बेघरों का फुटबॉल वर्ल्डकप: भारत की यह टीम भी चुनौती के लिए तैयार
बेघर होने की वजह से ऐसे लोग बाकी दुनिया से एक तरह से कट जाते हैं। इन लोगों को फुटबॉल के जरिए जोड़ने का काम होमलेस फुटबॉल वर्ल्ड कप कर रहा है।
भारत में बेघर लोगों को फुटबॉल से जोड़ने का काम 'स्लम सॉकर' नाम की संस्था करती है। आरती को भी अपने सपने सच करने का सुनहरा मौका इसी एनजीओ से मिला।
आप शायद उन लोगों की जिंदगी की कल्पना नहीं कर सकते जिनके सिर पर छत नहीं होती। दुनिया भर की एक बड़ी आबादी आज भी झुग्गी-झोपड़ियों में या कहीं खुले आसमान के नीचे जिंदगी बसर करने को मजबूर है। बेघर होने की वजह से ऐसे लोग बाकी दुनिया से एक तरह से कट जाते हैं। इन लोगों को फुटबॉल के जरिए जोड़ने का काम होमलेस फुटबॉल वर्ल्ड कप कर रहा है। 13 नवंबर से मेक्सिको में शुरू होने वाले इस अनोखे फुटबॉल वर्ल्ड कप में 47 देशों की 63 टीम हिस्सा ले रही हैं। खास बात यह है कि इसमें भारत की भी एक टीम है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल आयोजित होने वाल होमलेस फुटबॉल वर्ल्ड कप इस बार 13 से 18 नवंबर को मेक्सिको में आयोजित हो रहा है। भारत में बेघर लोगों को फुटबॉल से जोड़ने का काम 'स्लम सॉकर' नाम की संस्था करती है। आरती को भी अपने सपने सच करने का सुनहरा मौका इसी एनजीओ से मिला। इस टूर्नमेंट का मकसद फुटबॉल के जरिए बेघर लोगों की चुनौतियों को दुनिया के सामने लाना है।
स्लम सॉकर के कार्यकारी अधिकारी अभिजीत बरसे से जब पूछा गया कि बेघर लोगों को बाकी दुनिया के सामने लाने के लिए फुटबॉल को ही क्यों चुना गया तो उन्होंने कहा, 'बहुत सीधी बात है कि फुटबॉल के लिए बहुत अधिक संसाधनों की जरूरत नहीं पड़ती है। शुरू में आपको सिर्फ एक गेंद और छोटी सी जगह की जरूरत होती है यही वजह है कि यह खेल दुनियाभर में पॉप्युलर है।'
नागपुर के इस एनजीओ का मानना है कि खेलों की मदद से सुविधाओं के अभाव में जी रहे लोग अपनी 'उम्मीद और लक्ष्यों' को पूरा कर सकते हैं। वे खेलों की मदद से ये लोग टीम बिल्डिंग, समाज में बराबरी और अनुशासन सीखकर उन्हें जीवन जीने की कला विकसित कर सकते हैं। इस एनजीओ के जरिए टीम में जगह बनाने वाली एक लड़की आरती की दास्तां जितनी संघर्षपूर्ण है उतनी ही दिचस्प भी। 17 साल की आरती फरीदाबाद के इंदिरा कॉम्पलेक्स में बनी झोपड़ी में रहती है। इन दिनों वह होमलेस फुटबॉल वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने आई हुई है।
आरती के माता-पिता मजदूरी करते हैं और परिवार की आय भी स्थिर नहीं है। आरती सरीखा चुनौतीपूर्ण जीवन जीने वाले ज्यादातर लोग अपने सपने अपने संघर्षों में ही भुला देते हैं। लेकिन आरती सपनों को सच में बदलने वाली लड़की है और उसने फुटबॉल खेलने के अपने इरादे को कभी नहीं छोड़ा। संघर्षपूर्ण जिंदगी जी रही आरती को न तो कभी उसके स्कूल (गवर्नमेंट गर्ल्स सीनियर सेकंडरी स्कूल) के टीचर्स ने सराहा और न ही कभी उसके परिवार ने।
अपनी चुनौतियों को याद करते हुए वह बताती है, लोग मुझे कहते थे, 'मैं एक लड़की हूं और मेरे लिए घर के कामकाज सीखना जरूरी है। वह मेरे मां-बाप के पास भी आकर यही कहते थे कि वे मुझे देर तक घर से बाहर क्यों रहने देते हैं। वे मेरे चरित्र पर सवाल उठाते थे।' आरती कहती है, 'इन सब बातों से परेशान होकर मेरे मां-बाप मुझे मारते भी थे और मेरे खेलने पर रोक लगाते थे।' लेकिन अपने इरादों की पक्की आरती ने स्टेडियम जाना नहीं छोड़ा और आज आखिरकार उसने उस टीम में अपनी जगह बना ली है, जो यहां फुटबॉल वर्ल्ड कप खेलने आई है।
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