मिलें अंतर्राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल खिलाड़ी गीता चौहान से, जिनके हौसले के सामने बौनी साबित हुईं सारी मुश्किलें
गीता ने अपनी शारीरिक क्षमता को लेकर लगे सारे कयासों को दरकिनार करते हुए बड़े सपने देखे और उन्हें पूरा करने की लड़ाई भी लड़ी है। आज वे बतौर अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी देश का नाम रोशन कर रही हैं।
गीता देश के तमाम उन बच्चों और युवाओं के लिए प्रेरणाश्रोत हैं जो शारीरिक तौर पर सामान्य रूप से सक्षम नहीं हैं और अपने भविष्य के लिए सभी रास्तों को बंद मानते हैं। गीता इंटरनेशनल व्हीलचेयर बास्केटबॉल प्लेयर हैं और थाईलैंड जैसे कई देशों में जाकर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। इसी के साथ गीता राष्ट्रिय स्तर पर महाराष्ट्र की तरफ से व्हीलचेयर टेनिस भी खेलती हैं।
गीता महज 6 साल की थीं जब उन्हे पोलियो ने जकड़ लिया। गीता बताती हैं कि बचपन में ही इस तरह की बीमारी की चपेट में आ जाने से आगे की यात्रा में कठिनाइयाँ अपने आप ही बढ़ जाती हैं। इसी के साथ गीता को आगे बढ़ने के अपने जुनून को बनाए रखने के लिए परिवार के सदस्यों से भी लड़ाई लड़नी पड़ी।
इस बारे में बात करते हुए गीता कहती हैं,
“पिता का मानना था कि मुझे घर पर रहना चाहिए, बजाय इसके कि मैं बाहर जाऊँ और पढ़ाई करूँ, लेकिन मैं पढ़ना चाहती थी। मुझे अपने लिए और इस देश के लिए कुछ करना था।”
गीता ने जब शिक्षा ग्रहण करने के लिए आगे बढ़ने का प्रयास किया तब भी उन्हे कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। एक समय में उन्हे कई स्कूलों ने एडमिशन देने से मना कर दिया था।
उन दिनों को याद करते हुए गीता कहती हैं,,
“मुझे पढ़ाई के लिए भी स्कूलों में दाखिला मिलने में मुश्किल होती थी। निजी स्कूलों ने मुझे दाखिले के लिए मना ही कर दिया था। लोग मेरे पास बैठना भी पसंद नहीं करते थे, उन्हे लगता था मुझे छूने से उन्हे भी यह बीमारी हो जाएगी।”
दोस्तों का मिला साथ
भले ही गीता को उनके पिता से वो समर्थन ना मिला हो, लेकिन मुश्किल वक्त के दौरान गीता की माँ और उनकी बहन ने उनकी काफी मदद की। गीता उस दौरान अवसाद से गुज़र रही थीं और उन्होने अपना घर छोड़ दिया, तब गीता के दोस्तों ने उनकी बेहद मदद की।
दोस्तों की मदद से गीता ने अपने कॉलेज के दिनों में कुछ नौकरियाँ भी कीं। गीता ने फाइनेंस क्षेत्र में भी काफी सालों तक नौकरी की और फिर वे धीरे से बिजनेस की तरफ भी मुड़ गईं। गीता के अनुसार उन्होने दोस्तों की मदद से टेक्सटाइल से जुड़ा एक व्यवसाय भी शुरू किया, जिसे तहत आज मुंबई में उनकी छोटी सी दुकान भी है।
खेल ने दिखाई नई दिशा
लगातार संघर्ष के दौरान आगे बढ़ने के दौरान गीता ने जाना कि शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए भी स्पोर्ट्स हैं और गीता को अपने लिए यहीं से एक उम्मीद की किरण नज़र आई। गीता ने मुंबई की वीमेन व्हीलचेयर बास्केटबॉल टीम को जॉइन करने का निर्णय लिया।
व्हीलचेयर पर रहते हुए खेलों से जुड़ना उतना आसान नहीं है। इसपर बात करते हुए गीता बताती हैं,
“हमें प्रैक्टिस पर फोकस करना होता है और उस दौरान शरीर के ऊपरी हिस्से, कंधे और घुटनों का मजबूत होना बेहद जरूरी है। खेलने के समय पीठ में बेहद दर्द रहता है, इसलिए हमारी रीढ़ की हड्डी भी लचीली और मजबूत होनी चाहिए।”
खेल के दौरान सामने आने वाली मुश्किलों के बारे में बात करते हुए गीता कहती हैं कि खेल के दौरान अगर कोई खिलाड़ी मैदान पर गिरता है तो कोई उठाने नहीं आता है, जब तक रेफरी अनुमति नहीं देते हैं कोच भी मदद करने के लिए मैदान पर नहीं आ सकते हैं।
वह बताती हैं,
“मैंने इस डर से बाहर आने के लिए खूब प्रैक्टिस की है। मैं गिरती हूँ तो साथी खिलाड़ियों की मदद लेकर खुद उठ जाती हूँ। जब मैं मैदान पर खेलने जाती हूँ तो मुझे अपनी कोई परेशानी याद नहीं रहती हैं। उस समय मेरे लिए खेलना ही एक लक्ष्य होता है। तब मैं सिर्फ मैं खेल का लुत्फ़ उठाती हूँ।”
गीता साल 2019 में थाईलैंड में पैराओलंपिक क्वालिफायर खेलने गई टीम की सदस्य थीं। गीता साल 2018 और 2019 में नेशनल व्हीलचेयर बास्केटबॉल चैंपियन टीम की सदस्य रही हैं। इसी के साथ उन्होने टेनिस और मैराथन में भी बेहतरीन प्रदर्शन किया है।
मिला सम्मान
अपने जीवन को औरों के लिए एक प्रेरणाश्रोत की तरह तरह सँवारने वाली गीता को आज वो सम्मान हासिल है जिसकी उन्होने कभी कल्पना की थी। गीता कहती हैं,
“पहले सम्मान नहीं मिलता था, लेकिन आज लोग पूछते हैं, सम्मान देते हैं। आज लोगों को भी यह समझ आता है कि हम बहुत कुछ कर सकते हैं।”
फिलहाल गीता बास्केटबॉल और टेनिस को अपना पूरा समय देती हैं। गीता सपनों का पीछा करते हुए आगे बढ़ रहे युवाओं को भी यही कहती हैं कि ‘जिंदगी में लाख मुसीबतें आ जाएँ, लेकिन कभी उम्मीद मत खोना।’