रघुराम राजन, RBI के वो गवर्नर जो देश की वित्तीय स्थिरता के आगे सरकार की भी नहीं सुनते थे
3 फरवरी, 1963 को जन्मे रघुराम राजन ने 2013 में आरबीआई के 23वें गवर्नर के तौर पर पद संभाला था. वो सितंबर 2016 तक आरबीआई के गवर्नर बने रहे.
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को 1935 में अपनी स्थापन के बाद से अब तक 25 गवर्नर मिल चुके हैं. इनमें रघुराम राजन को सबसे लोकप्रिय आऱबीआई गवर्नर माना जाता है. इसकी कोई एक दो नहीं कई वजहें हैं.
3 फरवरी, 1963 को जन्मे रघुराम राजन ने 2013 में आरबीआई के 23वें गवर्नर के तौर पर पद संभाला था. वो सितंबर 2016 तक आरबीआई के गवर्नर बने रहे.
आरबीआई के इतिहास में रघुराम राजन को ऐसे शख्स के तौर पर देखा जाता है जिन्होंने आरबीआई की स्वतंत्र संस्था की छवि को दृढ़ता से स्थापित किया.
एक ऐसी संस्था जो सिर्फ और सिर्फ भारत के वित्तीय और मॉनेटरी विकास के लिए काम कर रही है ना कि किसी सरकार को फंड करने वाली वित्तीय संस्थान के तौर पर.
उन्होंने यह भी साबित करके दिखाया कि सत्ता में बैठी पार्टी के आदेश अगर देश और लोगों के हित में नहीं हैं तो आरबीआई उन पर गौर भी नहीं करती.
इकॉनमी को फर्श से अर्श पर पहुंचाया
हुआ यूं कि 2013 में जब उन्होंने आरबीआई गवर्नर का पद संभाला तब इकॉनमी एक दशके निचले स्तर पर थी. रुपया भी रेकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच चुका था.
उस साल अकेले रुपये में 11 फीसदी की कमजोरी आई थी. FII भारत से पैसे निकाल रहे थे, FDI में भी कमी आ रही थी और सबसे खराब यूपीए II में निवेशकों का भरोसा बिल्कुल खत्म हो चुका था.
उन्होंने वित्तीय स्थिरता के लिए काम करना शुरू किया. फिर 2014 में बीजेपी अगुवाई वाली एनडीए की पार्टी सरकार में आ गई. उसने ग्रोथ और रोजगार का वादा किया, उसके लिए सरकार को प्रमुख ब्याज दरों को कम करने की जरूरत थी.
राजन इस फैसले के खिलाफ थे. उनका मानना था कि जब तक महंगाई नीचे नहीं आ जाती और आर्थिक आधारभूत पैमाने स्थिर नहीं हो जाते तब तक ब्याज दरों को नहीं कम किया जा सकता.
राजनीतिक दबाव के आगे नहीं झुके
उन पर ब्याज दरों को घटाने को लेकर लगातार राजनीतिक दबाव बनाया जाता रहा गया. हालांकि, रघुराम राजन ने ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की और उसके बाद भी विपरीत परिस्थितियों में इकॉनमी को तेजी से ग्रोथ की पटरी पर ले आए.
उन्होंने लगातार कई फैसलों के जरिए इस बात को साबित किया की आरबीआई सरकार के दबाव में काम नहीं कर रही. उन्होंने वित्तीय स्थिरता को प्राथमिकता दी.
महंगाई को काबू में करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाईं, एनपीए के खिलाफ किसी भी सख्त नीतियों को लागू करने के लिए कभी राजी नहीं हुए. सभी प्राइवेट और पब्लिक सेकट्र बैंकों को साथ मिलकर देश के हित में करने के लिए प्रोत्साहित किया.
रघुराम राजन का शैक्षणिक बैकग्राउंड से लेकर करियर दोनों ही मजबूत हैं. IIT दिल्ली, IIM अहमदाबाद और MIT से पढ़ाई करने वाले राजन ने यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो, केलॉग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, एमआईटी स्लोअन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट और इंडियन बिजनेस स्कूल में प्रोफेसर भी रहे हैं.
वित्तीय संकट का दिया था पूर्वानुमान
2000 में रघुराम उतने जाने माने अर्थशास्त्री नहीं थे. उस समय उन्होंने अमेरिकी फेडरल बैंक की नीतियों को लेकर सवाल खड़े किए थे और कहा था कि ये पॉलिसी लंबे समय में नकारात्मक साबित हो सकती हैं.
उस समय फेड के चेयरमैन एलेन ग्रीनस्पैन ने उनकी आलोचनाओं का सिरे से खारिज कर दिया लेकिन बाद में राजन की चिंताएं सही साबित हुईं. कुछ ही सालों बाद 2008 में ‘ग्रेट डिप्रेशन’ से दुनिया का सामना हुआ, जिसे अब तक की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी का दौर कहा जाता है.
आरबीआई के पूर्व गवर्नर को ऐसे शख्स के तौर पर भी जाना जाता है जिन्होंने हमेशा और हर चीज को जैसा का तैसा स्वीकार करने की बजाय सवाल किए, चाहें वो सरकार हो या लोग या सहकर्मी.
रघुराम राजन ने आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर कई बार बड़े-बड़े मसलों को लेकर पब्लिक फोरम में चिंता जाहिर की है. उनके इस रवैये के वजह से सरकार ही नहीं बड़े सेंट्रल बैंकर्स और इकोनॉमिस्ट्स भी उनका सम्मान करते थे.
रघुराम राजन को बैंकिंग व्यवस्था के आधार को मजबूत करने का भी क्रेडिट दिया जाता है. एनपीए को लेकर उपयुक्त कदम उठाए. पीएसयू बैंकों के हेड के चुनाव में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया और उनके इस फैसले का असर पीएसयू बैंकों के नतीजों में आने वाला है.
उनके इस तौर तरीके की वजह से उन्हें जनता के साथ-साथ विदेशी निवेशकों से भी काफी समर्थन मिला था. सभी चाहते थे कि बतौर आरबीआई गवर्नर उनका कार्यकाल बढ़ा दिया जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
रघुराम राजन 2016 में हुई नोटबंदी के समर्थन में भी नहीं थे. उनका मानना था कि नोटबंदी भ्रष्टाचार और कालाधन को रोकने का कारगर तरीका नहीं है. हालांकि सरकार ने नोटबंदी की और शायद यही वजह है कि उन्हें तीन साल पूरे होने के बाद एक्सटेंशन नहीं दिया गया.
आरबीआई गवर्नर के इतिहास में रघुराम राजन ऐसे दूसरे गवर्नर हैं जिन्होंने 5 साल अपनी सेवा नहीं दी. सितंबर, 2016 में उन्होंने आरबीआई के पद को छोड़कर वापस शैक्षणिक क्षेत्र में जाने का ऐलान किया. इसके दो महीने बाद ही सरकार ने देश में नोटबंदी कर दी.
सूर्खियों में बने रहते हैं राजन
हालांकि आरबीआई का पद छोड़ने के बाद भी रघुराम राजन कभी खबरों से दूर नहीं रहे. राजन लगातार अपने रिसर्च पेपर, अपने बयान, अपने विश्लेषण की वजह से चर्चा में रहते हैं.
मार्च 2019 में उन्होंने विपक्ष को ये कांग्रेस लीडर को न्याय स्कीम लाने की सलाह दी थी, जो एक मिनिमम इनकम गारंटी स्कीम थी. उन्होंने कहा था कि देश के 20 फीसदी परिवारों को सालाना 72,000 रुपये के भत्ता दिया जा सकता है.
उन्होंने केंद्र सरकार की पीएलआई स्कीमों की आलोचना करते हुए भी लिंक्डइन पर पोस्ट किया था कि हमें ये देखने की जरूरत है कि पीएलआई स्कीमों के मेरिट और डीमेरिट का किस तरह आंकलन किया जा रहा है.
सोशल मीडिया पर उनके किसी भी पोस्ट, बयान को लेकर आज भी खबरें बनती रहती हैं, जो ये बताता है कि उनकी बातों में कितना दम है.