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सस्ती हवाई यात्रा को हकीकत बनाने वाले कैप्टन गोपीनाथ की कहानी, 1 रु में भी करा दिया था सफर

इंडियन आर्मी के रिटायर्ड कैप्टन और बिजनेसमैन जीआर गोपीनाथ वह शख्स थे, जिन्होंने देश में सस्ते हवाई सफर के सपने को न सिर्फ देखा बल्कि उसे हकीकत में तब्दील भी किया.

सस्ती हवाई यात्रा को हकीकत बनाने वाले कैप्टन गोपीनाथ की कहानी, 1 रु में भी करा दिया था सफर

Sunday June 26, 2022 , 6 min Read

दिग्गज निवेशक राकेश झुनझुनवाला (Rakesh Jhunjhunwala) समर्थित Akasa Air का पहला विमान आ गया है. आकासा एयर ब्रांड नाम से SNV Aviation Pvt. Ltd. भारतीय विमानन सेक्टर में उतर रही है. हो सकता है कि जुलाई के आखिर तक इसकी उड़ानें शुरू हो जाएं. आकासा एयर के फाउंडर, एमडी व सीईओ विनय दुबे का कहना है कि कंपनी भारत की ग्रीनेस्ट, मोस्ट डिपेंडेबल और मोस्ट अफोर्डेबल एयरलाइन लाना चाहती है.

भारतीय विमानन सेक्टर में मोस्ट अफोर्डेबल एयरलाइन की बात चले तो जीआर गोपीनाथ (G.R. Gopinath) का जिक्र करना जरूरी हो जाता है. इंडियन आर्मी के रिटायर्ड कैप्टन और बिजनेसमैन जीआर गोपीनाथ वह शख्स थे, जिन्होंने देश में सस्ते हवाई सफर के सपने को न सिर्फ देखा बल्कि उसे हकीकत में तब्दील भी किया. कभी बैलगाड़ी से सफर करने वाले कैप्टन गोपीनाथ ने खुद की एयरलाइंस खड़ी की, जिसका नाम था 'एयर डेक्कन' (Air Deccan)...

पूरा नाम गोरुर रामास्वामी अयंगर गोपीनाथ

कैप्टन गोपीनाथ का पूरा नाम गोरुर रामास्वामी अयंगर गोपीनाथ है. उनका जन्म 13 नवंबर 1951 को कर्नाटक के हासन जिले के एक छोटे से गांव गोरुर में हुआ था. पिता शिक्षक थे और खेती का काम भी करते थे, जबकि मां गृहिणी थीं. शुरुआत में गोपीनाथ की पढ़ाई घर पर ही हुई और उनका स्कूल में दाखिला देरी से सीधे कक्षा 5 में हुआ. 1962 में गोपीनाथ को बीजापुर के सैनिक स्कूल में दाखिला मिला और फिर एनडीए में उनका सिलेक्शन. 3 साल की ट्रेनिंग के बाद उनकी एनडीए, पुणे से पढ़ाई पूरी हुई और फिर उन्होंने इंडियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून से ग्रेजुएशन किया.

आर्मी में केवल 8 साल बिताए

कैप्टन गोपीनाथ साल 1971-72 में हुई बांग्लादेश की लड़ाई तक आर्मी में रहे. उन्होंने 8 साल बाद ही 28 वर्ष की उम्र में आर्मी से रिटायरमेंट ले लिया. कुछ नया करना चाहते थे वह, इसलिए दोस्तों से मदद लेकर उन्होंने सिल्क की खेती, डेयरी फार्मिंग, पोल्ट्री फार्मिंग, मोटरसाइकिल डीलरशिप और हॉस्पिटैलिटी जैसे कई बिजनेस में हाथ आजमाया. इसके बाद साल 1997 में एक निजी कंपनी डेक्कन एविएशन (Deccan Aviation) के तौर पर अपनी हेलिकॉप्टर सेवा शुरू की. उनका उद्देश्य वीआईपी लोगों के लिए चार्टर्ड हेलीकॉप्टर की सेवा को उपलब्ध कराना था. उनकी कंपनी का कहना था कि मैप पर कोई भी जगह दिखाइए, हम आपको वहां तक पहुंचाएंगे.

फिर आया सस्ती विमानन सर्विस शुरू करने का आइडिया

कैप्टन गोपीनाथ को सस्ती विमानन सर्विस शुरू करने का ख्याल साल 2000 में उस वक्त आया, जब वह अमेरिका में छुट्टियां मनाने गए थे. फीनिक्स में उन्होंने एक स्थानीय एयरपोर्ट देखा, जहां से लगभग एक हजार उड़ानें संचालित होती थीं और जो हर दिन करीब एक लाख यात्रियों को सर्विस देती थीं. ऐसा तब था जब फीनिक्स एयरपोर्ट अमेरिका के टॉप एयरपोर्ट में शामिल भी नहीं था. उस वक्त भारत के 40 एयरपोर्ट मिलकर भी इतनी उड़ानें संचालित नहीं कर पा रहे थे. पूरे भारत में केवल 420 कमर्शियल उड़ानें संचालित हो रही थीं. अमेरिका से कैप्टन गोपीनाथ जब लौटे तो उन्होंने ठान लिया था कि वह देश में आम आदमी को हवाई जहाज में बैठने की सुविधा उपलब्ध कराएंगे.

साल 2003 में एयर डेक्कन हुई शुरू

इसके बाद कैप्टन गोपीनाथ ने अगस्त 2003 में 48 सीटों और दो इंजन वाले 6 फिक्स्ड-विंग टर्बोप्रॉप हवाई जहाजों के बेड़े के साथ एयर डेक्कन को शुरू किया. 'ईजीजेट' और 'रायनएयर' जैसी यूरोपीय बजट एयरलाइन्स से प्रेरणा लेकर इसे शुरू किया गया था. एयर डेक्कन की पहली उड़ान बेंगलुरु से हुबली तक 23 अगस्त 2003 को संचालित हुई. धीरे-धीरे कंपनी के चर्चे लोगों के कानों तक पहुंचने लगे. यह भारत की पहली लो कॉस्ट एयरलाइंस थी, जो आम आदमी की एयरलाइन के रूप में लोकप्रिय हो रही थी. प्रतिद्वंदी विमानन कंपनियों के मुकाबले एयर डेक्कन की हवाई टिकट की कीमतें लगभग आधी थीं. साल 2007 में देश के 67 हवाईअड्डों से एक दिन में एयर डेक्कन की 380 उड़ानें संचालित हो रही थीं. जब कंपनी शुरू हुई, उस वक्त रोज केवल 2000 लोग एयर डेक्कन फ्लाइट्स से यात्रा कर रहे थे लेकिन 2007 आते-आते हर रोज 25000 लोग सस्ती कीमत पर हवाई यात्रा करने लगे. एयर डेक्कन की टैगलाइन थी 'सिंपली फ्लाई'.

बाकी एयरलाइंस से कैसे सस्ती मिल रही थी टिकट

'एयर डेक्कन' की टिकट बाकी एयरलाइंस की तुलना में इसलिए सस्ती थी क्योंकि यह एक 'नो फ्रिल्स एयरलाइंस' (No Frills Airlines) थी. नो फ्रिल्स एयरलाइंस मतलब ऐसी विमान सेवा, जिसमें यात्रियों को केवल जरूरी सुविधाएं ही मिलती हैं. कोई प्रीमियम या लग्जरी सर्विस नहीं होती है, इसलिए हवाई यात्रा सस्ती होती है. हवाई सफर सस्ता बनाने के लिए इन-फ्लाइट एंटरटेनमेंट, फ्लाइट के दौरान खाने और बिजनेस क्लास सीटिंग जैसी गैर-जरूरी सुविधाओं को नहीं रखा जाता. सरल शब्दों में केवल फ्लाइट में बैठकर हवाई रूट से आना और जाना.

1 रुपये में भी कराया हवाई सफर

एयर डेक्कन को 1 रुपये में हवाई सफर वाली विमानन कंपनी के तौर पर भी याद किया जाता है. दरअसल साल 2005 में कैप्टन गोपीनाथ ने घोषणा की कि वह एक रुपये में लोगों के लिए हवाई यात्रा मुमकिन बनाएंगे. इसके लिए एयर डेक्कन ने 'डाइनैमिक प्रांइसिंग' व्यवस्था शुरू की. इस व्यवस्था के तहत पहले टिकट खरीदने वाले कुछ उपभोक्ता मात्र एक रुपये में यात्रा कर सकते थे और जो लोग देर से टिकट खरीदते थे उन्हें टिकट की अधिक कीमत देनी होती थी. हालांकि फिर भी दूसरी कंपनियों के मुकाबले टिकट काफी सस्ती रहती थी. एयर डेक्कन के एक रुपये के टिकट पर करीब तीस लाख लोगों ने हवाई सफर किया था.

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यूं बंद हुई कंपनी

जैसे-जैसे वक्त गुजरा एयर डेक्कन घाटे में जाती गई. अक्टूबर 2007 में एयर डेक्कन का नाम बदलकर सिंप्लीफ्लाई डेक्कन हो गया. फिर आया अप्रैल 2008, जब कैप्टन गोपीनाथ ने एयर डेक्कन को शराब व्यवसायी विजय माल्या (Vijay Mallya) की कंपनी किंगफिशर को बेच दिया. सिंप्लीफ्लाई डेक्कन, किंगफिशर एयरलाइन्स में मर्ज हो गई. इसके बाद माल्या ने अगस्त 2008 में एयर डेक्कन को एक नया नाम 'किंगफिशर रेड' दिया. कैप्टन गोपीनाथ को लगा था कि भले ही वह एयर डेक्कन के साथ नहीं हैं लेकिन उनका सपना हवाई उड़ान भरता रहेगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका क्योंकि 2008 आते-आते देश के विमानन क्षेत्र में कई और विमानन कंपनियां उतर चुकी थीं, जो उपभोक्ताओं को सस्ती हवाई यात्रा करा रही थीं. कैप्टन गोपीनाथ के अजीज सपने को विजय माल्या संजो नहीं पाए और आखिरकार किंगफिशर रेड साल 2011 में बंद हो गई.