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मौज-मस्ती की उम्र में दो भाइयों ने खड़ा कर दिया बिजनेस, सिर्फ 1 लाख से की थी शुरुआत, यूनीक है Business Model

महज 23 साल के अक्षत अग्रवाल ने अपने 21 साल के भाई अभिषेक अग्रवाल के साथ मिलकर बेबी केयर बिजनेस शुरू किया है. वह नेचुरल बेबी केयर प्रोडक्ट बनाते हैं. उनका बिजनेस मॉडल बाकी बिजनेस की तुलना में बहुत ही यूनीक है.

मौज-मस्ती की उम्र में दो भाइयों ने खड़ा कर दिया बिजनेस, सिर्फ 1 लाख से की थी शुरुआत, यूनीक है Business Model

Tuesday March 14, 2023 , 8 min Read

तेजी से बढ़ते स्टार्टअप (Startup) कल्चर के बीच तमाम तरह के प्रोडक्ट सामने आ रहे हैं. बच्चों और बड़ों से लेकर बूढ़ों तक के लिए प्रोडक्ट बन रहे हैं. हालांकि, अधिकतर स्टार्टअप का पहला फोकस होते हैं टीयर-1 शहर और मेट्रो शहर. जब वह अच्छे से स्टेबलिश हो जाते हैं तो फिर टीयर-2, टीयर-3 शहरों या रूरल इलाकों तक अपना प्रोडक्ट ले जाते हैं. बिहार के सीतामढ़ी में रहने वाले अक्षत अग्रवाल ने यहां एक गैप देखा और इस समस्या का समाधान करते हुए कोई बिजनेस करने पर रिसर्च करने लगे. अक्षत को आखिरकार बच्चों के लिए नेचुरल प्रोडक्ट (Baby Care Natural Products) बनाने में दिलचस्पी दिखी. इसके बाद उन्होंने सितंबर 2022 में शुरुआत की Shishu स्टार्टअप की, जो बच्चों के लिए नेचुरल प्रोडक्ट बनाता है.

महज 23 साल के अक्षत अग्रवाल का फैमिली बैकग्राउंड बिजनेस का ही है, ऐसे में हमेशा से ही उनकी रुचि बिजनेस में रही. अक्षत के पिता का फार्मास्युटिकल सेक्टर में डिस्ट्रीब्यूशन का बिजनेस है. इस बिजनेस को अक्षत के दादाजी ने शुरू किया था और अब उसे उनके पिता इसे चलाते हैं, जो टॉप फार्मा कंपनियों के डिस्ट्रीब्यूटर हैं. अक्षत के पिता भी चाहते थे कि उनके बच्चे या तो बिजनेस में हाथ बंटाएं या फिर अपना बिजनेस करें. अक्षत ने अपना बिजनेस करने की सोची और अपने छोटे भाई अभिषेक अग्रवाल (21 साल) के साथ मिलकर शिशु की शुरुआत की. अक्षत को यह नाम (shishu) इतना पसंद था कि फरवरी 2021 में ही उन्होंने इसे रजिस्टर करवा लिया था.

बच्चों का सेगमेंट ही क्यों चुना बिजनेस के लिए?

अक्षत ने बच्चों का सेगमेंट इसलिए चुना क्योंकि उनके लिए जो भी कंपनियां नेचुरल प्रोडक्ट बना रही थीं, वह सिर्फ टीयर-1 शहरों या मेट्रो पर फोकस कर रही थीं. ऐसे में उनकी प्राइसिंग भी उन्ही शहरों को ध्यान में रखकर तय की गई थी. यहां अक्षत को एक बड़ा गैप दिखा और बिजनेस का मौका भी दिखा. ऐसे में उन्होंने सोचा कि वह टीयर-2 और टीयर-3 शहरों के साथ-साथ रूरल इलाकों पर फोकस करेंगे. उन्होंने बच्चों के लिए जो नेचुरल प्रोडक्ट बनाए हैं, उनका प्राइस प्वाइंट भी यह ध्यान में रखकर तय किया है कि प्रोडक्ट ज्यादा महंगा ना हो. टीयर-1 को तो वह टारगेट ही नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि वहां कॉम्पटीशन बहुत है.

अक्षत को बेबी केयर कैटेगरी में कुछ बड़ी दिक्कतें देखने को मिलीं. पहली ये कि इस कैटेगरी में टीयर-2, टीयर-3 और रूरल इलाकों को अब तक नजरअंदाज किया गया है. नेचुरल का चलन तेजी से शुरू तो हुआ है, लेकिन सिर्फ मेट्रो और टीयर-1 शहरों तक ही लिमिटेड है. जब तक ये ब्रांड टीयर-2 और टीयर-3 शहर या फिर रूरल इलाकों में जाने की सोचते हैं, तब तक मेट्रो शहरों में ही कोई कॉम्पटीशन आ जाता है और ब्रांड उसी में उलझ कर रह जाते हैं. उन्होंने ये भी देखा कि लोगों में ब्रांड लॉयल्टी नहीं आ पा रही है, क्योंकि मेट्रो और टीयर-1 शहरों में लोगों के सामने विकल्प बहुत सारे हैं. इसके चलते भी अक्षत ने टीयर-2 और टीयर-3 शहरों पर फोकस करने की सोची. इन शहरों में अगर लोग किसी ब्रांड के लिए लॉयल हो जाते हैं तो लंबे वक्त तक उसे इस्तेमाल करते हैं, जिससे कंपनी की प्रॉफिटेबिलिटी बढ़ती है.

सिर्फ 1 लाख रुपये से की शुरुआत!

इस बिजनेस को अक्षत ने अपने पिता से सिर्फ 1 लाख रुपये लेकर शुरू किया था. उनके पिता ने अलग-अलग स्टेप पर अक्षत को बिजनेस के लिए पैसे दिए. वह अलग-अलग काम के लिए पैसे देते थे और अगर उस बजट में काम पूरा हो जाता तो अगले काम के लिए पैसे देते. जैसे शुरुआती 1 लाख रुपये में अक्षत को अपने पिता को इनग्रेडिएंट रिसर्च, फॉर्मूलेशन और प्रोडक्ट कहां बनेगा ये सब फाइनल कर के देना था और उन्होंने यह सब किया भी. अब तक वह इस बिजनेस में करीब 25-30 लाख रुपये का निवेश कर चुके हैं.

यूनीक बिजनेस मॉडल चुना

आज के दौर में जहां हर स्टार्टअप ऑनलाइन चैनल के जरिए अपनी सेल्स बढ़ा रहा है, वहीं अक्षत डिस्ट्रीब्यूशन मॉडल से जरिए मार्केट में उतर रहे हैं. इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि वह जिन इलाकों को टारगेट कर रहे हैं, वहां ऑनलाइन माध्यम से सेल्स बहुत कम होती है. अक्षत कहते हैं कि किसी भी एफएमसीजी ब्रांड को बड़ा बनना है तो वह सिर्फ ऑनलाइन चैनल से नहीं बन सकता है. बड़ा बनने के लिए उसे ऑफलाइन मार्केट में उतरना ही होगा. इसके लिए वह डिस्ट्रीब्यूटर्स का नेटवर्क तैयार कर रहे हैं, जिनके जरिए उनके प्रोडक्ट तमाम इलाकों में पहुंचेंगे. वहीं अगर ऑनलाइन माध्यम से उन्हें कोई ऑर्डर आएगा तो उसकी सप्लाई भी उस इलाके के डिस्ट्रीब्यूटर के जरिए ही होगी, ना कि सीधे कंपनी से. ऐसे में डिस्ट्रीब्यूटर का मुनाफा भी नहीं जाएगा और ऑफलाइन के साथ-साथ ऑनलाइन मार्केट भी कैटर हो जाएगा.

डिस्ट्रीब्यूटर्स के जरिए बिजनेस करने का एक बड़ा फायदा ये भी है कि डेली वर्क फ्लो में तमाम ऑपरेशन में काफी मदद मिलेगी. साथ ही वह क्विक कॉमर्स के जरिए भी लोगों तक सामान पहुंचा सकेंगे. डिस्ट्रीब्यूटर उसी इलाके का होगा तो ज्यादा से ज्यादा 1 दिन में लोगों को सामान की डिलीवरी हो जाएगी. वहीं ऑनलाइन ऑर्डर भी डिस्ट्रीब्यूटर से जाएंगे तो वह ऑनलाइन को कॉम्पटीशन की तरह नहीं, बल्कि कमाई के एक अतिरिक्त जरिए की तरह देखेगा.

shishu

डिस्ट्रीब्यूटर्स के साथ बिजनेस होता है प्रॉफिटेबल

पुराने दौर की बात करते हुए अक्षत कहते हैं कि करीब 10 साल पहले ऑनलाइन बूम ज्यादा नहीं था तो एफएमसीजी कंपनी का हर शहर में एक्सक्लूसिव डिस्ट्रीब्यूटर होता था. वहां से सामान रिटेलर को मिलता था. डिस्ट्रीब्यूटर ही ब्रांड की मोनोपोली होल्ड करता था और सिर्फ 2-3 फीसदी मार्जिन में भी काम करता था. कंपनी के पास सारा डेटा होता था कि किस मार्केट के कब और कितना ऑर्डर आएगा, ऐसे में वह कंपनी को एडवांस में भुगतान देता था. इससे कंपनी को भी कैश की दिक्कत नहीं होती थी. हालांकि, डिस्ट्रीब्यूटरशिप के मॉडल में एक दिक्कत ये है कि कंपनी का मार्जिन कम हो जाता है. हालांकि, अगर बड़े वॉल्यूम पर बिजनेस हो तो मार्जिन कम होने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है.

10 से भी ज्यादा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध

शिशु के प्रोडक्ट अभी कई ऑफलाइन स्टोर के साथ-साथ 10 से भी ज्यादा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं. इसमें अमेजन, फ्लिपकार्ट, जियो मार्ट, मीशो, 1 एमजी जैसे तमाम प्लेटफॉर्म शामिल हैं. मौजूदा वक्त में जिन जगहों पर शिशु के डिस्ट्रीब्यूटर नहीं हैं, वहां पर कंपनी सीधे माल डिलीवर कर रही है, जबकि जहां डिस्ट्रीब्यूटर हैं, वहां के ऑनलाइन ऑर्डर डिस्ट्रीब्यूटर के जरिए जा रहे हैं.

प्राइसिंग का रखा पूरा ध्यान

छोटी जगह में अगर नेचुरल प्रोडक्ट बेचना है तो यह भी ध्यान रखना होगा कि उसकी कीमत बहुत ज्यादा ना हो. ऐसे में जहां बाजार में बाकी कंपनियों के नेचुरल प्रोडक्ट्स के दाम तमाम ट्रैडिशनल प्रोडक्ट की तुलना में करीब दोगुने हैं, अक्षत ने इसे काफी कम रखा है. अक्षत बताते हैं कि उनके प्रोडक्ट्स के दाम ट्रैडिशनल से मामूली महंगे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर प्राइस अधिक होगा तो ग्राहक ट्रैडिशनल पर ही सिमट जाएगा. कीमत कम करने के लिए अक्षत ने अपने प्रोडक्ट्स में कुछ इनग्रेडिएंट्स को कम किया है. वह दावा करते हैं अगर बहुत सारी चीजें मिलाकर नेचुरल प्रोडक्ट बनाए जाते हैं तो इससे एलर्जी के चांस भी बढ़ते हैं.

प्राइसिंग सेट करते वक्त अक्षत ने छोटे साइज पर काफी फोकस किया है, क्योंकि छोटी जगहों में लोग ज्यादा महंगे प्रोडक्ट खरीदने के बजाय कई बार छोटे-छोटे और सस्ते प्रोडक्ट खरीदना पसंद करते हैं. तमाम कंपनियों की भी असली कमाई 1-2 रुपये के शैशे से खूब होती है, बजाय उनकी बड़ी बोतलों के. जहां कैमिकल्स वाले प्रोडक्ट्स की उम्र यानी शेल्फ लाइफ करीब 3 साल होती है, नेचुरल प्रोडक्ट्स लगभग 2 साल तक ही चलते हैं. अभी तक शिशु का एवरेज ऑर्डर वैल्यू करीब 200 रुपये है, ऐसे में पुश स्ट्रेटेजी के बजाय अक्षत पुल स्ट्रेटेजी पर काम कर रहे हैं. वह अपने प्रोडक्ट को इतना बेहतर बनाना चाहते हैं कि खुद तमाम ई-कॉमर्स बिजनेस उनसे प्रोडक्ट की डिमांड करें.

चुनौतियां भी कम नहीं

अक्षत बताते हैं कि अभी वह अपने बिजनेस के शुरुआती दौर में हैं और उनके सामने फंड एक बड़ी चुनौती है. अभी तक तो उनका स्टार्टअप पूरी तरह से बूटस्ट्रैप्ड है, लेकिन जल्द ही वह फंडिंग लेने पर विचार कर रहे हैं. इसे लेकर उन्होंने बातचीत भी शुरू कर दी है. वहीं उन्होंने जो बिजनेस मॉडल चुना है, उसमें डिस्ट्रीब्यूटर को पहले ये भरोसा दिलाना जरूरी है कि उनका प्रोडक्ट बिकेगा और मुनाफा होगा. तो अभी डिस्ट्रीब्यूटर का नेटवर्क बनाना भी बड़ी चुनौती है. अक्षत कहते हैं कि ऑफलाइन बिजनेस में ग्राहक ढूंढना थोड़ा मुश्किल होता है, लेकिन अगर ग्राहक मिल गया तो मुनाफा तय समझिए, जबकि ऑनलाइन मॉडल में ग्राहक तेजी से स्विच कर जाता है.