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तीन तलाक कानून, शीर्ष अदालत में जजों की संख्या में वृद्धि 2019 में रहीं विधि मंत्रालय की उपलब्धियां

तीन तलाक कानून, शीर्ष अदालत में जजों की संख्या में वृद्धि 2019 में रहीं विधि मंत्रालय की उपलब्धियां

Thursday January 02, 2020 , 3 min Read

फौरी तीन तलाक की प्रथा को दंडनीय अपराध बनाना और उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि वर्ष 2019 में कानून मंत्रालय की दो बड़ी उपलब्धियां रहीं।


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प्रतीकात्मक चित्र



जुलाई 2019 में संसद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 को अपनी मंजूरी दी। नये कानून ने ‘तलाक ए बिद्दत’ या तलाक के इस तरह के किसी अन्य प्रारूप को अमान्य एवं अवैध बना दिया।


सितंबर 2019 में उच्चतम न्यायालय में चार नये न्यायाधीश नियुक्त किए गए, जिससे शीर्ष न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ कर 34 हो गई जो अब तक सर्वाधिक है।


हालांकि, उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में रिक्तियां बढ़ रही हैं। ऐसे में अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों की भर्ती के लिए एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा गठित करने के वास्ते राज्य सरकारों एवं 25 उच्च न्यायालयों को तैयार करना 2020 में कानून मंत्रालय के एजेंडा में शीर्ष पर होगा।


अखिल भारतीय न्यायिक सेवा गठित करने पर आमराय बनाने के अलावा नये साल में मंत्रालय को उच्च न्यायालयों में रिक्तियों को भरने पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।


जिला और अधीनस्थ अदालतों में 5,000 से अधिक पद रिक्त हैं। इसे ध्यान में रखते हुए कानून मंत्रालय ने अखिल भारतीय न्यायिक सेवा गठित करने की हिमायत की है।


सरकार ने प्रस्ताव दिया है कि राज्य एवं उच्च न्यायालय न्यायिक अधिकारियों को नियुक्त कर सकते हैं, जबकि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) अखिल भारतीय परीक्षा आयोजित कर सकती है।


मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि इस तरह की सेवाएं राज्यों की शक्तियों का अतिक्रमण नहीं करेगी।


वर्तमान में, अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्च न्यायालयों और संबंधित राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।





नरेंद्र मोदी नीत केंद्र सरकार ने निचली न्यायपालिका के लिए एक अलग कैडर गठित करने की दिशा में काफी समय से लंबित प्रस्ताव पर नये सिरे से जोर दिया है। लेकिन अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन पर राज्य सरकारों और संबंधित उच्च न्यायालयों के अलग-अलग विचार हैं।


एक समस्या यह बताई जा रही है कि कई राज्यों में स्थानीय अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल किया जाता है, ऐसे में तमिलनाडु से चयनित किसी व्यक्ति को उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में सुनवाई करने में मुश्किल पेश आ सकती है।


अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के विरोध के पीछे एक दलील यह भी दी जा रही है कि अखिल भारतीय न्यायिक सेवा राज्य न्यायिक सेवा के अधिकारियों के करियर में प्रगति को बाधित कर सकती है।


मंत्रालय को 2020 में 25 उच्च न्यायालयों में रिक्तियों से निपटने की चुनौती का भी सामना करना पड़ेगा।


वर्ष 2019 में उच्च न्यायालयों में औसतन 400 न्यायाधीशों की कमी रही।


साथ ही,25 उच्च न्यायालयों में 43 लाख से अधिक मामले लंबित हैं।


सरकार की एक और प्राथमिकता उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों एवं तबादले को दिशा-निर्देशित करने वाले प्रक्रिया ज्ञापन को अंतिम रूप देने की भी होगी। यह मुद्दा दो साल से लंबित है। दरअसल, इस पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और सरकार किसी आम राय पर पहुंचने में नाकाम रही है।