Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

महिलाओं के प्रति समाज की सोच बदलने वाली यूपी की पहली महिला डीजीपी सुतापा सान्याल

उत्तर प्रदेश के पुलिस विभाग के शीर्ष तक पहुंचने वाली महिला अधिकारी...

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक मुखर वक्ता एवं लेखिका के रूप में भी जानी-पहचानी जाने वाली सुतापा सान्याल राष्ट्रपति के पुलिस मेडल से सम्मानित हो चुकी हैं। वह वर्ष 1983-84 में पटना विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की लेक्चरर भी रही हैं। द जॉन हॉपकिंस विवि से मास्टर्स डिग्री प्राप्त सान्याल लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित कई नामी-गिरामी संस्थानों में व्याख्यान दे चुकी हैं। वह कहती हैं कि जस्टिस डिलेवरी सिस्टम ऐसा होना चाहिए कि किसी को महिलाओं के साथ अपराध करने की हिम्मत न हो।

image


एक बार वर्ष 2013 में सुतापा सान्याल उस वक्त भी सुर्खियों में आई थीं, जब उत्तर प्रदेश में पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा की वह एडीजी बनी थीं। चार्ज लेने के दिन ही उनको एक विचित्र सी स्थिति का सामना करना पड़ा।

उत्तर प्रदेश की पहली तेज तर्रार महिला पुलिस महानिदेशक रहीं सुतापा सान्याल कहती हैं- लड़कियों के पहनावे से अपराध का कोई ताल्लुक नहीं है। दुरचारी की खुद की सोच के कारण उनके साथ अपराध हो रहे हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराध एक सामाजिक मुद्दा है। समाज के सभी अंगों को महिलाओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझ कर उसे निभाना होगा। साथ ही, हर तरह के सिस्टम को इस मुद्दे पर एक साथ काम करना पड़ेगा। जस्टिस डिलेवरी सिस्टम ऐसा होना चाहिए कि किसी को महिलाओं के साथ अपराध करने की हिम्मत न हो।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक मुखर वक्ता एवं लेखिका के रूप में भी जानी-पहचानी जाने वाली सुतापा सान्याल राष्ट्रपति के पुलिस मेडल से सम्मानित हो चुकी हैं। वह वर्ष 1983-84 में पटना विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की लेक्चरर भी रही हैं। द जॉन हॉपकिंस विवि से मास्टर्स डिग्री प्राप्त सान्याल लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित कई नामी-गिरामी संस्थानों में व्याख्यान दे चुकी हैं। इसके साथ ही लोक प्रशासन में उत्तर प्रदेश सरकार ओर से उनको 'लोकमत सम्मान' भी मिल चुका है। वर्ष 2015 में वह ब्रिटेन सरकार की ओर से भारतीय महिला राजनेता के तौर पर बुलाई जा चुकी हैं।

एक साल पहले इंटरपोल ने उनको एकमात्र भारतीय के रूप में बाल-अपराध विरोधी विषय पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया था। उन्होंने ही उत्तर प्रदेश में पुलिस महिला सम्मान प्रकोष्ठ की स्थापना की। स्मार्ट सिटी-सेफ सिटी की वकालत करने वाली सान्याल आज भी कई एक संस्थाओं के साथ जुड़ी हुईं हैं। सुतापा सान्याल का मानना है कि बच्चियों की सुरक्षा और महिलाओं का सम्मान समाज की जिम्मेदारी है। हमे प्रण लेना होगा कि यह हमारी जिम्मेदारी है तो बदलाव कैसे नहीं आएगा। बदलाव की उम्मीद हमेशा खुद से शुरू करनी चाहिए। सिर्फ दूसरों से ही इसकी उम्मीद करना ठीक नहीं है। पुरानी सोच से बाहर आना पड़ेगा।

आज भी महिलाओं की स्वतंत्रता जमीनी हकीकत से बहुत दूर है। किताबों से बाहर निकलने पर ही सही मायने में महिलाओं की स्वतंत्रता यथार्थ समझ में आ सकती है। लोगों को यह पूरी गंभीरता से समझना और उसके अनुकूल आचरण करना होगा कि औरतें भी इंसान हैं। वैसे तो समस्या सबको पता है, अब जरूरत तो उसके समाधान की है। आज महिलाओं के प्रति पुलिस और समाज को संवेदनशील बनाना बहुत जरूरी हो गया है। जेंडर संवेदनशीलता महिलाओं पर भी लागू होती है। वैसी महिला पुलिसकर्मी, जो महिलाओं की शिकायत पर भी पुरुषों का साथ देती हैं, उनकी यह गैरसामाजिक मनोवृत्ति कत्तई सहनीय नहीं है।

महिला पुलिसकर्मी ऐसा इसलिए करती हैं कि वह समाजविरोधी माहौल में फिट हो सकें। कहीं ऐसा न हो जाए कि इसकी जिम्मेदारी सीनियर पुलिस अफसरों को लेनी पड़े। पित्तृसत्तात्मक भावनाएं महिलाओं में भी होती हैं। यदि पुलिस विभाग में तैनात महिलाएं ऐसा कर रही हैं तो वह तो बहुत ही है। पुलिस विभाग के लीडर की यह जिम्मेदारी आ जाती है कि वो अपने अधीनस्थ को समझाएं। उच्च पदस्थ लोगों को चाहिए कि वे नीचे के अधिकारियों को इसके अनुकूल बनाएं।

सुतापा सान्याल कहती हैं कि गांव की महिलाओं को नुक्कड़ नाटक के जरिए उनके अधिकारों के बारे में आगाह किया जाना चाहिए। आज विजुअल और परफार्मिंग आर्ट का जमाना है। साथ ही आईसीई (इंफार्मेशन, कम्यूनिकेशन, इंटरटेनमेंट) को जानना बहुत जरूरी है। जेंडर बायसनेस को तोड़कर आगे बढ़ने वाली इस दिशा में जागरूक महिलाओं को सशक्तीकरण के रोल मॉडल के तौर पर देखा जाना चाहिए। महिला सशक्तीकरण का काम कई स्तरों पर किया जा सकता है। आज इंटरनेट, सोशल मीडिया के जरिए भी लोगों को महिलाओं के प्रति जागरूक किए जाने की बहुत जरूरत है।

सामाजिक जीवन में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध पर चुप रहने की संस्कृति नहीं होनी चाहिए। अभिभावक बच्चियों को क्यों नहीं सीखाते कि अपने हक के लिए लड़ो। साथ ही ये भी गौरतलब होना चाहिए कि लड़कियों को तो हम सशक्त बना रहे हैं पर क्या लड़कों को महिलाओं के सम्मान के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अभिभावक ऐसी बातें क्यों करते हैं कि लड़कियों की तरह मत रोओ, चूड़ियां पहन के घूम रहे हो। यदि घरेलू जीवन में बचपन से ही लड़कों का माइंडसेट बदलने की सतर्कता बरती जाए तो उनके बड़े होने पर स्त्री-विरोधी मानसिकता से काफी हद तक समाज स्वयं उबर सकता है।

सामाजिक परिवर्तन में जबतक सभी चीजें एक साथ काम नहीं करेंगी, तब तक बदलाव संभव नहीं है। जब शिक्षा भी होगी और कानून ऐसा होगा कि क्राइम करने से पहले लोग सोचें कि इसमें केस रजिस्टर भी होगा, संगीन धाराएं लगेंगी और सजा भी होगी तो कोई क्राइम करने की हिम्मत नहीं करेगा। मलाला शिक्षा के बारे में ठीक बोलती हैं। शिक्षा की अहमियत को हमे समझना होगा। एनसीईआरटी ने जेंडर सेंसटाइजेशन को सिलेबस की दृष्टि से गंभीरता से लिया है। कई और स्टेज पर इसे चैप्टर में शामिल किया जा रहा है।

एक बार वर्ष 2013 में सुतापा सान्याल उस वक्त भी सुर्खियों में आई थीं, जब उत्तर प्रदेश में पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा की वह एडीजी बनी थीं। चार्ज लेने के दिन ही उनको एक विचित्र सी स्थिति का सामना करना पड़ा। जब वह अपना कार्यभार संभालने के लिए पुलिस महानिदेशालय पहुंचीं तो उनके कमरे पर ताला लटक रहा था। मजबूर होकर उन्हें डीजी मुख्यालय में अन्यत्र बैठ कर अपना चार्ज लेना पड़ा था। वजह ये थी कि उस समय तक डीजी ईओडब्ल्यू सुब्रत त्रिपाठी सुब्रत त्रिपाठी ने अपना चार्ज भी नहीं छोड़ा था। बातें तो यहां तक हवा में तैरती रहीं कि उन्हें चार्ज लेने से रोकने के लिए डीजी का कमरा बंद रखा गया। इससे पहले सुतापा केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस लौटी थीं।

सुतापा सान्याल जब तक उत्तर प्रदेश में शीर्ष पुलिस पद पर रहीं, हमेशा समाज के हर तबके के लोगों के लिए अपने विभाग के भीतर और बाहर सामाजिक स्तर पर भी जूझती रही हैं। वर्ष 2016 में ‘सेव अवर एल्डर्स’ (एसओए) नाम का एक एप वरिष्ठ नागरिकों के लिए काम करने वाले संगठन हैल्पेज इंडिया की ओर से जारी करते हुए उन्होंने कहा था कि यह एप घरवालों के दुर्व्यवहार या फिर कोई और मुश्किल हालात में पड़े बुजुर्गों को तत्काल मदद देने में काम आता है। उस समय वह महिला सम्मान प्रकोष्ठ की डीजीपी थीं। वह बताती हैं कि उन दिनो राजधानी के घरों में दुर्व्यवहार झेल रहे कई एक बुजुर्गों उनको अपनी दुखभरी कहानियां सुनाई थीं।

उन्होंने बताया था कि वे घरों में घुटते रहते हैं, लेकिन उनको अपनी इस कठिनाई से बचने का कोई रास्ता नहीं नजर आता है। उस मोबाइल एप से उन्हें रास्ता मिला। उसके जरिये बुजुर्ग किसी मुश्किल में होने, एक्सीडेंट होने या किसी के द्वारा परेशान किए जाने पर अपने स्मार्ट फोन से मदद पाने लगे। वे फोन पर कॉल सेंटर से जुड़ गए। उन्हें हेल्थ केयर, वित्तीय प्लानिंग, वसीयत तैयार करने, स्वस्थ्य रहने के लिए उपयोगी एक्सरसाइज की जानकारियां भी उस एप से मिलने लगीं। उस एप की मदद से जीपीएस के जरिए उन स्टोरों की भी उन्हें जानकारी मिलने लगी, जहां उनके लिए विशेष स्कीम या डिस्काउंट दिए जाते हैं।

यह भी पढ़ें: भारत का वो बहादुर रॉ एजेंट जिसने पाकिस्तानी सेना में मेजर बनकर दी थी खुफिया जानकारी