आपराधिक लापरवाही से 16,000 लोगों की जान लेने वाले एंडरसन का जब हुआ फूल-मालाओं से स्वागत
डॉमिनिक लापिएर और जेवियर मोरो की किताब ‘फाइव पास्ट मिडनाइट इन भोपाल’ और डॉन कर्जमैन की किताब 'किलिंग विंड' में एंडरसन की वापसी की पूरी कहानी है.
जब कंपनी और मालिकानों की गैरजिम्मेदारी और लापरवाही के कारण हुई भोपाल गैस त्रासदी में 16000 लोगों की जान गई, उस वक्त यूनियन कार्बाइड का हेड और सीईओ वॉरेन एंडरसन था. वही वॉरेन एंडरसन, जिसे भारत के नेताओं और अधिकारियों ने ससम्मान सरकारी गाड़ी में बिठाकर भारत से भागने में मदद की थी.
सब जानते हैं कि ये क्यों और कैसे हुआ, लेकिन किसी कोर्ट में आज तक ये साबित नहीं हो पाया. मैक्सिको की खाड़ी में गैस रिसाव के चलते 40 मछलियों और मगरमच्छों के मरने पर मैक्सिको को धमकाने वाले अमेरिका के साथ एंडरसन को लेकर हुआ हर संवाद बेहद शांति से और सभ्य भाषा में दी गई इस धमकी के साथ खत्म हुआ कि दोनों देशों के आपसी संबंधों पर इसका बुरा असर पड़ सकता है. एंडरसन जो एक बार गया तो फिर वापस नहीं लौटा. भारतीय कोर्ट में उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया.
लेकिन एंडरसन के भारत से ससम्मान सुरक्षित भागने की कहानी बहुत हृदय विदारक है. डॉमिनिक लापिएर और जेवियर मोरो की किताब ‘फाइव पास्ट मिडनाइट इन भोपाल’ और डॉन कर्जमैन की किताब 'किलिंग विंड' में उस घटना का विस्तार से जिक्र है.
2-3 दिसंबर की रात भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में जब वो हादसा हुआ, वॉरेन एंडरसन अमेरिका के डनबरी, कनैटिकट में कंपनी के मुख्यालय में बैठा था. वहां उसे भोपाल की पल-पल की खबर मिल रही थी. एंडरसन के दुनिया भर में सौ से ज्यादा प्लांट थे, जिसमें एक करोड़ सत्रह हजार लोग काम करते थे. यह हादसा न सिर्फ कंपनी की साख पर लगा बट्टा था, बल्कि एंडरसन के लिए भारी व्यापारिक नुकसान भी था.
एंडरसन भारत में हादसे का जायजा लेने के 6 दिसंबर को हिंदुस्तान आया. सांताक्रूज हवाई अड्डे पर उतरकर वो वहां से सीधा ताज होटल पहुंचा. तब तक तीन हजार से ज्यादा लोगों के मरने की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी थी. 2,000 से ज्यादा बुरी हालत में अस्पतालों में जिंदगी और मौत से लड़ रहे थे.
कंपनी के अधिकारियों ने बताया कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी उससे मिलने वाले हैं. कुछ देर बाद एंडरसन एयर इंडिया के विमान से भोपाल के लिए रवाना हुआ. भोपाल हवाई अड्डे पर स्थानीय पुलिस और प्रशासन के अधिकारी एंडरसन के स्वागत के लिए खड़े थे. तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी और डीएम मोती सिंह वहां खुद मौजूद थे.
इतना ही नहीं, हाथों में फूलों की माला लिए लड़कियां भी थीं. स्वागत कर रहे किसी भी अधिकारी के चेहरे पर शहर में मर रहे लोगों का कोई तनाव नहीं था. उन्हें फिक्र थी तो सिर्फ एंडरसन की सुरक्षा की क्योंकि शहर में तनाव था और एंडरसन के खिलाफ बहुत गुस्सा भी.
खुद एंडरसन ने भी ऐसे भव्य स्वागत-सत्कार की उम्मीद नहीं की थी. जब उसने अधिकारियों का शुक्रिया करना चाहा तो उन्होंने कहा, “शहर में काफी तनाव का माहौल है. आपकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है.”
जैसे ही एंडरसन की कार श्यामला हिल्स पर बने सरकारी गेस्ट हाउस पहुंची, वह देखकर हैरान रह गया कि वहां दो पुलिस वाले और शहर का मजिस्ट्रेट उसके इंतजार में खड़े थे. गाड़ी से उतरते ही पुलिस वाले ने कहा, “आप हिरासत में हैं.” हालांकि इस हिरासत का अर्थ ये नहीं था कि उसे जेल में डाला जाना था. हिरासत का मतलब इतना ही था कि वह कहीं बाहर नहीं जा सकता था और न फोन पर किसी से बात, संपर्क कर सकता था.
एंडरसन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 92, 120 बी, 278, 304, 426 और 429 के तहत लापरवाही बरतने, आपराधिक मानव हत्या करवाने, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने, जहरीले पदार्थ के संबंध में गैरजिम्मेदार लापरवाही बरतने और पशुधन को नुकसान पहुंचाने का आरोप था. इसमें से कुछ धाराएं ऐसी थीं, जिसमें न्यूनतम सजा आजीवन कारावास की थी.
अभी तक हुए स्वागत-सत्कार से अभिभूत एंडरसन के लिए यह सब बिलकुल अप्रत्याशित था. उसे उम्मीद नहीं थी कि भारत आने पर वह गिरफ्तार भी हो सकता है.
“मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के साथ हमारी मुलाकात का क्या हुआ?” एंडरसन ने बहुत बेताबी से पूछा.
“जो भी होगा, आपको सूचित किया जाएगा.” पुलिस अधिकारी ने जवाब दिया.
चिंता में घुल रहे एंडरसन को तब पता नहीं था कि वास्तव में वह एक बड़े प्रहसन का हिस्सा है. यह सबकुछ प्लांड तरीके से किया जा रहा था. अर्जुन सिंह शहर में नहीं थे. वो एक चुनावी रैली को संबोधित करने गए हुए थे. लेकिन उन्हें पल-पल की खबर थी. इतनी बड़ी त्रासदी के बाद मध्य प्रदेश सरकार यूं हाथ पर हाथ धरकर बैठी नजर नहीं आ सकती थी. उसे कुछ तो एक्शन करते हुए दिखना था.
योजना दरअसल ये थी कि एंडरसन की गिरफ्तारी के बाद तुरंत एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की जाएगी और इस गिरफ्तारी की खबर को मीडिया में बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाएगा. हुआ भी यही. वॉरेन एंडरसन की गिरफ्तारी की खबर पूरी दुनिया में आग की तरह फैल गई. सिर्फ भारतही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के अखबारों की हेडलाइन बन गई. ऐसा पहली बार हुआ था कि तीसरी दुनिया के किसी देश ने दुनिया के सबसे ताकतवर देश के सबसे ताकतवर बिजनेसमैन को गिरफ्तार करने का साहस दिखाया था, भले ही उसकी जेल दरअसल एक पांच सितारा होटल हो.
लेकिन सच क्या है, ये लोग नहीं जानते थे. उन्हें नहीं पता था कि यह गिरफ्तारी एक बड़े नाटक का हिस्सा थी ताकि सरकार कुछ करती हुई, कुछ एक्शन लेती हुई नजर आए. राजीव गांधी अमेरिका के राष्ट्रपति से खुद संपर्क में थे. अर्जुन सिंह लगातार राजीव गांधी से बात कर रहे थे. यह पहले से तय था कि भारत अमेरिका के साथ अपने राजनयिक संबंध बिगाड़ने का खतरा मोल नहीं ले सकता. इसलिए एंडरसन को सुरक्षित वापस भेजना जरूरी है.
अगले दिन भोपाल के पुलिस प्रमुख ने मजिस्ट्रेट और आला पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में वॉरेन एंडरसन को रिहा किए जाने की घोषणा की. एक अधिकारी ने कहा, “एक सरकारी हवाई जहाज आपको दिल्ली ले जाने की प्रतीक्षा कर रहा है, जहां से आप अपने निजी विमान से अमेरिका लौट सकेंगे.”
फिर उसके सामने एक दस्तावेज पेश किया गया. एंडरसन यह देखकर दंग रह गया कि उसकी कंपनी के स्थानीय कार्यालय ने उसकी जमानत के लिए 25 हजार रुपए का मुचलका भरा था. एंडरसन को सिर्फ उस कागज पर हस्ताक्षर करने थे, जिसके बाद वह जाने के लिए आजाद था.
मीडिया के लिए पुलिस और नेताओं के पास दूसरी स्टोरी थी. एंडरसन पर जितनी धाराएं लगाई गई थीं, वह सब जमानती थीं. इसलिए उसे जमानत पर रिहा किया गया है. लेकिन अगले दिन मीडिया ने सवाल पूछा कि 5000 लोगों की मौत और 2 लाख से ज्यादा भोपालवासियों की जिंदगी में जहर घोलने वाले आदमी की जमानत की कीमत सिर्फ 25,000 रुपए?
जाते हुए एंडरसन ने मुकदमे की सुनवाई के लिए भारत लौटने का वादा किया था, लेकिन वो फिर कभी नहीं लौटा. 9 फरवरी, 1989 को सीजेएम कोर्ट ने एंडरसन के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया और फिर 1 फरवरी 1992 को उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया.
एंडरसन उसके बाद 30 साल जीवित रहा. 29 सितंबर, 2014 को अमेरिका के फ्लोरिडा में 92 साल की उम्र में एंडरसन की मौत हुई.