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सिर्फ 2 रूपये में गरीबों का इलाज़ करते हैं ये डॉक्टर दंपति

डॉ. रविन्द्र कोल्हे और उनकी धर्मपत्नी डॉ. स्मिता कोल्हे इस तरह कर रहे हैं ज़रूरतमंदों की मदद...

सिर्फ 2 रूपये में गरीबों का इलाज़ करते हैं ये डॉक्टर दंपति

Thursday April 05, 2018 , 5 min Read

समाज में शायद ही ऐसे लोग बचे हैं जो गरीबों के खातिर अपना सबकुछ न्यौछावर कर देते हैं। डॉ. रविन्द्र कोल्हे और उनकी धर्मपत्नी डॉ. स्मिता कोल्हे उनमें से एक है, इनको महाराष्ट्र के मेलघाट के एक छोटे से गाँव बैरागढ़ के आदिवासियों की मदद करके ही शांति मिलती है।

डॉक्टर रविन्द्र कोल्हे और डॉक्टर स्मिता कोल्हे, फोटो साभार: सोशल मीडिया

डॉक्टर रविन्द्र कोल्हे और डॉक्टर स्मिता कोल्हे, फोटो साभार: सोशल मीडिया


डॉ. कोल्हे का जीवन महात्मा गाँधी जी से बहुत ही ज्यादा प्रेरित हैं। डेविड वार्नर की एक पुस्तक, "Where There Is No Doctor", से उन्होंने बहुत कुछ सीखा और उस से ही प्रेरित होकर डॉ. कोल्हे ने पूरी तरह से अपने मन में तब्दील किया। उन्होंने वास्तविकता में समझा कि चिकित्सा क्या है और क्या है इसका वास्तविक स्वरुप।

आज के इस महंगाई से भरे दौर में जहाँ खाने के लिए सब्जी भी 50 से 80 रूपये में बिक रही है और अच्छे इलाज़ के नाम पर हजारों-लाखों रूपये लोगों से ठगे जा रहे हैं। वहीं देश में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कि बिना किसी स्वार्थ के किसी न किसी तरह से लोगों की मदद पूरी मेहनत और लगन से कर रहे हैं। ऐसे ही लोगों में से एक हैं, डॉक्टर रविन्द्र कोल्हे और डॉक्टर स्मिता कोल्हे, जो कि बिना किसी स्वार्थ और भेदभाव के सिर्फ 2 रूपये में गरीबों का इलाज़ कर रहे हैं।

समाज में शायद ही ऐसे लोग बचे हैं जो गरीबों के खातिर अपना सबकुछ न्यौछावर कर देते हैं। डॉ. रविन्द्र कोल्हे और उनकी धर्मपत्नी डॉ. स्मिता कोल्हे उनमें से एक है, इनको महाराष्ट्र के मेलघाट के एक छोटे से गाँव बैरागढ़ के आदिवासियों की मदद करके ही शांति मिलती है। डॉ. रविन्द्र का जन्म 25 सितम्बर 1960 में महाराष्ट्र के शेगांव में हुआ था।

डॉक्टर रविन्द्र कोल्हे, फोटो साभार: सोशल मीडिया

डॉक्टर रविन्द्र कोल्हे, फोटो साभार: सोशल मीडिया


डॉ. रविन्द्र के पिता श्री देओराव कोल्हे जी रेलवे में नौकरी करते थे। डॉ. रविन्द्र कोल्हे ने वर्ष 1985 में नागपुर मेडिकल कॉलेज से अपनी डॉक्टरी की पढ़ायी पूरी की। डॉ. कोल्हे अपने परिवार के पहले डॉक्टर थे। डॉ. कोल्हे के पिता जी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनका बेटा जो कि किसी भी अच्छे शहर में रह कर एक मोटी रक़म बना सकता है वो एक ऐसे गाँव में रहेगा जहाँ पर जीवन जीने का कोई साधन नहीं है।

डॉ. कोल्हे का जीवन महात्मा गाँधी जी से बहुत ही ज्यादा प्रेरित हैं। डेविड वार्नर की एक पुस्तक, "Where There Is No Doctor", से उन्होंने बहुत कुछ सीखा और उस से ही प्रेरित होकर डॉ. कोल्हे ने पूरी तरह से अपने मन में तब्दील किया। उन्होंने वास्तविकता में समझा कि चिकित्सा क्या है और क्या है इसका वास्तविक स्वरुप। फिर डॉ. कोल्हे ने फैसला किया कि वह अपनी सेवाओं को किसी ऐसी जगह पर देना चाहेंगे जहाँ वास्तव में चिकित्सा की ज़रुरत लोगों को हो। इसके लिए उन्होंने मेलघाट(महाराष्ट्र) के एक छोटे से गाँव बैरागढ़ को चुना।

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मेलघाट महाराष्ट्र का सबसे कुपोषित क्षेत्र है। जब डॉ. रवींद्र कोल्हे ने वर्ष 1989 में यहाँ के गरीब आदिवासियों को अपनी सेवाएं देनी शुरू की थीं, तो उस वक़्त वहां की शिशु मृत्यु दर 200 प्रति 1000 शिशुओं में थी, लेकिन आज वहीं यह दर डॉ. कोल्हे और उनकी पत्नी डॉ. स्मिता द्वारा फैलाई गयी चिकित्सा जागरूकता के कारण 60 से भी नीचे आ गई है। जो कि वाकई में काबिल-ए-तारीफ़ है।

डॉ. कोल्हे यहां पिछले तीन दशकों से काम कर रहे हैं। वे वहां पर चिकित्सा सलाह के लिए सिर्फ 2 रुपये लेते हैं। डॉ. कोल्हे को अपनी पत्नी डॉ. स्मिता से पूरे जीवन भर मदद और प्रोत्साहन मिला है। डॉ. स्मिता जो कि स्वयं मेडिकल स्नातक हैं और बाल रोग विशेषज्ञ भी हैं। वो भी डॉ. कोल्हे के साथ गाँव के लोगों का इलाज़ करके उनकी पूरी मदद करती हैं। डॉ. कोल्हे ने अपने एक साक्षात्कार में टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, "मैं बहुत ही ज्यादा भाग्यशाली हूँ कि मुझे ऐसी पत्नी मिली, जिसने मुझे और मेरी इस जीवन शैली दोनों को चुनने के लिए अपनी सहमति दी।"

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डॉ. कोल्हे ने खेतों, बिजली उत्पादन और श्रमिक मजदूरी जैसे क्षेत्रों में अपना काम भी बढ़ाया है। कृषि के लिए डॉ. रविन्द्र कोल्हे ने स्वयं पंजाबराव कृषी विद्यापीठ से कृषि का अध्ययन किया और फिर मेलघाट वापस आ कर लोगों को कृषि के बारे में शिक्षित किया।

चिकित्सा परामर्श के अलावा, पति और पत्नी की टीम महिलाओं की स्वास्थ्य और शिक्षा के बारे में जागरुकता पैदा करने में भी सक्रिय रही है। 

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डॉ. कोल्हे का कहना है कि वह अपने काम के लिए किसी भी सरकारी सहायता को स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि वह आत्मनिर्भरता में विश्वास करते हैं। हालांकि, उन्होंने उन पुरस्कारों को स्वीकार किया क्योंकि वे अपने पिताजी को गर्व महसूस करवाना चाहते हैं।

डॉ. कोल्हे का पूरा ही जीवन प्रेरणादायक है, फिर भी डॉ. कोल्हे देश के युवाओं से ये अपील करते हैं, कि जितना भी संभव हो सके समाज के सुधार के लिए काम करें। वो कहते हैं कि,"जीवन की सबसे बड़ी संतुष्टि, दूसरे के जीवन की खुशी में योगदान करने में है।"

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