देश का पहला संविधान मोतीलाल नेहरू ने लिखा था
मोतीलाल नेहरु के पिताजी गंगाधर नेहरु साल 1857 में उस वक्त दिल्ली में एक पुलिस अधिकारी थे, जब दिल्ली बगावत से जूझ रहा था। जब ब्रिटिश दल ने शहर में अपना साम्राज्य स्थापित किया, तब गंगाधर अपनी पत्नी जियोरानी और चार बच्चों के साथ आगरा आ गए, जहां चार साल बाद उनका निधन हो गया। उनके निधन के तीन महीने बाद जियोरानी ने एक लड़के को जन्म दिया, जिसका नाम मोतीलाल रखा गया।
1919 से 1920 और 1928 से 1929 के दौरान मोती लाल नेहरू दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।a12bc34de56fgmedium"/>
साल 1900 में इलाहाबाद के सिविल लाइन्स में मोतीलाल नेहरू ने एक विशाल हवेली खरीदी थी, जिसका नाम रखा आनंद भवन। बाद में इस भवन को इंदिरा गांधी ने भारतीय सरकार को सौंप दिया था, जिसमें संग्रहालय खोला गया।
मशहूर वकील और नेता पंडित मोती लाल नेहरु का जन्म 6 मई 1861 में हुआ था। मोतीलाल नेहरु का परिवार कश्मीर से रहता था, लेकिन 18वीं शताब्दी की शुरुआत से वो सब आकर दिल्ली में बस गए। मोतीलाल नेहरु के दादा, श्री लक्ष्मी नारायण मुगल कोर्ट में ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले वकील बने। मोतीलाल नेहरु के पिताजी गंगाधर नेहरु साल 1857 में उस वक्त दिल्ली में एक पुलिस अधिकारी थे, जब दिल्ली बगावत से जूझ रहा था। जब ब्रिटिश दल ने शहर में अपना साम्राज्य स्थापित किया, तब गंगाधर अपनी पत्नी जियोरानी और चार बच्चों के साथ आगरा आ गए, जहां चार साल बाद उनका निधन हो गया। उनके निधन के तीन महीने बाद जियोरानी ने एक लड़के को जन्म दिया, जिसका नाम मोतीलाल रखा गया।
देश के सबसे अमीर वकीलों में से एक
मोतीलाल पढ़ने-लिखने में अधिक ध्यान नहीं देते थे, लेकिन जब उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट की वकालत की परीक्षा दी तो सब आश्चर्यचकित रह गए। इस परीक्षा में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त करने के साथ-साथ स्वर्ण पदक भी हासिल किया। मोती लाल ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से 'बार ऐट लॉ' किया और कानपुर में एक लॉयर के तौर पर प्रैक्टिस भी किया. बाद में वो इलाहाबाद चले गए। मोती लाल नेहरू का नाम देश के सबसे बड़े वकीलों में शुमार किया जाता रहा है। साल 1900 में इलाहाबाद के सिविल लाइन्स में मोतीलाल नेहरू ने एक विशाल हवेली खरीदी थी, जिसका नाम रखा आनंद भवन। बाद में इस भवन को इंदिरा गांधी ने भारतीय सरकार को सौंप दिया था, जिसमें संग्रहालय खोला गया।
महात्मा गांधी ने मोतीलाल की सोच को बदला
महात्मा गांधी के उदय ने भारतीय राजनीति के इतिहास को बदल दिया, उन्होंने मोतीलाल नेहरु और उनके परिवार को भी प्रभावित किया। मोतीलाल नेहरू अपने दौर में देश के चोटी के वकीलों में थे। वह पश्चिमी रहन सहन वेशभूषा और विचारों से काफी प्रभावित थे।
कश्मीरी पंडितों की महान विभूतियों के बारे में पुस्तकें लिख चुके लखनऊ के बैकुंठनाथ के मुताबिक, 'पंडित मोतीलाल नेहरू अपने दौर में हजारों रुपए की फीस लेते थे। उनके मुवक्किलों में अधिकतर बड़े जमींदार और स्थानीय रजवाड़ों के वारिस होते थे।' लेकिन बाद में वह जब महात्मा गांधी के संपर्क में आए तो उनके जीवन में बुनियादी परिर्वतन आ गया। मोतीलाल ने दुखी प्रांत की राहत और शांति के लिए सभी प्रयास किए। मार्शल लॉ के पीड़ित जिन्हें फांसी या उम्रकैद की सजा मिली उनके बचाव के लिए उन्होंने मुफ्त में अपनी वकालत का वक्त दिया।
1919 से 1920 और 1928 से 1929 के दौरान मोती लाल नेहरू दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1920 में कलकत्ता के स्पेशल कांग्रेस के दौरान वो पहली पंक्ति के नेता थे, जिन्होंने असहयोग आंदोलन को अपना समर्थन दिया था।
क्या राजनीति में परिवारवाद के लिए मोतीलाल जिम्मेदार है?
मोतीलाल नेहरू ने अपने पुत्र को कांग्रेस अध्यक्ष बनवाने के लिए महात्मा गांधी को लगातार तीन पत्र लिखे थे। तीसरे पत्र पर अंततः गांधी दबाव में आ ही गए। उससे पहले 19 जून 1927 को महात्मा गांधी ने मोतीलाल को लिखा था कि ‘कांग्रेस का जो रंग-ढंग है, उससे यह राय और भी दृढ होती है कि जवाहरलाल द्वारा उस भार को उठाने का अभी समय नहीं आया है।' पर मोतीलाल के दबाव पर 1929 में जवाहर लाल कांग्रेस अध्यक्ष बने. मोतीलाल नेहरू 1928 में उस पद पर थे।
भारत का पहला लिखित संविधान
साइमन कमीशन के विरोध में सर्वदलीय सम्मेलन ने 1927 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जिसे भारत का संविधान बनाने का जिम्मा सौंपा गया। इस समिति की रिपोर्ट को नेहरू रिपोर्ट के बारे में जाना जाता है। इस नेहरू रिपोर्ट को किसी भी भारतीय का पहला लिखित संविधान माना जाता है। इस रिपोर्ट में भारत को आजाद देश के रूप में देखने की अवधारणा दी गई थी।