, में पान की खेती संरक्षित खेती के रूप में की जाती है।इन क्षेत्रों में पान का प्राकृतिक साधनों (बांस,घास आदि) का प्रयोग कर बरेजों का निर्माण किया जाता है तथा उनमें पान की आवश्यकतानुसार नमी की व्यवस्था कर बरेजों में कृत्रिम आर्द्रता की जाती है, जिससे कि पान के बेलों का उचित विकास हो सके


(Edited by रविकांत पारीक )