21 की उमर में हर्षित गोधा पढ़ाई छोड़ लंदन से इस्राइल पहुंच गए फार्मिंग सीखने, अब भोपाल में कर रहे हैं खेती
यूके से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई कर मल्टीनेशनल में लाखों का पैकेज पाने की बजाय भोपाल के इस लड़के ने चुना खेती का रास्ता.
यह कहानी है एक 26 साल के लड़के की, जिसके पास लंदन से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई करने के बाद दुनिया की बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में लाखों डॉलर के पैकेज पर नौकरी करने का विकल्प था. लेकिन वो सब छोड़कर उसने अपने वतन लौटने और खेती करने का फैसला किया.
उस लड़के का नाम है हर्षित गोधा. उम्र है महज 26 साल.
साल 2016 में हर्षित यूके के बाथ शहर में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई कर रहे थे. भविष्य उज्जवल था. माता-पिता ने बड़े अरमानों से बेटे को विदेश पढ़ने भेजा था. फिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक हर्षित के जीवन की दिशा ही बदल गई.
अवाकाडो का वो बॉक्स, जिस पर लिखा था “सोर्स फ्रॉम इस्राइल”
हर्षित को जिम, फिटनेस और बॉडी बिल्डिंग का शौक हमेशा से था. उनके खाने की प्लेट में बर्गर और फ्राइज कभी नहीं होते थे. 19-20 साल की उम्र में भी हर्षित के लिए स्वाद से ज्यादा जरूरी चीज थी सेहत. एक दिन रोजमर्रा की ग्रॉसरी खरीदते हुए एवाकाडो के एक पैकेट पर हर्षित की नजर पड़ी. उस पर लिखा था- “सोर्स फ्रॉम इस्राइल.” उस छोटे से एवाकाडो के पैकेट की कीमत भी 20 डॉलर थी. भारतीय रु. में गिनें तो करीब 1500 रुपए.
हर्षित के मन में अचानक ही ख्याल आया, “यूके की ठंड में ये एवाकाडो नहीं उगता. वो इतनी दूर इस्राइल से मंगाते हैं और इतना महंगा बेचते हैं. इस्राइल तो गर्म देश है. तकरीबन भारत जैसा ही गर्म देश. अगर ये एवाकाडो इस्राइल में पैदा हो सकता है तो फिर भारत में क्यों नहीं.”
जुनूनी उमर का जुनूनी ख्याल
ये बात हर्षित के दिमाग में अटक गई थी- “जो इस्राइल में तो भारत में क्यों नहीं?” 21 साल की जुनूनी उमर थी. पढ़ाई चल रही थी. दूसरे सेमेस्टर के बाद एक डेटा एनालिसिस हेल्थकेयर कंपनी में इंटर्नशिप का टाइम था. हर्षित ने इंटर्नशिप को बाय-बाय बोला, बैग पैक किया और अगले ही पल वो हिथ्रो एयरपोर्ट पर थे, तेल अविव (इस्राइल की राजधानी) की फ्लाइट पकड़ने के लिए.
हालांकि हर्षित इस्राइल जाने वाले हवाई जहाज में इतनी बेख्याली में भी नहीं चढ़ गए थे. इसके पहले कुछ दिन और कुछ रातें इंटरनेट पर गुजारी थीं. एवाकाडो की खेती से जुड़ा इंटरनेट पर मौजूद एक-एक पन्ना खंगाल डाला. एवाकाडो इंडस्ट्री पर पूरी रिसर्च कर डाली.
भूमध्य सागर के किनारे बसा इस्राइल का वो गांव
इंटरनेट के जरिए ही हर्षित की मुलाकात बेनी वाइस नाम के एक व्यक्ति से हुई. बेनी तेल अवीव से 63 किलोमीटर दूर हाइफा और हदेरा शहरों के बीच स्थित एक छोटे से किबुज (हिब्रू में गांव को किबुज कहते हैं) मगान में रहते थे. 2000 लोगों की आबादी वाला यह खूबसूरत गांव भूमध्यसागर के किनारे बसा था और एवाकाडो की खेती के लिए जाना जाता था.
बेनी को आश्चर्य हुआ कि 21 साल का एक हिंदुस्तानी लड़का लंदन में अपनी पढ़ाई छोड़कर इस गांव में आकर खेती के गुर सीखना चाहता है. जब हर्षित का जहाल तेल अवीव पहुंचा तो बेनी उसे एयरपोर्ट पर लेने आए थे.
मगान में एक महीना
हर्षित ने मगान में रहकर एवाकाडो फार्मिंग की बारीकियों के बारे में सीखना शुरू किया. बेनी उन्हें अपने साथ खेतों में ले जाते, फार्मिंग की बारीकियां सिखाते, इंडस्ट्री एक्सपर्ट से मिलवाते और रात में परिवार के साथ वक्त बिताते. हर्षित कहते हैं, “मुझे हिब्रू नहीं आती थी और बेनी की अंग्रेजी बड़ी खराब. हम दोनों टूटी-फूटी अंग्रेजी में बात करते, लेकिन सच तो ये है कि भाषा हमारे बीच कभी दीवार नहीं बनी.”
जब कभी काम से फुरसत मिलती तो हर्षित समंदर किनारे बैठकर किताबें पढ़ते. चूंकि वो टूरिस्ट वीजा पर गए थे तो काम नहीं कर सकते थे. ये पूरा वक्त उन्होंने सिर्फ सीखने में बिताया. हर्षित कहते हैं, “बेनी ने मुझे अपने बेटे की तरह अपने घर पर रखा. मुझे फार्मिंग सिखाई. बदले में पैसे भी नहीं लिए. मैं आज भी उनके संपर्क में हूं. इस्राइल में बिताया वक्त मेरे लिए यादगार है.”
भारत वापसी और खेती की जमीन की तलाश
इस्राइल से लौटकर हर्षित यूके गए, पढ़ाई पूरी की, डिग्री बांधी और अगले हवाई जहाज से नई दिल्ली लैंड कर गए. हाथ में डिग्री तो थी, लेकिन हर्षित को दफ्तर की नौकरी नहीं करनी थी.
हर्षित का घर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में है. यहां परिवार का कंस्ट्रक्शन बिजनेस है. पिता चाहते थे कि नौकरी नहीं करनी तो घर के बिजनेस में ही हाथ बंटाओ. लेकिन हर्षित को तो एवाकाडो उगाने थे.
घर लौटने के बाद शहर में जमीन की तलाश शुरू हुई और एक अच्छी जमीन मिल भी गई. उसके बाद उन्होंने बेनी और एक कंसल्टेंट को भोपाल बुलाया. हालांकि भोपाल का मौसम इस्राइल के मगान के मौसम जैसा ही था, फिर भी शुरुआत करने से पहले यह समझना जरूरी था कि यह प्रयोग भारत में कितना सफल हो सकता है.
कैसे होती है एवाकाडो की खेती
आम के पेड़ की तरह एवाकाडो का भी पेड़ होता है. पहले नर्सरी में उसकी छोटी सैपलिंग लगाई जाती है. फिर एक बार जड़ें जम जाने पर उसे जमीन में बोया जाता है. एक पेड़ को बड़ा होने में 3 साल का समय लगता है. 3 साल में उसकी जड़ें, शाखाएं, तने मजबूत हो जाते हैं और पेड़ फल देने लगता है. एक पेड़ का जीवन 25 साल का होता है. 25 साल के बाद उसे काटकर रीग्रास कर सकते हैं.
भारत की जमीन और मौसम देखने के बाद हर्षित ने तय किया कि शुरू में मल्टीपल वेरायटी उगाकर देखेंगे. फिर ये तय करेंगे कि कौन सी वेरायटी ज्यादा अच्छे से उग रही है. फिर बड़े पैमाने पर उसकी खेती की जाएगी.
पौधों का पहला ऑर्डर
2019 में हर्षित ने एवाकाडो के 1800 पौधों का पहला ऑर्डर दिया. ये पौधे इस्राइल से आने थे. हर्षित कहते हैं, “इंपोर्ट की प्रक्रिया इतनी लंबी और टेढ़ी है. मुझे छह महीने लग गए. लोकल और नेशनल परमिट लेना आसान नहीं है. प्लांट्स बनकर रेडी हो गए थे और लाइसेंस अभी तक मेरे पास नहीं आया था. वो कंसाइनमेंट मैं मंगा ही नहीं पाया.”
2020 में जब पौधे मंगवाने की बात हुई तो कोविड आ गया. 2021 में दोबारा ऑर्डर किया तो पता चला कि मई में हमस ने इजरायल पर हमला कर दिया. मेरे पौधे एयरपोर्ट के कोल्ड स्टोरेज में
ही पड़े रहे.
बड़ी जद्दोजहद के बाद आखिरकार पौधे इस्राइल से भोपाल पहुंच पाए. अब वो बाकायदा एक नर्सरी में बड़े हो रहे हैं. हर्षित कहते हैं, “मैं अपने बच्चों की तरह उन पौधों का ख्याल रखता हूं. नर्सरी में ड्रिप ईरीगेशन लगा है, फर्टिलाइजर डला है. पौधे धीरे-धीरे बड़े और मजबूत हो रहे हैं. अक्टूबर के महीने में वो नर्सरी से निकलकर खेतों में पहुंचेंगे.”
अभी से आने लगे हैं देश भर से ऑर्डर
एवाकाडो फार्मिंग की इस पूरी यात्रा के दौरान हर्षित एक काम और कर रहे थे. वो लगातार इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर वीडियो ब्लॉगिंग कर रहे थे. धीरे-धीरे उनका ब्लॉग पॉपुलर होने लगा. लोग जुड़ने लगे. अभी उनके पास देश भर से ऑर्डर आए हुए हैं. अगले साल से वे एवाकाडो की सप्लाय शुरू करेंगे. वे कहते हैं, “सिक्किम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, कोडइकनाल और कुन्नूर से एवाकाडो की हास वेरायटी का ऑर्डर आया है. सेकेंड कैटेगरी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में सप्लाय कर रहा हूं.”
हाल ही में इस्राइल से 4000 पौधों का नया कंसाइनमेंट आया है. वे कहते हैं, “भारत में एवाकाडो फार्मिंग का क्षेत्र संभावनाओं से भरा है. बस फार्मिंग के लिए थोड़ा सी दीवानगी और डूबकर काम करने का जज्बा होना चाहिए.”