कहानी इटैलियन नाम वाली Bisleri की, जो बन गई भारत में बोतलबंद पानी का दूसरा नाम
बिसलेरी के भारतीय और फिर भारत की सबसे बड़ी पैकेज्ड वॉटर कंपनी में तब्दील होने की कहानी..
भारत की सबसे बड़ी पैकेज्ड वॉटर कंपनी बिसलेरी इंटरनेशनल (Bisleri International) बिकने जा रही है. कंपनी के चेयरमैन रमेश चौहान (Ramesh Chauhan) का कहना है कि वह अपने बोतलबंद पानी के कारोबार ‘बिसलेरी इंटरनेशनल’ को बेचने के लिए खरीदार तलाश रहे हैं. इसके लिए टाटा कंज्यूमर समेत कई कंपनियों से बातचीत चल रही है. कयास हैं कि इस सौदे की रेस में सबसे आगे टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड (TCPL) हो सकती है. हालांकि 82 वर्षीय चौहान ने उन खबरों को खारिज कर दिया है, जिनमें कहा जा रहा था कि बिसलेरी का सौदा TCPL के साथ 7,000 करोड़ रुपये में हो चुका है. चौहान ने स्पष्ट किया है कि समूह की कई संभावित खरीदारों से अभी बात चल रही है.
बिसलेरी...वह नाम जो कभी इटली का ब्रांड था और फिर भारतीय ब्रांड बन गया. आइए जानते हैं बिसलेरी के भारतीय और फिर भारत की सबसे बड़ी पैकेज्ड वॉटर कंपनी में तब्दील होने की कहानी....
1851 में हुई शुरुआत
बिसलेरी वास्तव में इटैलियन एंटरप्रेन्योर Signor Felice Bisleri की कंपनी थी. उन्होंने इसे 1851 में इटली में शुरू किया था. जब इसे शुरू किया गया तो यह एक एल्कोहल रेमेडी ड्रिंक थी, जिसमें सिनकोना यानी कुनैन, जड़ी बूटियां और आयरन सॉल्ट्स थे. Signor Felice Bisleri की 1921 में मौत के बाद उनके बेहद करीबी और फैमिली डॉक्टर, डॉ. Cesari Rossi के हाथ में कंपनी की कमान आ गई और वह मालिक बन गए.
भारत में एंट्री
साल 1965 में Cesari Rossi और भारतीय बिजनेसमैन खुशरू संतूक ने मुंबई के ठाणे में एक फैक्ट्री स्थापित कर सबसे पहले Bisleri बोतलबंद पानी उतारा. दरअसल मुंबई की एक पारसी फैमिली से आने वाले खुशरू संतूक के पिता, डॉ. Cesari Rossi के अच्छे दोस्त भी थे और भारत में बिसलेरी कंपनी के लीगल एडवाइजर भी. उस वक्त Bisleri एंटी-मलेरिया दवा बनाती थी. खुशरू संतूक का परिवार वकीलों से भरा था. यहां तक कि उनके पिता भी अंतरराष्ट्रीय ख्याति के वकील थे. खुशरू ने भी वकालत की पढ़ाई की थी और गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से लॉ की पढ़ाई खत्म करने के बाद वह भी वकालत के पेशे में जाने वाले थे. लेकिन डॉ. Rossi ने खुशरू के साथ व्यवसाय करने और उनके पिता को बिजनेस में हिस्सेदारी देने का ऑफर दिया. इस तरह खुशरू एक्सीडेंटली बिजनेसमैन बन गए.
उस वक्त बॉम्बे (वर्तमान नाम मुंबई) में पानी की गुणवत्ता काफी खराब थी और इसलिए लोगों को बीमारियां हो जाया करती थीं. इसी वजह से डॉ. रोसी को बोतलबंद पानी के व्यवसाय में बड़ी संभावनाएं दिखीं. लेकिन बोतलबंद पानी के बारे में सोचना तो और भी रिस्की था क्योंकि एक तो यह प्रतिबंधित था और दूसरा इसे पीना लग्जरी समझा जाता था. जब खुशरू और डॉ. रोसी ने बोतलबंद पानी के व्यवसाय को चुना तो कई लोगों ने उन्हें पागल करार भी दिया.
क्यों उड़ाया गया मजाक
उस वक्त बिसलेरी के पानी की एक बोतल का दाम सिर्फ एक रुपये रखा गया. लेकिन उस जमाने में एक रुपये की भी बड़ी कीमत थी. कोई भी एक रुपया खर्च करके पानी नहीं खरीदना चाहता था. मुंबई में जब बिसलेरी वॉटर प्लांट की शुरुआत हो रही थी, तब लोगों का कहना था, ‘यह कौन सा बिजनेस है, भारत जैसे देश में 1 रुपया देकर कौन पानी की बोतल खरीदेगा? लेकिन फिर भी खुशरू और डॉ. रोसी पीछे नहीं हटे.
उन्होंने मुंबई के ठाणे में वागले स्टेट में अपनी फैक्ट्री स्थापित की. वहां पहले केवल पानी को डीमिनरलाइज्ड किया जाता था ताकि वो एकदम डिसिल्ड हो जाए. लेकिन बाद में देखा गया कि यह पानी पाचन के लिए उपयुक्त नहीं है, इसलिए उसमें सोडियम और पोटैशियम जैसे मिनरल मिलाए जाने लगे.
शुरुआत में बड़े होटलों और रेस्टोरेंट्स को किया टार्गेट
पानी की खराब गुणवत्ता के चलते धीरे-धीरे कुछ बड़े होटलों ने बोतलबंद मिनरल वॉटर के बारे में सोचना शुरू कर दिया. इसलिए भारत में शुरुआत में बिसलेरी के पानी को मुंबई में केवल लग्जरी होटलों व रेस्टोरेंट्स में दो तरह की कांच की बोतलों- बबली और स्टिल में बेचा जाता था. कोशिश यही थी कि इस लग्जरी समझे जाने वाले पानी को लोगों की आम जिंदगी का हिस्सा बनाना है. लेकिन चीजें वैसी नहीं जा पा रही थीं जैसी कि उम्मीद थी. परिस्थितियों ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि संतूक को कंपनी में अपने शेयर बेचने पड़े. उसके बाद साल 1969 में भारत की दिग्गज कन्फैक्शनरी कंपनी पारले ने 4 लाख रुपये (उस वक्त लगभग 50,000 अमेरिकी डॉलर) में बिसलेरी लिमिटेड को खरीद लिया.
पारले जी जैसे प्रॉडक्ट्स की मैन्युफैक्चरर 'हाउस ऑफ पारले' की शुरुआत 1928 में हुई थी लेकिन कन्फैक्शनरी बनाने की पहली फैक्ट्री 1929 में शुरू हुई. बाद में हाउस ऑफ पारले तीन अलग-अलग कंपनियों में बंट गई- पारले प्रॉडक्ट्स, पारले एग्रो और पारले बिसलेरी. पारले बिसलेरी के हिस्से में सॉफ्ट ड्रिंक कारोबार आया. आज पारले बिसलेरी ही बिसलेरी इंटरनेशनल के तौर पर जानी जाती है.
सोडा ब्रांड पोर्टफोलियो में लाना था पारले का मकसद
पारले के सॉफ्ट ड्रिंक कारोबार के तहत 1951 में गोल्ड स्पॉट को लॉन्च किया जा चुका था. 1964 में बड़े भाई मधुकर की एक प्लेन क्रैश में मौत होने के बाद 22 वर्षीय रमेश चौहान पारले के कारोबार से जुड़े. जब पारले ने बिसलेरी को खरीदा, उस वक्त तक पारले के पोर्टफोलियो में कोई सोडा ब्रांड नहीं था, लिहाजा रमेश चौहान बिसलेरी के जरिए यह कमी पूरा करना चाहते थे. उस वक्त बॉटल्ड ड्रिंकिंग वॉटर उनके दिमाग में सबसे आखिर में था.
साल 2008 में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि 60 के दशक के आखिर और 70 के दशक की शुरुआत में 5-स्टार होटलों में सोडा की अच्छी डिमांड थी. चूंकि बिसलेरी सोडा काफी पॉपुलर था तो उन्होंने कंपनी को खरीद लिया. उस वक्त पानी के बिजनेस पर ध्यान नहीं था. बॉटल्ड वॉटर इंडस्ट्री पर उनका फोकस 1993 में आया. यही वह साल था, जब उन्होंने अपने कोल्ड ड्रिंक्स पोर्टफोलियो को कोका कोला को बेच दिया था. पारले ने दो वेरिएंट- कार्बोनेटेड और नॉन-कार्बोनेटेड मिनरल वाटर के साथ बिसलेरी सोडा लॉन्च किया.
कंपनी ने ट्रांसपोर्ट की जिम्मेदारी भी उठाई
बिसलेरी को पारले ग्रुप द्वारा खरीद लिए जाने के बाद यह पारले बिसलेरी बन गई. शुरुआती दिनों में ट्रांसपोर्टर पानी को ट्रांसपोर्ट करने में बहुत दिलचस्पी नहीं रखते थे क्योंकि यह एक भारी लेकिन कम कीमत वाला प्रॉडक्ट था. इसलिए रमेश चौहान ने फैसला किया कि कंपनी पानी के ट्रांसपोर्ट का काम खुद संभालेगी.
कभी Maaza, थम्स अप पारले के थे ब्रांड
पारले ने 1971 में लिम्का, 1974 में माजा, 1978 में थम्स अप को उतारा था. लेकिन 1993 में Maaza, थम्स अप, लिम्का, सिट्रा और गोल्ड स्पॉट समेत पूरे सॉफ्ट ड्रिंक/कार्बोनेटड ड्रिंक पोर्टफोलियो को कोका कोला को बेच दिया. आज बिसलेरी इंटरनेशनल के ब्रांड्स में बिसलेरी, वेदिका, Limonata, Fonzo, Sypci, बिसलेरी सोडा आदि शामिल हैं.
कब आई PVC पैकेजिंग और PET बोतलें
बिसलेरी मिनरल वाटर को वास्तविक बढ़ावा 1980 के दशक के मध्य में मिला, जब कंपनी ने पीवीसी पैकेजिंग और बाद में पीईटी बोतलों पर स्विच किया. पीईटी पैकेजिंग ने बेहतर पारदर्शिता सुनिश्चित की. इसकी मदद से उपभोक्ताओं को स्पार्कलिंग साफ पानी दिखाया जा सकता था. इस बीच, बिसलेरी सोडा अच्छा काम कर रहा था लेकिन 1993 में कोका-कोला को सॉफ्ट ड्रिंक कारोबार बेचे जाने के बाद इसका उत्पादन बंद करना पड़ा. इसके बाद रमेश चौहान ने बिसलेरी वॉटर ब्रांड को विकसित करने पर ध्यान देना शुरू किया.
1995 में आई 5 रुपये वाली बोतल
उस वक्त बोतलबंद पानी के लिए बाजार बनाने का एक स्पष्ट अवसर था. देश में उपलब्ध पानी की गुणवत्ता खराब थी. शुरुआत में, बोतलबंद पानी केवल विदेशी और अनिवासी भारतीय ही पीते थे. लेकिन बिसलेरी पानी को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए इसे और किफायती बनाना था. 1995 में केवल 5 रुपये में ले जाने में आसान 500 एमएल की बोतल की शुरुआत ने उस जरूरत को पूरा किया. इसने कंपनी को 400 प्रतिशत की ग्रोथ दी.
पारले की रिसर्च टीम ने पाया था कि भारत के सार्वजानिक स्थल जैसे रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, सड़क किनारे ढाबे और अन्य जगहों पर पानी के शुद्ध नहीं होने के कारण लोग प्लेन सोडा खरीद कर पीते हैं. इसके बाद पारले ने लोगों तक स्वच्छ पानी पहुंचाने के लिए अपने डिस्ट्रीब्यूटर्स की संख्या बढ़ाई और इन सभी जगहों पर बिसलेरी स्वच्छ जल की आपूर्ति की.
2000 के दशक की शुरुआत में आए प्रतिद्वंदी
बिसलेरी ने 1970 से 1999 तक भारतीय बाजार में एकछत्र राज किया. 2000 के दशक की शुरुआत में अन्य बॉटल्ड वॉटर ब्रांड मार्केट में आने लगे. बिसलेरी को हिमालयन ब्रांड के तहत टाटा के माउंट एवरेस्ट मिनरल वॉटर और पेप्सिको के Aquafina, कोका कोला के Kinley जैसे अन्य ब्रांड्स से कड़ी टक्कर मिली. लेकिन बिसलेरी को कोई पीछे नहीं छोड़ सका. उस वक्त तक बिसलेरी ने 40 प्रतिशत बाजार पर कब्जा कर लिया था.
तब कंपनी ने महसूस किया कि यह अगले स्तर पर जाने का समय है और वह स्तर था- बल्क सेगमेंट. कई व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में पाइप्ड पानी की पहुंच न होने को देखते हुए बिसलेरी के 12-लीटर कंटेनर और उसके बाद 20-लीटर कैन पेश किए गए.
122 प्लांट और 4500 से अधिक वितरक
पारले ग्रुप ने जब बिसलेरी खरीदी थी, तब इसके देशभर में केवल 5 स्टोर ही थे. इनमें से 4 मुंबई में और 1 कोलकाता में था. वर्तमान में बिसलेरी की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, बिसलेरी के पूरे भारत में 122 विनिर्माण संयंत्र और 5000 ट्रकों के साथ 4500 से अधिक वितरकों का एक नेटवर्क है. मिनरल वाटर के अलावा बिसलेरी इंटरनेशनल, प्रीमियम वेदिका हिमालयन स्प्रिंग वॉटर भी बेचती है. यह हैंड प्योरिफायर के एक छोटे व्यवसाय के अलावा कार्बोनेटेड पेय लिमोनाटा व स्पाइसी, और सोडा व फ्रूट ड्रिंक्स की बिक्री भी करती है. उपभोक्ताओं को सीधे उत्पाद वितरित करने के लिए इसका अपना ऐप Bisleri@Doorstep भी है. बिसेलरी के प्रॉडक्ट अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स जैसे Flipkart, Big Basket, Grofers आदि पर भी मौजूद हैं.
रमेश चौहान क्यों बेच रहे हैं बिसलेरी
रमेश चौहान 82 वर्ष के हो चले हैं. उनका स्वास्थ्य गिर रहा है और उनकी बेटी जयंती की दिलचस्पी इस कारोबार को संभालने में नहीं है. अन्य कोई उत्तराधिकारी नहीं है, जो बिसलेरी को आगे बढ़ाए. ऐसे में किसी को तो इसे संभालना होगा. इसलिए चौहान बिसलेरी इंटरनेशनल को बेचना चाहते हैं. यह उनके लिए कष्टदायक है लेकिन उन्हें ऐसा करना पड़ रहा है. उनका यह भी कहना है कि वह अपनी कंपनी किसी ऐसे को बेचना चाहते हैं जो बिसलेरी को अच्छे से संभाले और इसे और आगे ले जाए. इसे मरने नहीं दिया जा सकता.
रमेश चौहान ने एक बार कहा था कि अगर वह बिसलेरी में हिस्सेदारी बेचने का फैसला करते हैं तो यह एक भारतीय ब्रांड को ही की जाएगी. इससे पहले चौहान को बहुराष्ट्रीय कंपनियों नेस्ले और डैनोन ने 2002-03 में हिस्सेदारी अधिग्रहण के लिए लुभाने की कोशिश की थी. दोनों बहुराष्ट्रीय कंपनियां पैकेज्ड वॉटर सेगमेंट में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहती थीं. लेकिन वे बातचीत कोई प्रगति नहीं कर सकीं. वित्त वर्ष 2022-23 में बिसलेरी का टर्नओवर 2500 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है.
माइनॉरिटी स्टेक भी नहीं चाहते चौहान
Bisleri International के किसी अन्य कंपनी के पास जाने के बाद चौहान कंपनी में माइनॉरिटी स्टेक भी नहीं रखना चाहते हैं. बोतलबंद पानी के कारोबार से बाहर निकलने के बाद, चौहान का इरादा पर्यावरण और धर्मार्थ कारणों जैसे जल संचयन, प्लास्टिक रीसाइक्लिंग और गरीबों को चिकित्सा उपचार प्राप्त करने में मदद करने पर फिर से ध्यान केंद्रित करना और निवेश करना है.
बिसलेरी कारोबार के अहम वर्ष
साल 1951: ऑरेंज फ्लेवर्ड सॉफ्ट ड्रिंक गोल्ड स्पॉट लॉन्च
साल 1971: लिम्का लॉन्च
साल 1974: माजा लॉन्च
साल 1978: थम्स अप लॉन्च
साल 1991: बिसलेरी का 20 लीटर पैक लॉन्च
साल 2000: 1.2 लीटर का बड़ा बिसलेरी पैक लॉन्च
साल 2003: यूरोप में बिजनेस एक्सपेंड करने की घोषणा
साल 2006: नेचुरल हिमालयन स्प्रिंग वॉटर लॉन्च, पैकेजिंग ब्लू से ग्रीन की गई
साल 2011: 15 लीटर का होम साइज्ड पैक लॉन्च
साल 2011: बिसलेरी क्लब सोडा लॉन्च
साल 2012: वेदिका लॉन्च
साल 2016: 4 फिजी सॉफ्ट ड्रिंक- स्पाइसी, लिमोनाटा, फोन्जो और पिना कोलाडा लॉन्च
साल 2016: 300 एमएल की रॉकस्टार बोतल लॉन्च
साल 2017: बिसलेरी मिनरल वॉटर के लिए क्षेत्रीय भाषा के लेबल पेश
साल 2018: मिनरल वॉटर के लिए दुनिया का पहला वर्टिकल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लॉन्च
साल 2020: बिसलेरी की ऑर्डर ऑनलाइन और डोरस्टेप डिलीवरी सर्विस शुरू
साल 2021: कंपनी ने हैंड प्योरिफायर्स उतारे
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