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भारत की पहली ट्रांसजेंडर मॉडल नाज जोशी के संघर्ष और सफलता की कहानी आईना है हमारे समाज का

मिस ट्रांस ग्‍लोबल 2022 पेजेंट में भारत को रिप्रेजेंट कर रही नाज जोशी पर उनकी मां आज भी गर्व नहीं करतीं. वो सिर्फ नफरत करती हैं. शायद नाज से ज्‍यादा अपने आप से. खुद से कहती हैं, “उनकी कोख में क्‍या कमी थी कि जो ये पाप उसी में पलना था.”

भारत की पहली ट्रांसजेंडर मॉडल नाज जोशी के संघर्ष और सफलता की कहानी आईना है हमारे समाज का

Saturday May 28, 2022 , 11 min Read

38 साल की नाज जोशी मिस ट्रांस ग्‍लोबल 2022 पेजेंट में भारत का प्रतिनिधित्‍व करने जा रही हैं. यह सौंदर्य प्रतियोगिता है, जिसमें दुनिया भर की ट्रांसजेंडर महिलाएं शिरकत करती हैं. आज नाज सुर्खियों में हैं. अखबारों के पन्‍नों पर छाई हैं. सब बढ़-चढ़कर उनका नाम ले रहे हैं, उन पर गर्व कर रहे हैं, लेकिन कोई नहीं जानता कि नाज की मां आज भी उनसे बहुत नाराज हैं. अभी कुछ दिन पहले ही किसी बात पर वो बिफर गईं और बोलीं, “मैंने तो लड़का पैदा किया था, छक्‍का नहीं.”

नाज ने नहीं चाहा था वो होना, जो वो हुई. वो अपनी मां के गर्भ में 9 महीने वैसे ही सुख और सुकून से रही, जैसे संसार का हर बच्‍चा. दोष किसी का नहीं था, लेकिन आया सब उस छोटे बच्‍चे के हिस्‍से में जिसका शरीर तो लड़की का था, लेकिन मन लड़की का. और मन भी क्‍या चीज है, हॉर्मोन्‍स थे. लड़के के शरीर में लड़की के हॉर्मोन्‍स.  

जब वो लड़का थी और बचपन सुंदर था

31 दिसंबर, 1984 को दिल्‍ली के एक अपर-मिडिल क्‍लास परिवार में एक बच्‍चे का जन्‍म हुआ. नर्स ने मां के हाथ में बच्‍चा थमाते हुए कहा, “मुबारक हो, लड़का हुआ है.” अस्‍पताल में टोकरी भर मिठाई बंटी, कई दिनों तक बधाई देने वालों का तांता लगा रहा. घर में नन्‍हा राजकुमार आया था.   

खाता-पीता सुखी परिवार था. पिता दिल्‍ली विकास प्राधिकरण में अफसर थे. बच्‍चे को खिलौनों, किताबों, चॉकलेट और प्‍यार किसी चीज की कमी न थी. तब भी वो बाकी लड़कों की तुलना में थोड़ा ज्‍यादा नाजुक था, लेकिन अभी बच्‍चा ही था. बहुत चंचल, सुंदर, खुशमिजाज बच्‍चा.

लेकिन उसकी ये खुशी ज्‍यादा दिनों तक नहीं रही.

छह-सात साल की उम्र से ही उसका लड़का न होना स्‍कूल, घर, मुहल्‍ले सब पर जाहिर होने लगा. स्‍कूल में बच्‍चे बुली करने लगे, मुहल्‍ले के लड़के फिकरे कसने लगे, मां बात-बात पर थप्‍पड़ जड़ने लगी कि ये कैसे चलता है, कैसे बात करता है. कैसे रहता है. तू लड़की है क्‍या. थोड़ा और वक्‍त गुजरा तो पिता भी हिंसक हो गए. 10 साल का बच्‍चा, जिसे खुद भी पता नहीं था कि वो लड़का है या लड़की, उसके साथ घरवालों का व्‍यवहार हिंसक और क्रूर होता गया.

Naaz Joshi

नाज का बचपन

मुंबई में मामा का घर और ढाबे की नौकरी

दिल्‍ली के अपर मिडिल क्‍लास पंजाबी पास-पड़ोस में बच्‍चे के विचित्र व्‍यवहार के कारण मां-बाप की नाक कट रही थी. सो अपनी इज्‍जत बचाने के लिए उन्‍होंने बच्‍चे से पीछा छुड़ाना चाहा. 10 साल की उम्र में उसे मुंबई में अपने दूर के गरीब मामा के घर भेज दिया गया, जो पहले से एक कमरे की चॉल में अपने छह बच्‍चों के साथ रहता था और एक सरकारी अस्‍पताल में वॉर्ड बॉय का काम करता था. मामा ने पहले दिन ही बोल दिया, “तुझे स्‍कूल भेजने की हैसियत नहीं है हमारी. जाकर काम कर और अपने पैसे खुद कमा.” मामा ने उसे पास के एक ढाबे में काम पर लगा दिया. 10 साल का लड़का दिन में स्‍कूल जाता, लौटकर ढाबे पर काम करता. फिर घर आकर रसोई में मामी का हाथ बंटाता और रात 11 बजे अपना होमवर्क करता.

दिल्‍ली में पांच कमरों का बड़ा सा घर था और यहां मुंबई में 12 बाय 13 की एक खोली. घर के सुख-आराम में पला बच्‍चा एक दिन रातोंरात घर से, रिश्‍तों से, प्‍यार से बेदखल कर दिया गया था. अपराध पता हो तो सजा सहना भी आसान हो जाता है. यहां तो उसे पता ही नहीं था कि उसके साथ ये क्‍योंकर हुआ. वो बस इतना जानता था कि मम्‍मी-पापा ने उसे घर से निकाल दिया है. मामा-मामी उसे ताना देते, “तेरे मां-बाप ने अपना पाप हमारे सिर डाल दिया. तुझे कोई नहीं रखना चाहता. तू घर की इज्‍जत मिट्टी में मिला देगा. तू कलंक है.”

वो दर्दनाक रात और अस्‍पताल की सुबह

मामा के घर जिंदगी अच्‍छी तो नहीं थी, पर थी. गुजर रही थी. लेकिन एक रात वो सहारा, वो छत भी सिर से जाती रही. उस दिन हर रोज की तरह वह स्‍कूल गया, लौटकर ढाबे पर बर्तन धोए, ग्राहकों की जूठी प्‍लेटें साफ की और देर रात घर लौटा. घर पर उस दिन मामा-मामी नहीं थे. उनका 20 साल का लड़का था और उसके कुछ दोस्‍त. सब शराब पी रहे थे. उन्‍होंने 11 साल के बच्‍चे को भी शराब ऑफर की. उसने मना किया तो उसे एक स्‍टील की गिलास में कोल्‍ड ड्रिंक पकड़ा दी और एक सांस में पी जाने को कहा.

वो पीकर बच्‍चा सो गया और अगली दोपहर अस्‍पताल में उसकी आंख खुली. उसके शरीर पर बेतरह घावों के निशान थे और एनल एरिया में टांके लगे थे. दर्द कम करने के लिए पेन किलर्स दी गई थी, लेकिन दर्द था कि तब भी असहनीय हो रहा था. आंख खुली तो देखा सामने मामा खड़े थे. उन्‍होंने एक ही बात कही, “किसी से कुछ कहना मत. दो दिन बाद तुझे लेने आऊंगा.”  

Naaz Joshi

दो दिन गुजरे, चार दिन गुजरे, उसे लेने कोई नहीं आया. उस रात मामा के बेटे और उसके छह दोस्‍तों ने उसका रेप किया था. रेप के दौरान बीच-बीच में दर्द से उसकी आंख खुलती, फिर बंद हो जाती. उसे पता नहीं कि उसे अस्‍पताल कौन लेकर आया था. इतना पता है कि वापस लेने फिर कोई नहीं आया.

बार डांसर नाज जोशी

अस्‍पताल में ही किन्‍नर समाज के एक आदमी की उस पर नजर पड़ी और वो बच्‍चे को अपने साथ ले गया. कुछ दिन उसने सिगनल पर भीख मांगी, लेकिन फिर एक बार में उसे नौकरी मिल गई. वो दिन में स्‍कूल जाता, पढ़ाई करता और रात में बार में लड़की बनकर डांस करता. लेकिन बार में काम करने का मतलब सिर्फ नाचना नहीं होता. कमजोर, असहाय, गरीब का यौन शोषण भी होता है. कभी कोई पैसे देकर सेक्‍स करता तो कोई बंदूक की नोक पर. सेक्‍स भी जरूरी नहीं कि सामान्‍य मानवीय सेक्‍स ही हो. ओरल और फोर्स्‍ड एनल से लेकर कुछ भी, जो ताकतवर को पसंद हो.

इस दौरान उसकी पढ़ाई जारी रही. 11-12वीं में साइंस लेकर पढ़ाई की. ऊपर कहीं भी उसके नाम का कोई जिक्र नहीं हुआ है. आज उसका नाम जरूर नाज जोशी है, लेकिन वो इस नाम के साथ पैदा नहीं हुई थी. वो नाम, वो पहचान एक ऐसी अंधेरी याद है कि नाज भूलकर भी उसका जिक्र नहीं करती. वो सबकुछ बताती है, लेकिन अपने बचपन का नाम नहीं.

और बार डांसर नाज ने निफ्ट का एंट्रेंस एग्‍जाम पास कर लिया

18 साल की उम्र तक नाज बार में नाचती रही और इस दौरान उसने अपनी मेहनत और अपनी कमाई से बारहवीं भी पास कर ली. तब तक फेसबुक आ चुका था. एक दिन फेसबुक पर अचानक स्‍क्रॉल करते हुए एक प्रोफाइल में उसे एक तस्‍वीर दिखी. ये उसके बचपन की फोटो थी और वो जिस लड़की के साथ थी, वो उसकी कजिन थी, जो अब मुंबई में रहती थी और एक नामी एक्‍स्‍ट्रेस और मॉडल बन चुकी थी. उसका नाम था विवेका बाबाजी.

विवेका बाबाजी नाज की जिंदगी में रौशनी बनकर आई. उसने नाज में संभावना देखी और मदद का हाथ बढ़ाया. 19 साल की नाज की रुचि फैशन डिजाइनिंग में थी. वो अपने कपड़े खुद डिजाइन करती थी. फैशन मैगजीन के पन्‍नों से देखकर अपने लिए कपड़ों के डिजाइन बनाती और पास के टेलर से सिलवाकर लाती. उसे सिलना नहीं आता था, लेकिन कागज पर उतारना आता था.

विवेका ने बताया कि दिल्‍ली में NIFT नाम की एक जगह है, जहां वो आगे की पढ़ाई कर सकती है, लेकिन उसके लिए इंट्रेंस एग्‍जाम पास करनी होगी. नाज दिल्‍ली आई, परीक्षा दी और पास हो गई. यहां एक सेमेस्‍टर की फीस 12000 रु. थी. विवेका ने पूरे तीन साल की कॉलेज और हॉस्‍टल की फीस जमा करवा दी.

यहां से नाज की एक नई जिंदगी की शुरुआत हुई, जहां उसके लड़कियों जैसे हाव-भाव और व्‍यवहार के लिए कोई उसे चिढ़ाता नहीं था. कोई छेड़ता नहीं था. कोई सेक्‍सुअली एक्‍स्‍प्‍लॉइट नहीं करता था. यहां उसके जैसे और भी लोग थे. शरीर से लड़का और मन से लड़की.

दिल्‍ली में अब उसका परिचय एलजीबीटी समुदाय के और लोगों से हुआ और पहली बार उसे लगा कि वो दुनिया में अकेली नहीं है. और भी हैं उसके जैसे. एक भरा-पूरा संसार है, सुख है, दुख है, उम्‍मीदें, सपने, महफिलें, पार्टियां, प्‍यार, मोहब्‍बत, दोस्‍ती. उसे पहली बार लगा कि वो भी उतनी ही मनुष्‍य है, जितना कि कोई और, जिसे दुनिया सामान्‍य मानती है. सुख, बराबरी, सफलता और सपनों पर उसका भी उतना ही हक है, जितना किसी और का.

Naaz Joshi

नाज जोशी: सेक्‍स चेंज ऑपरेशन के पहले और बाद में

निफ्ट टॉपर और अपना पहला घर

नाज ने हर सेमेस्‍टर में टॉप किया. कैंपस प्‍लेसमेंट मिला. पहली नौकरी ही डिजाइनर रितु कुमार के यहां लगी. सैलरी थी 25000 रु. गुड़गांव में 7000 रु. किराए पर एक बीएचके घर लिया. ये नाज का पहला अपना घर था. पहला घर, जो उसने अपनी मेहनत से, पैसों से, इज्‍जत से बनाया था. बड़े अरमानों से उस घर को सजाया. पहला टीवी खरीदा, पहला फ्रिज, पहला बेड, पहली कुर्सी. सबकुछ पहला था. सबकुछ अपना था.

अब जब जीवन में सब ठीक हो रहा था, तब भी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ. सबकुछ ठीक होते-होते भी कितना ही ठीक होता है. पुराने डर और अंधेरे आसानी से पीछा नहीं छोड़ते. सड़कों पर लोग अब भी लड़की जैसी लड़के को घूरकर देखते थे. फैक्‍ट्री में काम करने वाले कारीगर मौका पाकर हाथ मारने की कोशिश करते. थोड़ा पैसा, थोड़ा क्‍लास बदलने से उसके जीवन की हकीकत बहुत नहीं बदली थी. कॉलेज में सब ठीक था, लेकिन बाहर की दुनिया में नहीं. मर्द कहीं भी पा जाते तो दबोचने की कोशिश करते. हर जगह से भागते, खुद को बचाते वो वापस डिप्रेशन में चली गई. डॉक्‍टर को दिखाया तो डॉक्‍टर की दी दवाइयों ने उसे और नंब कर दिया. वो नौकरी छूट गई.

लाजपत नगर का मसाज पार्लर जो दरअसल सेक्‍स पार्लर था

कुछ दिन बाद लाजपत नगर के एक गे मसाज पार्लर में नाज को मैनेजर की नौकरी मिल गई, जो दरअसल सेक्‍स पार्लर था. दुनिया के नजर में हेट्रोसेक्‍सुअल मर्द, घर में बीवी बच्‍चों और इज्‍जतदार माता-पिता वाले मर्द अपनी बड़ी-बड़ी गाडि़यों से उतरकर वहां मसाज के बहाने गे लड़कों के साथ सेक्‍स करने आते थे. बाहर कोई नहीं जानता था कि यहां अंधेरे में वो क्‍या करते हैं. अब तक नाज को लगने लगा था कि वो इस शरीर में नहीं रह सकती. उसे सेक्‍स चेंज ऑपरेशन करवाना होगा, लेकिन उसमें 6-7 लाख का खर्च था. उस पैसे की जरूरत को पूरा करने के लिए मसाज पार्लर की मैनेजर नाज सेक्‍स वर्कर नाज बन गई. जितनी सर्विस, उतने पैसे.

Naaz Joshi

फोटोग्राफर ऋषि तनेजा के कैमरे से ट्रांसजेंडर नाज जोशी की जिंदगी

सेक्‍स वर्कर नाज का फोटो शूट

इसी दौरान नाज की मुलाकात देश-दुनिया में शोहरत पाए एक अमीर और नामी फोटोग्राफर ऋषि तनेजा से हुई. उसे एक होमोसेक्‍सुअल सेक्‍स वर्कर का फोटोशूट करना था. पूरे एक साल तक. हर शूट के लिए नाज को 1500 रु. देने की बात हुई.  ये फोटो शूट ऐसा नहीं था कि अलग-अलग लोकेशन पर अलग-अलग कपड़ों में पोज दे दिया और काम खत्‍म. एक सुबह पांच बजे उसे लाजपत नगर की रेड लाइट पर बिलकुल पारदर्शी साड़ी में खड़े होना था. अपना पल्‍लू गिराना था. लोग आते. रेट पूछते. कोई ब्‍लाउज में हाथ डाल देता. कोई जांघों के बीच पकड़ लेता. फोटोग्राफर कहीं दूर से छिपकर फोटो ले रहा था.

फिर एक बार उसे क्‍लाइंट के साथ सेक्‍स करना था. कैमरा और फोटोग्राफर दोनों छिपे थे. नाज को पता था कि उसकी फोटो खींची जा रही है. फोटोग्राफर के लिए ये एग्‍जॉटिक फोटोग्राफी थी, देखने वालों के लिए आर्ट वर्क, लेकिन नाज के लिए तो उसकी जिंदगी थी, जो वो रोज जीती थी.

लेकिन नाज को उस फोटोग्राफर से कोई शिकायत नहीं, क्‍योंकि उसके काम से नाज का भी नाम हो गया था. उसी ने बाद में 2013 में उसे राजस्‍थान फैशन वीक में भेजा, जहां वो देश की पहली ट्रांसजेंडर शो स्‍टॉपर बनी. तीन शो किए और 30,000 रु. मिले. हवाई जहाज का टिकट, फाइव स्‍टार होटल का कमरा. इतनी इज्‍जत, इतना पैसा, इतना आराम. उसके लिए ये सब किसी फंतासी से कम नहीं था.

Naaz Joshi

लाजपत नगर की रेड लाइट पर खड़ी नाज

वहां से फैशन और ब्‍यूटी की दुनिया में जो नाज ने कदम रखा तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. मॉडलिंग की, रैंप पर चली. अफ्रीका, दुबई और मॉरीशस में जाकर तीन साल लगातार मिस वर्ल्‍ड डायवर्सिटी का खिताब जीता. तहलका मैगजीन ने नाज को अपने कवर पर छापा. सीएनएन ने उस पर एक डॉक्‍यूमेंट्री फिल्‍म बनाई. टीवी पर वो फिल्‍म देखकर पिता ने संपर्क किया. 10 साल की उम्र में जब मां-बाप ने घर से निकाला था तो दुनिया में कोई ठिकाना नहीं था. आज 34 की उम्र में जब वो घर वापस जा रही थी तो एक सफल मॉडल और ब्‍यूटी क्‍वीन थी.

पिता आज उस पर गर्व कर रहे थे, लेकिन किसी ने पूछा नहीं कि इतने साल तुम कहां रही, कैसे रही, क्‍या किया. क्‍या कुछ गुजरी तुम पर.

सबने गर्व किया, लेकिन माफी किसी ने नहीं मांगी. मां तो अब भी गर्व नहीं करतीं. वो सिर्फ नफरत करती हैं. शायद नाज से ज्‍यादा अपने आप से. खुद से कहती हैं, “उनकी कोख में क्‍या कमी थी कि जो ये पाप उसी में पलना था.”

अब नाज मिस ट्रांस ग्‍लोबल 2022 पेजेंट में हिस्‍सा लेने जा रही हैं, जहां दुनिया भर की अपने से उम्र में आधी ट्रांस सुंदरियों के साथ उनका मुकाबला होगा. लेकिन नाज को उम्‍मीद है कि वो वहां से भी नाउम्‍मीद होकर नहीं लौटेंगी.