Chelpark Ink: वह पॉपुलर स्याही ब्रांड, जो आज अतीत बन चुका है
चेलपार्क कंपनी प्राइवेट लिमिटेड...भारत में फाउंटेन पेन स्याही के सबसे पुराने मैन्युफैक्चरर्स में से एक.
एक वक्त था, जब अच्छी हैंडराइटिंग को अच्छे कैरेक्टर की निशानियों में से एक माना जाता था. जब परीक्षा में अच्छी हैंडराइटिंग के एक्स्ट्रा मार्क्स भी हुआ करते थे. जमाना कर्सिव हैंडराइटिंग का...जब फाउंटेन पेन्स और उनकी स्याही हर घर में मौजूद हुआ करती थी. स्कूल की यूनिफॉर्म और हाथ की अंगुलियों पर स्याही के धब्बे होना आम बात थी. उस दौर में भारत में मौजूद फाउंटेन पेन इंक ब्रांड्स में एक नाम चेलपार्क (Chelpark) का भी था.
चेलपार्क कंपनी प्राइवेट लिमिटेड...भारत में फाउंटेन पेन स्याही के सबसे पुराने मैन्युफैक्चरर्स में से एक. कंपनी के कारोबार की शुरुआत फाउंटेन पेन की स्याही बनाने से हुई थी और बाद में यह स्टेशनरी प्रॉडक्ट्स भी बनाने लगी. आइए जानते हैं चेलपार्क की क्या है कहानी...
यूं शुरू हुआ सफर
चेलपार्क की शुरुआत भारत में अमेरिका की पार्कर पेन कंपनी की एक सहायक कंपनी के तौर पर हुई थी. दरअसल पार्कर पेन कंपनी, TTK समूह के साथ साझेदारी में भारत में फाउंटेन पेन स्याही का कारोबार करती थी. TTK ग्रुप, भारत का एक बड़ा कारोबारी समूह है. यह कई सेगमेंट के तहत प्रॉडक्ट्स बनाता और बेचता है, जैसे कि कंज्यूर ड्यूरेबल्स, फार्मास्युटिकल्स व सप्लीमेंट्स, बायो मेडिकल डिवाइसेज, मैप्स व एटलस, कांसुलर वीजा सर्विसेज, वर्चुअल असिस्टेंट सर्विसेज, हेल्थकेयर सर्विसेज.
वर्ष 1943 के आसपास पार्कर ने TTK समूह के साथ साझेदारी खत्म करने का फैसला किया. उस वक्त पश्चिम अफ्रीका में पार्कर प्रॉडक्ट्स का व्यापार करने वाले चेलाराम परिवार को भारत में संचालन के लिए पार्कर के साथ जुड़ने के लिए कहा गया. चेलाराम परिवार, पार्कर प्रॉडक्ट्स के बड़े खरीदारों में से एक था.
कैसे मिला 'चेलपार्क' ब्रांडनेम
चेलाराम परिवार और पार्कर के एक-दूसरे की शर्तों पर सहमत होने के बाद, दोनों कंपनियां मिलकर भारत में स्याही का बिजनेस चलाने लगीं. Quink Parker स्याही की कमर्शियल बिक्री की जाने लगी. फिर विचार किया गया कि इस फाउंटेन पेन इंक को एक स्थानीय, भारतीय पहचान दी जानी चाहिए ताकि यह भारतीय ग्राहकों को आकर्षित कर सके. बस फिर क्या था, फैसला किया गया कि स्याही के ब्रांडनेम को बदला जाएगा और परिणाम के तौर पर सामने आया 'चेलपार्क' ब्रांडनेम. इसमें चेलाराम और पार्कर दोनों शामिल थे. इस नए ब्रांडनेम को प्रमोट करने के लिए एक एडवर्टाइजिंग कैंपेन की भी मदद ली गई. एडवर्टिजमेंट में स्याही की बोतल से पार्कर लेबल को हटाया जाना और उसे चेलपार्क लेबल से रिप्लेस किया जाना दिखाया गया.
फिर पार्कर ने छोड़ा साथ
1969 के आसपास पार्कर और चेलाराम परिवार की लंबी पार्टनरशिप खत्म हो गई. वजह थी भारतीय वित्त मंत्रालय द्वारा नीतियों में बदलाव किया जाना. मुनाफा न होने के चलते, पार्कर ने भारत में चेलाराम के साथ फाउंटेन पेन इंक बिजनेस में अपना पूरा हिस्सा बेच दिया. उसके बाद चेलपार्क, जो केवल अपनी फाउंटेन पेन स्याही के लिए जानी जाती थी, ने अपने बिजनेस को डायवर्सिफाई करना शुरू किया. कंपनी ने फाउंटेन पेन इंक के साथ-साथ अन्य ऑफिस स्टेशनरी प्रॉडक्ट्स की भी मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर दी, जिनमें फाउंटेन पेन्स भी शामिल थे.
1985 में हेड ऑफिस किया शिफ्ट
जब चेलाराम परिवार ने बहुलांश शेयर हासिल कर लिए तो कंपनी का नाम बदल दिया. कंपनी का पहला आधिकारिक नाम चेलपार्क कंपनी लिमिटेड था. इसे 1985 में बदलकर चेलपार्क कंपनी प्राइवेट लिमिटेड कर दिया गया और हेड ऑफिस को मद्रास (वर्तमान में चेन्नई), तमिलनाडु से बेंगलुरु, कर्नाटक में शिफ्ट कर दिया गया.
स्याही की उम्दा क्वालिटी ने बनाया पॉपुलर
चेलपार्क की सफलता का राज था इसकी स्याही की क्वालिटी और फाउंटेन पेन्स की निब. चेलपार्क की स्याही एंटी-क्लॉगिंग, नॉन-कॉरोसिव कही जाती थी, जिसे प्रीमियम इंक पेन्स के लिए भी अच्छा माना जाता था. चेलपार्क को स्कूल के बच्चों से लेकर बड़े तक, यहां तक कि एलीट क्लास के लोग भी इस्तेमाल करते थे. चेलपार्क ने कभी भी टीवी या प्रिंट एडवर्टाइजिंग पर बहुत ज्यादा खर्च नहीं किया. इसके बजाय कंपनी का जोर ऑन ग्राउंड एडवर्टाइजिंग पर रहता था, जैसे कि स्कूल की निबंध प्रतियोगिता, टीचर्स को डेमो देना, कैंपस एक्टिविटीज आदि.
आज फाउंटेन पेन्स अतीत की बात
उस दौर में चेलपार्क के अलावा कैमलिन, ब्रिल और सुलेखा इंक भी फाउंटेन पेन इंक के कारोबार में थे. वक्त गुजरने के साथ, बॉलपॉइंट पेन्स और जेल पेन्स मार्केट में आने लगे और फाउंटेन पेन्स घरों और बाजार से नदारद होने लगे. डिमांड न होने से फाउंटेन पेन्स की इंक भी बिकनी और दिखनी बंद हो गई. लिहाजा चेलपार्क इंक और पेन्स भी अतीत का हिस्सा बन गए. हालांकि चेलपार्क के प्रॉडक्ट्स की बिक्री स्पष्ट और पूरी तरह से कब बंद हुई, इसके बारे में कोई डेटा नहीं है.