डेनलांग स्वयं सहायता समूह की सफलता की कहानी
डेनलांग एसएचजी का गठन 2014 में शून्य अधिशेष (जीरो बैलेंस) के साथ किया गया था, लेकिन धीरे-धीरे समूह का काम बढ़ा और अब 2021 में उनके पास लगभग 2.50 लाख रुपये से अधिक की धनराशि हो चुकी है।
डेनलांग स्वयं सहायता समूह (SHG) का गठन एच मखाओ गांव में 2014 में 'साही फाउंडेशन' के माध्यम से उत्तर पूर्वी क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबंधन परियोजना (NERCORMP) की मदद से किया गया था। डेनलांग एसएचजी में अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष सहित 15 सदस्य हैं। स्वयं सहायता समूह की बैठक महीने में दो बार होती है, जिसमें प्रत्येक सदस्य का योगदान केवल रु. 40/- होता है और प्रत्येक माह में वे रु. 80 का योगदान करते हैं। अपनी स्थापना के बाद से एसएचजी बिना किसी बाधा के अच्छी प्रगति कर रहा है। आय अर्जित करने के अलावा इस स्वयं सहायता समूह के माध्यम से गांव में छोटे-छोटे कूड़ेदान लगाकर स्वच्छता बनाए रखने और चिकित्सा उपचार की सुविधा जैसी कई गतिविधियां संचालित की जा रही हैं।
पिछले वर्षों में की गई समूह आय सृजन गतिविधियों में से कुछ मशरूम उत्पादन, पत्तेदार सब्जियां, बुनाई और कुक्कुट पालन थी। इन गतिविधियों को स्वैच्छिक रूप से स्वयं सहायता समूह (SHG) की बैठक में प्रस्ताव पारित होने के बाद शुरू किया गया था, आय सृजन गतिविधि का लाभ उनके समूह खाते में चला जाता है, जिसका अर्थ है कि समूह गतिविधि अपने समूह के माध्यम से हर सदस्य को लाभान्वित करने के लिए थी। वे स्पष्ट रूप से समझ गए थे कि ये सारी बचत उनके लिए ही है।
डेनलांग एसएचजी का गठन 2014 में शून्य अधिशेष (जीरो बैलेंस) के साथ किया गया था, लेकिन धीरे-धीरे समूह का काम बढ़ा और अब 2021 में उनके पास लगभग 2.50 लाख रुपये से अधिक की धनराशि हो चुकी है। इस धनराशि का उपयोग सदस्यों के बीच 2 प्रतिशत ब्याज दर पर परिक्रामी निधि (रिवॉल्विंग फंड) के रूप में किया जाता है। रिवॉल्विंग फंड से आर्थिक उत्थान, छोटे / मझोले व्यापार उद्यमों को खोलने और अकस्मात नुकसान और आपात स्थिति में सुरक्षा के रूप में लाभ मिलता है।
नेंगनेइवा इस स्वयं सहायता समूह की एक सदस्य हैं और जिन्होंने 2015 में एसएचजी से रु. 4000/- का ऋण लिया था। उन्होंने इस धनराशि का उपयोग मुर्गी पालन का छोटा व्यवसाय शुरू करने के लिए किया है, उनके पति के पास परिवार चलाने के लिए कोई स्थायी काम नहीं था लेकिन अब दोनों एक साथ काम करते हैं और अपने उद्यम में सफल हो गए हैं। उन्होंने अपने व्यवसाय का विस्तार भी किया और पहले की तुलना में अब वे आर्थिक रूप से अधिक स्वतंत्र हो गए हैंI आम में हुए लाभ से उन्होंने परिवार की जरूरतों का प्रबंधन करने के साथ ही सुअर पालना भी शुरू किया और अब उनके पास 4 सुअर हैं जिन्हें अच्छी कीमत पर बेचा जा सकता है।
30 वर्षीया लम्नेइकिम भी इस एसएचजी की सदस्य हैंI 2016 में उनका बच्चा गंभीर रूप से बीमार हो गया था और तब उसके पास अपने बच्चे के इलाज के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए उसने समूह से केवल 20,000/- रुपये ले लिए और उस पैसे का उपयोग अपने बच्चे के इलाज के लिए किया। बच्चे का इलाज किया गया और कुछ दिनों के बाद बच्चा स्वस्थ भी हो जाता है। 3 महीने के बाद उन्होंने स्वयं सहायता समूह को पैसे भी वापिस कर दिए।
स्वयं सहायता समूह की सदस्य नेमखोकिम और उनके पति विभिन्न निर्माण स्थलों पर शारीरिक श्रम में लगे हुए थे। लेकिन शारीरिक श्रम के काम से उसके परिवार को शायद ही किसी प्रकार सामाजिक सुरक्षा मिलती थी। वर्ष 2015 में उसने भी एसएचजी से ऋण लिया और उउस धनराशि को बुनाई के लिए कच्चा माल खरीदने के लिए प्रयोग किया। बुनाई उनके लिए एक लाभ कमाने वाली गतिविधि बन गई। इसके बाद उसने फिर से ऋण लिया और डेयरी व्यवसाय में कदम रखा। दो साल के भीतर, वह अपने व्यवसाय का विस्तार करने में सक्षम हो गई और पशुधन उनके लिए एक मूल्यवान संपत्ति बन गया। उसका पति भी उनके साथ कारोबार में शामिल है।
उसने एक और ऋण लिया जिसके साथ उन्होंने अदरक खेती की शुरू कर दी। उपज निकलने के बाद उन्होंने फसल को अच्छे लाभ पर बेच दिया। इस प्रयास ने उन्हें स्वयं सहायता समूहों द्वारा प्रदान किए गए ऋण के माध्यम से अधिक से अधिक वित्तीय स्वतंत्र हासिल करने में सक्षम बनाया दिया है।
स्वयं सहायता समूह एक ऐसे मूल्यवान बैंक के रूप में कार्य करता है जो अपने ग्राहकों को उनकी दैनिक आय आधारित गतिविधि को बढ़ावा देने में सहायता करता है। व्यक्तिगत स्तर पर इसके सदस्य बिना किसी झिझक के प्राप्त ऋण का प्रयोग करके ऐसे उद्यम शुरू कर पाए, जिससे उन्हें लाभ हो सके। इसके अलावा ब्याज केवल 2 प्रतिशत होने से वे ऋण भी चुका सकते थे। धन के वितरण, आवंटन, ब्याज, चुकौती और संवितरण में नियमों और विनियमों का ठीक से पालन किया गया जाता रहा है।
वित्तीय जरूरतों और आर्थिक सहायता के अलावा स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों के बीच उनकी समस्याओं को साझा करके और जरूरत के समय एक-दूसरे की मदद करके अधिक मजबूत सामाजिक जुड़ाव भी प्रदान करता है। स्वयं सहायता समूह चर्च, ग्राम प्राधिकरण, एनएआरएम – जी जैसे मौजूदा संस्थानों की सहायता करने के कारण गाँव के लिए एक बहुमूल्य संपदा भी बन जाता है, एसएचजी के एक सदस्य ने कहा कि उनकी स्थिति अब अधिक स्वतंत्र थी क्योंकि उनके पति बैठकों और गतिविधियों में कोई शिकायत नहीं करते थे। बल्कि वे इसमें आम करने के साथ ही वे हमें अब उस समय सहयोग भी देते हैं जब हम घर के काम में बहुत व्यस्त रहते हैं।