Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

छत्तीसगढ़ में इमली का सालाना 500 करोड़ का कारोबार

छत्तीसगढ़ में इमली का सालाना 500 करोड़ का कारोबार

Thursday October 11, 2018 , 7 min Read

छत्तीसगढ़ के जगदलपुर, बस्तर आदि जिले इमली के बड़े कारोबारी अंचलों में शुमार हैं। खासकर बड़ी संख्या में आदिवासी परिवारों की इस पर आजीविका निर्भर है। हर परिवार रोजाना बीस-पचीस किलो इमली तैयार कर लेता है। प्रति किलो उन्हें सात सौ रुपए मिल जाते हैं। इन दो जिलो से ही सालाना पांच सौ करोड़ का कारोबार हो जाता है।

सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर


एक अनुमान के मुताबिक बस्तर में हर साल लगभग पांच सौ करोड़ रुपये का इमली का कारोबार होता है। ग्रामीण आदिवासी संग्राहकों का एक मुख्य व्यवसाय इमली की चपाती बनाना है। इन जिलों में आदिवासी रिहायशों में पर्याप्त संख्या में इमली के पेड़ हैं।

हमारे देश में छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है, जहां के हजारों लोगों की आजीविका इमली के कारोबार पर निर्भर है। इमली के पेड़ पूरे भारत में पाए जाते हैं। इसके अलावा यह अमेरिका, अफ्रीका और कई एशियाई देशों में भी मिलते हैं। छत्तीसगढ़ के साथ इमली का एक अलग ही इतिहास प्रकृति ने लिखा है। जगदलपुर, बस्तर आदि जिलों के आदिवासियों के एक बड़े वर्ग की रोजी-रोटी इमली है। इन जिलों के ग्रामीण इलाकों में घर-घर बड़े बुजुर्गों से लेकर महिलाएं, बच्चे तक इमली तोड़कर इसे फूल में बदलते और चपाती बनाते देखे जा सकते हैं।

एक अनुमान के मुताबिक बस्तर में हर साल लगभग पांच सौ करोड़ रुपये का इमली का कारोबार होता है। ग्रामीण आदिवासी संग्राहकों का एक मुख्य व्यवसाय इमली की चपाती बनाना है। इन जिलों में आदिवासी रिहायशों में पर्याप्त संख्या में इमली के पेड़ हैं। कई घर ऐसे भी मिल जाएंगे, जिनके आसपास दर्जनों इमली के पेड़ हैं। फरवरी-मार्च में इमली के मौसम में आदिवासी इसके फल बाजारों में बेचते हैं। वे इमली तोड़कर उसके छिलके उतार देते हैं। छिली इमली को आंटी कहा जाता है। इसमें इमली के बीज और रेशे मौजूद होते हैं। बाद में इससे रेशा और बीज निकाला जाता है, जिसे फूल इमली कहते हैं। फूल इमली की ही चपाती बनाई जाती है। बाजार में बेचने से पहले इन चपातियों को पॉलिथीन में कवर कर दिया जाता है।

दक्षिण भारत में दालों में रोजाना कुछ खट्टा डाला जाता है, ताकि वह सुपाच्य हो जाए। इसलिए आंध्र प्रदेश के लोग भी इमली का भोजन में बेइंतहा इस्तेमाल करते थे, पर चार सौ वर्ष पूर्व जब पुर्तग़ालियों ने भारत में प्रवेश किया, तो वे अपने साथ टमाटर भी लाए। धीरे-धीरे इमली की जगह टमाटर का इस्तेमाल होने लगा। तब से टमाटर का इस्तेमाल चल ही रहा है, लेकिन कुछ समय से इस संबंध में नई व चौंकाने वाली जानकारियाँ मिल रही हैं। इसके अनुसार एक बार आंध्रप्रदेश का एक पूरा गाँव फ्लोरोसिस की चपेट में आ गया। इस रोग में फ्लोराइड की अधिक मात्रा हड्डियों में प्रवेश कर जाती है, जिससे हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि वहाँ पीने के पानी में फ्लोराइड अधिक मात्रा में मौजूद है, अतः यह रोग फैला। पहले इमली इस फ्लोराइड से क्रिया कर शरीर में इसका अवशोषण रोक देती थी, लेकिन टमाटर में यह गुण नहीं था, अतः यह रोग उभरकर आया। तब पता चला कि इमली के क्या फायदे हैं। इन आदिवासी अंचलों में वनोपज संग्राहक किसानों, मजदूरों, गांवों के किराना व्यवसायियों, कमिशन एजेंटों का एक-दूसरे से पुराना साझा जुड़ाव है। इस चेन में हजारों आदिवासी परिवार इमली के हाट-बाजार से जीविकोपार्जन कर रहे हैं। इसमें उधारी और नकदी दोनों का नेटवर्क है।

इन आदिवासी इलाकों में ज्यादातर महिलाओं के माध्यम से गांवों के व्यवसायियों तक इमली की आपूर्ति होती है। वर्तमान में उन्हें लगभग सात सौ रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान मिलता है। इसके बाद तैयार माल बड़े थोक खरीदारों को सप्लाई कर दिया जाता है। पूरा कारोबार कमिशन पर आधारित होता है। बाजार में इमली सीजन के समाप्ति यानि अप्रैल से साल भर चलता है और घर बैठे लोगों को अपनी मर्जी का रोजगार उपलब्ध मिलता है। रोजाना एक परिवार औसतन एक दिन में 20 किलो इमली फोड़ लेता है।

बस्तर में इमली के कारोबार में फायदे अनुमानित कर इससे बिचौलियों को दूर रखने का प्रयास अविभाजित मध्यप्रदेश में तात्कालीक कलेक्टर प्रवीर कृष्ण द्वारा 1999 में किया गया था। ट्रायफेड को एजेंसी बनाकर वनधन समितियों के माध्यम से इमली के कारोबार में शासकीय एकाधिकार का प्रयास के दौरान यह नारा काफी लोकप्रिय भी हुआ था कि इमली की छांव में गांव का पैसा गांव में। उस समय पटवारियों के माध्यम से इमली के पेड़ की गिनती भी कराई गई थी, साथ ही गांवों में हाईब्रिड इमली के पौधों का रोपण भी किया गया था। यह योजना ऐसे समय में लागू हुई थी जब आंध्र व बस्तर में इमली की फसल कमजोर हुई थी और आंध्र में इसकी मांग चल निकली थी।

महज दो साल बाद ही आंध्र, बस्तर सहित ओडिशा में बफर पैदावार के बाद इमली के दाम जमीन पर आ गए और करोड़ों रुपए के घाटे के साथ ट्रायफेड को अपना बोरिया बिस्तर बस्तर से समेटना पड़ा। इसी के साथ ही बस्तर का बहुप्रचारित इमली आंदोलन एक उदाहरण बन कर रह गया कि सरकार एकाधिकार के साथ कारोबार नहीं कर सकती। बाजार में इमली के दाम में पिछले तीन सालों से लगातार उतार-चढ़ाव ने व्यापारियों को जहां मालामाल किया है, वहीं उनके दांत भी खट्टे किए हैं। तीन साल पहले पाकिस्तान में जमकर गर्मी पड़ रही थी, जहां इमली की फसल कमजोर हुई थी और रेगिस्तान के जहाज ऊटों को गर्मी से बचाने व ऊटनियों का दुग्ध उत्पादन बढ़ाने बस्तर के इमली का एक्सपोर्ट किया गया। इस दौरान इमली आंटी 55 तथा फूल ने पहली बार तीन अंकों को छुआ। इसके अगले साल एक्सपोर्ट न होने से स्टाकिस्टों की उम्मीद पर पानी फिर गया और सीजन के अंत में फूल 35 तथा आंटी इमली ने 17 रुपए तक उतर कर कारोबारियों के दांत खट्टे कर दिए।

इमली के पके फल पानी में मसलकर इसके रस में हल्का काला नमक मिलाकर सेवन करने से भूख लगती है। इमली पाचन क्रिया को भी दुरुस्त रखती है। कब्ज से लेकर डायरिया जैसी पाचन संबंधी समस्याओं में भी इमली बेहद फायदेमंद है। इमली में अधिक मात्रा में हाइड्रोऑक्साइट्रिक एसिड होता है, जो फैट को जलाने वाले एन्जाइम को बढ़ाने में मदद करता है। इमली में थियामाइन से भरपूर होती है। थियामाइन तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाने और मांसपेशियों के विकास को बढ़ावा देने, नर्वस सिस्टम को रिलैक्स करने में मदद करती है। इमली कार्बोहाइड्रेट्स को शुगर में अवशोषित और परिवर्तित करने से रोकती है। इससे ब्लड शुगर का बढ़ना रुक जाता है। बिना बीज की इमली को पानी में भिगो दें।

फिर इस पानी में इमली को अच्छे से मसलकर चीनी मिला कर पीएं। चक्कर आने की बीमारी थम जाती है। आधा चम्मच इमली के बीज के पाउडर को पानी के साथ लेने से गठिया, जोड़ों के दर्द में काफी आराम मिलता है। इमली मुंह को भी साफ रखती है। इसकी पत्तियों की सब्जी और फूलों की चटनी बनाई जाती है। सांभर, छोले, चटनी या फिर कैंडी बनाने में मुख्य रूप से इस्तेमान होने वाली इमली के स्वास्थ्य से जुड़े कई फायदे हैं लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि इमली सौंदर्य-निखारने के लिए भी इस्तेमाल की जा सकती है। इमली में भरपूर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। ये एंटी-ऑक्सीडेंट से भी भरपूर होती है। इसमें कई उपयोगी लवण जैसे कैल्शियम, पोटैशियम, फॉस्फोरस, मैगनीज, आयरन और फाइबर भी पाया जाता है। इमली के पानी से चेहरा धोने से दाग-धब्बे दूर हो जाते हैं। इमली में मौजूद विटामिन सी त्वचा की गहरी रंगत को हल्का करने में मददगार होती है। इमली का रस बालों की रूसी साफ कर देता है।

यह भी पढ़ें: मिलिए रियल लाइफ में बचपन में देखे सपने पूरे करने वाले 'थ्री इडियट्स' से